Monday, 16 September 2024

मैंने सब कुछ खोकर स्वयं को पाया है ---

मैं बहुत अधिक हैरान था यह सोचकर कि मेरा मन इतना बेचैन क्यों है? मन से मेरा क्या संबंध है? मन से मुझे किसने जोड़ रखा है?

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गुरु की परम कृपा से यह स्पष्ट बोध हुआ कि मेरे और मेरे मन के मध्य की कड़ी मेरा "प्राण' है। मन की बेचैनी और चंचलता का एकमात्र कारण भी मेरा "चंचल प्राण" है। मन तब तक नियंत्रण में नहीं आ सकता जब तक प्राणों की चंचलता को स्थिर नहीं किया जाता। अनेक वर्षों से यह प्राण-तत्व ही मुझे धोखा दे रहा था। अब यह पकड़ में आ गया है, भाग नहीं सकता। इसका विज्ञान भी समझ में आ चुका है। इसके गोपनीय रहस्य भी समझ में आ गए है। आगे सच्चिदानंद है। वे अब और छिप नहीं सकते।
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दो-तीन बातें मेरे प्रेमियों को कहना चाहता हूँ ---
(१) जब भी आप बैठते हैं तब आपका मेरूदण्ड सदा उन्नत यानि सीधा रहे, और ठुड्डी भूमि के समानान्तर रहे। दृष्टिपथ भ्रूमध्य की ओर रहे, और चेतना सर्वव्यापी रहे।
(२) सांसें नासिका के माध्यम से ही लें। साँसे अपने पेट से यानि नाभी से लें। साँस लेते समय आपका पेट फूलना चाहिए, और साँस छोडते समय आपका पेट सिकुड़ना चाहिए। साँस छाती से न लें। इसका अभ्यास करें। धीरे धीरे आपको लगेगा कि आपका मेरूदण्ड ही सांसें ले रहा है।
(३) सारा ब्रह्मांड आप स्वयं हो। आप यह देह नहीं, स्वयं परमात्मा हो। सारी सृष्टि में आपके सिवाय कोई अन्य नहीं है।
(४) आप वह ज्योति हो जो दिखाई दे रही है। आप ज्योतिषांज्योति हो। उस ज्योति से निःसृत हो रहा नाद भी आप स्वयं हो।
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प्राण आपके पीछे पीछे आयेगा। उसका अवलोकन करो। आप उससे परे हो। अब उसकी चिंता ही छोड़ो। आप यह नश्वर देह नहीं, साक्षात परमशिव हो।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
११ सितंबर २०२४

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