(पुनर्प्रस्तुत). भारत में कभी भी "सती-प्रथा" नहीं थी .....
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भारत में तथाकथित "सती प्रथा" पर एक बहुत बड़े ऐतिहासिक शोध की आवश्यकता है| हम जो पढ़ रहे हैं वह अंग्रेजों और उनके मानस-पुत्रों का लिखा हुआ इतिहास है जो सत्य नहीं है| इस इतने बड़े असत्य का कारण क्या था इस पर यहाँ कुछ प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है|
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अंग्रेज जब भारत छोड़कर गए तब उन्होंने अपने समय के यथासंभव सारे दस्तावेज, वे सारे सबूत जला कर नष्ट कर दिए जो उनके द्वारा किये हुए जनसंहार, अत्याचार और भारतीयों को बदनाम करने के लिए किये गए कार्यों को सिद्ध कर सकते थे| उन्होंने करोड़ों लोगों की हत्याएँ कीं, दुर्भिक्ष की स्थिति उत्पन्न कर करोड़ों को भूख से मरने को विवश किया और हिंदुत्व को बदनाम करने व भारतीय संस्कृति को नष्ट करने के लिए अनेक दुष्कृत्य किये जैसे भारत की शिक्षा व्यवस्था व कृषि प्रणाली को नष्ट करना, हिन्दू धर्मग्रंथों को प्रक्षिप्त करवाना, झूठा इतिहास लिखवाना, आदि आदि| भारत को बहुत धूर्तता, निर्दयता और क्रूरता से बुरी तरह उन्होंने लूटा| पश्चिम की सारी समृद्धि भारत से लूटे हुए धन के कारण ही है| मूल रूप से वे समुद्री लुटेरे थे और भारत में लुटेरों के रूप में लूटने के उद्देश्य से ही आये थे|
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भारत में अंग्रेज़ी शासन स्थापित करने के पश्चात अँगरेज़ शासकों के समक्ष सबसे बड़ी समस्या थी अँगरेज़ सिपाहियों, कर्मचारियों और अधिकारियों को छुट्टी पर इंग्लैंड बापस जाने से रोकना| वे किसी भी कीमत पर उन्हें यहीं रोकना चाहते थे| इसके लिए उन्होंने भारत में अँगरेज़ कर्मचारियों, अधिकारियों और सिपाहियों के लिए वैश्यालय स्थापित किये| भारत के इतिहास में कभी भी व्यवस्थित रूप से वैश्यावृति नहीं थी, वेश्यालयों की तो भारत में कभी कल्पना भी नहीं की गयी थी|
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अंग्रेजों ने सबसे पहिले अपना शासन वर्त्तमान कोलकाता से आरम्भ किया था अतः अपना शासन स्थापित होते ही उन्होंने कोलकाता के सोनागाछी में एशिया का सबसे बड़ा वैश्यालय स्थापित किया| उनकी सबसे बड़ी छावनी भी बंगाल में ही हुआ करती थी| अब उन्हें वैश्या महिलाओं की आवश्यकता थी, अतः उन्होंने अपने शासन के आरम्भ में बंगाल में किसी भी विधवा हुई महिला को बलात बन्दूक की नोक पर अपहृत कर के वैश्या बनने को बाध्य करना आरम्भ कर दिया| बाद में वे विधिवत रूप से गुपचुप छद्म रूप से भारतीय युवतियों का अपहरण करने लगे और उन्हें वैश्या बनने को बाध्य करने लगे| यह कार्य उन्होंने अति निर्दयता और क्रूरता से किया|
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एक बात पर गौर कीजिये कि तथाकथित सती प्रथा वहीं थी जहां अंग्रेजों की छावनियाँ थीं, अन्य कहीं भी नहीं| इसकी प्रतिक्रया यह हुई कि अपनी रक्षा के लिए हिन्दू समाज ने बाल विवाह आरम्भ कर दिए और विधवाओं की अँगरेज़ सिपाहियों से रक्षा के लिए विधवा दहन आरम्भ कर दिये| पर्दा प्रथा भी यहीं से चली|
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इससे पूर्व भारत में अरब, फारस और मध्य एशिया से आये लुटेरों ने भी यही कार्य किया था पर उन्होंने कभी वैश्यालय स्थापित नहीं किये| वे अपने साथ महिलाओं को तो लाये नहीं थे अतः उन्होंने हिन्दुओं की ह्त्या कर के उनकी महिलाओं का अपहरण कर के उनके साथ अपने घर बसाए| जिन हिन्दुओं की वे ह्त्या करते थे उनकी भूमि और महिलाओं पर अपना अधिकार कर लेते थे|
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अंग्रेजों ने फिर मुम्बई में फारस रोड़ पर और जहाँ जहाँ भी वे गए, वहाँ वहाँ अपने सिपाहियों और कर्मचारियों के लिए वैश्यालय स्थापित किये|
हिन्दू महिलाएँ इन विदेशी आक्रमणकारियों से अपनी रक्षा के लिए ही आत्मदहन को बाध्य होने लगीं|
यह था भारत में तथाकथित सती प्रथा यानि महिला दहन का कारण|
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भारत में राजा राममोहन रॉय को बहुत बड़ा समाज सुधारक बताया जाता है, जो वास्तव में एक झूठ है| निःसंदेह वे बहुत बड़े विद्वान् थे पर अंग्रेजी शासन के सबसे बड़े समर्थक भी थे| अंग्रेजी शासन, अंग्रेजी भाषा एवं अंग्रेजी सभ्यता की प्रशंसा जितनी उन्होंने की उतनी शायद ही किसी अन्य भारतीय ने की होगी| उन्होने स्वतंत्रता आन्दोलन में कोई प्रत्यक्ष भाग नहीं लिया, और उनकी अन्तिम सांस भी ब्रिटेन में ही निकली|
अंग्रेजों ने पुरष्कार में उन्हें बहुत बड़ी जमींदारी दी थी, अतः अपनी जमींदारी को चमकाते हुए भारतीय समाज में हीन भावना भरने का ही कार्य उन्होंने किया| वे अंग्रेजों के अदृष्य सिपाही थे| भारत में अंग्रेजी राज्य और गुलामी को स्थापित करने में उनका बहुत बड़ा योगदान था| वे कभी अंग्रेजों की कूटनीति को समझ नहीं सके और भारत का सही मार्गदर्शन नहीं कर पाए|
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भारत का वर्त्तमान इतिहास भारत के शत्रुओं ने ही लिखा है, जिस पर एक बहुत बड़े शोध और पुनर्लेखन की आवश्यकता है| भारत में सतीप्रथा नाम की कोई प्रथा थी ही नहीं| यह अंग्रेजों और उनके मानसपुत्रों द्वारा फैलाया गया झूठ है कि भारत में कोई सतीप्रथा नाम की कुप्रथा थी| भारत में मध्यकाल में जिन लाखों क्षत्राणियों ने जौहर किया था वह उन्होंने विदेशी अधर्मी आक्रान्ताओं से अपनी रक्षा के लिए किया| आज़ादी के बाद भारत में दो चार घटनाएँ हुईं उनके पीछे का कारण अज्ञान और अशिक्षा ही हो सकता है, अन्य कुछ नहीं|
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भारत का भविष्य बहुत उज्जवल है| एक पुनर्जागरण आरम्भ हो रहा है| आगे आने वाला समय अच्छा ही अच्छा होगा| एक आध्यात्मिक क्रांति का भी आरम्भ हो चुका है और भविष्य में भारत एक आध्यात्मिक राष्ट्र होगा|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२० नवम्बर २०१६
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प्रख्यात वैदिक विद्वान श्री अरुण उपाध्याय जी की टिप्पणी :---
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भारत में तथाकथित "सती प्रथा" पर एक बहुत बड़े ऐतिहासिक शोध की आवश्यकता है| हम जो पढ़ रहे हैं वह अंग्रेजों और उनके मानस-पुत्रों का लिखा हुआ इतिहास है जो सत्य नहीं है| इस इतने बड़े असत्य का कारण क्या था इस पर यहाँ कुछ प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है|
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अंग्रेज जब भारत छोड़कर गए तब उन्होंने अपने समय के यथासंभव सारे दस्तावेज, वे सारे सबूत जला कर नष्ट कर दिए जो उनके द्वारा किये हुए जनसंहार, अत्याचार और भारतीयों को बदनाम करने के लिए किये गए कार्यों को सिद्ध कर सकते थे| उन्होंने करोड़ों लोगों की हत्याएँ कीं, दुर्भिक्ष की स्थिति उत्पन्न कर करोड़ों को भूख से मरने को विवश किया और हिंदुत्व को बदनाम करने व भारतीय संस्कृति को नष्ट करने के लिए अनेक दुष्कृत्य किये जैसे भारत की शिक्षा व्यवस्था व कृषि प्रणाली को नष्ट करना, हिन्दू धर्मग्रंथों को प्रक्षिप्त करवाना, झूठा इतिहास लिखवाना, आदि आदि| भारत को बहुत धूर्तता, निर्दयता और क्रूरता से बुरी तरह उन्होंने लूटा| पश्चिम की सारी समृद्धि भारत से लूटे हुए धन के कारण ही है| मूल रूप से वे समुद्री लुटेरे थे और भारत में लुटेरों के रूप में लूटने के उद्देश्य से ही आये थे|
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भारत में अंग्रेज़ी शासन स्थापित करने के पश्चात अँगरेज़ शासकों के समक्ष सबसे बड़ी समस्या थी अँगरेज़ सिपाहियों, कर्मचारियों और अधिकारियों को छुट्टी पर इंग्लैंड बापस जाने से रोकना| वे किसी भी कीमत पर उन्हें यहीं रोकना चाहते थे| इसके लिए उन्होंने भारत में अँगरेज़ कर्मचारियों, अधिकारियों और सिपाहियों के लिए वैश्यालय स्थापित किये| भारत के इतिहास में कभी भी व्यवस्थित रूप से वैश्यावृति नहीं थी, वेश्यालयों की तो भारत में कभी कल्पना भी नहीं की गयी थी|
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अंग्रेजों ने सबसे पहिले अपना शासन वर्त्तमान कोलकाता से आरम्भ किया था अतः अपना शासन स्थापित होते ही उन्होंने कोलकाता के सोनागाछी में एशिया का सबसे बड़ा वैश्यालय स्थापित किया| उनकी सबसे बड़ी छावनी भी बंगाल में ही हुआ करती थी| अब उन्हें वैश्या महिलाओं की आवश्यकता थी, अतः उन्होंने अपने शासन के आरम्भ में बंगाल में किसी भी विधवा हुई महिला को बलात बन्दूक की नोक पर अपहृत कर के वैश्या बनने को बाध्य करना आरम्भ कर दिया| बाद में वे विधिवत रूप से गुपचुप छद्म रूप से भारतीय युवतियों का अपहरण करने लगे और उन्हें वैश्या बनने को बाध्य करने लगे| यह कार्य उन्होंने अति निर्दयता और क्रूरता से किया|
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एक बात पर गौर कीजिये कि तथाकथित सती प्रथा वहीं थी जहां अंग्रेजों की छावनियाँ थीं, अन्य कहीं भी नहीं| इसकी प्रतिक्रया यह हुई कि अपनी रक्षा के लिए हिन्दू समाज ने बाल विवाह आरम्भ कर दिए और विधवाओं की अँगरेज़ सिपाहियों से रक्षा के लिए विधवा दहन आरम्भ कर दिये| पर्दा प्रथा भी यहीं से चली|
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इससे पूर्व भारत में अरब, फारस और मध्य एशिया से आये लुटेरों ने भी यही कार्य किया था पर उन्होंने कभी वैश्यालय स्थापित नहीं किये| वे अपने साथ महिलाओं को तो लाये नहीं थे अतः उन्होंने हिन्दुओं की ह्त्या कर के उनकी महिलाओं का अपहरण कर के उनके साथ अपने घर बसाए| जिन हिन्दुओं की वे ह्त्या करते थे उनकी भूमि और महिलाओं पर अपना अधिकार कर लेते थे|
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अंग्रेजों ने फिर मुम्बई में फारस रोड़ पर और जहाँ जहाँ भी वे गए, वहाँ वहाँ अपने सिपाहियों और कर्मचारियों के लिए वैश्यालय स्थापित किये|
हिन्दू महिलाएँ इन विदेशी आक्रमणकारियों से अपनी रक्षा के लिए ही आत्मदहन को बाध्य होने लगीं|
यह था भारत में तथाकथित सती प्रथा यानि महिला दहन का कारण|
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भारत में राजा राममोहन रॉय को बहुत बड़ा समाज सुधारक बताया जाता है, जो वास्तव में एक झूठ है| निःसंदेह वे बहुत बड़े विद्वान् थे पर अंग्रेजी शासन के सबसे बड़े समर्थक भी थे| अंग्रेजी शासन, अंग्रेजी भाषा एवं अंग्रेजी सभ्यता की प्रशंसा जितनी उन्होंने की उतनी शायद ही किसी अन्य भारतीय ने की होगी| उन्होने स्वतंत्रता आन्दोलन में कोई प्रत्यक्ष भाग नहीं लिया, और उनकी अन्तिम सांस भी ब्रिटेन में ही निकली|
अंग्रेजों ने पुरष्कार में उन्हें बहुत बड़ी जमींदारी दी थी, अतः अपनी जमींदारी को चमकाते हुए भारतीय समाज में हीन भावना भरने का ही कार्य उन्होंने किया| वे अंग्रेजों के अदृष्य सिपाही थे| भारत में अंग्रेजी राज्य और गुलामी को स्थापित करने में उनका बहुत बड़ा योगदान था| वे कभी अंग्रेजों की कूटनीति को समझ नहीं सके और भारत का सही मार्गदर्शन नहीं कर पाए|
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भारत का वर्त्तमान इतिहास भारत के शत्रुओं ने ही लिखा है, जिस पर एक बहुत बड़े शोध और पुनर्लेखन की आवश्यकता है| भारत में सतीप्रथा नाम की कोई प्रथा थी ही नहीं| यह अंग्रेजों और उनके मानसपुत्रों द्वारा फैलाया गया झूठ है कि भारत में कोई सतीप्रथा नाम की कुप्रथा थी| भारत में मध्यकाल में जिन लाखों क्षत्राणियों ने जौहर किया था वह उन्होंने विदेशी अधर्मी आक्रान्ताओं से अपनी रक्षा के लिए किया| आज़ादी के बाद भारत में दो चार घटनाएँ हुईं उनके पीछे का कारण अज्ञान और अशिक्षा ही हो सकता है, अन्य कुछ नहीं|
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भारत का भविष्य बहुत उज्जवल है| एक पुनर्जागरण आरम्भ हो रहा है| आगे आने वाला समय अच्छा ही अच्छा होगा| एक आध्यात्मिक क्रांति का भी आरम्भ हो चुका है और भविष्य में भारत एक आध्यात्मिक राष्ट्र होगा|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२० नवम्बर २०१६
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प्रख्यात वैदिक विद्वान श्री अरुण उपाध्याय जी की टिप्पणी :---
"सती प्रथा जहां भी हुयी वह विदेशियों के अत्याचार से बचने के लिये हुई थी। बंगाल में भी मुस्लिम शासकों के समय सती प्रथा आरम्भ हुयी तथा अंग्रेजी शासन में बहुत बढ़ गयी। अंग्रेज अपने विलास के लिये स्त्रियों का अपहरण करते थे तथा लगान वसूलने के लिये १० लाख से अधिक लोगों की कृरतापूर्वक हत्या की। इसकाम के लिये न्यायालय बना रखे थे जबकि कोई कानून नहीं बना था। उनमें दो जज विलियम जोन्स तथा एरिक पार्जिटर ने इतिहास में कई जालसाजियां की जो भारतीय इतिहासकारों के लिये वेदव्यास हैं और असली वेदव्यास काल्पनिक हो गये हैं। इसके अतिरिक्त हजारों बुनकरों के हाथ काट दिये तो उन परिवारों की असहाय स्त्रियों का क्या हाल होगा? राम मोहन राय की विद्वत्ता इतनी ही थी कि बिना पढ़े सभी भारतीय शास्त्रों की निन्दा करें। अंग्रेजों ने अपने इस प्रिय इसाई शिष्य को लन्दन में दफनाया था।"