Friday, 20 December 2024

धीरे धीरे मनुष्य की चेतना ऊर्ध्वमुखी हो रही है ---

जहाँ आसुरी शक्तियाँ अपना तांडव कर रही है, वहीं समय के साथ बदली हुई परिस्थितियों में अब एक समय ऐसा भी आ गया है कि धीरे धीरे मनुष्य की चेतना ऊर्ध्वमुखी हो रही है| धीरे धीरे पूरे विश्व में जागरूक क्रिश्चियन मतावलंबी यानि जीसस क्राइस्ट के अनुयायी स्वेच्छा से सनातन धर्म का अनुसरण आरंभ कर देंगे| पश्चिमी जगत में करोड़ों लोग नित्य नियमित ध्यान साधना और प्राणायाम करने लगे हैं| लाखों लोग नित्य नियमित रूप से गीता का स्वाध्याय करते हैं| "कूटस्थ चैतन्य" या "श्रीकृष्ण चैतन्य" शब्द को "Christ Consciousness" के रूप में कहना बहुत लोकप्रिय हो रहा है| वास्तव में Christ किसी का नाम नहीं है, Christ का अर्थ है ...."अभिषेक", जिसका अभिषेक हुआ हो (anointed one)|

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जीसस क्राइस्ट को मैं एक व्यक्ति नहीं, एक चेतना मानता हूँ जो वास्तव में
"श्रीकृष्ण चैतन्य" यानि "कूटस्थ चैतन्य" ही थी| उस चेतना की अनुभूति गहन ध्यान में होती है| वर्तमान ईसाई मत तो एक चर्चवाद है, जिस का क्राइस्ट से कोई लेनदेन नहीं है| अजपा-जप, आज्ञाचक्र और उस से ऊपर अनंत में असीम ज्योतिर्मय ब्रह्म के ध्यान, नादानुसंधान,और जपयोग से जिस चेतना का प्रादुर्भाव होता है वह "कूटस्थ चैतन्य" यानि "Christ Consciousness" है| यह चेतना ही भविष्य में मानवता को जोड़ेगी और विश्व को एक करेगी| संसार का बीज "कूटस्थ" है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ दिसंबर २०१९

जब हमारे अस्तित्व और अस्मिता पर ही मर्मांतक प्रहार हो रहे हैं तब हम सब अपनी सारी आध्यात्मिक साधनायें देश और धर्म की रक्षा के लिए ही करें ---

वर्तमान परिस्थितियों में जब हमारे अस्तित्व और अस्मिता पर ही मर्मांतक प्रहार हो रहे हैं तब हम सब अपनी सारी आध्यात्मिक साधनायें देश और धर्म की रक्षा के लिए ही करें| देश रहेगा तभी हम रहेंगे| देश ही नहीं रहा तो न तो हमारा धर्म रहेगा, न हमारा समाज, सब कुछ नष्ट हो जाएगा| भारत ही सनातन धर्म है, और सनातन धर्म ही भारत है| जीवन में अपना सर्वश्रेष्ठ करें और परमात्मा की चेतना में रहें| फिर जो भी होगा वह मंगलमय ही होगा| भारत कोई भूमि का टुकड़ा नहीं, साक्षात माता है|

हम विजयी होंगे, क्योंकि .....
"यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः| तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम||१८:७८||" .
देश प्रथम| देश है तो सब कुछ है, देश नहीं तो कुछ भी नहीं| हम अपनी अस्मिता की रक्षा करें| भारत विजयी होगा| धर्म की पुनर्स्थापना होगी| असत्य और अंधकार की शक्तियों का पराभव होगा| हम जहाँ भी हैं, अपना सर्वश्रेष्ठ करें| राष्ट्र के प्रति अपना दायित्व न भूलें| भारत माता की जय|
जब तक इस शरीर को धारण कर रखा है तब तक मैं सर्वप्रथम भारतवर्ष का एक विचारशील नागरिक हूँ| भारतवर्ष में ही नहीं पूरे विश्व में होने वाली हर घटना का मुझ पर ही नहीं सब पर प्रभाव पड़ता है| आध्यात्म के नाम पर भौतिक जगत से मैं तटस्थ नहीं रह सकता| यदि भारत, भारत ही नहीं रहेगा तब धर्म भी नहीं रहेगा, श्रुतियाँ-स्मृतियाँ भी नहीं रहेंगी, यानि वेद आदि ग्रन्थ भी नष्ट हो जायेंगे, साधू-संत भी नहीं रहेंगे, सदाचार भी नहीं रहेगा और देश की अस्मिता ही नष्ट हो जायेगी| इसी तरह यदि धर्म ही नहीं रहा तो भारत भी नहीं रहेगा| दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं| अतः राष्ट्रहित हमारा सर्वोपरि दायित्व है| धर्म के बिना राष्ट्र नहीं है, और राष्ट्र के बिना धर्म नहीं है| भारतवर्ष की अस्मिता सनातन धर्म है, वही इसकी रक्षा कर सकता है| भारतवर्ष की रक्षा न तो मार्क्सवाद कर सकता है, न समाजवाद, न धर्मनिर्पेक्षतावाद न सर्वधर्मसमभाववाद और न अल्पसंख्यकवाद| यदि सनातन धर्म ही नष्ट हो गया तो भारतवर्ष भी नष्ट हो जाएगा| भारत के बिना सनातन धर्म भी नहीं है, और सनातन धर्म के बिना भारत भी नहीं है| विश्व का भविष्य भारतवर्ष से है, और भारत का भविष्य सनातन धर्म से है| यदि सनातन धर्म ही नष्ट हो गया तो यह संसार भी आपस में मार-काट मचा कर नष्ट हो जायेगा|
कृपा शंकर
२१ दिसंबर २०१९

क्रिसमस का त्योहार और सांता क्लॉज़ ---

 क्रिसमस का त्योहार और सांता क्लॉज़ ---

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कहानी है कि सांता क्लॉज़ यानि फादर क्रिसमस फिनलैंड के लोपलैंड प्रान्त में कोरवातुन्तुरी के पहाड़ों में अपनी पत्नी श्रीमती क्लॉज़ के साथ रहता है। रैनडियर द्वारा खींची जाने वाली स्लेज गाड़ी पर बैठकर क्रिसमस से एक दिन पूर्व वह रात को आता है और सभी बच्चों को खिलौने देता है, व टॉफी, केंडी और चॉकलेट खिलाता है।
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वास्तविकता यह है कि सांता क्लॉज़ नाम का चरित्र कभी इतिहास में जन्मा ही नहीं। यह ईसा की चौथी शताब्दी में सैंट निकोलस नाम के एक ग्रीक पादरी के दिमाग की कल्पना थी जो एशिया माइनर (वर्तमान तुर्की) के म्यरा नामक स्थान में जन्मा था। सन १८२३ ई.में सांता क्लॉज़ नाम की एक कविता अमेरिका और कनाडा में अति लोकप्रिय हुई, और उन्नीसवीं सदी में सांता क्लॉज़ के ऊपर लिखे गए कई गाने वहाँ अत्यधिक लोकप्रिय हुए। ठण्ड से पीड़ित स्केंडेनेवियन देशों -- नोर्वे, स्वीडन और डेनमार्क के, व अन्य ठन्डे ईसाई देशों के पादरियों ने ठण्ड से पीड़ित अपने देशों के बच्चों के मन को बहलाने के लिए सांता क्लॉज़ की कल्पना को खूब लोकप्रिय बनाया। बच्चों के मनोरंजन के लिए जैसे सुपरमैन, बैटमैन, स्पाइडरमैन, ग्रीन लैंटर्न, हल्क, डोनाल्ड डक, मिक्की माउस इत्यादि अनेकों कार्टून चरित्रों की कल्पना की गयी है वैसे ही संता क्लॉज़ भी एक काल्पनिक चरित्र है।
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भारत में इसकी लोकप्रियता का कारण बाजारवाद और अपने लोगों का विज्ञापनों से प्रभावित होना मात्र ही है। हम लोग एक आत्महीनता और हीन-भावना से ग्रस्त हैं, अतः बेवश होकर बच्चों की खुशी के लिये प्रसन्न होने का नाटक कर के यह नाटक मनाते हैं। मेरी दृष्टि में यह एक फूहड़पन और सांस्कृतिक पतन है। अपने बच्चों को इस सांस्कृतिक पतन से बचाएँ। अगर किसी स्कूल में यह मनाते हैं तो अपने बच्चों को मना कर दें कि वे इसमें भाग न लें।
धन्यवाद॥
कृपा शंकर
२१ दिसंबर २०२३

जब प्यास लगती है तब स्वयं को ही पानी पीना पड़ेगा ---

जब प्यास लगती है तब स्वयं को ही पानी पीना पड़ेगा। दूसरों का पीया हुआ पानी हमारी प्यास नहीं बुझा सकता। भगवान को पाने की प्यास लगती है तब स्वयं को ही भक्ति करनी होगी। दूसरों की भक्ति हमें सिर्फ प्रेरणा दे सकती है, और कुछ नहीं। भगवान की भक्ति हम अपनी अंतरात्मा से करेंगे तो उनसे कोई वियोग नहीं हो सकता।

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सिर्फ कल्पनाओं, सुनी-सुनाई बातों और दूसरों के अनुभवों में कुछ नहीं रखा है। स्वयं अपने परिश्रम से साधना के शिखर पर चढ़ कर भगवान की अनुभूतियाँ प्राप्त करनी होंगी। जितना परिश्रम करेंगे, उतना ही अधिक पारिश्रमिक मिलेगा। बिना परिश्रम के कुछ भी नहीं मिलता। भगवान भी अपना अनुग्रह उसी पर करते हैं जो परमप्रेममय होकर उनके लिए परिश्रम करता है। पर्वतों पर चढ़ाई करने वालों को ही पर्वतों से आगे के दृश्य दिखाई देते हैं।
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"तुलसी विलम्ब न कीजिए भजिये नाम सुजान।
जगत मजूरी देत है क्यों राखे भगवान्॥"

लोक मर्यादा के अनुसार क्रिसमस की मंगलमय शुभ कामनाएँ ----

लोक मर्यादा के अनुसार क्रिसमस की मंगलमय शुभ कामनाएँ !! सत्य को जानने की अभीप्सा सभी के हृदयों में जागृत हो। सत्य ही परमात्मा है। भगवान सत्यनारायण हैं।

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क्रिसमस का त्योहार आज २१ दिसंबर की मध्य-रात्रि में होना चाहिए था। हमारी पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में आज २१ दिसंबर २०२३ की रात इस वर्ष की सबसे अधिक लंबी रात है लगभग १६ घंटे लंबी, और आज का दिन सबसे अधिक छोटा था लगभग ८ घंटों का। कल से यानि २२ दिसंबर से दिन बड़े होने आरंभ हो जाएँगे, अतः कल का दिन "बड़ा दिन" होना चाहिए।
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दो हजार वर्ष पूर्व २४ दिसंबर की रात सबसे अधिक लंबी होती थी, इसलिए रोमन सम्राट कोन्स्टेंटाइन द ग्रेट के आदेश से उसे क्रिसमस यानि जीसस क्राइस्ट का जन्मदिन माना गया। तब २५ दिसंबर से दिन बड़े होने आरंभ हो जाते थे, इसलिए २५ दिसंबर को बड़ा दिन माना गया।
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सैंट पॉल नाम का एक पादरी था जिसके दिमाग की काल्पनिक उपज जीसस क्राइस्ट थे। Dead Sea scrolls की खोज के बाद लगने लगा है कि जीसस एक काल्पनिक चरित्र थे। रोमन सम्राट कोन्स्टेंटाइन द ग्रेट ने क्रिश्चियनिती का उपयोग अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए किया। उसने कभी कोई बाप्तिस्मा नहीं लिया। वह जीवन भर एक सूर्य-उपासक ही रहा। रविबार की छुट्टी उसी के आदेश से आरंभ हुई जो आज तक चल रही है।
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बाद में यह क्रिश्चियनिती यानि चर्चवाद, चर्च के साम्राज्य विस्तार के लिए प्रयुक्त होने लगा। यह सन १४९२ ई.की बात है। एक बार पुर्तगाल और स्पेन में लूट के माल को लेकर झगड़ा हो गया। दोनों ही देश दुर्दांत समुद्री डाकुओं के देश थे जिनका मुख्य काम ही समुद्रों में लूटपाट और ह्त्या करना होता था। दोनों ही देश कट्टर रोमन कैथोलोक ईसाई थे, अतः मामला वेटिकन में उस समय के छठवें पोप के पास पहुँचा। लूट के माल का एक हिस्सा पोप के पास भी आता था। अतः पोप ने सुलह कराने के लिए एक फ़ॉर्मूला खोज निकाला और एक आदेश जारी कर दिया। ७ जून १४९४ को "Treaty of Tordesillas" के अंतर्गत इन्होने पृथ्वी को दो भागों में इस तरह बाँट लिया कि यूरोप से पश्चिमी भाग को स्पेन लूटेगा और पूर्वी भाग को पुर्तगाल। आगे की कथा लंबी है अतः यहाँ नहीं लिखूंगा। कई बार पोस्ट कर चुका हूँ।
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उत्तरी गोलार्ध में कल से दिन बड़े होने आरंभ हो जाएँगे। इस सिद्धान्त को अयनांत यानि विंटर सोल्सटिस (Winter Solstice) कहते हैं। यह वह समय होता है जब सूर्य की किरणें बहुत कम समय के लिए पृथ्वी पर रहती हैं। आज के दिन सूरज से धरती की दूरी ज्यादा हो जाती है। पृथ्वी पर चांद की रौशनी देर तक रहती है। विंटर सोल्सटिस इसलिए होता है, क्योंकि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमते समय लगभग २३.४ डिग्री झुकी होती है। झुकाव के कारण प्रत्येक गोलार्द्ध को सालभर अलग-अलग मात्रा में सूर्य की रोशनी मिलती है।
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बहुत अधिक श्रद्धा और ध्यान-साधना के कारण जीसस क्राइस्ट का अस्तित्व मनोमय जगत में है, अन्यत्र कहीं भी नहीं। क्रिश्चियनीति दो सिद्धांतों पर खड़ी हैं जो ज्ञान के प्रकाश में कहीं भी नहीं टिकते। ये सिद्धान्त हैं -- मूल पाप (Original Sin) की अवधारणा, और पुनरोत्थान (Resurrection) की अवधारणा। इनकी पुस्तक में गिरि-प्रवचन (The Sermon on the mount) के अतिरिक्त अन्य कुछ भी प्रभावित नहीं करता।
लोक मर्यादा के अनुसार क्रिसमस की मंगलमय शुभ कामनाएँ !! सत्य को जानने की अभीप्सा सभी के हृदयों में जागृत हो। सत्य ही परमात्मा है। भगवान सत्यनारायण हैं।
ॐ तत्सत् !!
२१ दिसंबर २०२३
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पुनश्च: --- अपने जीवन भर की साधना और स्वाध्याय के पश्चात मैं इस निर्णय पर पहुंचा हूँ कि जीसस क्राइस्ट एक काल्पनिक चरित्र थे। उनका कभी जन्म नहीं हुआ। सैंट पॉल नाम के एक पादरी के मन की वे एक कल्पना मात्र थे।
पूरे विश्व के प्रबुद्ध ईसाई विद्वान यह बात मान चुके हैं। सम्पूर्ण प्रबुद्ध यूरोप अब यह घोषित कर चुका है कि जीसस नाम का कोई व्यक्ति कभी पैदा ही नहीं हुआ था। मृत सागर (Dead Sea) में जो ‘Dead Sea Scrolls’ मिले हैं उनसे यह सिद्ध हुआ है। सैंट पॉल ने स्थानीय किंवदंतियों को संकलित किया और उसे बाइबिल का रूप दे दिया।
जो हिन्दू महात्मा यूरोप में सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए गए, उन्हें परिस्थितिवश जीसस क्राइस्ट का महिमा मंडन करना पड़ा। यह एक परिकल्पना और अनुभूति मात्र हैं।
मैंने भी भारत में और भारत से बाहर क्रिसमस अनेक बार मनाया है। इटालियन और अमेरिकी ईसाई भक्तों के साथ Carols (ईसाई भजन) भी गाये हैं। जीसस क्राइस्ट पर ध्यान भी किया है। उन पर अनेक मनीषियों ने ध्यान किया है अतः मनोमय जगत में उनका अस्तित्व हो गया है जो हमारा ही है।