Saturday 2 February 2019

हम स्वयं को कैसे सुधारें ?

हम स्वयं को कैसे सुधारें ?
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हम अपने से बाहर इतनी बुराइयाँ देखते हैं, जिनके कारण बड़ी ग्लानि होती है| हमारे शास्त्र तो कहते हैं कि बाहर की बुराइयों का कारण हमारे भीतर की बुराई है| यदि हम अपने भीतर की बुराई को सुधार लें तो बाहर की बुराई भी समाप्त हो जायेगी| इसका एकमात्र उपाय जो मुझे दिखाई देता है वह तो यह है कि हम अच्छे साहित्य को पढ़ें, अच्छे लोगों के साथ रहें, और भगवान का ध्यान करें| गीता में भगवान कहते हैं .....
"इन्द्रियार्थेषु वैराग्यमनहङ्कार एव च| जन्ममृत्युजराव्याधिदुःखदोषानुदर्शनम्"||१३:९||
अर्थात् इन्द्रियों के विषय के प्रति वैराग्य, अहंकार का अभाव, जन्म-मृत्यु, वृद्धावस्था, व्याधि और दुख में दोष दर्शन करें|
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मेरी सोच तो यह है कि स्वयं को सुधारने के लिये हम प्रेमपूर्वक नित्य शान्ति पाठ करें, भगवान का ध्यान करें, उनके नाम का अधिकाधिक जप करें, और जीवन का हर कार्य भगवान की प्रसन्नता के लिए ही करें| स्वयं को सुधारने के लिए हमें अपने जीवन का केंद्रबिंदु भगवान को बनाना पडेगा| अन्य कोई उपाय नहीं है|
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जीवन में मैं अनेक अच्छे से अच्छे और बुरे से बुरे अनुभवों से निकला हूँ, उन्हीं के आधार पर यह सब लिख रहा हूँ| विश्व के अनेक देशों की यात्राएँ की हैं| जब साम्यवाद अपने चरम शिखर पर था ऐसे समय में मैं घोर नास्तिक देश रूस में लगभग दो वर्ष रहा हूँ| घोरतम नास्तिक देश उत्तरी कोरिया में बीस दिन रहा हूँ, नास्तिक देश चीन की चार बार यात्रा की है, और नास्तिक देशों ... युक्रेन, रोमानिया और लाटविया का भी तत्कालीन जीवन देखा है| बोल्शेविक क्रांति की पचास वीं और इक्यावन वीं वर्षगाँठ मनाते हुए साम्यवादी रूस को भी देखा है और कोरयाई युद्ध की तीसवीं वर्षगाँठ मनाते उत्तरी कोरिया को भी| ईश्वर के बिना मनुष्य के मन की कैसी वेदना होती है, इसको देखा भी है और प्रत्यक्ष अनुभव भी किया है| उन्हीं अनुभवों के आधार पर कह रहा हूँ कि जीवन में ईश्वर को लाये बिना कोई सुधार नहीं हो सकता| हमारा प्रथम, अंतिम और एकमात्र उद्देश्य है जीवन में ईश्वर की प्राप्ति| ईश्वर को तो एक न एक दिन प्राप्त करना ही होगा, तब तक यह जीवन-मृत्यु का यह चक्र चलता रहेगा| सभी को शुभ कामनाएँ और नमन!
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ॐ तत्सत ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२ फरवरी २०१९

"वैचारिक प्रदूषण" आज की सबसे बड़ी समस्या है .....

"वैचारिक प्रदूषण" आज की सबसे बड़ी समस्या है .....
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"वैचारिक प्रदूषण" आज की सबसे बड़ी समस्या है| यह पर्यावरणीय प्रदूषण से भी अधिक खतरनाक है| व्यक्ति के आचरण से भी अधिक महत्व उसके विचारों का है| यदि किसी के विचार समाज के लिए घातक हैं तो उसके अच्छे आचरण का कोई महत्व नहीं है| सन १९६० और १९७० के दशक में कुछ समय तक नक्सलवादी आन्दोलन अपने चरम पर था| यह विचारधारा अति घातक थी पर इसका नेतृत्व उस समय जिन लोगों के हाथों में था वे बहुत ही उच्च शिक्षा प्राप्त त्यागी-तपस्वी विचारशील युवा व्यक्ति थे| उनकी गतिविधियाँ अति घातक थीं पर विचार बड़े आकर्षक थे| समाज पर उस समय उनका अच्छा प्रभाव था| उनकी हिंसक गतिविधियों से त्रस्त होकर सरकार को भी हिंसा का सहारा लेना पडा था| तत्कालीन अनेक नक्सली युवा तो पुलिस की गोली से मारे गए, अधिकाँश ने सरकार से समझौता कर लिया और समाज की मुख्य धारा में लौट आये| ऐसे युवकों में से अनेक तो बड़े बड़े प्रशासनिक अधिकारी भी बने| यह आन्दोलन पूरी तरह समाप्त हो गया था| अब वर्तमान में तो तथाकथित नक्सली हैं, वे चोर-डाकू से अधिक कुछ भी नहीं हैं|
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एक उदाहरण मैं कानू सान्याल का दूँगा जो इस नक्सली आन्दोलन का जनक था| वह दार्जीलिंग के कलिम्पोंग में एक सरकारी राजस्व विभाग में क्लर्क था| समाज में व्याप्त अन्याय के विरोध में कानू सान्याल ने बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री को काले झंडे दिखाए थे| एक सरकारी कर्मचारी द्वारा ऐसा करने पर पुलिस ने उसे जेल में डाल दिया जहाँ उसकी भेंट अपने ही विचारों के दूसरे युवा चारु मजूमदार से हुई| जेल से बाहर आकर वे दोनों भारतीय कमुनिष्ट पार्टी के सदस्य बने और सन १९६७ में दार्जिलिंग के नक्सलबाड़ी गाँव से एक सशस्त्र आंदोलन की शुरुआत और अगुवाई की| कानू सान्याल का जीवन एक त्यागी-तपस्वी का था| एक झौंपडी में रहता था जहाँ उसकी निजी संपत्ति में मात्र दो प्लास्टिक की कुर्सियाँ, एक चटाई, कुछ खाना बनाने के बर्तन, दो-चार पहिनने के कपड़े और कुछ पुस्तकें थीं| कोई अतिथि आता उसको कुर्सी पर बैठा कर स्वयं भूमि पर चटाई बिछाकर बैठ जाता| अपने जीवन के १४ वर्ष जेल में बिताने के बाद भाकपा (माले) का महासचिव बन कर वह नक्सलबाड़ी के पास के एक गाँव हाथीघिसा में रहने लगा| जीवन के अंतिम पड़ाव में उसे लगा कि उसकी विचारधारा समाज के लिए अति घातक थी, इसी कुंठा में २३ मार्च २०१० को फांसी पर लटक कर उसने आत्महत्या कर ली| निजी जीवन में वह एक बहुत ही ईमानदार और आदर्शवादी था| पर उसकी ईमानदारी, त्याग-तपस्या और आदर्शवाद का क्या लाभ हुआ, जब उसके विचार ही समाज के लिए घातक थे?
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हमें किसी भी व्यक्ति के विचारों को जानकर ही उसके बारे में अपनी धारणा बनानी चाहिए, न कि उसका बाहरी आचरण मात्र देखकर| बाहरी आचरण एक दिखावा भी हो सकता है, पर उसके विचार नहीं| मैं तो अब तक इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि वैचारिक प्रदूषण ही वर्त्तमान की अधिकाँश समस्याओं का कारण है|
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दुर्भाग्य से आजकल के लोगों में वैचारिक प्रदूषण तो है ही पर साथ साथ उनका आचरण भी बहुत खराब हो गया है| वैचारिक प्रदूषण को दूर कैसे किया जाए इसका चिंतन और उपाय भी समाज के कर्णधारों को करना चाहिए|
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२ फरवरी २०१९