Monday 17 April 2017

सप्त व्याहृतियों के साथ ब्रह्म गायत्री मन्त्र की साधना .....

सप्त व्याहृतियों के साथ ब्रह्म गायत्री मन्त्र की साधना .....
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प्रिय निजात्मगण, आप सब के शिवरूप को नमन !
मैं अपनी सीमित और अल्प बुद्धि से एक ऐसे विषय पर चर्चा करने का दुःसाहस कर रहा हूँ जिसकी पात्रता मुझ में नहीं है, अतः सभी से क्षमा याचना भी कर लेता हूँ|
निम्न प्रस्तुति मेरी साधू-संतों व विद्वानों के साथ हुए व्यक्तिगत सत्संगों से प्राप्त ज्ञान, निजी अनुभवों और स्वाध्याय पर आधारित है| यह प्रस्तुति गंभीर योग साधकों के लिए ही है| कहीं चूक भी जाऊँ तो आप सब मुझे क्षमा भी कर ही देंगे क्योंकि आप सब मेरी ही निजात्मा हैं और मेरे ह्रदय का सम्पूर्ण अहैतुकी प्रेम आप सब को समर्पित है|
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ऋग्वेद के तृतीय मण्डल के 62वें सूक्त का दसवाँ मन्त्र 'ब्रह्म गायत्री-मन्त्र' के नाम से विख्यात है, जो इस प्रकार है----
"तत्सवितुर्वरेण्यं, भर्गो देवस्य धीमहि, धियो योनः प्रचोदयात् |"
इस ब्रह्म-गायत्री-मन्त्र के मुख्य द्रष्टा तथा उपदेष्टा आचार्य महर्षि विश्वामित्र हैं| यह मन्त्र सभी वेदमन्त्रों का मूल बीज है| इसी से सभी मन्त्रों का प्रादुर्भाव हुआ है|
इसका अर्थ देखिये .....
तत् : उस
सवितु: सविता-सूर्य-प्रकाशक-ज्ञान
वरेण्यं: वरण करने योग्य
भर्ग: शुद्ध विज्ञान स्वरूप
देवस्य: देव का
धीमहि: हम ध्यान करें
धियो: बुद्धि को
य: जो
न: हमारी
प्रचोदयात: शुभ कार्यों में प्रेरित करे
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उस वरण करने योग्य शुद्ध विज्ञान स्वरूप सूर्य- प्रकाशक- ज्ञान देव का हम ध्यान करें जो हमारी बुद्धि को शुभ कार्यों में प्रेरित करे|
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गायत्री की महिमा अनंत है .....
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गायत्र्येव परो विष्णुर्गायत्र्येव पर: शिव:|
गायत्र्येव परो ब्रह्म गायत्र्येव त्रयी तत:|| —स्कन्द पुराण काशीखण्ड ४/९/५८, वृहत्सन्ध्या भाष्य
ब्रह्म गायत्रीति- ब्रह्म वै गायत्री| —शतपथ ब्राह्मण ८/५/३/७ -ऐतरेय ब्रा० अ० १७ खं० ५
भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं को 'गायत्री छन्दसामहम्' अर्थात छंदों में गायत्री कहा है|
गायत्री मन्त्र को ही सावित्री मन्त्र भी कहते है| महाभारत में भी सावित्री (गायत्री) मंत्र की महिमा कई स्थानों पर गाई गयी है|
भीष्म पितामह युद्ध के समय जब शरशय्या पर पड़े होते हैं तो उस समय अन्तिम उपदेश के रूप में युधिष्ठिर आदि को गायत्री उपासना की प्रेरणा देते हैं। भीष्म पितामह का यह उपदेश महाभारत के अनुशासन पर्व के अध्याय 150 में दिया गया है|
युधिष्ठिर पितामह से प्रश्न करते हैं ---- हे पितामह महाप्रज्ञ सर्व शास्त्र विशारद, कि जप्यं जपतों नित्यं भवेद्धर्म फलं महत ॥ प्रस्थानों वा प्रवेशे वा प्रवृत्ते वाणी कर्मणि ।। देवें व श्राद्धकाले वा किं जप्यं कर्म साधनम ॥ शान्तिकं पौष्टिक रक्षा शत्रुघ्न भय नाशनम् ।। जप्यं यद् ब्रह्मसमितं तद्भवान् वक्तुमर्हति ॥
भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर के इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा --- यान पात्रे च याने च प्रवासे राजवेश्यति ।। परां सिद्धिमाप्नोति सावित्री ह्युत्तमां पठन ॥ न च राजभय तेषां न पिशाचान्न राक्षसान् ।। नाग्न्यम्वुपवन व्यालाद्भयं तस्योपजायते ॥ चतुर्णामपि वर्णानामाश्रमस्य विशेषतः ।। करोति सततं शान्ति सावित्री मुत्तमा पठन् ॥
नार्ग्दिहति काष्ठानि सावित्री यम पठ्यते ।। न तम वालोम्रियते न च तिष्ठन्ति पन्नगाः ॥ न तेषां विद्यते दुःख गच्छन्ति परमां गतिम् ।। ये शृण्वन्ति महद्ब्रह्म सावित्री गुण कीर्तनम ॥ गवां मन्ये तु पठतो गावोऽस्य बहु वत्सलाः ।। प्रस्थाने वा प्रवासे वा सर्वावस्थां गतः पठेत ॥
''जो व्यक्ति सावित्री (गायत्री) का जप करते हैं उनको धन, पात्र, गृह सभी भौतिक वस्तुएँ प्राप्त होती हैं ।। उनको राजा, दुष्ट, राक्षस, अग्नि, जल, वायु और सर्प किसी से भय नहीं लगता ।। जो लोग इस उत्तम मन्त्र गायत्री का जप करते हैं, वे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चारों वर्ण एवं चारों आश्रमों में सफल रहते हैं ।।
जिस स्थान पर सावित्री का पाठ किया जाता है, उस स्थान में अग्नि काष्ठों को हानि नहीं पहुँचाती है, बच्चों की आकस्मिक मृत्यु नहीं होती, न ही वहाँ अपङ्ग रहते हैं ।।
जो लोग सावित्री के गुणों से भरे वेद को ग्रहण करते हैं उन्हें किसी प्रकार का कष्ट एवं क्लेश नहीं होता है तथा जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करते हैं ।।
गौवों के बीच सावित्री का पाठ करने से गौवों का दूध अधिक पौष्टिक होता है ।। घर हो अथवा बाहर, चलते फिरते सदा ही गायत्री का जप किया करें ।
भीष्म पितामह कहते हैं कि सावित्री- गायत्री से बढ़कर कोई जप नहीं है|
गायत्री का दूसरा नाम सावित्री सविता की शक्ति ब्रह्मशक्ति होने के कारण ही रखा गया है।
गायत्री का सविता होने के संदर्भ में कुछ उक्तियाँ इस प्रकार हैं— सवितुश्चाधिदेवो या मन्त्राधिष्ठातृदेवता। सावित्री ह्यपि वेदाना सावित्री तेन कीर्तिता। -देवी भागवत
इस सावित्री मन्त्र का देवता सविता- (सूर्य) है। वेद मंत्रों की अधिष्ठात्री देवी वही है। इसी से उसे सावित्री कहते हैं।
यो देवः सवितास्माकं धियो धर्मादिगोचरः। प्रेरयेत् तस्य यद् भर्गः तं वरेण्यमुषास्महे।।
‘जो सविता देव हमारी बुद्धि को धर्म में प्रेरित करता है उसके श्रेष्ठ भर्ग (तेज) की हम उपासना करते हैं।
सर्व लोकप्रसवनात् सविता स तु कीर्त्यते। यतस्तद् देवता देवी सावित्रीत्युच्यते ततः।।-अमरकोश
‘‘वे सूर्य भगवान समस्त जगत को जन्म देते हैं इसलिए ‘सविता’ कहे जाते हैं। गायत्री मन्त्र के देवता ‘सविता’ हैं इसलिए उसकी दैवी-शक्ति को ‘सावित्री’ कहते हैं।’’
मनोवै सविता। प्राणधियः। -शतपथ 3/6/1/13
प्राण एव सविता, विद्युतरेव सविता। -शतपथ 7/7/9
सूर्य ही तेज कहा जाता है।
ब्रह्म तेज और सविता एक ही हैं। गायत्री को तेजस्विनी कहा गया है। सविता तेज का प्रतीक है। अस्तु सविता का तेज और गायत्री के भर्ग को एक ही समझा जाना चाहिए।
गायत्री मन्त्र के देवता सविता हैं और उनकी भर्गः ज्योति का ध्यान करते हैं जो आज्ञा चक्र से ऊपर सहस्त्रार में या उससे भी ऊपर दिखाई देती है|
गुरु कृपा से ही परा सुषुम्ना का द्वार खुलता है जो मूलाधार से आज्ञा चक्र तक है|
उससे भी आगे उत्तरा सुषुम्ना जो आज्ञाचक्र से सहस्त्रार तक है, में प्रवेश तो गुरु की अति विशेष कृपा से ही हो पाता है|
वहाँ जो ज्योति दिखाई देती है वही सविता देव की भर्गः ज्योति है जिसका ध्यान किया जाता है और जिसकी आराधना होती है| इसका क्रम इस प्रकार मेरुदंड व मस्तिष्क के सूक्ष्म चक्रों पर मानसिक जाप करते हुए है ---
ॐ भू: ------ मूलाधार चक्र,
ॐ भुवः ---- स्वाधिष्ठान चक्र,
ॐ स्वः ----- मणिपुर चक्र,
ॐ महः ---- अनाहत चक्र,
ॐ जनः -- -- विशुद्धि चक्र,
ॐ तपः ------ आज्ञा चक्र,
ॐ सत्यम् --- सहस्त्रार ||
फिर आज्ञाचक्र और सहस्त्रार के मध्य में विराट सर्वव्यापी श्वेत भर्ग: ज्योति का ध्यान किया जाता है और चित्त जब स्थिर हो जाता है तब फिर प्रार्थना की जाती है ----
"ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं| ॐ भर्गोदेवस्य धीमहि| ॐ धियो योन: प्रचोदयात||"
यह त्रिपदा गायत्री है| इसमें चौबीस अक्षर हैं|
सप्त व्याहृति के साथ गायत्री जाप करना चाहिए|
पहली विधि :--
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ॐ भू: -------- मूलाधार
ॐ भुवः ------ स्वाधिष्ठान
ॐ स्वः ------- मणिपुर
ॐ महः -------- अनाहत
ॐ जनः -------- विशुद्धि
ॐ तपः --------- आज्ञा
ॐ सत्यं --------- सहस्त्रार
तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्यधीमहि धियोयोनःप्रचोदयात् ----------- सहस्त्रार |||
अंत में दाएं हाथ की तीन अन्गुलियों से स्पर्श करते हुए ----
आपोज्योति -------दाईं आँख
रसोsमृतं ---------- बाईं आँख
ब्रह्मभूर्भुवःस्वरों --- भ्रूमध्य
यह गायत्री क्रिया है| इसका जाप अधिकाधिक करना चाहिए||
दूसरी विधि :--
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(१) ॐ -- प्राण ऊर्जा को ब्रह्मरंध्र तक क्रिया प्राणायाम द्वारा लाकर वहीँ रहने दें| श्वास वहीँ छोड़ दें|
विचार रखिये कि ईश्वरीय ब्रह्म शक्ति और अतिमानस शक्ति सहस्रार में अवतरण कर रही है|
तीन बार गम्भीर और लम्बे श्वास लें|
(२) ॐ ---- ब्रह्मरन्ध्र से मूलाधार तक और भूः से बापस ब्रह्मरन्ध्र|
(३) ॐ ---- ब्रह्मरन्ध्र से स्वाधिष्ठान तक और र्भुव: से ब्रह्मरन्ध्र।
(४) ॐ ---- ब्रह्मरन्ध्र से मणिपुर तक और स्व: से मणिपुर से ब्रह्मरन्ध्र।
(५) ॐ ---- ब्रह्मरन्ध्र से अनाहत तक और महः से अनाहत से ब्रह्मरन्ध्र|
(६) ॐ ---- ब्रह्मरन्ध्र से विशुद्धि तक और जनः से विशुद्धि से ब्रह्मरन्ध्र|
(७) ॐ ---- ब्रह्मरन्ध्र से आज्ञा तक और तपः से आज्ञा से ब्रह्मरन्ध्र|
(८) ॐ ---- ब्रह्मरन्ध्र से ब्रह्मरन्ध्र तक और सत्यम् से ब्रह्मरन्ध्र से ब्रह्मरन्ध्र|
(९) ॐ ---- ब्रह्मरन्ध्र से मणिपुर तक और तत्सवितुर्वरेण्यं से ब्रह्मरन्ध्र तक|
(१०) ॐ ---- ब्रह्मरन्ध्र से विशुद्धि तक और भर्गो देवस्य धीमहि से ब्रह्मरन्ध्र तक|
(११) ॐ ---- ब्रह्मरन्ध्र से आज्ञा तक और धियोयोन:प्रचोदयात् से ब्रह्मरन्ध्र तक|
(१२) ॐ ---- ब्रह्मरन्ध्र से महाशून्य और बापस ब्रह्मरन्ध्र|
श्वास-प्रश्वास ब्रह्मरन्ध्र में ही|
चौबीस बार यह गायत्री क्रिया करनी है|
अंत में --
आपोज्योति -------दाईं आँख |
रसोsमृतं ---------- बाईं आँख |
ब्रह्मभूर्भुवःस्वरों --- भ्रूमध्य ||
सात व्याह्रतियों के साथ गायत्री मन्त्र और प्राणायाम ........
(गायत्री साधना की यौगिक व तांत्रिक विधि)
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यह एक जप है| जप से पूर्व संकल्प करना पड़ता है कि आप कितने जप करेंगे| जितनों का संकल्प लिया है उतने तो करने ही पड़ेंगे|
फिर उस ज्योति का ध्यान करते रहो और ॐ के साथ साथ ईश्वर की सर्वव्यापकता में मानसिक अजपा-जप करते रहो| ईश्वर की सर्वव्यापकता आप स्वयं ही हैं|
(पूरी विधि किसी शक्तिपात संपन्न सद्गुरु से सीखनी चाहिए)
समापन -- 'ॐ आपो ज्योति रसोsमृतं ब्रह्मभूर्भुवःस्वरोम्' से कर के लम्बे समय तक बैठे रहो अपने आसन पर और सर्वस्व के कल्याण की कामना करो| प्रभु को अपना सम्पूर्ण परम प्रेम अर्पित करो और आप स्वयं ही वह परम प्रेम बन जाओ|
मुझे एक संत ने बताया था कि ऋग्वेद में एक मंत्र है जिस में "गायत्री" शब्द आता है और उस मन्त्र के दर्शन बिश्वामित्र से बहुत पूर्व शव्याश्व्य ऋषि को हुए थे|
प्रचलित गायत्री मन्त्र के दृष्टा विश्वामित्र ऋषि थे| इस के चौबीस अक्षर हैं और तीन पद हैं| अतः यह त्रिपदा चौबीस अक्षरी गायत्री मन्त्र कहलाता है| बाद में अन्य महान ऋषियों ने गायत्री मंत्र से पहले "भू", भुवः, और "स्वः" ये तीन व्याह्रतियाँ भी जोड़ दीं| अतः पूरा मन्त्र अपने प्रचलित वर्त्तमान स्वरुप में आ गया|
यह सप्त व्याह्रातियुक्त गायत्री साधना की विधि बहुत अधिक शक्तिशाली है और प्रभावी है|
ॐ तत्सत्| ॐ नमः शिवाय|

कृपा शंकर
१८ अप्रेल २०१५

(1) स्वयं शक्तिशाली बनो, अपनी कमी के लिए औरों को दोष मत दो. (2) भ्रमित करने वाले शब्दजाल में मत फँसो.

(1) स्वयं शक्तिशाली बनो, अपनी कमी के लिए औरों को दोष मत दो.
(2) भ्रमित करने वाले शब्दजाल में मत फँसो.
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(1) आप कहीं वन में घूमने गए और सामने कोई हिंसक प्राणी आ जाए और आप को मारने के लिये आप पर आक्रमण करे तो उसके सामने घुटने टेक कर हाथ जोड़ कर रो रो कर प्रार्थना करने से कि महाराज मैंने तो कभी चींटी भी नहीं मारी, मैं तो अहिंसा का पुजारी हूँ और किसी का अहित नहीं करता हूँ, मुझे मत मारो तो क्या वह हिंसक प्राणी आपको छोड़ देगा?
यदि आप सक्षम हैं तो सिंह की भी हिम्मत नहीं होगी आप पर आक्रमण करने की|
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वैसे ही दुर्जन लोग तो आप को दू:खी करेंगे ही क्योंकि यह उनका स्वभाव है| उनको दोष देने की अपेक्षा आप स्वयं सक्षम बनिये| आप सक्षम और शक्तिशाली होंगें तो किसी का साहस नहीं होगा आपका अहित करने का| किसी के साथ अन्याय मत करो और निरंतर परोपकार करो| आत्म प्रशंसा से कुछ नहीं होने वाला|
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हमें अपना अस्तित्व बनाए रखना है तो अपने स्वयं के समाज की कमियों को दूर करना होगा| शास्त्र की रक्षा के लिए शस्त्र भी उठाना होगा| स्वयं को सक्षम बनाना होगा| बालिकाओं को आत्म रक्षा करना सिखाएँ| किशोर अखाड़ों में जाकर व्यायाम करें और शस्त्र चलाना सीखें| उनको दबाने की या छेड़ने की किसी की हिम्मत नहीं होगी|
अपनी कमी के लिए औरों को दोष मत दो|
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(2) कुछ भ्रमित करने वाले उपदेशों से बचो जिन्होनें समाज में भ्रम फैलाया है|
हिन्दुओं को मूर्ख बनाने के लिए ये झूठ सिखाए गए हैं .....
सर्व धर्म समभाव,
सब मार्ग एक ही लक्ष्य पर पहुंचाते हैं,
सब धर्मों में एक ही बात है, आदि आदि|
..... उपरोक्त तीनों बातें हिन्दुओं को मूर्ख बनाए के लिए रची गईं हैं| ये किसी मार्क्सवादी सेकुलर के दिमाग की उपज हैं|
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सिर्फ संकल्प से समभाव नहीं आ सकता| यह तो योग साधना की एक बहुत ऊँची उपलब्धि है| इसी पर भगवान श्री कृष्ण ने कहा है ----- समत्वं योग उच्यते|
"सर्वधर्म समभाव" ..... पूरे संस्कृत या आध्यात्मिक साहित्य में कहीं भी यह वाक्य नहीं है| धर्म तो एक ही होता है| मत-मतान्तर, पंथ, और मजहब ....इनको धर्म नहीं कह सकते|
यह आवश्यक नहीं है कि सभी मार्ग एक ही गंतव्य पर पहुँचते हैं| हो सकता है कोई मार्ग आपको भूल भुलैयों में ही घुमाता रहे और कहीं पहुंचे ही ना|
किन्हीं भी दो मज़हबों में एक बात नहीं है| बिना उनका अध्ययन हम कह देते हैं कि उनमें एक ही बात है|
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सभी को नमन| ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ नमः शिवाय ||
कृपा शंकर
१८ अप्रेल २०१३

भगवान महावीर और स्यादवाद ......

भगवान महावीर और स्यादवाद ......
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महावीर जयंती पर भगवान महावीर के अनुयायियों को शुभ कामनाएँ और अभिनन्दन|
मेरा जहाँ तक अल्प और सीमित ज्ञान है, महावीर की शिक्षाओं का सार और उद्देश्य है ..... "वीतरागता", यानि एक ऐसी अवस्था की प्राप्ति जो राग-द्वेष और अहंकार से परे हो|
उनकी सबसे बड़ी देन है ..... "स्यादवाद" यानि "अनेकान्तवाद"| स्यादवाद दर्शन इतना स्पष्ट, सरल और सर्वग्राह्य है कि उस पर कोई विवाद नहीं हो सकता| उनके अनुसार सत्य को वो ही जान सकता है जिसने 'कैवल्य' की स्थिति प्राप्त कर ली हो|
उनके अनुयायी "कैवल्य" को कैसे परिभाषित करते हैं, इसका मुझे ज्ञान नहीं है| यह मैं अवश्य जानना चाहूँगा|
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उनके दर्शन के बारे में मैंने विभिन्न स्त्रोतों से जो अध्ययन किया है उसका सार यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ .......
स्यादवाद दर्शन :---
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किसी भी वस्तु के अनन्त गुण होते हैं। मुक्त या कैवल्य प्राप्त साधक को ही अनन्त गुणों का ज्ञान संभव है। साधारण मनुष्यों का ज्ञान आंशिक और सापेक्ष होता है। वस्तु का यह आंशिक ज्ञान ही नय कहलाता है। नय किसी भी वस्तु को समझने के विभिन्न दृष्टिकोण हैं। ये नय सत्य के आंशिक रूप कहे जाते हैं। आंशिक और सापेक्ष ज्ञान से सापेक्ष सत्य की प्राप्ति ही संभव है, निरपेक्ष सत्य की प्राप्ति नहीं। सापेक्ष सत्य की प्राप्ति के कारण ही किसी भी वस्तु के संबंध में साधारण व्यक्ति का निर्णय सभी दृष्टियों से सत्य नहीं हो सकता। लोगों के बीच मतभेद रहने का कारण यह है कि वे अपने विचारों को नितान्त सत्य मानने लगते हैं और दूसरे के विचारों की उपेक्षा करते हैं। विचारों को तार्किक रूप से अभिव्यक्त करने और ज्ञान की सापेक्षता का महत्व दर्शाने के लिए ही स्यादवाद या सप्तभंगी नय का सिद्धांत प्रतिपादित किया है।
सापेक्षिक ज्ञान का बोध कराने के लिए प्रत्येक नय के आरंभ में स्यात् शव्द के प्रयोग का निर्देश किया गया है। इसका उदाहरण एक हाथी और छः नेत्रहीन व्यक्तियों के माध्यम से दिया है। सभी नेत्रहीन ज्ञान की उपलब्धता और उस तक पहुँच की सीमा का बोध कराते हैं। यदि कोई हाथी को सीमित अनुभव के आधार पर कहे कि हाथी खम्भे, रस्सी, दीवार, अजगर या पंखे जैसा है तो वह उसके आंशिक ज्ञान और सापेक्ष सत्य को ही व्यक्त करता है। यदि इसी अनुभव में 'स्यात्' शब्द जोड़ दिया जाय तो मत दोषरहित माना जाता है। अर्थात, यदि कहा जाय कि 'स्यात् हाथी खम्भे या रस्सी के समान है' तो मत तार्किक रूप से सही माना जायगा। उर्दू का शब्द "शायद" "स्यात" का ही अपभ्रंस है|
सप्तभंगी नय :---
(1) स्यात्-अस्ति ............................ (शायद है) |
(2) स्यात्-नास्ति .......................... (शायद नहीं है) |
(3) स्यात् अस्ति च नास्ति च ............(शायद है भी और नहीं भी है) |
(4) स्यात् अव्यक्तम् .................... ..(शायद अव्यक्त है) |
(5) स्यात् अस्ति च अव्यक्तम् च ...... (शायद है भी और अव्यक्त भी है) |
(6) स्यात् नास्ति च अव्यक्तम् च ......(शायद नहीं भी है और अव्यक्त भी है) |
(7) स्यात् अस्ति च नास्ति च अव्यक्तम् च...(शायद है भी और नहीं भी और अव्यक्त भी है) |
यह विषय मूल रूप से समझने में अति सरल है| कोई भी इसे समझ सकता है|
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वैदिक और श्रमण परंपरा में अंतर .....
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वैदिक परंपरा और श्रमण परम्परा में मूलभूत अंतर यह है कि वैदिक परम्परा वेदों को अपौरुषेय और प्रमाण मानती है, जहाँ श्रमण परंपरा वेदों को अपौरुषेय और प्रमाण नहीं मानती| वैदिक परम्परा आस्तिक है और श्रमण परम्परा नास्तिक है| जैन दर्शन नास्तिक दर्शन है| इस विषय पर कोई विवाद नहीं होना चाहिए| दोनों में सबसे बड़ी समानता जो है वह है ..... "वीतरागता", जो कोई छोटी मोटी बात नहीं बल्कि बहुत महान उपलब्धि है|
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तीर्थंकर महावीर के उपदेशों की जिन विद्वानों ने विवेचनाएँ की है (क्षमायाचना सहित निवेदन करना चाहता हूँ कि) उन्होंने उसे अत्यंत जटिल और संकीर्ण बना दिया है, अन्यथा यह अत्यंत सरल और पारदर्शी है|
उन्होंने ईश्वर की कहीं आवश्यकता नहीं समझी और सीधे ही वीतरागता की बात की| वीतरागता का अर्थ है ऐसी अवस्था जो राग द्वेष और अहंकार से परे हो| मेरे विचार से यही "कैवल्य" अवस्था है|
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>>> उनके उपदेशों का सार यह है कि पहले वीतराग बनो तभी सत्य को समझ पाओगे| <<<
श्रमण परम्परा का आरम्भ ऋषभदेव से होता है जिनका उल्लेख ऋग्वेद और भागवत में भी है|
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मेरे लिखने में कोई अशुद्धि या दोष रहा हो तो विद्वजनों से क्षमा चाहता हूँ|
धन्यवाद| पुनश्चः मंगल कामनाएँ और अभिनन्दन|
कृपाशंकर
April18,2016

भारत का संविधान क्या मौलिक है ?

भारत का संविधान क्या मौलिक है ?
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भारत के राजनेता कहते हैं कि भारत का संविधान बाबा साहेब अंबेडकर ने लिखा है| पर उन्होंने लिखा क्या है? यह समझना अति कठिन है| सारा संविधान तो ब्रिटिश संसद द्वारा पारित गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट-1935 और 1947 का ही संपादित रूप है, और दो चार बातें इधर उधर से जोड़ दी गयी हैं| बाबा साहेब अम्बेडकर तो उस एक समिति के अध्यक्ष थे जिसने संविधान का वर्तमान रूप बनाया| वे इस संविधान से सहमत भी नहीं थे इसलिए उन्होंने नेहरु मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दिया और अगले चुनावों में स्वयं नेहरु ने उनके विरुद्ध प्रचार किया| भारत की राजनीती में झूठ बहुत अधिक है|
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सन १९७० के दशक तक में छपे हुए संविधान के संस्करणों में धारा-147 छपी हुई है| इसकी भाषा इतनी अधिक कुटिल और जटिल है कि बहुत अच्छे पढ़े-लिखे लोग भी इसे ठीक से नहीं समझ सकते| इसका सार मुझे तो यही समझ में आया कि ब्रिटिश पार्लियामेंट द्वारा पारित गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट 1935 व 1947 सर्वोपरी हैं और भारत की सरकार उन्हें मानने के लिए बाध्य है| इसका अर्थ यह है कि अंग्रेजों ने हमें सता हस्तांतरित की है, स्वतंत्र नहीं किया है| पता नहीं अब तक क्यों इस धारा को निरस्त नहीं किया गया| लगता है किसी ने इसकी जटिल भाषा देखकर इसे समझने का प्रयास ही नहीं किया है| यह धारा यह सिद्ध करती है कि भारत का संविधान ब्रिटिश पार्लियामेंट द्वारा पारित गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट 1935 व 1947 की संशोधित प्रति मात्र है|
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भारत कॉमनवेल्थ में क्यों है ? ब्रिटेन तो अब इतना गरीब हो गया है कि अँगरेज़ महिलाएँ जापान जाकर घरेलु नौकरानियों का कार्य कर रही हैं| कॉमनवेल्थ में रहने का अर्थ है कि ब्रिटेन की महारानी हमारी राज्य प्रमुख है| हम क्यों इस कॉमनवेल्थ नाम का गुलामी का धब्बा ढो रहे हैं?

कश्मीर की समस्या एक धार्मिक समस्या है, राजनीतिक नहीं .....

कश्मीर की समस्या एक धार्मिक समस्या है, राजनीतिक नहीं .....   (Part 1). ........
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>>> भारत की वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था में कश्मीर की समस्या का कोई हल नहीं है| इस के लिए अति सफल कूटनीति और दृढ़ इच्छा शक्ति की आवश्यकता है| यह कोई राजनीतिक समस्या नहीं है, बल्कि धार्मिक समस्या है|
>>> पूरा कश्मीर पकिस्तान को दे दो तो भी वह संतुष्ट नहीं होगा| उसका असली लक्ष्य तो पूरे भारत को पकिस्तान बनाना है|
>>> कश्मीर को एक स्वतंत्र देश बना दो यह भी कोई स्थायी समाधान नहीं है| पाकिस्तान सैन्य आक्रमण कर के चीन की सहायता से उस पर अधिकार कर लेगा|
>>> कश्मीर घाटी में सुन्नी मुसलमान अधिक हैं| वे पाकिस्तान में मिलना चाहते हैं| बाकी कश्मीर में शिया मुसलमान अधिक हैं जो भारत के साथ रहना चाहते हैं| जम्मू में हिदू बहुमत है, लद्दाख में बौद्ध बहुमत है जो भारत के साथ रहना चाहते हैं| असली समस्या कश्मीर घाटी में है|
>>> पाक अधिकृत कश्मीर में विशेषकर बाल्टीस्तान और गिलगिट में शिया बहुमत है जो पकिस्तान का साथ नहीं चाहते| पर फौजी ताकत से दबाकर उन्हें रखा गया है| पूर्व तानाशाह जिया-उल-हक ने पाक अधिकृत कश्मीर का जनसांख्यिकी परिवर्तन करने के लिए लाखों सुन्नियों को कश्मीर में बसाया ताकि शियाओं को दबा कर रखा जा सके|
>>> जब तक पकिस्तान का अस्तित्व है तब तक कश्मीर में कोई शांति नहीं हो सकती|
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>>> कश्मीर की समस्या का एक मात्र हल है ....... अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक और सैन्य सहयोग से पकिस्तान को चार टुकड़ों में बाँट दिया जाए| बलूचिस्तान, सिंध और कबायली इलाकों सहित पख्तूनख्वा को .... पंजाब से पृथक कर दिया जाए| पूरा पकिस्तान सिर्फ पाकिस्तानी पंजाब तक ही सीमित रह जाए|
>>> इसके लिए हमें अमेरिका, रूस, इजराइल, फ़्रांस और ईरान जैसे देशों से पूर्ण सक्रीय सहयोग भी लेना पड़ेगा| चीन को भी एक बार तो मनाना ही होगा|
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पकिस्तान का अस्तित्व विश्व शांति के लिए खतरा है| पकिस्तान को नष्ट किये बिना विश्व में सुख-शांति नहीं हो सकती|
>>> भारत के हित में पाकिस्तान को विखंडित करना अति आवश्यक है|
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वन्दे मातरं | भारत माता की जय | ॐ ॐ ॐ ||
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Aprl 17, 2017.

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कश्मीर की समस्या एक धार्मिक समस्या है, राजनीतिक नहीं .....   (Part 2). .......
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कश्मीर की समस्या पर कल मैनें एक लेख लिखा था, तब से अब तक २४ घंटों के भीतर भीतर ही स्थिति अत्यधिक बिगड़ चुकी है क्योंकि लोगों के दिमाग में बहुत अधिक ज़हर घोला हुआ है| कश्मीर घाटी में सभी स्कूल कॉलेज आज बंद हैं, इन्टरनेट सेवा भी बंद है और SMS सेवा भी बंद है| वहाँ पत्थरबाजी एक स्थापित उद्योग बन चुका है|
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पाकिस्तान से युद्ध तो अवश्यम्भावी है| पर भारत निर्णायक युद्ध अकेला नहीं लड़ सकेगा, किसी न किसी महाशक्ति को साथ में लेना ही होगा| इसका कारण नीचे लिख रहा हूँ|
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आज अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भारत आये हुए हैं| देखो क्या मंत्रणा होती है|
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दो-एक वर्ष पूर्व सऊदी अरब और ईरान में बहुत अधिक तनाव था और युद्ध की सी स्थिति बन गयी थी| उस समय सऊदी अरब ने ३८ मुस्लिम देशों के सुन्नी सैनिकों को अपने यहाँ बुलाकर पूरे विश्व की एक सुन्नी मुस्लिम सेना बनाई थी जिसके सेनापति पाकिस्तान के पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल राहील शरीफ हैं| इसका मुख्यालय रियाद में है| पकिस्तान की तो एक पूरी डिवीज़न इस सेना में है|
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अब पाकिस्तान और सऊदी अरब में एक युद्ध संधि है कि इनमें से किसी भी एक देश का यदि किसी तीसरे देश से युद्ध होता है तो दोनों की सेनाएँ साथ साथ लड़ेंगी| यदि भारत का पाकिस्तान से युद्ध होता है तो सऊदी अरब और उसकी यह मुस्लिम सेना भी पाकिस्तान के लिए लड़ेंगी|
भारत को घेरने के लिए सऊदी अरब ने मालदीव में एक द्वीप लीज पर लिया है जिस पर सऊदी अरब और पकिस्तान मिलकर एक नौसैनिक अड्डा बनायेंगे| यह भारत को घेरने के लिए पाकिस्तान की एक चाल है| मालदीव की वर्तमान सरकार घोर भारत विरोधी है|
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उपरोक्त चाल उसी तरह है जिस तरह चीन ने बंगाल की खाड़ी में म्यान्मार के कोको द्वीप पर एक सैनिक अड्डा बना रखा है और भारत पर वहाँ से दृष्टी रखता है| यह कोको द्वीप भारत का ही था जिसे भारत की ही एक पूर्व सरकार ने बर्मा को भेंट कर दिया था| भारत को घेरने के लिए चीन तो श्रीलंका और बंगलादेश में भी सैनिक अड्डे बनाना चाहता था, पर भारत की कूटनीति से सफल नहीं हुआ|
पर पाकिस्तान के साथ यदि भारत का युद्ध होता है तो चीन भी भारत के विरुद्ध युद्ध छेड़ सकता है| अतः भारत को महाशक्तियों का साथ तो लेना ही होगा|
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भारत का वर्त्तमान राजनीतिक नेतृत्व सक्षम है जो किसी भी स्थिति का सफलता से सामना कर लेगा|
इति|

April 18, 2017. 
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कश्मीर की समस्या एक मजहबी समस्या है, राजनीतिक नहीं .......   (Part 3) ......
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मैंने 17 अप्रेल को उपरोक्त शीर्षक से ही एक लेख लिखा था| आज उसी कड़ी में बदली हुई परिस्थितियों में समय की आवश्यकतानुसार यह दूसरा लेख लिख रहा हूँ|
हिजबुल मुज़ाहिदीन के मारे गए कमांडर जिस स्कूल ड्रोप आउट बुरहान बानी को आज सारे अलगाववादी और पाकिस्तान एक महान शहीद और कश्मीर का हीरो बता रहे हैं, उसी हिजबुल मुजाहिदीन के वर्तमान कमांडर ज़ाकिर मूसा (संयोग से वह भी इंजीनियरिंग की फाइनल परीक्षा में फेल और कॉलेज ड्रॉप आउट है) ने अब साफ़ साफ़ फ़रमाया है कि कश्मीर घाटी में जो मारकाट मचाई जा रही है उसका सम्बन्ध किसी आज़ादी की लड़ाई से नहीं है, बल्कि कश्मीर को इस्लामी निजाम-ए-मुस्तफा यानि इस्लामी राज्य बनाने से है| उसने अलगाववादी हुर्रियत कांफ्रेंस के नेताओं को चेतावनी भी दी है कि यदि उन्होंने कश्मीर की समस्या को राजनीतिक बताया तो उनके सिर कलम कर दिए जायेंगे|
(पढ़िए आज के "पंजाब केसरी" समाचार पत्र में श्री अश्विनी कुमार का लिखा विशेष सम्पादकीय "कश्मीर में 'इस्लामी' लड़ाई!")
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कश्मीर के अलगाववादी आजकल कश्मीर को सीरिया बनाने का प्रयास कर रहे हैं| कश्मीर में नागरिक शासन विफल हो चुका है| कश्मीर को सेना के हवाले कर के ही स्थिति को अब नियंत्रण में लाया जा सकता है|
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बुरहान वानी के लिए बरखा दत्त ने चीख चीख कर कहा था कि एक गरीब मास्टर का मासूम बेटा मार दिया गया| उस बुरहान वानी की जगह नियुक्त हुए हिज़्बुल के ज़ाकिर मूसा ने अब खुलेआम ऐलान कर दिया है कि कश्मीर में लड़ाई इस्लामिक स्टेट बनाने और शरिया लागू करने के लिए है| कश्मीर में ये सारा तांडव केवल शरीयत लागू करने के लिए ही हो रहा है| इस दिशा में पहला कदम कश्मीरी पंडितों को घाटी से बाहर निकालना था|
अब यह स्पष्ट हो गया है कि कश्मीर की समस्या एक मज़हबी समस्या है, राजनीतिक नहीं|
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पूरा कश्मीर पकिस्तान को दे दो तो भी वह संतुष्ट नहीं होगा| उसका असली लक्ष्य तो पूरे भारत को पकिस्तान बनाना है|
कश्मीर को एक स्वतंत्र देश बना दो यह भी कोई स्थायी समाधान नहीं है| पाकिस्तान सैन्य आक्रमण कर के चीन की सहायता से उस पर अधिकार कर लेगा|
जब तक पकिस्तान का अस्तित्व है तब तक कश्मीर में कोई शांति स्थापित नहीं हो सकती|
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कश्मीर की समस्या का एक मात्र हल है ....... अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक और सैन्य सहयोग से पकिस्तान को चार टुकड़ों में बाँट दिया जाए| बलूचिस्तान, सिंध और कबायली इलाकों सहित पख्तूनख्वा को .... पंजाब से पृथक कर दिया जाए| पूरा पकिस्तान सिर्फ पाकिस्तानी पंजाब तक ही सीमित रह जाए|
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पाकिस्तान का अस्तित्व विश्व शांति के लिए खतरा है| पकिस्तान को नष्ट किये बिना विश्व में सुख-शांति नहीं हो सकती| भारत के हित में पाकिस्तान को विखंडित करना अति आवश्यक है|
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वन्दे मातरं | भारत माता की जय | ॐ ॐ ॐ ||


May 14, 2017. 

जो हम पाना चाहते हैं, जिसे हम ढूंढ रहे हैं, वह तो हम स्वयं ही हैं ...

जो हम पाना चाहते हैं, जिसे हम ढूंढ रहे हैं, वह तो हम स्वयं ही हैं ....
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>>> हम जीवन की संपूर्णता व विराटता को त्याग कर लघुता को अपनाते हैं तो निश्चित रूप से विफल होते हैं| दूसरों का जीवन हम क्यों जीते हैं? दूसरों के शब्दों के सहारे हम क्यों जीते हैं? पुस्तकों और दूसरों के शब्दों में वह कभी नहीं मिलता जो हम ढूँढ रहे हैं, क्योंकि अपने ह्रदय की पुस्तक में वह सब लिखा है|
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>>> कुछ बनने की कामना से हम कुछ नहीं बन सकेंगे, क्योंकि जो हम बनना चाहते हैं, वह तो पहले से ही हैं| कुछ पाने की खोज में भटकते रहेंगे, कुछ नहीं मिलेगा क्योंकि ...... जो हम पाना चाहते हैं वह तो हम स्वयं ही हैं|
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>>> जीव और शिव, आत्मा और परमात्मा, भक्त और भगवान ------ इन सब के बीच की कड़ी है ..... परमप्रेम और समर्पण| जब हम स्वयं ही वह परमप्रेम बन जाते हैं तो फिर बीच में कोई भेद नहीं रहता| यही है रहस्यों का रहस्य | उठो इस नींद से, और पाओ कि हम स्वयं ही अपने परम प्रिय हैं| हम खंड नहीं, अखंड हैं| हम यह देह नहीं बल्कि सम्पूर्णता हैं| हम स्वयं ही मूर्तिमंत परम प्रेम हैं|
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>>> जिसने हमें अब तक भ्रम में डाल रखा था वे हैं हमारे ही चित्त की तरल चंचल वृत्तियाँ जिन्हें हम कभी शांत नहीं कर सके| अतः अब बापस हम उन्हें परमात्मा को समर्पित कर रहे हैं| ये चित्त की चंचलता पता नहीं कब से भटका रही है| शांत होने का नाम ही नहीं ले रही है|
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>>> हे प्रभू, इन्हें बापस स्वीकार कीजिये क्योंकि इन्हें शांत करना अब हमारे वश की बात नहीं है| देना ही है तो अपना स्थायी परम प्रेम दीजिये, इसके अलावा और कुछ भी नहीं चाहिए|
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>>> अज्ञान के अनंत अन्धकार से घिरे इस दुर्गम अशांत महासागर के पथ पर सिर्फ एक ही मार्गदर्शक ध्रुव तारा है, और वह है आपका प्रेम| वह ही हमारी एकमात्र संपदा है जो कभी कम ना हो|
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>>> न तो हमें श्रुतियों और स्मृतियों आदि शास्त्रों का कोई ज्ञान है और न ही उन्हें समझने की क्षमता| इस देह रूपी वाहन में भी अब कोई क्षमता नहीं बची है| हमारी इन सब लाखों कमियों, दोषों, और अक्षमताओं को बापस आपको अर्पित कर रहे हैं| सारे गुण-दोष, क्षमताएँ-अक्षमताएँ, पाप-पुण्य, अच्छे-बुरे संचित व प्रारब्ध सब कर्मों के फल और सम्पूर्ण पृथक अस्तित्व, सब कुछ बापस आपको अर्पित है, इसे स्वीकार करें| आप के अतिरिक्त अब हमें और कुछ भी नहीं चाहिए|
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>>> आपकी अनंतता हमारी अनंतता है, आपका प्रेम हमारा प्रेम है, और आपका अस्तित्व हमारा अस्तित्व है| आप और हम एक हैं| आपका यह परम प्रेम सबको बाँटना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपाशंकर
April 17, 2016

माननीय नरेन्द्र मोदी की वेंकूवर (ब्रिटिश कोलंबिया, कनाडा) में एक बहुत बड़ी उपलब्धी..

अप्रैल १७, २०१५.
 
 माननीय नरेन्द्र मोदी की वेंकूवर (ब्रिटिश कोलंबिया, कनाडा) में एक बहुत बड़ी उपलब्धी..
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भारत में बहुत कम लोगों को पता है कि जब पृथक खालिस्तान आन्दोलन चला था तब उसके लिए सबसे अधिक आर्थिक सहयोग वेंकूवर (ब्रिटिश कोलंबिया, कनाडा) से आता था|
मैं पहली बार प्रशांत महासागर के तट पर स्थित वेंकूवर नगर में सन १९८० में गया था, फिर सन १९८५ में दो बार और सन १९९०-९१ में चार बार गया| कुल सात बार वहाँ जा चुका हूँ| वहाँ अनेक मित्र थे| १९९० में मैंने अपना नया पासपोर्ट भी वेकुवर के भारतीय कोंसुलेट से बनवाया था| वहाँ नगर में खालिस्तान समर्थक समाचार पत्र खुले आम मिलते थे| पंजाब और गुजरात से गए प्रवासी वहाँ खूब हैं| सबसे अधिक पंजाबी प्रवासी हैं| वहाँ के एक गुरूद्वारे में तो बीचोंबीच एक दीवार खड़ी कर दी गयी थी क्योंकि उस गुरूद्वारे के आधे सदस्य खालिस्तान के पक्ष में थे और आधे खालिस्तान के विरोध में| वहाँ की इंडिया स्ट्रीट के पंजाबी मार्केट में तो लगता ही नहीं है कि आप कनाडा में हैं| वह बाज़ार पंजाब के किसी बाज़ार जैसा ही लगता है|
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वहाँ के कुछ खालिस्तानी, नरेन्द्र मोदी को एक ज्ञापन देना चाहते थे कि हम हिन्दू नहीं हैं| पर मोदी जी का साहस देखिये कि वे कनाडा के प्रधान मंत्री को साथ लेकर उस गुरूद्वारे में गए, वहाँ दोनों नेताओं ने मत्था टेका और भूमि पर बैठकर सत्संग भजन कीर्तन सुना और उसके पश्चात तालियों की गडगडाहट के मध्य उच्चतम न्यायालय के एक फैसले का उद्धरण देते हुए हिंदुत्व पर एक भाषण भी दे दिया| कहीं कोई विरोध नहीं हुआ| इसके लिए साहस चाहिए| फिर वे वहाँ के प्रसिद्द लक्ष्मीनारायण मंदिर भी गए और कनाडा के प्रधान मंत्री के साथ पूजा अर्चना की|
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ब्रिटिश कोलम्बिया में ही एक दो अन्य नगरों में भी गया हूँ| इससे पहिले सन १९८२ में अटलांटिक महासागर तट पर सेंट लॉरेंस नदी के मुहाने पर मोंट्रीयाल नगर भी गया था और वहाँ से कनाडा का नियाग्रा जलप्रपात भी दो बार देख कर आया| वहीं से अमेरिका में शिकागो, डेट्रॉइट, मिल्वाउकी और ड्यूलूथ भी गया था|
कनाडा में मेरे से मिलने अनेक ईसाई पादरी आते थे और मुझे प्रभावित कर अपने मत में सम्मिलित करना चाहते थे| मेरी उनसे बड़ी बहस होती थी और मैं उनको निरुत्तर कर दिया करता था| फिर भी कभी किसी पादरी को मैंने क्रोध करते या निराश होते नहीं देखा| उनको धैर्य रखने का बहुत अच्छा प्रशिक्षण मिला हुआ था| एक बार कनाडा के ही एक नगर की ही बात है| बहुत ठण्ड थी और बरसात हो रही थी| मैंने मेरे से मिलने आये एक पादरी से अनुरोध किया कि वे मुझे किसी हिन्दू मंदिर में ले चलें क्योंकि किसी मंदिर में जाने की इच्छा थी| वह पादरी मुझे उस खराब मौसम में भी दो घंटे अपनी कार चलाकर एक दूसरे शहर के एक बड़े हिन्दू मंदिर में ले गया, और हमने दर्शन करने के बाद वहाँ के रेस्टोरेंट में शाकाहारी खाना भी खाया| फिर वह बापस मुझे छोड़ कर भी गया| उसने अपना धैर्य नहीं खोया|
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वेंकूवर के स्टेनली पार्क में कई बूढ़े बूढ़े पंजाबी वृद्ध दम्पतियाँ मिलते थे जो अपनी ही व्यथा सुनाते थे|
कुल मिलाकर वहाँ के भारतीय प्रवासियों के कारण कनाडा एक अच्छा देश है जो अब भारत के साथ व्यापार में सहयोगिता बढ़ा रहा है|

भारत माता की जय| वन्दे मातरं | ॐ ॐ ॐ ||

प्रत्येक व्यक्ति के ह्रदय की गुफा में ही धर्म छिपा है .....

प्रत्येक व्यक्ति के ह्रदय की गुफा में ही धर्म छिपा है .....
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धर्म और अधर्म इन दो शब्दों के प्रचलित अर्थों पर जितनी चर्चाएँ हुई हैं, वाद विवाद, युद्ध और अति भयानक क्रूरतम अत्याचार और हिंसाएँ हुई हैं, उतनी अन्य किसी विषय पर नहीं हुई हैं|
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धर्म के नाम पर, अपनी मान्यताएं थोपने के लिए, अनेक राष्ट्रों और सभ्यताओं को नष्ट कर दिया गया, धर्म के नाम पर लाखों करोड़ मनुष्यों की हत्याएँ कर दी गईं जो आज भी अनवरत चल रही हैं| मनुष्य के अहंकार ने धर्म सम्बन्धी अपनी अपनी मान्यताएँ अन्यों पर थोपने के लिए सदा हिंसा का सहारा लिया है| >>>> मज़हब ही सिखाता है आपस में बैर रखना| <<<<
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धर्म के तत्व को समझने का प्रयास सिर्फ भारतवर्ष में ही हुआ है| भारत का प्राण ... धर्म है| भारत सदा धर्म-सापेक्ष रहा है| धर्म की शरण में जाने का आह्वान सिर्फ भारतवर्ष से ही हुआ है| धर्म की रक्षा के लिए स्वयं भगवान ने यहाँ समय समय पर अवतार लिए है| धर्म की रक्षा हेतु ही यहाँ के सम्राटों ने राज्य किया है| धर्म की रक्षा के लिए ही असंख्य स्त्री-पुरुषों ने हँसते हँसते अपने प्राण दिए हैं|
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भारत में धर्म की सर्वमान्य परिभाषा -- "परहित" को ही माना गया है| कणाद ऋषि के ये वचन भी सबने स्वीकार किये हैं ..... जिससे अभ्युदय और निःश्रेयस की सिद्धि हो वह ही धर्म है| पर यह भी विचार का विषय है कि अभ्युदय और निःश्रेयस की सिद्धि कैसे हो सकती है|
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महाभारत में एक यक्षप्रश्न के उत्तर में धर्मराज युधिष्ठिर कहते हैं ---"धर्मस्य तत्वं निहितं गुहायां" यानि धर्म का तत्व तो निविड़ अगम गुहाओं में छिपा है जिसे समझना अति दुस्तर कार्य है|
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प्रत्येक व्यक्ति के ह्रदय की गुफा में धर्म छिपा है| यदि कोई अपने ह्रदय को पूछे तो हृदय सदा सही उत्तर देगा| मन और बुद्धि गणना कर के स्वहित यानि अपना स्वार्थ देखेंगे पर ह्रदय स्वहित नहीं देखेगा और सदा सही धर्मनिष्ठ उत्तर देगा| ह्रदय में साक्षात भगवान ऋषिकेष जो बैठे हैं वे ही धर्म और अधर्म का निर्णय लेंगे| हमारी क्या औकात है ? पर कोई उन्हें पूछें तो सही|
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हमारी देहरूपी रथ का रथी .... आत्मा है, और सारथी -- बुद्धि है|
बुद्धि ..... कुबुद्धि और अशक्त भी हो सकती है| उसे आप पहिचान नहीं सकते क्योंकि उसकी पीठ आपकी ओर है| धर्माचरण का सर्वश्रेष्ठ कार्य यही होगा कि आप अपनी बुद्धि को सेवामुक्त कर के भगवान पार्थसारथी को अपने रथ की बागडोर सौंप दें| जहाँ भगवान पार्थसारथी आपके सारथी होंगे वहाँ जो भी होगा वह -- 'धर्म' ही होगा, 'अधर्म' कदापि नहीं|
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अंततः मेरा ह्रदय तो यही कहता है कि हम जो भी कार्य अपना अहँकार परमात्मा को समर्पित कर, समष्टि के कल्याण के लिए करते हैं, वही धर्म है| व्यष्टि का अस्तित्व समष्टि के लिए ही है| यही धर्म है| धन्यवाद|
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आप सब में हृदयस्थ भगवान नारायण को प्रणाम|

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपाशंकर
16 अप्रेल 2016

दीर्घसूत्रता, प्रमाद और अनियमितता .....

दीर्घसूत्रता (जो कार्य करना है उसे आगे टालने कि प्रवृत्ति) और प्रमाद व अनियमितता >>>>> ये माया के सबसे बड़े अस्त्र हैं जो हमें परमात्मा से दूर करते हैं| ये हमारी साधना में बाधक ही नहीं, पतन के भी सबसे बड़े कारण हैं|
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नियमित ध्यान आवश्यक है अन्यथा हमारे में परमात्मा को पाने की तीब्र अभीप्सा (अतृप्त प्यास और तड़प) ही समाप्त हो जायेगी| परमात्मा को पाने की तीब्र अभीप्सा और परमात्मा से परम प्रेम (भक्ति) .... ये दो ही तो सबसे बड़े साधन हैं हमारे पास| ये होंगे तभी प्रभु की कृपा होगी और तभी सद्गुरु मिलेंगे| ये ही नहीं रहे तो पतन निश्चित है| यदि हम जीवन में किसी प्रयास के प्रति गंभीर हैं, तो उसके लिए हमें दृढ निश्चयी तथा नियमित होना ही पडेगा| जैसे स्वस्थ रहने के लिए नियमित व्यायाम आवश्यक है वैसे ही साधना में सफलता के लिए नियमित ध्यान आवश्यक है|
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जो काम करना है उसे अभी और इसी समय करो, आगे के लिए मत टालो| यही सफलता का रहस्य है| वो आगे आना वाला समय कभी नहों आयेगा| उपासना का समय हो जाये तो उसी समय उपासना करो, आगे के लिए मत टालो| तभी तो उपास्य के गुण हमारे में आयेंगे|
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ ||
16 April 2016

साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहै थोथा देई उड़ाय .....

साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहै थोथा देई उड़ाय .....
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बालू रेत में चीनी मिला कर छोड़ दो| चींटियाँ बालू को छोड़ देंगी पर चीनी को खा लेंगी| गन्ना चूसते हैं तब रस को तो चूस लेते हैं पर छिलका फेंक देते हैं| संसार में यही दृष्टिकोण अपना होना चाहिए| सारी विचारधाराएँ और वाद हमारे लिए हैं, हम उनके लिए नहीं|
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हमारा प्रेम परमात्मा से है जिसे समझने और जिस की अनुभूति के पश्चात उसके विभिन्न नाम-रूपों में मोह नहीं रहता| लक्ष्य सामने हो तो तो मार्ग-दर्शिका का महत्त्व नहीं रहता| चन्द्रमा को देखने के पश्चात उसकी और संकेत करती अंगुली का महत्त्व नहीं रहता|
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अनुभूत होने पर सच्चिदानंद परमात्मा पर ही दृष्टी रहे, न कि उसके नाम रूपों पर| हाँ, वैराग्य और सर्वत्र ब्रह्मदृष्टी का अभ्यास तो आवश्यक है| जहाँ तक मैं समझता हूँ यही निष्काम कर्म है| बाकी सांसारिक कार्यों में जो हम परोपकार के नाम पर करते हैं, कुछ न कुछ यश और कीर्ति की कामना रहती ही है|
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हे परात्पर गुरु महाराज, आपकी जय हो|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

उत्तरी कोरिया की कुछ यादें .....

उत्तरी कोरिया की कुछ यादें .....
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मेरा दक्षिण कोरिया तो तीन चार बार जाने का काम पडा है पर उत्तरी कोरिया में सन १९८० में यानि आज से लगभग ३७ वर्ष पूर्व एक बार दो-तीन सप्ताह के लिए जाने का काम पडा था| बहुत अधिक प्रतिबन्ध होने के कारण किसी भी विदेशी को वहाँ स्वतंत्र रूप से घूमने फिरने की अनुमति नहीं मिलती है|
उस समय वहाँ पुलिस आदि प्रायः सभी विभागों का काम सेना ही करती थी| सेना के प्रायः सभी अधिकारियों को रूसी भाषा का ज्ञान था| संभवतः उनका प्रशिक्षण रूस में या रूसी अधिकारियों द्वारा हुआ होगा|
मेरा भी रूसी भाषा पर उस समय तक बहुत अच्छा अधिकार था, अतः वहाँ के अधिकारियों से बातचीत में और उन्हें समझने में कोई कठिनाई नहीं हुई|
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वहां के अधिकारियों का जीवन अभावग्रस्त ही लगा अतः सामान्य लोगों का तो बहुत ही बुरा हाल होता होगा| वहाँ के सामान्य लोग गरीबी का ही जीवन जीते होंगे जिसका आभास उन्हें स्वयं को नहीं है| लोगों को किस प्रकार अज्ञान रूपी अन्धकार में असत्य धारणाओं के मध्य रखा जाता है, यह वहाँ स्पष्ट था| मजदूर लोग जब काम करते थे तब एक महिला ध्वनी वितारक यंत्र से उन्हें खूब कड़ी मेहनत करने का भाषण देती रहती थी|
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वहाँ के पूर्व दिवंगत शासक किम इल सुंग का दर्जा तो भगवान से कम नहीं है| उन्होंने "जूचे" नामक एक नई संस्कृति और विचारधारा को जन्म दिया था|
उत्तर कोरिया जूचे कैलेंडर पर चलता है, यह किम इल सुंग की जन्मतिथि पर आधारित है| वहाँ 8 जुलाई और 17 दिसंबर को पैदा होने वालों को इन तारीखों में अपना जन्मदिन मनाने की अनुमति नहीं है| कारण यह कि ये दो तारीखें उनके पूर्व शासकों किम इल सुंग और किम जोंग इल की पुण्यतिथियां हैं|
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अमेरिका और जापान को वहाँ शत्रु राष्ट्र के रूप में सिखाया जाता है| वहाँ का हर नागरिक अमेरिका और जापान को अपना शत्रु मानता है| पूरा देश एक सैनिक किले की तरह ही है|
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वहाँ के इतिहास और भूगोल के बारे में विस्तार भय से यहाँ चर्चा नहीं कर रहा हूँ| संक्षेप में इतना ही कहूंगा कि रूस का अधिकार मंचूरिया पर तो था ही और वह पूरे कोरिया पर नियंत्रण करना चाहता था, इसी कारण सन १९०५ में जापान और रूस में एक भयानक युद्ध हुआ था जिसमें रूस की पराजय विश्व के इतिहास की धारा को बदलने वाली एक अति महत्वपूर्ण घटना थी| भारत पर भी इसका बहुत अधिक प्रभाव पड़ा था| वहाँ कई रूसी लोगों से भी मिलना हुआ था|
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कुल मिलाकर वह देश एक नर्कतुल्य ही है जहाँ किसी धर्म को मानने की सजा तो मृत्युदंड है ही, और वहाँ के तानाशाह के मनमर्जी के अनुसार न चलने की सजा भी मृत्युदंड ही है|
इति||