भारतभूमि सदा अज्ञान में नहीं रह सकती, यह परमात्मा की भूमि है जहाँ भगवान स्वयं अनेक बार अवतृत हुए हैं| ब्रह्माजी ने यहीं इसी भूमि पर अपने ज्येष्ठ पुत्र ऋषि अथर्व को और भगवान सनत्कुमार ने अपने प्रिय शिष्य देवर्षि नारद को ब्रह्मज्ञान दिया| इसी भूमि पर ऋषि याज्ञवल्क्य ने राजा जनक को, और भगवान कपिल ने अपनी माता देवाहुति को उपदेश दिए| इसी भूमी पर रणक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने प्रिय शिष्य अर्जुन को गीता के उपदेश दिए| यह त्यागी तपस्वी, योगियों, भक्तों और वीरों की भूमि है| कालखंड में कुछ समय के लिए यहाँ तिमिर छा जाता है, पर फिर ज्ञान का सूर्योदय होने लगता है| अब ज्ञान का सूर्योदय होने लगा है जो सारे तिमिर को दूर कर देगा| बुरा समय निकल चुका है|
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हारिये न हिम्मत, बिसारिये न हरिनाम ! जीवन के केंद्र में परमात्मा को रखिये| जो भी होगा वह अच्छा ही होगा| ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय||
कृपा शंकर
२७ दिसंबर २०१८
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हारिये न हिम्मत, बिसारिये न हरिनाम ! जीवन के केंद्र में परमात्मा को रखिये| जो भी होगा वह अच्छा ही होगा| ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय||
कृपा शंकर
२७ दिसंबर २०१८
राष्ट्र में एकता के लिए हमें सब तरह के जातिगत व धार्मिक आरक्षणों को हटाकर एक समान नागरिक संहिता लागू कर, व्यवहार में हो रहे सब तरह के भेदभावों को दूर करना ही होगा|
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हमारे संविधान ने समानता का अधिकार दिया है पर व्यवहारिक रूप से हमारी संवैधानिक व्यवस्था में कहीं भी समानता नहीं है| कुछ लोग दूसरों से अधिक समान है| आरक्षण व्यवस्था अनारक्षित वर्ग के साथ घोर अन्याय है| समान नागरिक संहिता का न होना पूरे समाज के साथ अन्याय है| सरकारी कागजों में जाति का उल्लेख करना अनिवार्य क्यों है? क्या यह जाति प्रथा को बढ़ावा देना नहीं है?
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संविधान में हिन्दुओं के प्रति दुर्भावना क्यों है? अपनी मान्यता प्राप्त संस्थाओं में हिन्दू अपने धर्म की शिक्षा नहीं दे सकते, यदि देते हैं तो उसे मान्यता प्राप्त नहीं है| जब कि कोंवेंट और मदरसों की शिक्षा को मान्यता प्राप्त है| सभी बड़े हिन्दू मंदिरों पर सरकार का कब्जा है, पर एक भी मस्जिद या चर्च पर नहीं| मंदिरों का जो धन धर्मशिक्षा और धर्मप्रचार पर खर्च होना चाहिए वह अन्यत्र अधार्मिक कार्यों में हो रहा है| क्या यह हिन्दू मंदिरों की लूट नहीं है? धर्मशिक्षा के अभाव में हिन्दू अधार्मिक होते जा रहे हैं|
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हम अभी भी राष्ट्रीय स्तर पर आत्महीनता के बोध और हीनभावना से ग्रस्त क्यों हैं? यहाँ कोई देश के गौरव की बात करता है तो उसे साम्प्रदायिक क्यों घोषित कर दिया जाता है?