Monday 15 August 2016

शरणागति की महिमा .....

शरणागति की महिमा ........
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यह सृष्टि त्रिगुणात्मक है| पूरी प्रकृति और समस्त जीवों की सृष्टि और चेतना ..... सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण ..... इन तीन गुणों से निर्मित है| जिस भी प्राणी में जो गुण अधिक होता है उसकी सोच और चिंतन वैसा ही होता है|
मैंने जीवन में देखा और अनुभूत किया है कि गीता का अध्ययन करने वाले सतोगुण प्रधान व्यक्ति को ज्ञानयोग या भक्तियोग ही अच्छा लगता है, रजोगुण प्रधान व्यक्ति को कर्मयोग अच्छा लगता है, और तमोगुण प्रधान व्यक्ति को मरने मारने के अलावा और कुछ समझ में नहीं आता|
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भगवन श्रीकृष्ण अपने भक्त को गीता के दुसरे अध्याय के ४५ वें श्लोक में निस्त्रेगुण्य यानि त्रिगुणातीत बनने, तीनों गुणों से परे जाने का आदेश देते हैं ....
"त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन |
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान ||"
समस्त दुःखों और क्लेशों का कारण ही कर्मबंधन है| जब तक मनुष्य इन तीनों गुणों से बंधा हुआ है वह कभी मुक्त नहीं हो सकता|
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त्रिगुणातीत कैसे हों, इसका उत्तर मेरी सीमित और अल्प बुद्धि से मात्र "शरणागति" है जिसका वर्णन भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के अठारहवें अध्याय के ६६वें श्लोक में किया है| भगवान की शरण लेकर ही हम तीनों गुणों से परे जाकर कर्मफलों से मुक्त हो सकते हैं| यही आध्यात्मिक जीवनमुक्ति है|
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज |
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ||
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इस श्लोक में भगवान् ने सम्पूर्ण धर्मों का त्याग करके अपनी शरण में आने की आज्ञा दी है, जिसे अर्जुन ने ‘करिष्ये वचनं तव’ कहकर स्वीकार किया और अपने क्षात्र-धर्म के अनुसार युद्ध भी किया है|
जब अर्जुन ‘शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्’ (गीता २/७) कहकर भगवान की शरण हुए तो उस शरणागति में कुछ ना कुछ कमी रही ही होगी जिसकी पूर्ति अठारहवें अध्याय के ६६वें श्लोक में हुई|
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भगवान् कहते हैं कि सम्पूर्ण धर्मों का आश्रय, धर्म के निर्णय का विचार छोड़कर अर्थात् क्या करना है और क्या नहीं करना है—इसको छोड़कर केवल एक मेरी ही शरण में आ जा|
स्वयं भगवान् के शरणागत हो जाना—यह सम्पूर्ण साधनों का सार और भक्ति की पराकाष्ठा है| इसमें शरणागत भक्त को अपने लिये कुछ भी करना शेष नहीं रहता; जैसे पतिव्रता स्त्री का अपना कोई काम नहीं रहता। वह अपने शरीर की सार-सँभाल भी पति के लिये ही करती है। वह घर, कुटुम्ब, वस्तु, पुत्र-पुत्री और अपने कहलाने वाले शरीर को भी अपना नहीं मानती, प्रत्युत पतिदेव का मानती है, उसी प्रकार शरणागत भक्त भी अपने मन,बुद्धि और देह आदि को भगवान् के चरणों में समर्पित करके निश्चिन्त, निर्भय, निःशोक और निःशंक हो जाता है।
जब हमें उनके श्री चरणों में आश्रय मिल जाए तो फिर और चाहिए भी क्या?
देवाधिदेव भगवान शिव भी झोली फैलाकर नारायण से माँग रहे हैं कि हे मेरे श्रीरंग अर्थात् श्री के साथ रमण करने वाले मुझे यह भिक्षा दो कि आपके चरणों की शरणागति कभी न छूटे|
"बार बार बर माँगऊ हरषिदेइ श्रीरंग |
पद सरोज अनपायनी भगति सदा सत्संग ||"
अनपायनी शब्द का अर्थ है- शरणागति !
ऐसी ही शरणागति की महिमा | हम अधिक से अधिक भगवान का ध्यान करें और उनके श्रीचरणों में समर्पित होकर शरणागत हों|
भगवान श्रीकृष्ण हमारे चैतन्य में निरंतर अवतरित हों, एक क्षण के लिए भी उनकी विस्मृति ना हो| उनसे पृथक हमारा कोई अस्तित्व ना रहे|
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हे प्रभो ! आपकी सृष्टि में कोई दुःख, भय और ताप ना हो, धर्म की पुनर्स्थापना हो और सब प्राणी सुखी हों|
"कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने | प्रणत क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः ||"
सभी को शुभ कामनाएँ और सादर सप्रेम अभिनन्दन !
ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर

वास्तविक स्वतन्त्रता .... परमात्मा यानि आत्मज्ञान में है ........

वास्तविक स्वतन्त्रता .... परमात्मा यानि आत्मज्ञान में है ........
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हमारा "स्व" परमात्मा है, और "तंत्र" उसकी व्यवस्था है|
सब तरह के मायावी बंधनों ..... आवरण व विक्षेप, और सब तरह के पाशों से मुक्त होकर, ही हम स्वतंत्र हो सकते हैं| स्वतन्त्रता भीतर है, बाहर नहीं|
हम स्वतंत्र हों, हम स्वतंत्र हों, हम स्वतंत्र हों ..... इस संकल्प के साथ सभी को शुभ कामनाएँ |
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परमात्मा को कभी न भूलो| यह संसार हमारे बिना भी चलता रहेगा| हमारे जीवन का उद्देश्य परमात्मा को उपलब्ध होना है, न कि उसकी रचना को| हमारे प्रभु किस बात से प्रसन्न होते हैं, वही महत्वपूर्ण है, न कि अन्यों की|

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

!! ॐ अहं भारतोऽस्मि ॐ ॐ ॐ !! मेरी देह भारतवर्ष है |

!! ॐ अहं भारतोऽस्मि ॐ ॐ ॐ !! मेरी देह भारतवर्ष है |
मैं ही भारतवर्ष हूँ और समस्त सृष्टि मेरा ही विस्तार है| ॐ ॐ ॐ ||
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"मैं भारतवर्ष, समस्त भारतवर्ष हूँ, भारत-भूमि मेरा अपना शरीर है। कन्याकुमारी मेरा पाँव है, हिमालय मेरा सिर है, मेरे बालों में श्रीगंगा जी बहती हैं, मेरे सिर से सिन्धु और ब्रह्मपुत्र निकलती हैं, विन्ध्याचल मेरा कमरबन्द है, कुरुमण्डल मेरी दाहिनी और मालाबार मेरी बाईं जंघाएँ है। मैं समस्त भारतवर्ष हूँ, इसकी पूर्व और पश्चिम दिशाएँ मेरी भुजाएँ हैं, और मनुष्य जाति को आलिंगन करने के लिए मैं उन भुजाओं को सीधा फैलाता हूँ। आहा ! मेरे शरीर का ऐसा ढाँचा है ! यह सीधा खड़ा है और अनन्त आकाश की ओर दृष्टि दौड़ा रहा है। परन्तु मेरी वास्तविक आत्मा सारे भारतवर्ष की आत्मा है। जब मैं चलता हूँ तो अनुभव करता हूँ कि सारा भारतवर्ष चल रहा है। जब मैं बोलता हूँ तो मैं भान करता हूँ कि यह भारतवर्ष बोल रहा है। जब मैं श्वास लेता हूँ, तो अनुभव करता हूँ कि भारतवर्ष श्वास ले रहा है। मैं भारतवर्ष हूँ, मैं शंकर हूँ, मैं शिव हूँ और मैं सत्य हूँ|" --- स्वामी रामतीर्थ ---
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"भारतभूमि .... आसेतु हिमालय पर्यन्त एक 'सिद्ध कन्या' ही नहीं साक्षात माता है|"
मूलाधार चक्र कन्याकुमारी' है, जहाँ का त्रिकोण शक्ति का स्त्रोत है|
इसी मूलाधार से इड़ा पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियाँ प्रस्फुटित होती हैं| कैलाश पर्वत सहस्त्रार है|
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भारतवर्ष स्वयं में है| इसे स्वयं में पहचानो|
ॐ अहं भारतोऽस्मि ॐ ॐ ॐ !! मैं ही भारतवर्ष हूँ और समस्त सृष्टि मेरा ही विस्तार है| ॐ ॐ ॐ ||

भारत को परम वैभव पर पहुँचाने की दो सीढ़ियाँ ........

भारत को परम वैभव पर पहुँचाने की दो सीढ़ियाँ ........
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जब मैं भारत की सोचता हूँ तो पाता हूँ कि भारत का अर्थ है सनातन धर्म| मेरे लिए श्री अरविन्द के शब्दों में सनातन धर्म ही भारत है और भारत ही सनातन धर्म है| दोनों कभी पृथक नहीं हो सकते| सनातन धर्म का विस्तार ही भारत का विस्तार है और सनातन धर्म का उत्थान ही भारत का उत्थान है|
भारत एक ऊर्ध्वमुखी चेतना है| भारत एक ऐसे लोगों का समूह है जो जीवन में जो श्रेष्ठतम और उच्चतम है उसे पाने का प्रयास करते है, अपनी चेतना को विस्तृत कर समष्टि से जुड़ना चाहते हैं, और नर में नारायण को साकार करते हैं|
कालखंड में एक अल्प समय ऐसा आता है जब अज्ञान, दू:ख, दुर्बलता, स्वार्थपरता और तामसिकता में विश्व डूब जाता है और भारत भी दुर्बलता और अवनति के गड्ढे में गिर जाता है ताकि वह आत्मसंवरण कर ले| इस काल खंड में भारत के योगी और तपस्वी गण भी संसार से अलग होकर केवल अपनी मुक्ति या आनन्द या अपने शिष्यों की मुक्ति के लिए ही प्रयासरत हो जाते है| जन सामान्य को भी अपने भौतिक सुख के आगे कुछ और दिखाई नहीं देता|
पर अब वह समय निकल चूका है| अब ईश्वर की इच्छा है की भारत फिर ऊपर उठे| भारत के अभ्युदय को अब कोई नहीं रोक सकता| साक्षात् भगवती चेतना ने अब भारत को शने: शने: ऊपर उठाने का कार्य अपने हाथ में ले लिया है| ज्ञान की गति भी पुन: प्रसारित होने लगी है और भारत की आत्मा का भी प्रसार होने लगा है| भारत भूमि में दिव्य चेतना से युक्त महान आत्माओं का अवतरण हो रहा है और वह दिन अधिक दूर नहीं है जब तामसिक और जड़ बुद्धि के लोगों का भारत से सम्पूर्ण विनाश होगा|
भौतिक स्तर पर भारत को सिर्फ दो कार्य करने होंगे फिर सब अपने आप सही हो जाएगा|
सर्वप्रथम भारत को अपनी प्राचीन शिक्षा व्यवस्था और कृषि व्यवस्था को पुनर्स्थापित करना होगा|
फिर सब कुछ सही होने लगेगा|
आध्यात्मिक स्तर पर हमें जीवन का केंद्रबिंदु परमात्मा को बनाना होगा|
फिर भारत के अभ्युदय को कोई नहीं रोक सकता|
मैंने यहाँ जो भी लिखा है वह अब तक के मेरे अनुभव और अंतर्प्रज्ञा से है| मुझे न तो किसी का सहयोग चाहिए और न समर्थन| "निराश्रयम् मां जगदीश रक्ष:|"
जो मेरे विचारों से सहमत नहीं हैं वे मुझे अपनी मित्रता सूचि से बाहर कर दें| किसी मंच को मेरे विचार अच्छे नहीं लगते तो मुझे वहां से भी निष्कासित कर सकते हैं|
मेरे आश्रय सिर्फ जगदीश हैं| अन्य किसी का आश्रय मुझे नहीं चाहिए|
एक व्यक्ति का संकल्प भी समस्त सृष्टि को बदल सकता है| हो सकता है कि वह व्यक्ति आप ही हों| ॐ|

क्या हम वास्तव में स्वतंत्र हैं ????? .....

(कल स्वतन्त्रता दिवस है|)
सभी को स्वतंत्रता दिवस की अग्रिम हार्दिक शुभ कामनाएँ ........
क्या हम वास्तव में स्वतंत्र हैं ? यदि हैं तो किस दृष्टिकोण से ?
क्या इस यक्ष प्रश्न का कोई उत्तर किसी के पास है ?
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जहाँ तक मेरी सोच है, हम किसी भी दृष्टी से स्वतंत्र नहीं हैं| हमारी स्वतन्त्रता ऐसी ही है जैसे एक अस्पताल में भर्ती मरीज लोग स्वास्थय दिवस मनाते थे| स्वस्थ होने का झंडा फहरा कर सब एक दुसरे को स्वस्थ होने की बधाई देते थे|
डॉक्टर उनका उपचार नहीं कर सकते थे क्योंकि डॉक्टर स्वयं बीमार थे और स्वस्थ होने व स्वस्थ करने का नाटक करते थे| मरीजों को बिना दवा दिए ही बोलते की तुम तो अब स्वस्थ हो, देखो अपना स्वस्थ होने का झंडा फहरा रहा है|
यही स्थिति अपने देश की है| क्या हम वास्तव में स्वतंत्र हैं?????
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हम न तो आध्यात्मिक दृष्टी से स्वतंत्र हैं, और न ही मानसिक दृष्टी से| आध्यात्मिक दृष्टी से हम अपनी वासनाओं के गुलाम हैं| मानसिक दृष्टी से हम अभी भी अंग्रेजियत के गुलाम हैं|
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जो तथाकथित आज़ादी हमें मिली वह आजादी थी या सत्ता का हस्तांतरण?
जिसे हम स्वतन्त्रता कहते हैं वह क्या हमारी उच्शृन्खलता नहीं है? हमारे में नागरिक भावों की कमी है|
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यह आज़ादी मिली भी तो किस कीमत पर? देश के दो टुकड़े करवा कर और लाखों लोगों की जघन्य हत्याएँ और लाखों महिलाओं व बच्चों के अपहरण, बलात्कार और बलात धर्मांतरण के पश्चात|
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भारत की नष्ट हुई भव्य प्राचीन शिक्षा व कृषि व्यवस्था, सनातन धर्म और प्राचीन महानतम सभ्यता के ह्रास की पीड़ा असहाय होकर देखने को बाध्य हूँ| देश में आरक्षण के नाम पर योग्यता की ह्त्या, जातिवाद, ओछी राजनीति, और भ्रष्टाचार व अन्याय देखकर यह सोचने को बाध्य हूँ कि क्या हम वास्तव में स्वतंत्र हैं|
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हम अभी भी कॉमन वेल्थ के सदस्य क्यों हैं? हमारे संविधान में धारा 147 जैसी धाराएँ अभी भी अस्तित्व में क्यों हैं जो हमें हमें अभी भी अंग्रेजों का गुलाम ही मानती हैं?
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हमारी स्थिति कामायनी के मनु जैसी ही है जो ...
"हिमगिरी के उत्तुंग शिखर पर,
बैठ शिला की शीतल छाँह |
एक व्यक्ति भीगे नयनों से,
देख रहा था प्रलय अथाह ||"
हम भी असहाय होकर उस अथाह प्रलय के साक्षी होने को बाध्य हैं|
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मैं उन सभी शरणार्थियों को भी धन्यवाद देता हूँ जो विभाजन के पश्चात् अपना सब कुछ छोड़ कर भारत आ गए पर अपना धर्म नहीं छोड़ा| सनातन धर्म उन सब का सदा ऋणी रहेगा| उन सब को भी सद्गति प्राप्त हो जिन्होनें विधर्मियों के हाथों मरना स्वीकार किया पर अपना प्रिय सनातन धर्म नहीं छोड़ा|
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प्रसाद जी के शब्दों में ....
जो घनीभूत पीड़ा थी, मस्तिष्क में स्मृति सी छाई |
दुर्दिन में आँसू बनकर वो आज बरसने आई ||"
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मेरे विचार से तो असली स्वतंत्र वही है जो आध्यात्मिक दृष्टी से जीवनमुक्त है, जो त्रिगुणातीत है, जिसने तुरीयावस्था को प्राप्त कर लिया है| वही व्यक्ति कह सकता है ..... शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि|
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आज़ाद हिन्द फौज का राष्ट्र गीत ...
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शुभ सुख चैन की बरखा बरसे
भारत भाग्य है जागा
पंजाब सिंध गुजरात मराठा
द्राविड़ उत्कल बंगा
चंचल सागर विन्ध्य हिमालय,
नीला जमुना गंगा
तेरे नित गुण गायें
तुझसे जीवन पायें
हर तन पाए आशा
सूरज बन कर जग पर चमके
भारत नाम सुहागा
जय हे, जय हे, जय हे
जय जय जय जय हे
सबे के दिल में प्रीत बसाये,
तेरी मीठीं बाणी
हर सूबे के रहने वाले,
हर मज़हब के प्राणी
सब भेद और फर्क मिटा के
सब गोद में तेरी आके
गूंधे प्रेम की माला
सूरज बन कर जग पर चमके
भारत नाम सुहागा
जय हे, जय हे, जय हे
जय जय जय जय हे।
सुबह सवेरे पंख पखेरू
तेरे ही गुण गायें
बस भारी भरपूर हवाएं
जीवन में रुत लायें
सब मिलकर हिन्द पुकारे,
जय आजाद हिन्द के नारे /
प्यार देश हमारा
सूरज बन कर जग पर चमके
भारत नाम सुहागा
जय हे, जय हे, जय हे
जय जय जय जय हे।
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भारत माता की जय ! वन्दे मातरं ! ॐ ॐ ॐ !!