सर्वप्रथम हम अपने निज जीवन में भगवान को प्राप्त करें, फिर उस चेतना में स्थित होकर संसार के अन्य कार्य करें। भूतकाल की विस्मृति हो। कूटस्थ सूर्यमंडल में पुरुषोत्तम का ध्यान निरंतर होता रहे।
Monday, 16 September 2024
इस सृष्टि में सबसे अधिक दुर्लभ क्या है? ---
मेरे पास कोई करामात (चमत्कार) नहीं है, अतः लौकिक दृष्टि से संसार के लिए महत्त्वहीन हूँ ---
मैं सनातन हिन्दू धर्म के ईसाईकरण का हर कदम पर विरोध करता हूँ ---
आजकल हर व्यक्ति अपनी संतान को अंग्रेज़ बनाना चाहता है, कोई भी अपनी संतान को भारतीय नहीं बनाना चाहता। सभी अंग्रेज़ बन गए तो भारतीय कौन होगा? कोई भी अपनी संतान को सनातन धर्म और संस्कृत भाषा की शिक्षा नहीं देना चाहता।
मेरा स्वधर्म ही सनातन है ---
मैं एक शाश्वत आत्मा हूँ, और आत्मा का स्वधर्म है -- "निरंतर परमात्मा का चिंतन, मनन, निदिध्यासन, ध्यान, और निज जीवन में परमात्मा की सर्वोच्च व सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति।" यही सनातन है, और यही मेरा धर्म है।
मैंने सब कुछ खोकर स्वयं को पाया है ---
मैं बहुत अधिक हैरान था यह सोचकर कि मेरा मन इतना बेचैन क्यों है? मन से मेरा क्या संबंध है? मन से मुझे किसने जोड़ रखा है?
साधकों के लिए मध्यरात्री की तुरीय संध्या अत्यधिक महत्वपूर्ण है ---
साधकों के लिए मध्यरात्री की तुरीय संध्या अत्यधिक महत्वपूर्ण है, विशेषकर उनके लिए जो क्रियायोग व श्रीविद्या की साधना करते हैं।
भगवान अपनी साधना स्वयं कर रहे हैं ---
"फेसबुक" एक निजी अमेरिकन व्यावसायिक कंपनी है जिसका व्यवसाय -- विज्ञापनों से धन कमाना है ---
सनातन धर्म को समझना बहुत आसान और बहुत सरल है, इसे समझिये और पालन कीजिये ---
सनातन धर्म के अनुसार आत्मा शाश्वत है, जो अपने संचित व प्रारब्ध कर्मफलों को भोगने के लिए बार-बार पुनर्जन्म लेती है। मनुष्य जीवन का लक्ष्य ईश्वर की प्राप्ति है। जब तक ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती तब तक संचित और प्रारब्ध कर्मफलों से कोई मुक्ति नहीं है।
ईश्वर, धर्म और राष्ट्र से अतिरिक्त अन्य किसी भी विषय में मेरी अब कोई रुचि नहीं रही है ---
ईश्वर, धर्म और राष्ट्र से अतिरिक्त अन्य किसी भी विषय में मेरी अब कोई रुचि नहीं रही है। प्रेरणा मिलती है एकांत में ईश्वर के निरंतर ध्यान और चिंतन-मनन की। स्वाध्याय करने और प्रवचन आदि सुनने में भी मेरी कोई रुचि नहीं रही है। कभी कभी गीता का स्वाध्याय अवश्य करता हूँ, वह भी कभी कभी और बहुत कम। इस वर्तमान जीवन के अंत काल तक परमात्मा के चिंतन, मनन और ध्यान में ही समय व्यतीत हो जाएगा। अन्य कोई स्पृहा नहीं है। बचा-खुचा सारा जीवन परमात्मा को समर्पित है। किसी से कुछ भी नहीं चाहिए। परमात्मा में मैं आप सब के साथ एक हूँ, कोई भी या कुछ भी मुझसे पृथक नहीं है।
बड़े भाई साहब स्व. डॉ. दया शंकर बावलिया जी की वार्षिक पुण्य तिथि पर श्रद्धांजलि ---
आज से चार वर्ष पूर्व १४ सितंबर २०२० को इस क्षेत्र के प्रसिद्ध नेत्र शल्य चिकित्सक, रा.स्व.से.संघ के सीकर विभाग के संघ चालक, सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता, और समाज में अति लोकप्रिय, मेरे बड़े भाई साहब डॉ. दया शंकर बावलिया जी सायं लगभग ८ बजे जयपुर के E.H.C.C. हॉस्पिटल में जहाँ उनका उपचार चल रहा था, अपनी नश्वर देह को त्याग कर एक अज्ञात अनंत यात्रा पर चले गये। आज के दिन यानि १५ सितंबर २०२० को उनकी देह का अंतिम संस्कार झुंझुनूं के बिबाणी धाम श्मशान गृह में कोविड-१९ के कारण तत्कालीन सरकारी नियमानुसार कर दिया गया था। भगवान अर्यमा की कृपा से निश्चित रूप से उन्हें सद्गति प्राप्त हुई है। आज उनकी पुण्य तिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा हूँ।
भगवान ने कभी भी मुझे अंधकार में नहीं रखा ---
आध्यात्मिक साधना में कई बार ऐसे दुरूह प्रश्न हमारे समक्ष आते हैं जिनका कोई उत्तर नहीं होता। उनका उत्तर ढूँढने में समय नष्ट नहीं करना चाहिये। कोई भी उलझन हो तो प्रत्यक्ष परमात्मा से पूछें, न कि किसी अन्य से। आज तक किसी भी आध्यात्मिक विषय पर भगवान से जो कुछ भी मैनें पूछा है, उसका उत्तर मुझे निश्चित रूप से मिला है। भगवान ने कभी भी मुझे अंधकार में नहीं रखा। लेकिन उत्तर सिर्फ आध्यात्मिक विषयों के ही मिले हैं, किसी लौकिक विषय पर नहीं।
अपने दिन का आरंभ और समापन, परमात्मा के गहनतम ध्यान से करें, और हर समय परमात्मा का स्मरण करते रहें :---
जहाँ तक भगवान के ध्यान का प्रश्न है, इस विषय पर मैं किसी से भी किसी भी तरह का कोई समझौता नहीं कर सकता। यही मेरा जीवन है, और मेरा समय नष्ट करने वालों को मैं विष (Poison) की तरह इसी क्षण से दूर कर रहा हूँ। तमाशवीन और केवल जिज्ञासु लोगों के लिए भी मेरे पास जरा सा भी समय नहीं है।
पाप-पुण्य और धर्म-अधर्म क्या हैं? ---
सर्वप्रथम भगवान हमारा आत्म-समर्पण सचेतन रूप से बिना किसी शर्त के पूर्ण रूप से स्वीकार करें, और स्वयं को हमारे में सचेतन पूर्ण रूप से व्यक्त करें। बाकी की बातें जैसे धर्म-अधर्म और पाप-पुण्य --- ये सब गौण, महत्वहीन व छलावा मात्र हैं। इस छलावे में अब और नहीं आ सकते। वे कब तक छिपेंगे ?? प्रकट तो उनको होना ही पड़ेगा। आज नहीं तो कल। लेकिन अब और अधिक प्रतीक्षा नहीं कर सकते। हमें उनकी आवश्यकता अभी और इसी समय है।