Monday, 15 January 2018

भगवान का भजन क्या है ? .......

भगवान का भजन क्या है ? .......
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धन्य हैं वे लोग जो भगवान का भजन करते हैं, पर एक प्रश्न उत्पन्न होता है कि भगवान का भजन क्या है? क्या किसी भक्ति छंद का गायन ही भजन है या कुछ और भी? भजनानंदी कौन है?
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मेरे विचार से तो भजन वह साधना है जो साधक को परमात्मा की प्राप्ति करा दे| भजनानंदी भी वही साधक है जो भगवान को प्राप्त करने का अधिकारी है|
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इस विषय पर गीता का दृष्टिकोण यह है .....

भगवान कहते हैं .....
विविक्तसेवी लघ्वाशी यतवाक्कायमानसः|
ध्यानयोगपरो नित्यं वैराग्यं समुपाश्रितः ||१८.५२||
अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं परिग्रहम् |
विमुच्य निर्ममः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते ||१८.५३||
ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न काङ्क्षति
समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिं लभते पराम् ||१८.५४||

ऐसे श्लोकों की व्याख्या मर्मज्ञ आचार्यों के मुख से प्रत्यक्ष ही सुन कर समझनी चाहिए| पुस्तकों से इन्हें समझना असंभव है| इन पंक्तियों को लिखने का मेरा उद्देश्य सिर्फ पाठकों में एक रूचि जागृत करना है|
सभी को सप्रेम सादर नमन !

ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
१५ जनवरी २०१८

बच्चों को आत्महत्या की प्रवृति से बचाएँ ....

बच्चों को आत्महत्या की प्रवृति से बचाएँ ....
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भारत में हर हर वर्ष हजारों विद्यार्थी आत्महत्या कर के अपने प्राण दे देते हैं| समाज के कर्णधारों को इस विषय पर गंभीर चिंतन करना चाहिए| कोई विद्यार्थी आत्महत्या कर के मरता है तब यह न सोचें कि हमारे स्वयं के घर का बालक थोड़े ही है| कल को अपने ही घर का कोई बालक ऐसे करेगा तो दूसरे भी यही कहेंगे|
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कुछ दिनों पूर्व राजस्थान पत्रिका समाचार पत्र में छपे राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की ऐक्सीडेंटल डेथ एंड सुइसाइड इन इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ राजस्थान राज्य में ही वर्ष २०१६ में २२१ बालकों ने आत्महत्या की| हर वर्ष औसत लगभग २२५ बालक राजस्थान में आत्महत्या कर के मरते हैं| सब से अधिक आत्महत्या कोचिंग क्लासेस के बच्चे करते हैं| पूरे भारत में तो बहुत अधिक बालक करते होंगे|

इस में मैं अधिकांश दोष बालकों के माँ-बाप को दूँगा, फिर समाज को| हर बालक की दिमागी क्षमता अलग अलग होती है| यदि कोई पढाई में अच्छा नहीं कर पाता तो जीवन के अन्य किसी क्षेत्र में सफल हो सकता है| यह आवश्यक नहीं है कि हर बालक पढाई में होशियार ही हो| उनके ऊपर माँ-बाप का और समाज का बहुत अधिक दबाव रहता है| कई माँ-बाप अपने बालकों को बहुत बुरी तरह पीटते हैं| क्या मारने पीटने से ही बालक अधिक अच्छा पढ़ लिख सकता है ? मानसिक तनाव व अवसाद से बालकों की रक्षा करनी चाहिए| कई बच्चे अपने घर की तरीबी से तंग आकर और कई बच्चे प्रेम प्रसंगों में भी आत्महत्या करते हैं| आत्महत्या की प्रवृत्ति से बच्चों को बचाना चाहिए|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१५ जनवरी २०१८