कश्मीर का अतीत बहुत अधिक गौरवशाली रहा है| कश्यप ऋषि की तपोभूमि है कश्मीर जहाँ की शारदा पीठ कभी वैदिक शिक्षा की सर्वोच्च पीठों में से एक थी| वहाँ ललितादित्य जैसे महान सम्राट, आचार्य अभिनव गुप्त जैसे महान दार्शनिक, और लल्लेश्वरी देवी जैसी महान शिवभक्त हुई हैं| कश्मीरी शैव दर्शन का वहाँ जन्म और विकास हुआ जिसके ग्रंथ शैवागमों और तंत्रागमों में प्रमुख स्थान रखते हैं| बौद्धमत का भी वहाँ खूब प्रचार हुआ था| चीनी यात्री ह्वेन त्सांग (玄奘) जो राजा हर्षवर्धन के समय में भारत आया था, ने अपने ग्रंथों में कश्मीर में ढाई हजार मठों के होने की बात लिखी है| उस समय तक्षशिला तक का शासन कश्मीर के आधीन था| आचार्य अभिनव गुप्त को भगवान् पतंजलि की तरह शेषावतार कहा जाता है| उनकी परंपरा के आचार्यों ने उन्हें ‘योगिनीभू’ और भगवान शिव का अवतार बताया है| आचार्य शंकर भी वहाँ गए थे| श्रीनगर को सम्राट अशोक ने बसाया था| ऐसा कश्मीर अपने अतीत के गौरव को पुनः प्राप्त करेगा, निश्चित रूप से करेगा| धर्म की वहाँ पुनर्स्थापना होगी|
Wednesday, 4 August 2021
कश्मीर का अतीत बहुत अधिक गौरवशाली रहा है ---
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पुनश्च :-- कई पश्चिमी विद्वानों ने सिद्ध किया है कि जीसस क्राइस्ट सूली पर मरे नहीं थे| उन्हें उतार लिया गया था और वे अपने कबीले के साथ भारत में कश्मीर आ गए थे और पहलगाम में मरे| उनकी कब्र भी वहाँ है| उनकी माता मरियम ने जहाँ अपने अंतिम दिन बिताए उस स्थान का नाम मरि है जो पाक-अधिकृत कश्मीर में है| इस विषय पर अनेक पुस्तकें लिखी गई हैं|
४ अगस्त २०२०
जब भगवान स्वयं ही समक्ष हों तो उनकी किस विधि से उपासना करें? ---
जब भगवान स्वयं ही समक्ष हों तो उनकी किस विधि से उपासना करें? उनके सिवाय कोई अन्य तो है ही नहीं| चिदाकाश में वे स्वयं ही स्वयं का ध्यान कर रहे हैं|
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"मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु| मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः||९:३४||"
"मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु| मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे||१८:६५||"
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज| अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः||१८:६६||"
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इस निर्जनता (सब चिंताओं का विस्मृत होना) में कूटस्थ-चैतन्य (आज्ञाचक्र से ऊपर दिखाई देने वाले ज्योतिर्मय ब्रह्म की चेतना) ही जीवात्मा का एकमात्र निवास, आश्रम, और अस्तित्व है| "कूटस्थ चैतन्य" ही हमारा "स्वधर्म" है, जिसके बारे में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है ....
"श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्| स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः||३:३५||"
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ अगस्त २०२०
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