Wednesday, 19 February 2020

माता और पिता दोनों ही प्रथम पूज्य और प्रत्यक्ष परमात्मा हैं .....

माता और पिता दोनों ही प्रथम पूज्य और प्रत्यक्ष परमात्मा हैं| किसी भी परिस्थिति में संतान द्वारा उनका अपमान नहीं होना चाहिए| उनके अपमान से भयंकर पितृदोष लगता है| पितृदोष जिन को होता है, या तो उनका वंशनाश हो जाता है या उनके वंश में अच्छी आत्मायें जन्म नहीं लेतीं| पितृदोष से घर में सुख-शांति नहीं होती और कलह बनी रहती है| आज के समय अधिकांश परिवार पितृदोष से दु:खी हैं| विवाहिता स्त्री के लिए उसके सास-ससुर भी माता-पिता हैं| उनका सम्मान परमात्मा का सम्मान है| यदि माता-पिता का आचरण धर्म-विरुद्ध और सन्मार्ग में बाधक है तो भी वे पूजनीय हैं| ऐसी परिस्थिति में हम उनकी बात मानने को बाध्य नहीं हैं, पर उन्हें अपमानित करने का अधिकार किसी को भी नहीं है| उनका भूल से भी अपमान न हो| उनका पूर्ण सम्मान करना हमारा परम-धर्म है| वे प्रत्यक्ष रूप से हमारे सम्मुख हैं तो प्रत्यक्ष रूप से, अन्यथा मानसिक रूप से उन के श्री-चरणों में प्रणाम करना हमारा धर्म है| कोई भी ऐसा महान व्यक्ति आज तक नहीं हुआ जिसने अपने माता-पिता की सेवा नहीं की हो| यदि उनकी उपेक्षा करके अन्य किसी भी देवी-देवता की उपासना करते हैं तो हमारी साधना सफल नहीं हो सकती| उपनिषदों में 'मातृ देवो भव, पितृ देवो भव' कहा गया है| उन की सेवा से पित्तरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है| पितरों का आशीर्वाद जिसे प्राप्त हो जाता है उसके लिए संसार में कुछ भी असंभव नहीं होता| माता-पिता की सेवा के कारण ही गणेश प्रथम पूजनीय बन गए| गणेश पूजन का संदेश ही माता-पिता की सेवा भक्ति का संदेश है|
.
माता और पिता को प्रणाम करने के मंत्र भी हैं| ये मंत्र स्वतः चिन्मय हैं जिनके प्रयोग हेतु अन्य किसी विधि को अपनाने की कोई आवश्यकता नहीं है|
(१) पिता को प्रणाम करने का मंत्र :---
-------------------------------------
"ॐ ऐं" .... इस मंत्र को मानसिक रूप से जपते हुए अपने पिता के श्रीचरणों में प्रणाम निवेदित करें| यदि वे नहीं हैं तो मानसिक रूप से करें| "ऐं" पूर्ण ब्रह्मविद्या स्वरुप है| यह बीज मन्त्र है महासरस्वती और गुरु को प्रणाम करने का| गुरु रूप में पिता को प्रणाम करने से इसका अर्थ होता है ... "हे पितृदेव मुझे हर प्रकार के दु:खों से बचाइये, मेरी रक्षा कीजिये|" इसके जप से मूलाधारस्थ ब्रहमग्रन्थि का भेदन होता है|
(२) माता को प्रणाम करने का मंत्र :---
--------------------------------------
"ॐ ह्रीं" .... इस मंत्र को मानसिक रूप से जपते हुए अपनी माता के श्रीचरणों में प्रणाम निवेदित करें| यदि वे नहीं हैं तो मानसिक रूप से करें| "ह्रीं" यह महालक्ष्मी व श्रीविद्या और माँ भुवनेश्वरी का बीजमंत्र भी है, जिनका पूर्ण प्रकाश स्नेहमयी माता के चरणों में प्रकट होता है| इसके जप से अनाहतचक्रस्थ विष्णुग्रंथि का भेदन होता है|
"ॐ" तो प्रत्यक्ष परमात्मा का वाचक है|
जैसी भी आपकी श्रद्धा है वैसे ही आप कीजिये| आप सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ हैं जिनको मैं प्रणाम करता हूँ|
ॐ तत्सत् | मातृ देवो भव: पितृ देवो भव: | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
१५ फरवरी २०२०

सत्य सनातन नियम जो सनातन हिन्दू धर्म के नाम से जाने जाते हैं....

कोई माने या न माने, कुछ सत्य सनातन नियम हैं जो सनातन हिन्दू धर्म के नाम से जाने जाते हैं....
"हम यह देह नहीं, शाश्वत आत्मा हैं| आत्मा कभी नष्ट नहीं होती| हमारी सोच और विचार ही हमारे कर्म हैं जिन का फल भोगने को हम बाध्य हैं| उन कर्मफलों को भोगने के लिए ही बार बार हमें जन्म लेना पड़ता है| ईश्वर करुणा और प्रेमवश हमारे कल्याण हेतु अवतार लेते हैं| जीवभाव से मुक्त हो कर परमात्मा में शरणागति व समर्पण हमें इस जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त करते हैं| यह सृष्टि परमात्मा का एक संकल्प है| परमात्मा की प्रकृति अपनी सृष्टि के संचालन का हर कार्य अपने नियमों के अनुसार करती है| उन नियमों को न जानना हमारा अज्ञान है| परमात्मा से परमप्रेम ही भक्ति है जिस की परिणिती ज्ञान है|"
सरलतम भाषा में यह ही हमारे सनातन हिन्दू धर्म का सार है, बाकी सब इसी का विस्तार है| जो मनुष्य इस में आस्था रखते हैं, वे स्वतः ही हिन्दू हैं, चाहे वे किसी भी देश के नागरिक हैं, इस पृथ्वी पर कहीं भी रहते हैं, व किसी भी मनुष्य जाति में किसी भी देश में उन्होने जन्म लिया हो|
हमारे हृदय में परमप्रेम और अभीप्सा हो तो परमात्मा निश्चित रूप से हमारे माध्यम से स्वयं को व्यक्त करते हैं| परमात्मा के पास सब कुछ है पर एक ही चीज की कमी है जिसे पाने के लिए वे भी भूखे हैं, वह है हमारा प्रेम| हम परमात्मा को अपने प्रेम के सिवाय अन्य दे ही क्या सकते हैं? सब कुछ तो उन्हीं का है| उन्होने हमें पूरी छूट दे रखी है, वे हमारे निजी जीवन में दखल नहीं देते, चाहे हम उन्हें मानें या न मानें| हमारी मान्यता से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता| प्रकृति तो अपने नियमों के अनुसार ही कार्य करती रहेगी|
परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति आप सब को सप्रेम सादर नमन| श्रीहरिः||
ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ
कृपा शंकर
१४ फरवरी २०२०

मुझे मेरे धर्म, संस्कृति, परंपराओं और राष्ट्र पर अभिमान है ....

मुझे मेरे धर्म, संस्कृति, परंपराओं और राष्ट्र पर अभिमान है| मेरे परम आदर्श भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण हैं| भगवद्गीता में जिस ब्राह्मी-चेतना, कूटस्थ-चैतन्य, अनन्य-अव्यभिचारिणी भक्ति, व समर्पण आदि की बातें कही गई हैं, वे ही मुझे प्रभावित करती हैं| मेरी चेतना में ऊँची से ऊँची कल्पना और सर्वोच्च व सर्वश्रेष्ठ भाव 'परमशिव' का है, वह ही इस जीवन में पूर्णरूपेण व्यक्त हो, यही मेरा संकल्प और साधना है| मैं और मेरे आराध्य, एक हैं, कहीं कोई भेद नहीं है| उनसे विमुखता ही मृत्यु है, और सम्मुखता ही जीवन| और लिखने को कुछ भी नहीं है|
परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति आप सब को सादर नमन| आप सब का आशीर्वाद बना रहे| ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
१३ फरवरी २०२०

समाज में निराशा और कुंठा फैलाने का किसी को अधिकार नहीं है .....

समाज में निराशा और कुंठा फैलाने का किसी को अधिकार नहीं है| निराश सिपाही किसी काम का नहीं होता| जीवन में कभी निराश न हों और एक निमित्त मात्र बन कर अपने कर्तव्य का पालन करते रहें| भगवान कहते हैं .....
"तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च| मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्||८:७||"
"इसलिए, तुम सब काल में मेरा निरन्तर स्मरण करो; और युद्ध करो| मुझमें अर्पण किये मन, बुद्धि से युक्त हुए निःसन्देह तुम मुझे ही प्राप्त होओगे||"
.
भगवान इस से आगे यह भी कहते हैं .....
"तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम्|
मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्||११:३३||"
इसलिए तुम उठ खड़े हो जाओ और यश को प्राप्त करो; शत्रुओं को जीतकर समृद्ध राज्य को भोगो| ये सब पहले से ही मेरे द्वारा मारे जा चुके हैं| हे सव्यसाचिन्! तुम केवल निमित्त ही बनो||
.
हमारे माध्यम से कर्ता तो भगवान स्वयं हैं, हम तो उनके उपकरण मात्र हैं| उन्हें हृदय में रखकर जीवन का हरेक कार्य करें|
.
"प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कोसलपुर राजा॥
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई॥"
आप सब को शुभ कामनायें और नमन | हरिः ॐ तत्सत् ||
कृपा शंकर
१२ फरवरी २०२०