Saturday 15 October 2016

जीवन में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है कि हम परमात्मा की दृष्टी में क्या हैं .....

जीवन में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है कि हम परमात्मा की दृष्टी में क्या हैं|
कौन क्या सोचता है, क्या कहता है और क्या नहीं कहता इसका कोई महत्व नहीं है| सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धी है परमात्मा से अहैतुकी परम प्रेम|

हम शाश्वत आनंद चाहते हैं| पर सच्चा आनंद तभी प्राप्त होता है जब हम उपासना द्वारा अपने सच्चिदानंद रूप में स्थित हों| सच्चिदानंद ही परम ब्रह्म है|

निरंतर हर समय परमात्मा का स्मरण करें| रात्रि को सोने से पहिले, प्रातःकाल उठते ही और जब भी समय मिले भगवन का स्मरण करें| इसमें कोई देश-काल का बंधन नहीं है| जैसा हम सोचते हैं वैसा ही हो जाते हैं|

आप सब निजात्माओं को नमन |
ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय| ॐ ॐ ॐ

सामान्य मानवीय चेतना से ऊपर उठिए .....

सामान्य मानवीय चेतना से ऊपर उठिए| स्वयं को दीन हीन व अकिंचन मत समझिये| अपने भौतिक व्यक्तित्व व शरीर की चेतना से ऊपर उठिए| आप यह देह नहीं परमात्मा के निज रूप हैं|

विश्व में आज तक जितने भी महान कार्य हुए हैं वे सारे महान कार्य उन लोगों के माध्यम से सम्पादित हुए जो अत्यंत सरल और सांसारिक रूप से सामान्य व्यक्ति थे| अपनी चेतना को ईश्वर की चेतना से जोड़िये| अपने अन्तस्थ में प्रभु को ढूँढिए| इस प्रक्रिया में अनायास ही अनेक दिव्य और अकल्पनीय कार्य आपके माध्यम से हो जायेंगे|

संसार में कुछ भी नि:शुल्क नहीं है| हर चीज का मुल्य चुकाना होता है| एक दीपक पहले स्वयं जलता है तब जाकर उसका प्रकाश औरों को मिलता है| दीपक पतंगों को प्यारा है| वे दीपक के प्रेम में इतने उन्मत्त हो जाते हैं कि उसकी लौ में स्वयं को जला देते हैं| पर वास्तव में सत्य कुछ और ही है| दीपक पहले अपने आप को जलाता है, उसके बाद ही पतंगे उस की लौ से प्रेम करते हैं|

आप जो भी महान कार्य होते हुए आप देखना चाहते हैं उसका संकल्प निरंतर निज चेतना में बनाए रखिये| आप का संकल्प कभी भी विस्मृत न हो|

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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पुनश्च :  मानवीय चेतना से ऊपर उठें .....
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मानवीय चेतना से ऊपर उठ कर देवत्व में स्वयं को स्थापित करने का कोई न कोई मार्ग तो अवश्य ही होगा| हमें अपने जीवन का केंद्र बिंदु परमात्मा को बनाना ही पड़ेगा| वर्तमान सभ्यता में मनुष्य की बुद्धि का तो खूब विकास हो रहा है पर अन्य सद् गुणों का अधिक नहीं| मूक और निरीह प्राणियों पर क्रूर अत्याचार और अधर्म का आचरण प्रकृति कब तक सहन करेगी? मनुष्य का लोभ और अहंकार अपने चरम पर है| कभी भी महाविनाश हो सकता है| धर्म का थोड़ा-बहुत आचरण ही इस महाभय से रक्षा कर सकेगा| हम स्वयं को यह शरीर समझ बैठे हैं यही पतन का सबसे बड़ा कारण है| इस विषय पर कुछ मंथन अवश्य करें|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
६ अप्रेल २०१७

मनुष्य की शाश्वत यात्रा .....

मनुष्य की शाश्वत यात्रा कई जन्मों से चल रही है| कुछ लोग मुझसे इसका प्रमाण माँगते हैं| जो मेरा अनुभूत सत्य है उस पर मुझे कोई प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं है| न ही मैं ऐसे लोगों को समय दे सकता हूँ|

जीवन की प्रकृति का एकमात्र उद्देश्य है .....परमात्मा की प्राप्ति| इस विषय पर कोई वाद-विवाद और कुतर्क स्वीकार्य नहीं है| परमात्मा की प्राप्ति प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता के भीतर है|

आत्मा अमर है, इसकी विस्मृति ही जीव का पतन है| यह अज्ञानता ही मनुष्य के सब दुखों और कष्टों का कारण है| यदि कोई यह नहीं जानता कि उसे क्या करना चाहिए तो उसे कुछ भी नहीं करना चाहिए| पात्रता होने पर उसे भी मार्गदर्शन मिलेगा|

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

हमारे विचार सदा शुभ और संकल्प सदा शिव-संकल्प हों .....

जितना पतन हो गया उतना हो गया, आगे हज़ारों वर्षों तक उत्थान ही उत्थान है|
हम सब के संकल्प में बड़ी शक्ति है| नित्य दिन में कम से कम दो बार एक निश्चित समय पर और निश्चित स्थान पर खड़े होकर अपने दोनों हाथ ऊपर कर के समष्टि के कल्याण, विश्व शांति, भाईचारे और धर्म की पुनर्स्थापना के लिए प्रार्थना करें|
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हम सब के सामूहिक संकल्प और प्रार्थना का अति शक्तिशाली प्रभाव होगा| जब हम उपरोक्त विधि से प्रार्थना करते हैं तब हमारी अँगुलियों के अग्रभाग से एक अदृष्य प्रचंड घनीभूत ऊर्जा निकलती है जो चारों ओर फैलकर साकार रूप लेती है| सृष्टि में हो रहे समस्त घटनाक्रम हमारे सामूहिक विचारों के ही परिणाम है| जैसा हम सोचते हैं और संकल्प करते हैं वैसा ही चारों ओर घटित होता है| जैसी दृष्टी वैसी सृष्टि|
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जीवन में वर्तमान में जियें और अपना सर्वश्रेष्ठ करें, जो होगा वह अच्छा ही होगा| अपने विचारों पर दृष्टी रखें, उन्हें नियंत्रित करें| हमारे विचार सदा शुभ और संकल्प सदा शिव-संकल्प हों|
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ॐ शिव ! ॐ ॐ ॐ ||

वैवाहिक संबंधों में बिखराब .......

आजकल वैवाहिक संबंधों में अत्यधिक बिखराव हो रहा है| इसका कारण अत्यधिक अपेक्षा और महत्वाकांक्षा का होना, व सहनशीलता, त्याग और संतोष का अभाव है|

एक बात याद रखें कि जो भी विवाह चहरे के कोण, त्वचा के रंग, व वर/वधु के पिता की धन-संपत्ति को देख कर किया जाता है, उसका विफल होना सुनिश्चित है|

पत्नी और भार्या में दिन-रात का अंतर है| जिसके मात्र भरण-पोषण का दायित्व लिया जाता है वह भार्या है| पत्नी यज्ञ के लिए है, जो इस जीवन यज्ञ की ब्रह्माग्नि में अपने साथ साथ आहुति दे वह पत्नी है|

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||