Tuesday 1 June 2021

भगवान कहते हैं ..... यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि (मैं यज्ञों में जपयज्ञ हूँ) ---

 भगवान कहते हैं ..... यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि (मैं यज्ञों में जपयज्ञ हूँ) ---

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"महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम्| यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः||१०:२५||
अर्थात् "मैं महर्षियों में भृगु और वाणी (शब्दों) में एकाक्षर ओंकार हूँ| मैं यज्ञों में जपयज्ञ और स्थावरों (अचलों) में हिमालय हूँ||"
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अग्नि पुराण के अनुसार ....."जकारो जन्म विच्छेदः पकारः पाप नाशकः| तस्याज्जप इति प्रोक्तो जन्म पाप विनाशकः||" इसका अर्थ है .... ‘ज’ अर्थात् जन्म मरण से छुटकारा, ‘प’ अर्थात् पापों का नाश ..... इन दोनों प्रयोजनों को पूरा कराने वाली साधना को ‘जप’ कहते हैं|
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अतः सबसे बड़ा यज्ञ ... "जपयज्ञ' है| इस से बड़ा दूसरा कोई यज्ञ नहीं है| इसमें हम अपनी स्वयं की ही हवि शाकल्य बन कर, स्वयं ही श्रुवा बन कर, स्वयं की ही ब्रह्मरूप अग्नि में, स्वयं ही ब्रह्मरूप कर्ता बन कर हवन करते हैं| हमारा गन्तव्य भी ब्रह्म ही है|
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कोई भी साधना जितने सूक्ष्म स्तर पर होती है वह उतनी ही फलदायी होती है| जितना हम सूक्ष्म में जाते हैं उतना ही समष्टि का कल्याण कर सकते हैं| वाणी के चार क्रम हैं ----- परा, पश्यन्ति, मध्यमा और बैखरी| जिह्वा से होने वाले शब्दोच्चारण को बैखरी वाणी कहते हैं| उससे पूर्व मन में जो भाव आते हैं वह मध्यमा वाणी है| मन में भाव उत्पन्न हों, उससे पूर्व वे मानस पटल पर दिखाई भी दें वह पश्यन्ति वाणी है| और उससे भी परे जहाँ से विचार जन्म लेते हैं वह परा वाणी है|
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पश्यन्ति और परा में प्रवेश कर के ही हम समष्टि का वास्तविक कल्याण कर सकते हैं| जप के लिये प्रयुक्त की जाने वाली वाणी का स्तर कैसा हो, इसे हर व्यक्ति अपने अपने स्तर पर ही समझ सकता है| हमारी चेतना सूक्ष्म देह में मेरुदंड के किस चक्र में है, उसी के अनुसार हमारे विचारों की सृष्टि होती है| यह अनुभूति का विषय है, बुद्धि का नहीं| अतः जप हमेशा आज्ञाचक्र से ऊपर ही अति सूक्ष्म स्तर पर करना चाहिए|
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साधनाकाल के आरंभ में जप वाणी द्वारा बोलकर ही होता है| फिर हरिःकृपा से शनैः शनैः आज्ञाचक्र से सहस्त्रार, फिर सहस्त्रार से ब्रह्मरंध्र, फिर ब्रह्मरंध्र से परे अनंत विस्तार में, और अनंत विस्तार से भी परे "परमशिव" में होता है| वहीं क्षीरसागर है जहाँ भगवान नारायण का निवास है| जब उनकी और भी अधिक कृपा होगी तब वे इस से से भी परे ले जाएँगे| परमात्मा की कृपा पर ही सब निर्भर है, स्वयं के प्रयासों पर नहीं| प्रयास भी वे ही करवाते हैं, और यथार्थ में करते भी वे स्वयं ही हैं|

गीता के निम्न श्लोकों को स्वयं को ही समझना होगा .....
"ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्| ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना||४:२४||"
"सर्वगुह्यतमं भूयः श्रृणु मे परमं वचः| इष्टोऽसि मे दृढमिति ततो वक्ष्यामि ते हितम्||१८:६४||
"मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु| मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे||१८:६५||"
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज| अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः||१८:६६||"
"यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः| तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम||१८:७८||"
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हरिः ॐ तत्सत् !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! जय गुरु !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१ जून २०२०

पुनश्च: :--- भगवान श्रीकृष्ण ने ऐकाक्षर ब्रह्म ओंकार के अतिरिक्त अन्य किसी भी मंत्र के जप को नहीं बताया है|

क्या भ्रष्टाचार को तंत्र-मंत्र से समाप्त किया जा सकता है?

 क्या भ्रष्टाचार को तंत्र-मंत्र से समाप्त किया जा सकता है?

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एक बहुत पुरानी स्मृति है सन १९७६ की| मुझे कुछ दिनों के लिए पूर्वी यूरोप के देश रोमानिया के कोन्स्तांजा (Constanta) नगर में जाना पड़ा था| उस समय जहाँ तक मैं समझता हूँ, इतना भ्रष्ट देश दुनियाँ में शायद ही कोई दूसरा होगा| भ्रष्टाचार ही वहाँ का शिष्टाचार था| लोगों की मजबूरी थी| वहाँ के कम्युनिष्ट तानाशाह निकोलाई चाउशेस्को और उसकी पत्नी एलेना ने देश का सारा धन तो लोगों से छीनकर अपने पास जमा कर रखा था और लोगों को मार्क्सवाद के नाम पर अपना गुलाम बना कर रखा था| किसी भी नागरिक में स्वाभिमान नहीं बचा था और देश की अधिकांश महिलाओं की तो बहुत ही बुरी गति थी|
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अब उपरोक्त घटना के १३ वर्ष बाद दिसंबर १९८९ की बात है| मैं पूर्वी यूरोप के ही मार्क्सवादी देश यूक्रेन गया हुआ था जो तब तक सोवियत संघ का ही भाग था| रूसी भाषा का उस समय तक अच्छा ज्ञान था (अब तो भूल गया हूँ) अतः भाषा की कोई कठिनाई नहीं थी| एक दिन वहाँ के टीवी पर समाचार देखा कि रोमानिया में मार्क्सवाद विरोधी क्रांति हो गई है, वहाँ का तानाशाह निकोलाई चाउशेस्को और उसकी पत्नी एलेना दोनों ही हेलिकॉप्टर से भाग रहे थे, लोगों ने नीचे से गोलियां चला कर हेलिकॉप्टर को नीचे गिरा दिया और दोनों को पहले तो पकड़ लिया, फिर पीट-पीट कर मार डाला|
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सबसे बड़ा आश्चर्य तो मुझे तब हुआ जब सोवियत संघ ने इस घटना का समर्थन किया| यह मेरे तब तक के जीवन का सबसे बड़ा आश्चर्य था| मैं उसी समय समझ गया कि मार्क्सवाद का अंत आ चुका है और सोवियत संघ भी बिखर सकता है|
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उससे पहिले सन १९६८ की एक घटना याद आ गई| उस समय मैं सोवियत रूस में एक प्रशिक्षण के लिए गया हुआ था| अक्तूबर १९६८ में हंगरी में मार्क्सवाद विरोधी क्रांति हो गई थी तब ४ नवंबर १९६८ को रूसी सेना ने हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट और अन्य नगरों पर अपने टैंकों से भयंकर आक्रमण किया और अगले ६ दिनों में २५०० से अधिक हङ्गेरियन क्रांतिकारियों को मार कर बापस मार्क्सवादी सत्ता को स्थापित किया| लगभग दो लाख हङ्गेरियन देश छोड़कर भाग गए और ७०० से अधिक सोवियत सैनिक भी मारे गए|
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रोमानिया में मार्क्सवादी व्यवस्था के विरुद्ध विद्रोह और सोवियत संघ द्वारा उसका समर्थन ..... एक महान प्रतिक्रांति थी जो विश्व से मार्क्सवाद के अंत की शुरुआत थी| सौभाग्य से मैं भी इसका साक्षी था|
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लोग कहते हैं कि रोमानिया के कुछ कबीलों की महिलाओं को तंत्र-मंत्र का ज्ञान था जो दिन रात वहाँ की भ्रष्ट सरकार और व्यवस्था को बदलने के लिए कुछ अभिचार कर्म किया करती थीं| कई वर्षों की साधनाओं के उपरांत उनके अभिचार कर्म सिद्ध हुए और वहाँ की भ्रष्ट व्यवस्था धराशायी हुई| यह सुनी हुई बात है| इस विषय पर श्री नरेश आर्य जी ने एक वीडियो और पोस्ट भी डाली थी जिसका लिंक नीचे कॉमेंट बॉक्स में है|
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भारत में भी अभिचार कर्म .... वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन और मारन जानने वाले बहुत लोग होंगे| मैं क्षमायाचना सहित पूछना चाहता हूँ कि क्या भारत के सारे तांत्रिक, मांत्रिक, अघोरी सब मिलकर कोई ऐसा अनुष्ठान कर सकते हैं जो भारत के भीतर और बाहर के सब शत्रुओं का नाश कर सके? मैं अनाड़ी आदमी हूँ, इसलिए ये सब लिख रहा हूँ| आप सब को नमन !
कृपा शंकर
१ जून २०२०