दीर्घसूत्रता (जो कार्य करना है उसे आगे टालने कि प्रवृत्ति) और प्रमाद व
अनियमितता >>>>> ये माया के सबसे बड़े अस्त्र हैं जो हमें
परमात्मा से दूर करते हैं| ये हमारी साधना में बाधक ही नहीं, पतन के भी
सबसे बड़े कारण हैं|
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नियमित ध्यान आवश्यक है अन्यथा हमारे में परमात्मा को पाने की तीब्र अभीप्सा (अतृप्त प्यास और तड़प) ही समाप्त हो जायेगी| परमात्मा को पाने की तीब्र अभीप्सा और परमात्मा से परम प्रेम (भक्ति) .... ये दो ही तो सबसे बड़े साधन हैं हमारे पास| ये होंगे तभी प्रभु की कृपा होगी और तभी सद्गुरु मिलेंगे| ये ही नहीं रहे तो पतन निश्चित है| यदि हम जीवन में किसी प्रयास के प्रति गंभीर हैं, तो उसके लिए हमें दृढ निश्चयी तथा नियमित होना ही पडेगा| जैसे स्वस्थ रहने के लिए नियमित व्यायाम आवश्यक है वैसे ही साधना में सफलता के लिए नियमित ध्यान आवश्यक है|
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जो काम करना है उसे अभी और इसी समय करो, आगे के लिए मत टालो| यही सफलता का रहस्य है| वो आगे आना वाला समय कभी नहों आयेगा| उपासना का समय हो जाये तो उसी समय उपासना करो, आगे के लिए मत टालो| तभी तो उपास्य के गुण हमारे में आयेंगे|
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ ||
16 April 2016
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नियमित ध्यान आवश्यक है अन्यथा हमारे में परमात्मा को पाने की तीब्र अभीप्सा (अतृप्त प्यास और तड़प) ही समाप्त हो जायेगी| परमात्मा को पाने की तीब्र अभीप्सा और परमात्मा से परम प्रेम (भक्ति) .... ये दो ही तो सबसे बड़े साधन हैं हमारे पास| ये होंगे तभी प्रभु की कृपा होगी और तभी सद्गुरु मिलेंगे| ये ही नहीं रहे तो पतन निश्चित है| यदि हम जीवन में किसी प्रयास के प्रति गंभीर हैं, तो उसके लिए हमें दृढ निश्चयी तथा नियमित होना ही पडेगा| जैसे स्वस्थ रहने के लिए नियमित व्यायाम आवश्यक है वैसे ही साधना में सफलता के लिए नियमित ध्यान आवश्यक है|
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जो काम करना है उसे अभी और इसी समय करो, आगे के लिए मत टालो| यही सफलता का रहस्य है| वो आगे आना वाला समय कभी नहों आयेगा| उपासना का समय हो जाये तो उसी समय उपासना करो, आगे के लिए मत टालो| तभी तो उपास्य के गुण हमारे में आयेंगे|
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ ||
16 April 2016
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