लोक मर्यादा के अनुसार क्रिसमस की मंगलमय शुभ कामनाएँ !! सत्य को जानने की अभीप्सा सभी के हृदयों में जागृत हो। सत्य ही परमात्मा है। भगवान सत्यनारायण हैं।
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क्रिसमस का त्योहार आज २१ दिसंबर की मध्य-रात्रि में होना चाहिए था। हमारी पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में आज २१ दिसंबर २०२३ की रात इस वर्ष की सबसे अधिक लंबी रात है लगभग १६ घंटे लंबी, और आज का दिन सबसे अधिक छोटा था लगभग ८ घंटों का। कल से यानि २२ दिसंबर से दिन बड़े होने आरंभ हो जाएँगे, अतः कल का दिन "बड़ा दिन" होना चाहिए।
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दो हजार वर्ष पूर्व २४ दिसंबर की रात सबसे अधिक लंबी होती थी, इसलिए रोमन सम्राट कोन्स्टेंटाइन द ग्रेट के आदेश से उसे क्रिसमस यानि जीसस क्राइस्ट का जन्मदिन माना गया। तब २५ दिसंबर से दिन बड़े होने आरंभ हो जाते थे, इसलिए २५ दिसंबर को बड़ा दिन माना गया।
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सैंट पॉल नाम का एक पादरी था जिसके दिमाग की काल्पनिक उपज जीसस क्राइस्ट थे। Dead Sea scrolls की खोज के बाद लगने लगा है कि जीसस एक काल्पनिक चरित्र थे। रोमन सम्राट कोन्स्टेंटाइन द ग्रेट ने क्रिश्चियनिती का उपयोग अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए किया। उसने कभी कोई बाप्तिस्मा नहीं लिया। वह जीवन भर एक सूर्य-उपासक ही रहा। रविबार की छुट्टी उसी के आदेश से आरंभ हुई जो आज तक चल रही है।
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बाद में यह क्रिश्चियनिती यानि चर्चवाद, चर्च के साम्राज्य विस्तार के लिए प्रयुक्त होने लगा। यह सन १४९२ ई.की बात है। एक बार पुर्तगाल और स्पेन में लूट के माल को लेकर झगड़ा हो गया। दोनों ही देश दुर्दांत समुद्री डाकुओं के देश थे जिनका मुख्य काम ही समुद्रों में लूटपाट और ह्त्या करना होता था। दोनों ही देश कट्टर रोमन कैथोलोक ईसाई थे, अतः मामला वेटिकन में उस समय के छठवें पोप के पास पहुँचा। लूट के माल का एक हिस्सा पोप के पास भी आता था। अतः पोप ने सुलह कराने के लिए एक फ़ॉर्मूला खोज निकाला और एक आदेश जारी कर दिया। ७ जून १४९४ को "Treaty of Tordesillas" के अंतर्गत इन्होने पृथ्वी को दो भागों में इस तरह बाँट लिया कि यूरोप से पश्चिमी भाग को स्पेन लूटेगा और पूर्वी भाग को पुर्तगाल। आगे की कथा लंबी है अतः यहाँ नहीं लिखूंगा। कई बार पोस्ट कर चुका हूँ।
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उत्तरी गोलार्ध में कल से दिन बड़े होने आरंभ हो जाएँगे। इस सिद्धान्त को अयनांत यानि विंटर सोल्सटिस (Winter Solstice) कहते हैं। यह वह समय होता है जब सूर्य की किरणें बहुत कम समय के लिए पृथ्वी पर रहती हैं। आज के दिन सूरज से धरती की दूरी ज्यादा हो जाती है। पृथ्वी पर चांद की रौशनी देर तक रहती है। विंटर सोल्सटिस इसलिए होता है, क्योंकि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमते समय लगभग २३.४ डिग्री झुकी होती है। झुकाव के कारण प्रत्येक गोलार्द्ध को सालभर अलग-अलग मात्रा में सूर्य की रोशनी मिलती है।
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बहुत अधिक श्रद्धा और ध्यान-साधना के कारण जीसस क्राइस्ट का अस्तित्व मनोमय जगत में है, अन्यत्र कहीं भी नहीं। क्रिश्चियनीति दो सिद्धांतों पर खड़ी हैं जो ज्ञान के प्रकाश में कहीं भी नहीं टिकते। ये सिद्धान्त हैं -- मूल पाप (Original Sin) की अवधारणा, और पुनरोत्थान (Resurrection) की अवधारणा। इनकी पुस्तक में गिरि-प्रवचन (The Sermon on the mount) के अतिरिक्त अन्य कुछ भी प्रभावित नहीं करता।
लोक मर्यादा के अनुसार क्रिसमस की मंगलमय शुभ कामनाएँ !! सत्य को जानने की अभीप्सा सभी के हृदयों में जागृत हो। सत्य ही परमात्मा है। भगवान सत्यनारायण हैं।
ॐ तत्सत् !!
२१ दिसंबर २०२३
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पुनश्च: --- अपने जीवन भर की साधना और स्वाध्याय के पश्चात मैं इस निर्णय पर पहुंचा हूँ कि जीसस क्राइस्ट एक काल्पनिक चरित्र थे। उनका कभी जन्म नहीं हुआ। सैंट पॉल नाम के एक पादरी के मन की वे एक कल्पना मात्र थे।
पूरे विश्व के प्रबुद्ध ईसाई विद्वान यह बात मान चुके हैं। सम्पूर्ण प्रबुद्ध यूरोप अब यह घोषित कर चुका है कि जीसस नाम का कोई व्यक्ति कभी पैदा ही नहीं हुआ था। मृत सागर (Dead Sea) में जो ‘Dead Sea Scrolls’ मिले हैं उनसे यह सिद्ध हुआ है। सैंट पॉल ने स्थानीय किंवदंतियों को संकलित किया और उसे बाइबिल का रूप दे दिया।
जो हिन्दू महात्मा यूरोप में सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए गए, उन्हें परिस्थितिवश जीसस क्राइस्ट का महिमा मंडन करना पड़ा। यह एक परिकल्पना और अनुभूति मात्र हैं।
मैंने भी भारत में और भारत से बाहर क्रिसमस अनेक बार मनाया है। इटालियन और अमेरिकी ईसाई भक्तों के साथ Carols (ईसाई भजन) भी गाये हैं। जीसस क्राइस्ट पर ध्यान भी किया है। उन पर अनेक मनीषियों ने ध्यान किया है अतः मनोमय जगत में उनका अस्तित्व हो गया है जो हमारा ही है।
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