साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहै थोथा देई उड़ाय .....
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बालू रेत में चीनी मिला कर छोड़ दो| चींटियाँ बालू को छोड़ देंगी पर चीनी को खा लेंगी| गन्ना चूसते हैं तब रस को तो चूस लेते हैं पर छिलका फेंक देते हैं| संसार में यही दृष्टिकोण अपना होना चाहिए| सारी विचारधाराएँ और वाद हमारे लिए हैं, हम उनके लिए नहीं|
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हमारा प्रेम परमात्मा से है जिसे समझने और जिस की अनुभूति के पश्चात उसके विभिन्न नाम-रूपों में मोह नहीं रहता| लक्ष्य सामने हो तो तो मार्ग-दर्शिका का महत्त्व नहीं रहता| चन्द्रमा को देखने के पश्चात उसकी और संकेत करती अंगुली का महत्त्व नहीं रहता|
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अनुभूत होने पर सच्चिदानंद परमात्मा पर ही दृष्टी रहे, न कि उसके नाम रूपों पर| हाँ, वैराग्य और सर्वत्र ब्रह्मदृष्टी का अभ्यास तो आवश्यक है| जहाँ तक मैं समझता हूँ यही निष्काम कर्म है| बाकी सांसारिक कार्यों में जो हम परोपकार के नाम पर करते हैं, कुछ न कुछ यश और कीर्ति की कामना रहती ही है|
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हे परात्पर गुरु महाराज, आपकी जय हो|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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बालू रेत में चीनी मिला कर छोड़ दो| चींटियाँ बालू को छोड़ देंगी पर चीनी को खा लेंगी| गन्ना चूसते हैं तब रस को तो चूस लेते हैं पर छिलका फेंक देते हैं| संसार में यही दृष्टिकोण अपना होना चाहिए| सारी विचारधाराएँ और वाद हमारे लिए हैं, हम उनके लिए नहीं|
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हमारा प्रेम परमात्मा से है जिसे समझने और जिस की अनुभूति के पश्चात उसके विभिन्न नाम-रूपों में मोह नहीं रहता| लक्ष्य सामने हो तो तो मार्ग-दर्शिका का महत्त्व नहीं रहता| चन्द्रमा को देखने के पश्चात उसकी और संकेत करती अंगुली का महत्त्व नहीं रहता|
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अनुभूत होने पर सच्चिदानंद परमात्मा पर ही दृष्टी रहे, न कि उसके नाम रूपों पर| हाँ, वैराग्य और सर्वत्र ब्रह्मदृष्टी का अभ्यास तो आवश्यक है| जहाँ तक मैं समझता हूँ यही निष्काम कर्म है| बाकी सांसारिक कार्यों में जो हम परोपकार के नाम पर करते हैं, कुछ न कुछ यश और कीर्ति की कामना रहती ही है|
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हे परात्पर गुरु महाराज, आपकी जय हो|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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