Monday, 14 February 2022

जीवन में सर्वप्रथम भगवान को प्राप्त करो फिर उनकी चेतना में अन्य सारे कर्म करो ---

जीवन में सर्वप्रथम भगवान को प्राप्त करो फिर उनकी चेतना में अन्य सारे कर्म करो| भगवान को प्राप्त करने का अधिकारी सिर्फ भगवान का भक्त है जिसने भगवान में अपने सारे भावों का अर्पण कर दिया है|

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जिसने भगवान को प्राप्त कर लिया है, वह व्यक्ति इस पृथ्वी पर चलता-फिरता देवता है| यह पृथ्वी भी ऐसे व्यक्ति को पाकर सनाथ व धन्य हो जाती है| जहाँ भी उसके चरण पड़ते हैं वह स्थान पवित्र हो जाता है| वह स्थान, परिवार व कुल -- धन्य है जहाँ ऐसी पवित्र आत्मा जन्म लेती हैं|
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भारत एक धर्मनिष्ठ आध्यात्मिक हिन्दू राष्ट्र हो, जहाँ की राजनीति -- सत्य सनातन धर्म हो| इसका संकल्प प्रत्येक धर्मप्रेमी को सत्यनिष्ठा से करना होगा| सेक्युलरिज़्म का अर्थ है -- सनातन हिंदु आस्थाओं पर मर्मांतक प्रहार| वर्तमान सेक्युलर व्यवस्था -- हिन्दू धर्म को नष्ट कर देना चाहती है|
मेरी आस्था किसी भी राजनीतिक, धार्मिक या सामाजिक संगठन या समूह पर नहीं रही है| सिर्फ परमात्मा पर ही मेरी आस्था है| उन्हीं से प्रार्थना करेंगे| उन्हीं का वचन है --
"अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन् |
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय संभवाम्यात्ममायया ||४:६||
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम् ||४:७||
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ||४:८||"
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
१५ फरवरी २०२१

परमात्मा का स्मरण कभी न छूटे, चाहे यह देह इसी समय छूट कर यहीं भस्म हो जाये ---

 परमात्मा का स्मरण कभी न छूटे, चाहे यह देह इसी समय छूट कर यहीं भस्म हो जाये ---

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परमशिव परमात्मा का ज्ञान ही सच्चा प्रकाश है| ब्रह्मज्ञान में लीन होकर रहना ही सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है| परमशिव परमात्मा ही हमारे एकमात्र संबंधी हैं| परमशिव में तन्मय हो जाना ही आनंद है|
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हम निरंतर भगवान की गोद में हैं| हमारा स्थायी निवास परमात्मा के हृदय में है| परमात्मा के सिवाय अन्य कुछ भी नहीं है| जो परमात्मा से प्रेम करेगा, वह ही परमात्मा का साक्षात् अनुभव कर सकेगा, और परमात्मा का ही स्वरूप होगा|
भगवान कहते हैं ---
"इति क्षेत्रं तथा ज्ञानं ज्ञेयं चोक्तं समासतः| मद्भक्त एतद्विज्ञाय मद्भावायोपपद्यते||१३:१९||"
अर्थात् -- इस प्रकार, (मेरे द्वारा) क्षेत्र, ज्ञान और ज्ञेय को संक्षेपत: कहा गया इसे तत्त्व से जानकर (विज्ञाय) मेरा भक्त मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है||
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मेरा भक्त अर्थात् मुझ सर्वज्ञ परमगुरु वासुदेव परमेश्वर में अपने सारे भावों को जिसने अर्पण कर दिया है| जिस किसी भी वस्तु को देखता सुनता और स्पर्श करता है, उन सब में सब कुछ भगवान् वासुदेव ही है ऐसी निश्चित बुद्धिवाला जो मेरा भक्त है, वह उपर्युक्त यथार्थ ज्ञान को समझकर मेरे भाव को अर्थात् मेरा जो परमात्मभाव है, उसको प्राप्त करनेमें समर्थ होता है|
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परमात्मा का स्मरण कभी न छूटे, चाहे यह देह इसी समय छूट कर यहीं भस्म हो जाये| बड़ी भयंकर पीड़ा हो रही है| अब एक क्षण भी भगवान के बिना जीवित नहीं रह सकते|
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१५ फरवरी २०२१
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पुनश्च: ---- यह शरीर महाराज बड़ा धोखेबाज मित्र है| निश्चित रूप से यह अपना तो नहीं हो सकता| जिस का भी है, इस का किराया तो हमें उस को चुकाना ही पड़ेगा, क्योंकि इस पर सवार होकर लोकयात्रा जो की है|
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ईस्वर अंस जीव अबिनासी| चेतन अमल सहज सुखरासी|
सो माया बस भयउ गोसाई| बंध्यो कीर मरकट की नाई||
"ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः|मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति|१५:७||"

पृथ्वी पर भार कौन है? ---

पृथ्वी पर भार कौन है? ---
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महाराजा भर्तृहरिः अपने "नीति शतक" के तेरहवें श्लोक में बताते हैं कि इस पृथ्वी पर भार कौन है? ---
"येषां न विद्या न तपो न दानं, ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः |
ते मर्त्यलोके भुवि भारभूता, मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति ||"
अर्थात् जिन लोगों ने न तो विद्या-अर्जन किया है, न ही तपस्या में लीन रहे हैं, न ही दान के कार्यों में लगे हैं, न ही ज्ञान अर्जित किया है, न ही अच्छा आचरण करते हैं, न ही गुणों को अर्जित किया है, और न ही धार्मिक अनुष्ठान किये हैं, ऐसे लोग इस मृत्युलोक में मनुष्य के रूप में मृगों की तरह भटकते रहते हैं और ऐसे लोग इस धरती पर भार की तरह हैं|
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भर्तृहरिः की "नीति शतक" और "वैराग्य शतक" मैंने पढ़ी हैं| दोनों ही बहुत अच्छी और पढ़ने योग्य पुस्तकें हैं| उनकी एक और प्रसिद्ध रचना है -- "शृंगार शतक", जिसके बारे में मुझे नहीं पता| .
जीवन में सर्वप्रथम भगवान को प्राप्त करो फिर उनकी चेतना में अन्य सारे कर्म करो| भगवान को प्राप्त करने का अधिकारी सिर्फ भगवान का भक्त है जिसने भगवान में अपने सारे भावों का अर्पण कर दिया है|
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जिसने भगवान को प्राप्त कर लिया है, वह व्यक्ति इस पृथ्वी पर चलता-फिरता देवता है| यह पृथ्वी भी ऐसे व्यक्ति को पाकर सनाथ व धन्य हो जाती है| जहाँ भी उसके चरण पड़ते हैं वह स्थान पवित्र हो जाता है| वह स्थान, परिवार व कुल -- धन्य है जहाँ ऐसी पवित्र आत्मा जन्म लेती हैं|
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भारत एक धर्मनिष्ठ आध्यात्मिक हिन्दू राष्ट्र हो, जहाँ की राजनीति -- सत्य सनातन धर्म हो| इसका संकल्प प्रत्येक धर्मप्रेमी को सत्यनिष्ठा से करना होगा| सेक्युलरिज़्म का अर्थ है -- सनातन हिंदु आस्थाओं पर मर्मांतक प्रहार| वर्तमान सेक्युलर व्यवस्था -- हिन्दू धर्म को नष्ट कर देना चाहती है|
मेरी आस्था किसी भी राजनीतिक, धार्मिक या सामाजिक संगठन या समूह पर नहीं रही है| सिर्फ परमात्मा पर ही मेरी आस्था है| उन्हीं से प्रार्थना करेंगे| उन्हीं का वचन है --
"अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन् |
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय संभवाम्यात्ममायया ||४:६||
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम् ||४:७||
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ||४:८||"
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
१५ फरवरी २०२१

१४ फरवरी को अपने माता-पिता के चरण कमलों की पूजा करें, और इसे "मातृ-पितृ पूजा-दिवस" के रूप में मनायें ---

 १४ फरवरी को अपने माता-पिता के चरण कमलों की पूजा करें, और इसे "मातृ-पितृ पूजा-दिवस" के रूप में मनायें ---

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पश्चिमी देशों में मनाए जाने वाला "वेलेंटाइन डे" भारत के लिये सांस्कृतिक पतन की पराकाष्ठा है। ईसा की तीसरी शताब्दी तक यूरोप के लोग कुत्तों की तरह यौन सम्बन्ध रखते थे। कहीं कोई नैतिकता नहीं थी। ऐसे समय में रोम में वेलेंटाइन नाम के एक पादरी ने कहना आरम्भ किया कि यह अच्छी बात नहीं है। पादरी वेलेंटाइन ने लोगों को सिखाना शुरू किया कि एक प्रेमी या प्रेमिका चुन कर सिर्फ उसी से शारीरिक संबंध बनाओ, फिर उसी को प्यार करो, और उसी से विवाह करो। उसने प्रेमी-प्रेमिकाओं की शादी करानी शुरू कर दी, जिससे वहाँ के लोग नाराज़ हो गए। वहाँ के समाज में बिना विवाह के रखैलें रखना बहुत बड़ी शान समझी जाती थी, और स्त्री का स्थान मात्र एक भोग की वस्तु था।
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रोम के राजा क्लोडियस ने उन सब जोड़ों को एकत्र किया जिनका विवाह वेलेंटाइन ने कराया था और १४ फरवरी ४९८ ई. को सबके सामने खुले मैदान में पादरी वेलेंटाइन को फाँसी पर चढ़ा दिया। उसका अपराध था कि उसने स्त्री-पुरुषों की शादी करवाना आरंभ कर दिया था। उस पादरी वैलेंटाइन की याद में १४ फ़रवरी को वहाँ के प्रेमी प्रेमिकाओं ने वैलेंटाइन डे मनाना शुरू किया जो उस दिन से यूरोप में मनाया जाता है।
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भारत में लड़के-लड़िकयाँ बिना सोचे-समझे एक दुसरे को वैलेंटाइन डे का कार्ड दे रहे हैं। कार्ड में लिखा होता है " Would You Be My Valentine" जिसका मतलब होता है "क्या तुम मेरे से शादी करोगे?" मतलब तो किसी को मालूम होता नहीं है, वे समझते हैं कि जिससे हम प्यार करते हैं उन्हें ये कार्ड दे देना चाहिए। इसी कार्ड को वे अपने माँ-बाप और दादा-दादी को भी दे देते हैं। एक दो नहीं, दस-बीस लोगों को भी यह कार्ड वे दे देते हैं। इस धंधे में बड़ी-बड़ी कई कंपनियाँ लग गयी हैं जिनको कार्ड बेचना है, जिनको गिफ्ट बेचनी है, और जिनको चाकलेट बेचनी है। टेलीविजन चैनल वाले इसका जबरदस्त प्रचार करते हैं।
वेलेंटाइन सप्ताह का विवरण नीचे दिया हुआ है। भगवान सभी वेलेंटाइनों को सद्बुद्धि दे। प्रेम ही करना है तो भगवान से करो।
कृपा शंकर
१३ फरवरी २०२२

अब तो पूरा अंतःकरण ही उनका हो गया है ---

आध्यात्म में जितना भी मुझे समझ में आया, और जो भी संभव हुआ, वह मेरे माध्यम से खूब लिखा गया है। भगवान श्रीकृष्ण की कुछ विशेष कृपा ही मुझ पर रही है, इसलिए उनके उपदेशों को समझने में मुझे कभी कोई कठिनाई नहीं हुई।

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अब तो प्रत्यक्ष रूप से पूरा अंतःकरण (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) ही उनका हो गया है, अतः शेष लौकिक जीवन उन्हीं के ध्यान, भजन, स्मरण आदि में ही व्यतीत हो जाएगा। सोशियल मीडिया पर बना रहूँगा। इसे नहीं छोड़ूँगा।
आप सब में परमात्मा को नमन !! ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१३ फरवरी २०२२

फ़ेसबुक पर अनेक संत-महात्माओं और विद्वानों से परिचय और मित्रता हुई है ---

 फ़ेसबुक को तो मैं कभी भी नहीं छोड़ूँगा, क्योंकि फ़ेसबुक पर ही अनेक संत-महात्माओं और विद्वानों से परिचय और मित्रता हुई, जिसे मैं भगवान का आशीर्वाद मानता हूँ। भक्त तो इतने अधिक मिले हैं कि उनकी सूची बहुत अधिक लंबी हो जाएगी, इसलिए उनके नाम नहीं लिख रहा।

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विद्वानों में तीन ऐसे मनीषी हैं जिनसे मैं बहुत प्रभावित हुआ हूँ। वे हैं -- दंडी स्वामी मृगेंद्र सरस्वती (सर्वज्ञ शङ्करेन्द्र), श्री अरुण कुमार उपाध्याय, और वैष्णवाचार्य सियारामदास नैयायिक। वैदिक विद्वान, साहित्यकार और गणितज्ञ श्री अरुण उपाध्याय तो चलते फिरते पुस्तकालय हैं, जिन्हें पूर्व जन्मों की स्पष्ट स्मृतियाँ हैं। दंडी स्वामी मृगेंद्र सरस्वती (सर्वज्ञ शङ्करेन्द्र) विशुद्ध वेदांती सिद्ध सन्यासी हैं, जिनके पास बैठने मात्र से ही वेदान्त का ज्ञान स्वयमेव प्रस्फुटित होने लगता है। वैष्णवाचार्य सियारामदास नैयायिक जी दर्शन शास्त्रों के परम विद्वान हैं।
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अनेक बहुत अच्छे अच्छे भक्तों से परिचय और मित्रता हुई है। इतिहासकार प्रो.रामेश्वर मिश्रा के विचार बड़े क्रांतिकारी हैं, जिन्होंने मुझे बहुत प्रभावित किया है। प्रयागराज के स्वर्गीय पंडित मिथिलेश द्विवेदी जी मुझसे बहुत प्रेम रखते थे। अपनी स्वरचित दो साहित्यिक कृतियाँ भी उन्होंने मुझे भेजी थीं, जो वास्तव में बहुत अच्छी हैं।
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फ़ेसबुक के सभी मित्रों को मैं नमन करता हूँ। आप सब ने मुझे जो सम्मान और प्रेम दिया है, उसके लिए मैं आप सब का सदा आभारी रहूँगा।
ॐ नमो नारायण !! जय जय श्रीसीताराम !! जय जय श्रीराधे !! नमस्ते !!
१३ फरवरी २०२२

मनुष्य समाज में इतनी हिंसा क्यों व्याप्त है? अहिंसा किसे कहते हैं? इसे परमधर्म क्यों कहा गया है? ---

 (प्रश्न) मनुष्य समाज में इतनी हिंसा क्यों व्याप्त है? अहिंसा किसे कहते हैं? इसे परमधर्म क्यों कहा गया है?

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(उत्तर) एक वीतराग व्यक्ति ही अहिंसक हो सकता है, अन्य कोई नहीं। गीता में भगवान श्रीकृष्ण हमें स्थितप्रज्ञ होने का आदेश देते हैं। भगवान स्वयं कहते हैं कि स्थितप्रज्ञ होने के लिए मनुष्य को (१) वीतरागभयक्रोध, (२) अनुद्विग्नमना, और (३) विगतस्पृह होना पड़ता है। जो स्थितप्रज्ञ है वही मुनी है। अपने भाष्य में आचार्य शंकर ने तो सन्यासी भी उसी को बताया है जो स्थितप्रज्ञ है।
भगवान कहते हैं --
"दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः।
वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते॥२:५६॥"
अर्थात् - दुख में जिसका मन उद्विग्न नहीं होता, सुख में जिसकी स्पृहा निवृत्त हो गयी है, जिसके मन से राग, भय और क्रोध नष्ट हो गये हैं, वह मुनि स्थितप्रज्ञ कहलाता है॥
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गीता महाभारत का ही भाग है। महाभारत में पचास से अधिक बार 'अहिंसा' को परमधर्म बताया गया है। लेकिन यह भी स्पष्ट किया है कि मनुष्य का "लोभ और अहंकार" ही हिंसा है। मनुष्य समाज में किसी भी तरह की हिंसा हो, उसका एक ही मूल कारण है, और वह है -- "मनुष्य का लोभ और अहंकार"। अन्य कोई कारण नहीं है।
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लोभ और अहंकार से मुक्ति ही अहिंसा है, जो हमारा परम धर्म है। लोभ और अहंकार से मुक्त कैसे हों? एक वीतराग महात्मा ही लोभ और अहंकार से मुक्त हो सकता है। प्राण-तत्व की साधना हमें वीतराग बनाती है। प्राण-तत्व की साधना एक गोपनीय विषय है जिसे कोई सद्गुरु ही व्यक्तिगत रूप से निष्ठावान सुपात्र को सिखा सकता है, क्योंकि इसमें यम-नियमों का पालन करना पड़ता है। बिना यम-नियमों का पालन किए प्राण-साधना से मस्तिष्क की स्थायी विकृति हो सकती है। इसलिए इसे गोपनीय रखा गया है।
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कम से कम हम इतना तो कर ही सकते हैं कि नित्य नियमित रूप से "अजपा-जप" यानि हंसयोग यानि हंसवतीऋक की साधना करें। यह एक मूलभूत वैदिक साधना है जो भारत के प्रायः सभी संप्रदायों में सिखाई जाती है। किसी भी अच्छे संत-महात्मा या गृहस्थ साधक से आप यह विधि सीख सकते हैं। अजपा-जप का नियमित अभ्यास करते करते भी कुछ महीनों में प्राण-तत्व की समझ और उस पर पकड़ आ जाती है। भक्ति के साथ साथ अजपा-जप के नियमित अभ्यास से इंद्रियों की वासना भी शांत हो जाती है। बस एक ही शर्त है कि हमारा आहार, आचरण और विचार शुद्ध हों। कुसंग का त्याग तो हर परिस्थिति में करना ही पड़ता है।
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सार की बात :--- हमारी आहारशुद्धि, अच्छा आचरण और अच्छे विचार ही हमें लोभ और अहंकार से मुक्त कर सकते हैं। तभी हम कह सकते हैं कि "अहिंसा परमोधर्म"॥ तभी हम अहिंसक बन सकते हैं। ॐ तत्सत्॥
कृपा शंकर
झुञ्झुणु (राजस्थान)
१४ फरवरी २०२२

१४ फरवरी को अपने माता-पिता के चरण कमलों की पूजा करें, और इसे "मातृ-पितृ पूजा-दिवस" के रूप में मनायें ---

 १४ फरवरी को अपने माता-पिता के चरण कमलों की पूजा करें, और इसे "मातृ-पितृ पूजा-दिवस" के रूप में मनायें ---

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पश्चिमी देशों में मनाए जाने वाला "वेलेंटाइन डे" भारत के लिये सांस्कृतिक पतन की पराकाष्ठा है। ईसा की तीसरी शताब्दी तक यूरोप के लोग कुत्तों की तरह यौन सम्बन्ध रखते थे। कहीं कोई नैतिकता नहीं थी। ऐसे समय में रोम में वेलेंटाइन नाम के एक पादरी ने कहना आरम्भ किया कि यह अच्छी बात नहीं है। पादरी वेलेंटाइन ने लोगों को सिखाना शुरू किया कि एक प्रेमी या प्रेमिका चुन कर सिर्फ उसी से शारीरिक संबंध बनाओ, फिर उसी को प्यार करो, और उसी से विवाह करो। उसने प्रेमी-प्रेमिकाओं की शादी करानी शुरू कर दी, जिससे वहाँ के लोग नाराज़ हो गए। वहाँ के समाज में बिना विवाह के रखैलें रखना बहुत बड़ी शान समझी जाती थी, और स्त्री का स्थान मात्र एक भोग की वस्तु था।
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रोम के राजा क्लोडियस ने उन सब जोड़ों को एकत्र किया जिनका विवाह वेलेंटाइन ने कराया था और १४ फरवरी ४९८ ई. को सबके सामने खुले मैदान में पादरी वेलेंटाइन को फाँसी पर चढ़ा दिया। उसका अपराध था कि उसने स्त्री-पुरुषों की शादी करवाना आरंभ कर दिया था। उस पादरी वैलेंटाइन की याद में १४ फ़रवरी को वहाँ के प्रेमी प्रेमिकाओं ने वैलेंटाइन डे मनाना शुरू किया जो उस दिन से यूरोप में मनाया जाता है।
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भारत में लड़के-लड़िकयाँ बिना सोचे-समझे एक दुसरे को वैलेंटाइन डे का कार्ड दे रहे हैं। कार्ड में लिखा होता है " Would You Be My Valentine" जिसका मतलब होता है "क्या तुम मेरे से शादी करोगे?" मतलब तो किसी को मालूम होता नहीं है, वे समझते हैं कि जिससे हम प्यार करते हैं उन्हें ये कार्ड दे देना चाहिए। इसी कार्ड को वे अपने माँ-बाप और दादा-दादी को भी दे देते हैं। एक दो नहीं, दस-बीस लोगों को भी यह कार्ड वे दे देते हैं। इस धंधे में बड़ी-बड़ी कई कंपनियाँ लग गयी हैं जिनको कार्ड बेचना है, जिनको गिफ्ट बेचनी है, और जिनको चाकलेट बेचनी है। टेलीविजन चैनल वाले इसका जबरदस्त प्रचार करते हैं। भगवान सभी वेलेंटाइनों को सद्बुद्धि दे। प्रेम ही करना है तो भगवान से करो।
कृपा शंकर
१३ फरवरी २०२२

आध्यात्मिक साधना में आ रही बाधाओं को कैसे दूर करें? ---

आध्यात्मिक साधना और लौकिक जीवन में आ रही सभी बाधाओं को दूर करने हेतु पूर्ण श्रद्धा-विश्वास और भक्ति से "गोपाल सहस्त्रनाम" में दिये हुये भगवान श्रीकृष्ण के बीजमंत्र का आज्ञाचक्र पर निरंतर मानसिक जप एक अत्यंत गोपनीय चमत्कारिक साधना है| इसका परिणाम तुरंत मिलना आरंभ हो जाता है| इसका जितना अधिक जाप करोगे, उतना ही कम है| अधिकतम की कोई सीमा नहीं है| भगवान श्रीकृष्ण के गोपाल रूप का ध्यान सब बाधाओं को दूर करता है।
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भगवान हैं, यहीं पर इसी समय हैं। वे सर्वदा सर्वत्र हैं। उनके सिवाय अन्य किसी का कोई अस्तित्व नहीं है। प्रकृति अपने नियमों के अनुसार कार्य कर रही है। प्रकृति के नियमों को न समझना हमारा अज्ञान है।
१४ फरवरी २०२१