Sunday 20 January 2019

सांता क्लॉज़ बनने की अपसंस्कृति और सांताक्लॉज़ की वास्तविकता .....

सांता क्लॉज़ बनने की अपसंस्कृति और सांताक्लॉज़ की वास्तविकता .....
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अभी कुछ देर पूर्व एक चित्र देखा जिसमें भगवान् श्रीकृष्ण और राधा जी को किसी ने सांता क्लॉज़ की ड्रेस पहना रखी थी, जिससे मुझे बहुत हँसी आई और ये पंक्तियाँ लिखने को मैं बाध्य हुआ| इसे मैं सांस्कृतिक पतन ही कहूंगा| भारत के अधिकाँश निजी विद्यालयों में बच्चों को सांता क्लॉज़ की ड्रेस पहनाई गयी, टॉफियाँ बाँटी गयी और भाषण दिया गया कि हमें ईसा मसीह के आदर्शों पर चलना चाहिए| अनेक लोगों ने बीयर या स्कॉच पी कर सपरिवार डांस भी किया, पार्टी भी की और एक दूसरे को खूब बधाइयाँ भी दीं| चलो सब खुश रहो!
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सबसे पहिले तो यह बताना कहूंगा कि पूरे विश्व में सांता क्लॉज़ के नाम पर जो नाटकबाजी हो रही है यह एक विशुद्ध बाजारवाद और मनोरंजन मात्र है| वास्तविकता यह है कि सांता क्लॉज़ नाम का चरित्र कभी इतिहास में जन्मा ही नहीं| यह ईसा की चौथी शताब्दी में सैंट निकोलस नाम के एक ग्रीक पादरी के दिमाग की कल्पना थी| ठण्ड से पीड़ित स्केंडेनेवियन देशों (नोर्वे, स्वीडन और डेनमार्क) व अन्य ठन्डे ईसाई देशों के पादरियों ने ठण्ड से पीड़ित अपने देशों के बच्चों के मन को बहलाने के लिए सांता क्लॉज़ की कल्पना को खूब लोकप्रिय बनाया|
बच्चों के मनोरंजन के लिए जैसे सुपरमैन, बैटमैन, स्पाइडरमैन, ग्रीन लैंटर्न, हल्क, डोनाल्ड डक, मिक्की माउस इत्यादि अनेकों कार्टून चरित्रों की कल्पना की गयी है वैसे ही संता क्लॉज़ भी एक काल्पनिक चरित्र है|

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