विहंगावलोकन---
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"ॐ ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं, द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम्|
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतं भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि||"
"मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्| यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्दमाधवम्॥"
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सिंहावलोकन या विहंगावलोकन कुछ भी कहिए, जब अतीत पर दृष्टि डालता हूँ तो एक प्रश्न उठता है कि क्या यह जीवन भी यों ही व्यर्थ चला गया है? कई जन्मों पूर्व एक संकल्प किया था, जिसके पश्चात कई जन्म निकल गए, पर वह संकल्प इस जन्म में भी पूर्ण नहीं हुआ| दोष स्वयं का ही है, किसी अन्य का नहीं; पूर्व जन्मों में कोई अच्छे कर्म नहीं किए थे, इसलिए यह जन्म लेना पड़ा, और यह भी व्यर्थ ही चला गया| कुछ भी सकारात्मक कार्य करने का साहस नहीं जुटा पाया| जब तक वह संकल्प पूर्ण नहीं होगा, फिर इसी धरा पर जन्म लेना पड़ेगा| अब तो भगवान स्वयं ही करुणावश मुझे माध्यम बना कर वह संकल्प पूर्ण करेंगे, जो मेरे वश की बात नहीं है|
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आत्मा नित्य मुक्त है, किसी भी तरह का मोक्ष या मुक्ति मुझे नहीं चाहिए| मुक्त तो पहले से ही हूँ, ये सारे बंधन अनेक जन्मों में स्वयं के द्वारा ही स्वयं पर थोपे हुए हैं, जिन से मुक्त होना अब स्वयं के वश की बात नहीं है| अब तो भगवान स्वयं ही करुणावश यह सारा कार्य करेंगे| मोक्ष की कामना एक बंधन से दूसरे बंधन में जाने की कामना है, जैसे लोहे की बेड़ियों के स्थान पर सोने-चाँदी की बेड़ियाँ पहिनना| स्वर्ग से अधिक घटिया स्थान इस सृष्टि में कोई अन्य नहीं है, वहाँ ईश्वर नहीं है, सिर्फ इंद्रिय भोग ही भोग हैं| पुण्य समाप्त होने पर धक्का मारकर बापस पृथ्वी पर फेंक दिया जाता है| वैसे ही जैसे आप किसी पहाड़ी पर किसी पाँच सितारा होटल में जायें, जब तक पैसा है, होटल वाले आपका स्वागत करेंगे, पैसा समाप्त होते ही बिना सामान के धक्का मार कर बाहर फेंक देंगे, जहाँ आप को कोई भिखारी भी नहीं पूछेगा|
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एक ही बात अच्छी हुई है कि पूर्व जन्म में जो मेरे गुरु थे, उनकी सत्ता सूक्ष्म जगत में है, जहाँ से वे सूक्ष्म देह में अब भी मेरा मार्गदर्शन और रक्षा कर रहे हैं| इस जन्म में भी वे ही गुरु और मार्गदर्शक व संरक्षक हैं| पूरी शाश्वतता में वे ही गुरु व मार्गदर्शक रहेंगे| उन्होने कभी मेरा साथ नहीं छोड़ा, क्योंकि वे मेरे सबसे बड़े हितैषी हैं| अब पूर्व जन्म की सभी स्मृतियों को भी भुला देना चाहता हूँ| किसी भी तरह की कोई कामना अब नहीं रही है|
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इस जन्म में मेरे जो आध्यात्मिक रूप से हितैषी मित्र थे, वे सब मेरे से नाराज चल रहे हैं क्योंकि मैं उनकी अपेक्षाओं और मापदण्डों पर कभी खरा नहीं उतर पाया| वे मुझे क्षमा करें| जो प्रारब्ध में लिखा होता है, वही होता है|
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हिमालय जितनी बड़ी-बड़ी अपनी सभी कमियों को और स्वयं को गुरु महाराज के चरण-कमलों में समर्पित कर रहा हूँ| वे परमात्मा के साथ एक हैं, उनमें और परमात्मा में कोई भेद नहीं है| अब से कभी किसी कामना का जन्म ही न हो|
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"वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च |
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते ||
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व |
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः ||"
कृपा शंकर
१५ अगस्त २०२०