कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् .....
------------------------
गीता के मेरे पास लगभग बारह से अधिक प्रसिद्ध भाष्य यानी टीकाएँ हैं| पर भाष्यों के अध्ययन और स्वाध्याय से आज तक कोई आत्म संतुष्टि नहीं मिली है| बौद्धिक संतुष्टि तृप्त नहीं करती क्योंकि इस अल्प बुद्धि की भी एक सीमा है|
------------------------
गीता के मेरे पास लगभग बारह से अधिक प्रसिद्ध भाष्य यानी टीकाएँ हैं| पर भाष्यों के अध्ययन और स्वाध्याय से आज तक कोई आत्म संतुष्टि नहीं मिली है| बौद्धिक संतुष्टि तृप्त नहीं करती क्योंकि इस अल्प बुद्धि की भी एक सीमा है|
मेरे सर्वाधिक प्रिय भाष्य हैं .....
(१) शंकर भाष्य का हिंदी अनुवाद, (२) स्वामी रामतीर्थ प्रतिष्ठान लखनऊ द्वारा प्रकाशित नारायण स्वामी की टीका, (३) वाराणसी के स्वामी प्रणवानंद द्वारा बँगला भाषा में लिखी प्रणवगीता का हिंदी अनुवाद, (४) भूपेन्द्रनाथ सान्याल द्वारा लाहिड़ी महाशय की मौखिक व्याख्या पर आधारित बँगला भाषा में लिखी टीका का हिंदी अनुवाद, (५) परमहंस योगानंद द्वारा अंग्रेजी में लिखी God Talks with Arjuna का हिंदी अनुवाद|
अंग्रेजी में लिखी पुस्तकों से कोई आनंद नहीं मिलता|
.
अब इस अल्प और सीमित बुद्धि में अधिक समझने की क्षमता भी नहीं है और जीवन में अधिक समय भी नहीं बचा है क्योंकि आयु सत्तर को पार कर चुकी है| अतः सब पुस्तकों को बंद कर अब ध्यान साधना द्वारा सीखने का प्रयास आरम्भ करने की प्रेरणा मिल रही है| जीवन का संध्याकाल चल रहा है, पता नहीं कौन सी सांस अंतिम हो|
.
मेरा यह मानना है कि भगवान श्रीकृष्ण स्वयं ही गीता का वास्तविक ज्ञान सिखा सकते हैं| अतः प्रत्यक्ष उनसे सीखने में ही सार है| गीता की हजारों टीकाएँ हैं, उन सब की व्याख्या भी अलग अलग हैं, पर भगवान श्रीकृष्ण के मन में इतने अर्थ नहीं हो सकते थे| उनके मन में क्या था यह तो वे ही बता सकते हैं| अतः सब पुस्तकों को बंद कर भगवान श्रीकृष्ण का गहनतम ध्यान ही सार्थक है| इसमें खोने को कुछ नहीं है| जीवन के इस संध्याकाल के अंतिम क्षणों में भगवान श्रीकृष्ण की चेतना में तो रहेंगे|
.
"वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् | देवकीपरमानन्दं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् ||"
(१) शंकर भाष्य का हिंदी अनुवाद, (२) स्वामी रामतीर्थ प्रतिष्ठान लखनऊ द्वारा प्रकाशित नारायण स्वामी की टीका, (३) वाराणसी के स्वामी प्रणवानंद द्वारा बँगला भाषा में लिखी प्रणवगीता का हिंदी अनुवाद, (४) भूपेन्द्रनाथ सान्याल द्वारा लाहिड़ी महाशय की मौखिक व्याख्या पर आधारित बँगला भाषा में लिखी टीका का हिंदी अनुवाद, (५) परमहंस योगानंद द्वारा अंग्रेजी में लिखी God Talks with Arjuna का हिंदी अनुवाद|
अंग्रेजी में लिखी पुस्तकों से कोई आनंद नहीं मिलता|
.
अब इस अल्प और सीमित बुद्धि में अधिक समझने की क्षमता भी नहीं है और जीवन में अधिक समय भी नहीं बचा है क्योंकि आयु सत्तर को पार कर चुकी है| अतः सब पुस्तकों को बंद कर अब ध्यान साधना द्वारा सीखने का प्रयास आरम्भ करने की प्रेरणा मिल रही है| जीवन का संध्याकाल चल रहा है, पता नहीं कौन सी सांस अंतिम हो|
.
मेरा यह मानना है कि भगवान श्रीकृष्ण स्वयं ही गीता का वास्तविक ज्ञान सिखा सकते हैं| अतः प्रत्यक्ष उनसे सीखने में ही सार है| गीता की हजारों टीकाएँ हैं, उन सब की व्याख्या भी अलग अलग हैं, पर भगवान श्रीकृष्ण के मन में इतने अर्थ नहीं हो सकते थे| उनके मन में क्या था यह तो वे ही बता सकते हैं| अतः सब पुस्तकों को बंद कर भगवान श्रीकृष्ण का गहनतम ध्यान ही सार्थक है| इसमें खोने को कुछ नहीं है| जीवन के इस संध्याकाल के अंतिम क्षणों में भगवान श्रीकृष्ण की चेतना में तो रहेंगे|
.
"वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् | देवकीपरमानन्दं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् ||"
"वंशी विभूषित करा नवनीर दाभात् ,
पीताम्बरा दरुण बिंब फला धरोष्ठात् |
पूर्णेन्दु सुन्दर मुखादर बिंदु नेत्रात् ,
कृष्णात परम किमपि तत्व अहं न जानि ||
पीताम्बरा दरुण बिंब फला धरोष्ठात् |
पूर्णेन्दु सुन्दर मुखादर बिंदु नेत्रात् ,
कृष्णात परम किमपि तत्व अहं न जानि ||
"ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणत क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम:||"
"ॐ नमो ब्रह्मण्य देवाय गो ब्राह्मण हिताय च, जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो नमः||"
"मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम् । यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्दमाधवम्||"
"कस्तुरी तिलकम् ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम् ,
नासाग्रे वरमौक्तिकम् करतले, वेणु करे कंकणम् |
सर्वांगे हरिचन्दनम् सुललितम्, कंठे च मुक्तावलि |
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी ||"
नासाग्रे वरमौक्तिकम् करतले, वेणु करे कंकणम् |
सर्वांगे हरिचन्दनम् सुललितम्, कंठे च मुक्तावलि |
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी ||"
"ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||"
.
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२० जनवरी २०१९
.
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२० जनवरी २०१९