Sunday, 21 January 2018

समस्त सृष्टि, समस्त विश्व, राष्ट्र, समाज, व स्वयं की समस्याओं, पीड़ा व कष्टों के निवारण हेतु हम क्या कर सकते हैं ? .......

समस्त सृष्टि, समस्त विश्व, राष्ट्र, समाज, व स्वयं की समस्याओं, पीड़ा व कष्टों के निवारण हेतु हम क्या कर सकते हैं ? .......
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एक तो हमारी बुद्धि ही अति अल्प और अति सीमित है, फिर कुछ प्रश्न ऐसे होते हैं जिनका चिंतन करने के लिए सोचने की अतिमानसी क्षमता और विवेक चाहिए| यह सब के वश की बात नहीं है| फिर भी कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनका उत्तर हमारी अति अल्प बुद्धि भी दे देती है| हिमालय जैसी विराट समस्याएँ और प्रश्न दिमाग में उठते हैं जिनका कोई समाधान नहीं दिखाई देता, वहाँ भी भगवान कुछ न कुछ मार्ग दिखा ही देते हैं| मेरी जहाँ तक सोच है हमारे हर प्रश्न का उत्तर और हर समस्या का समाधान आत्म-साक्षात्कार यानि ईश्वर की प्राप्ति है| यह सृष्टि ईश्वर के मन की एक कल्पना है जिसके रहस्यों का ज्ञान ईश्वर की प्राप्ति से ही हो सकता है|
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भगवान तो सच्चिदानंद हैं जैसे महासागर से मिलने के पश्चात झीलों-तालाबों व नदी-नालों से मोह छूट जाता है, वैसे ही सच्चिदानंद की अनुभूति के पश्चात सब मत-मतान्तरों, सिद्धांतों, वाद-विवादों, राग-द्वेष व अहंकार रूपी पृथकता के बोध से चेतना हट कर उन के लिए तड़प उठती है| सारे प्रश्न भी तिरोहित हो जाते हैं| परमात्मा ही हमारे हर प्रश्न का का उत्तर और हर समस्या का समाधान है|
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भगवान जब हृदय में आते हैं तो आकर आड़े हो जाते हैं, फिर वे हृदय से बाहर नहीं जाते| भगवान हमारे हृदय में रहें और हम उनके हृदय में रहें, बस यही उच्चतम स्थिति है, और इसी का होना ही सभी समस्याओं का समाधान है| यह देह तो नष्ट होकर पञ्च महाभूतों में मिल जायेगी पर परमात्मा का साथ शाश्वत है| उनको समर्पित होना ही उच्चतम सार्थकता है|
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"ॐ सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै |
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ||"
"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते |
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ||"
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय| हर हर महादेव|
ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२१ जनवरी २०१८

पहले परमात्मा को प्राप्त करो, फिर कुछ और .....

पहले परमात्मा को प्राप्त करो, फिर कुछ और .....
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लगता है सारा जीवन मैनें अपने प्रारब्ध कर्मफलों को भोगने में ही व्यतीत कर दिया| जो जीवन का उद्देश्य आत्मज्ञान की प्राप्ति था, उस दिशा में क्या प्रगति की यह तो भगवान ही जानते हैं, कुछ कह नहीं सकता| मुझे तो लगता है कि कुछ भी प्रगति नहीं की है| भगवत प्राप्ति की अभीप्सा और सच्चिदानंद से प्रेम ... बस यही एकमात्र उपलब्धि है इस जीवन की| इससे आगे और कुछ भी नहीं मिला इस जीवन में| कोई बात नहीं, जीवन एक सतत प्रक्रिया है| इस जन्म में नहीं तो अगले में ही सही, भगवान कहीं दूर नहीं है, अवश्य मिलेंगे| वे भी जायेंगे कहाँ? मेरे बिना वे भी दुःखी हैं, वैसे ही जैसे एक पिता अपने पुत्र से बिछुड़ कर दुखी होता है| वे भी मेरे लिए व्याकुल हैं|
श्रुति भगवती के आदेशानुसार बुद्धिमान् ब्राह्मण को चाहिए कि परमात्मा को जानने के लिए उसी में बुद्धि को लगाये, अन्य नाना प्रकार के व्यर्थ शब्दों की ओर ध्यान न दे, क्योंकि वह तो वाणी का अपव्यय मात्र है|
तमेव धीरो विज्ञाय प्रज्ञां कुर्वीत ब्राह्मणः |
नानुध्यायाद् बहूब्छब्दान्वाची विग्लापन हि तदिति ||बृहद., ४/४/२९)
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मुण्डकोपनिषद, कठोपनिषद, गीता और रामचरितमानस में भी इसी आशय के उपदेश हैं|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२० जनवरी २०१८

राग-द्वेष से कैसे मुक्त हों ? .......

राग-द्वेष से कैसे मुक्त हों ? ....... 
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यह सबसे बड़ी आवश्यकता और समस्या है जो हरेक साधक के समक्ष आती है| हर साधक की अपनी अपनी समस्या है अतः कोई एक ही सामान्य उत्तर सभी के लिए नहीं हो सकता| एक सामान्य उत्तर तो यही हो सकता है कि हमारा अनुराग परमात्मा के प्रति इतना अधिक हो जाए कि अन्य सब विषयों से अनुराग समाप्त ही हो जाए| जब राग ही नहीं रहेगा तो द्वेष भी नहीं रहेगा| आत्मानुसंधान भी साथ साथ ही होना चाहिए| सबसे कठिन कार्य है अनात्मा सम्बन्धी सभी विषयों से उपरति, यानि प्रज्ञा करना|
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तमेव धीरो विज्ञाय प्रज्ञां कुर्वीत ब्राह्मणः |
नानुध्यायाद् बहूब्छब्दान्वाची विग्लापन हि तदिति ||बृहद., ४/४/२९)
श्रुति भगवती के आदेशानुसार बुद्धिमान् ब्राह्मण को चाहिए कि परमात्मा को जानने के लिए उसी में बुद्धि को लगाये, अन्य नाना प्रकार के व्यर्थ शब्दों की ओर ध्यान न दे, क्योंकि वह तो वाणी का अपव्यय मात्र है|
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मुण्डकोपनिषद, कठोपनिषद, गीता और रामचरितमानस में भी इसी आशय के उपदेश हैं| पर इन उपदेशों का पालन बिना वैराग्य के असम्भव है|
मैं स्वयं निज जीवन में इन्हें अपनाने में अब तक विफल रहा हूँ, अतः इनके ऊपर स्वयं के अतिरिक्त अन्य किसी को कोई उपदेश नहीं दे सकता| फिर भी मैं वैराग्य का प्रयास करता रहूँगा| इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में ही सही|
वासना सम्बन्धी विषयों का चिंतन न हो, और चिंतन सिर्फ परमात्मा का ही हो, यही तो वास्तविक साधना है, जिस का निरंतर अभ्यास होता रहे| जैसे एक रोगी के लिए कुपथ्य होता है वैसे ही एक आध्यात्मिक साधक के लिए अनात्म विषय होते हैं|
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इस विषय पर इससे आगे और लिखने की सामर्थ्य मुझ अकिंचन में नहीं है| हे प्रभु, आपकी जय हो|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ
कृपा शंकर
२० जनवरी २०१८

भगवान का ध्यान ही सर्वश्रेष्ठ कर्म है .....

भगवान का ध्यान ही सर्वश्रेष्ठ कर्म है .....
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अपने आप को बिना किसी शर्त के व बिना किसी माँग के भगवान के हाथों में सौंप देना ही ध्यान साधना है, यही निष्काम कर्म है| 
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बाधाओं से घबराएँ नहीं क्योंकि भगवान का शाश्वत वचन है ..... "मच्चितः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि"| यानी अपने आपको ह्रदय और मन से मुझे दे देने से तूँ समस्त कठिनाइयों और संकटों को मेरे प्रसाद से पार कर जाएगा|
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"सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणम् व्रज | अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः|" समस्त धर्मों (सभी सिद्धांतों, नियमों व हर तरह के साधन विधानों का) परित्याग कर और एकमात्र मेरी शरण में आजा ; मैं तुम्हें समस्त पापों और दोषों से मुक्त कर दूंगा --- शोक मत कर|
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यही ध्यान साधना है और यही निष्काम कर्म है| अपने आप को सम्पूर्ण ह्रदय से भगवान के हाथों में सौंप दो| कोई शर्त या माँग न हो| कोई भी कामना कभी तृप्त नहीं करती. कामनाओं से मुक्ति ही तृप्ति है. परमात्मा में स्थित होकर ही तृप्त हो सकते हैं.
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जीवन में हम जो भी हैं, जहाँ भी हैं, अपने संचित और प्रारब्ध कर्मों के कारण हैं| भविष्य में जो भी होंगे, जहाँ भी होंगे, वह अपने वर्तमान कर्मों के कारण ही होंगे|
भगवान का ध्यान ही सर्वश्रेष्ठ कर्म है, यही निष्काम कर्म है|
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हम केवल उस यजमान की तरह हैं जिसकी उपस्थिति यज्ञ की प्रत्येक क्रिया के लिये आवश्यक है| कर्ता तो स्वयं भगवान ही हैं| कर्ताभाव एक भ्रम है| जो लोग भगवान से कुछ माँगते हैं, उन्हें वे वही चीज़ देते हैं जो वे माँगते हैं| परन्तु जो अपने आप को दे देते हैं और कुछ भी नहीं माँगते उन्हें वे अपना सब कुछ दे देते हैं| न केवल कर्ताभाव, कर्मफल आदि बल्कि कर्म तक को उन्हें समर्पित कर दो| साक्षीभाव या दृष्टाभाव तक उन्हें समर्पित कर दो| साध्य भी वे ही हैं, साधक भी वे ही हैं और साधना भी वे ही है| यहाँ तक कि दृष्य, दृष्टी और दृष्टा भी वे ही हैं|
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समय समय पर आत्मविश्लेषण आवश्यक है. अपनी सफलताओं/विफलताओं, गुणों/अवगुणों, अच्च्छी/बुरी आदतों, अच्छे/बुरे चिंतन ..... इन सभी का ईमानदारी से विश्लेषण करें और पता लगाएँ कि हम कहाँ पर विफल हुए हैं. अपनी विफलताओं के कारणों का पता लगायें और उनका समाधान करने में जुट जाएँ. किसी की सहानुभूति लेने का भूल से भी प्रयास न करें. हम जो भी हैं, जहाँ भी हैं, और जो भी बनना चाहते हैं, वह हमारे और परमात्मा के बीच का मामला है, किसी अन्य का हस्तक्षेप अनावश्यक है.
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"ॐ सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै | तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ||"
"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते | पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ||"
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय| हर हर महादेव| ॐ ॐ ॐ ||
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ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२० जनवरी २०१८

प्रमाद ही मृत्यु है .....

ब्रह्मविद्या के आचार्य भगवान सनत्कुमार को प्रणाम निवेदित करते हुए उनका यह कथन बार बार मैं स्वयं को ही याद दिला रहा हूँ ..... "प्रमादो वै मृत्युमहं ब्रवीमि" ...... अर्थात "प्रमाद ही मृत्यु है"| अपने "अच्युत" स्वरूप को भूलकर "च्युत" हो जाना ही प्रमाद है, और इसी का नाम "मृत्यु" है| जहाँ अपने अच्युत भाव से च्युत हुए उसी क्षण हम मर चुके हैं| यह परम सत्य है|
ॐ नमो भगवते सनत्कुमाराय !!
भगवान् सनत्कुमार ब्रह्मविद्या के आचार्य इस लिए माने जाते हैं क्योंकि उन्होंने ब्रह्मज्ञान सर्वप्रथम अपने शिष्य देवर्षि नारद को दिया था| इसे भूमा-विद्या का नाम दिया गया है|
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आध्यात्मिक मार्ग पर प्रमाद ही हमारा सब से बड़ा शत्रु है| उसी के कारण हम काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर्य नामक नर्क के छः द्वारों में से किसी एक में अनायास ही प्रवेश कर जाते हैं| आत्मज्ञान ही ब्रह्मज्ञान है, यही भूमा-विद्या है| जो इस दिशा में जो अविचल निरंतर अग्रसर है, वही महावीर है और सभी वीरों में श्रेष्ठ है|
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यह बात मैं और किसी को नहीं, स्वयं को ही कह रहा हूँ कि जब तक मेरे मन में राग-द्वेष है तब तक जप, तप, ध्यान, पूजा-पाठ आदि का कोई लाभ नहीं है, सब बेकार हैं|
भगवान और गुरु महाराज सदा मेरी रक्षा करें|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१८ जनवरी २०१८

मोटापे से मुक्ति पाएँ .....

जो लोग मोटापे के शिकार हैं और अपना वजन कम करना चाहते हैं उन्हें नित्य एक गिलास गुनगुने पानी में .......
आधे नीबू का रस, एक चम्मच शहद, एक चम्मच सेव का शिरका, और एक चौथाई चम्मच दालचीनी मिलाकर .....
प्रातःकाल खाली पेट पीनी चाहिए| साथ साथ नियमित व्यायाम भी नित्य करने चाहियें| खुली स्वच्छ ताजी हवा में खूब चलना भी एक व्यायाम है|
मोटापा बहुत शीघ्रता से कम होगा|

श्री अरुण शौरी के बारे में मेरा एक निजी मत ....

श्री अरुण शौरी के बारे में मेरा एक निजी मत ....

श्री #अरुण #शौरी से मैं कभी मिला नहीं हूँ, न ही उनको व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ| पर मैं उन्हें उनके द्वारा लिखी हुई पुस्तकों और उनके लेखों के माध्यम से जानता हूँ| दिल्ली के Voice of India नाम के एक राष्ट्रवादी प्रकाशन के बारे में जानकारी भी मुझे उनके एक लेख से ही मिली थी|

उन्होंने अब तक जितनी भी पुस्तकें लिखी हैं और जितने भी लेख लिखे हैं, उनमें उनके कट्टर राष्ट्रवादी विचार, स्पष्ट सोच, गहन अध्ययन, विद्वता, और राष्ट्र के लिए कुछ करने की तड़प परिलक्षित होती है| ऐसे विद्वान् व्यक्ति का आज के समय में मिलना अति दुर्लभ है| ऐसे राष्ट्रवादी व्यक्ति की उपेक्षा ने संभवतः उन्हें विद्रोही बना दिया हो|

मुझे कई बार लगता है कि "मानव संसाधन विकास" जैसा मंत्रालय उनके जैसे ही किसी कर्मठ और समर्पित व्यक्ति को ही मिलना चाहिए था| बाकि मंत्री कोई उल्लेखनीय कार्य इस मंत्रालय में अब तक नहीं कर पाए हैं|
वे नहीं तो अन्य कोई वैसा ही सही, पर उस मंत्रालय से जो अपेक्षाएँ थी वे पूरी नहीं हुई हैं|

वन्दे मातरं ! भारत माता की जय |
१७ जनवरी २०१८

हृदयाघात से बचें .....

हृदयाघात से बचें ..... 
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मुझे दो बार हृदयाघात हुआ है और एंजियोप्लास्टी भी हुई है| ऑपरेशन टेबल पर घबरा जाने और अपनी अज्ञानता के कारण ही एंजियोप्लास्टी करवाई अन्यथा कभी नहीं करवाता| हृदय रोगियों के लिए प्रकृति ने कई प्राकृतिक औषधियाँ दी हैं, उनके नियमित सेवन से, और अपनी जीवन पद्धति बदलने से हृदय रोगों से बच सकते हैं| इन सब का ज्ञान होता तो मुझे न तो हृदयाघात होता और न ही एंजियोप्लास्टी करानी पड़ती|
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निम्न उपायों से जीवन भर ह्रदय रोगों से बचा भी जा सकता है, और उपचार भी किया जा सकता है .....
(१) नित्य नियमित प्रातः/सायं स्वच्छ खुली हवा में भ्रमण |
(२) तनाव-मुक्त जीवन |
(३) सादा सात्विक भोजन |
(४) प्रातः खाली पेट नित्य एक अनार का सेवन | यदि अनार न मिले तो पंसारी की दूकान से अनारदाने मिल जाते हैं | एक मुट्ठी भर अनार दानों को यों भी खा सकते हैं, या पानी में उबाल कर और छानकर उनका जूस भी पी सकते हैं |
(५) दिन में एक बार भोजन के साथ लगभग १० से १५ ग्राम अलसी का सेवन | अलसी को भूनकर रख लें | उसे यों ही फाँक कर चबा कर भी खा सकते हैं, दही या दाल के साथ भी खा सकते हैं |
(६) लहसुन, अदरक, नीबू का रस, और थोड़ा सा सेब का शिरका, ..... इनका समुचित मात्रा में सेवन ह्रदय रोगियों के लिए अमृत के समान है | इनसे एक आयुर्वेदिक दवाई भी बनती है जो बहुत अधिक प्रभावशाली है |
(७) रात्रि में अर्जुन की छाल का काढ़ा, या अर्जुन की छाल के थोड़े से चूर्ण को दूध में उबालने के बाद ठंडा कर के पीना |
(८) ह्रदय रोगियों को ठंडा जल नहीं पीना चाहिए, थोड़ा गर्म पानी पीयें |
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यदि मधुमेह या उच्च रक्तचाप की भी बीमारी किसी को है तो उसका उचित और तुरंत उपचार करवाएँ | मधुमेह या उच्च रक्तचाप के रोगी को हृदयाघात बहुत अधिक घातक होता है |
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हृदयाघात होने पर तुरंत मेडिकल सहायता लें, देरी न करें |
शुभ कामनाएँ !
ॐ तत्सत् !ॐ ॐ ॐ !!

निर्बल के बल राम, निर्धन के धन राम, और निराश्रय के आश्रय राम ......

निर्बल के बल राम, निर्धन के धन राम, और निराश्रय के आश्रय राम ....... यह शत प्रतिशत अनुभूत सत्य है|
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कोई मेरे से मिलने आता है तो उससे मैं यदि भगवान की भक्ति की ही बात करता हूँ तो मैंने देखा है कि वह व्यक्ति शीघ्र ही बापस चला जाता है| किसी से वेदान्त पर चर्चा करता हूँ तो वह फिर बापस कभी लौट कर नहीं आता| अन्य विषयों से मेरी रूचि समाप्त हो गयी है| अतः मिलने जुलने वाले बहुत ही नगण्य लोग हैं| यह भी भगवान की एक कृपा ही है|
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मैं परमात्मा के गुणों की बातें इसलिए करता हूँ कि दूसरे विषयों में मेरी रूचि नहीं रही है| अन्य कोई कारण नहीं है| ध्यान का प्रयास भी इसीलिये करता हूँ कि अन्य कुछ जैसे ..... कोई पूजा-पाठ, जप-तप, कोई मंत्र-स्तुति आदि मुझे नहीं आती, इन्हें सीखने की इच्छा भी नहीं है| न तो मुझे श्रुतियों का और न ही आगम शास्त्रों का कोई ज्ञान है| इन्हें समझने की बुद्धि भी नहीं है| किसी भी देवी-देवता और ग्रह-नक्षत्र, में मेरी कोई आस्था नहीं है, क्योंकि इन सब को ऊर्जा और शक्ति परमात्मा से ही मिलती है, इनकी कोई स्वतंत्र सत्ता नहीं है| परमात्मा से प्रेम ही मेरी एकमात्र संपत्ति है| किसी को देने के लिए भी मेरे पास कुछ नहीं है| फालतू की गपशप की आदत मुझमें नहीं है|
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भगवान की कृपा ही मेरा आश्रय है| सभी को मेरी शुभ कामनाएँ और सप्रेम सादर नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
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पुनश्चः :- धन्य हैं वे सब लोग जो मुझे सहन कर लेते हैं| उन सब को बारंबार नमन !

जो जाति भगवान की है, वह ही मेरी है .....

जो जाति भगवान की है, वह ही मेरी है .....
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प्रिय मित्रगण, मैं किसी भी जाति, सम्प्रदाय, या उनकी किसी संस्था से सम्बद्ध नहीं हूँ| सब संस्थाएँ, सम्प्रदाय व जातियाँ मेरे लिए हैं, मैं उन के लिए नहीं| मुझे किसी जाति से न जोड़ें|
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जो जाति भगवान की है, वह ही मेरी है| जैसे विवाह के बाद स्त्री का वर्ण, गौत्र और जाति वही हो जाती है जो उसके पति की होती है, वैसे ही भगवान को समर्पित हो जाने के बाद मेरा वर्ण, गौत्र और जाति वह ही है जो सर्वव्यापी परमात्मा की है| मेरी जाति 'अच्युत' है|
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मैं असम्बद्ध, अनिर्लिप्त, असंग, असीम, शाश्वत आत्मा हूँ जो इस देह रूपी वाहन पर यह लोकयात्रा कर रही है| वास्तव में मेरा ऐकमात्र सम्बन्ध सिर्फ परमात्मा से है| जिस नाम से मेरे देह की पहिचान है, उस का नाम कृपा शंकर है| सभी को नमन !
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ जनवरी २०१८

"बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया".....

एक अति लघु कथा ..... "बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया".
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वन्स अपॉन ए टाइम एक सेठ जी की एक बहुत बड़ी दूकान पर २८ नौकर थे| एक दिन उनमें से चार नौकर नाराज होकर दूकान के बाहर आ कर सड़क पर बैठ गए और अपनी नाराजगी का समाचार देने के लिए पत्रकारों को बुला लिया| सारे बाज़ार में तहलका मच गया| सेठ के विरुद्ध बोलने का आज तक किसी में साहस नहीं हुआ था| सारी जनता एक दूसरे को पूछ रही थी कि क्या गज़ब हो गया?
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चारों नाराज़ नौकर पत्रकारों को चहक चहक कर बता रहे थे कि ..... "दूकान का सेठ उनके साथ भेदभाव करता है, गल्ले पर तो खुद बैठा रहता है और उनसे सिर्फ सामान तुलवाता है"| उनकी मांग थी कि "गल्ले का काम वे खुद करें और सेठ सिर्फ सामान तोले"|
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देखते देखते उन नौकरों के बहुत सारे साथी आ कर नारे लगाने लगे ..... "दुनियाँ के नौकरो एक हो", "नौकरतंत्र खतरे में है" आदि आदि| पत्रकारों को तो खुश होने का मसाला मिल गया| बहुत दिनों के बाद एक ऐसा भयंकर समाचार मिला था| पत्रकार अन्दर ही अन्दर खुश होकर सोच रहे थे कि आज सेठ जी को ब्लैकमेल कर के कुछ रुपये ऐन्ठेंगे| उन चारों नौकरों ने अपना ब्रह्मास्त्र यह कर फेंका कि "आज यदि हम नाराज नहीं होंगें तो बीस साल बाद दुनिया कहेगी कि हमने अपना जमीर बेच दिया"| अब तो घर घर में यह चर्चा होने लगी|
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सेठ भी बहुत काइयां आदमी और मंजा हुआ खिलाड़ी था| उसने अपने आदमियों से पता लगा लिया कि सामने वाले दुकानदार ने इन चारों नौकरों को यह नाटक करने के लिए सत्तर रुपये दिए हैं जिसमें से दस तो इन्होनें अखवार वालों को दिए हैं और पंद्रह पंद्रह खुद की पॉकेट में रख लिए हैं|
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सेठ ने गल्ले से सौ रुपये का एक नोट निकाला और उन चारों नौकरों की ओर लहराया| दो नौकर तो "त्राहिमाम त्राहिमाम" करते हुए उसी समय सेठ जी के पैरों में आकर गिर गए| बाकी बचे हुए दो ने कुछ देर बाद कहा ... "अब हमें कोई शिकायत नहीं है, सेठ जी जो भी काम सौंपेंगे वही करेंगे"|
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सारे पत्रकार, बाकी तमाशबीन और बेचारे अन्य सब लोग ठगे से रह गए|
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उसी दिन से यह कहावत पड़ी कि ...... "बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया"| "चाण्डाल चौकड़ी" शब्द की उत्पत्ति भी उसी दिन हुई होगी|
दी एन्ड.
१६ जनवरी २०१८

तैर कर पार तो स्वयं को ही जाना होगा .....

तैर कर पार तो स्वयं को ही जाना होगा .....
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हमारे हृदय की हर धड़कन, हर आती जाती साँस, ..... परमात्मा की कृपा है| हमारा अस्तित्व ही परमात्मा है| हम जीवित हैं सिर्फ परमात्मा के लिए| सचेतन रूप से परमात्मा से अन्य कुछ भी हमें नहीं चाहिए| माया के एक पतले से आवरण ने हमें परमात्मा से दूर कर रखा है| उस आवरण के हटते ही हम परमात्मा के साथ एक हैं| उस आवरण से मुक्त होंने का प्रयास ही साधना है| यह साधना हमें स्वयं को ही करनी पड़ेगी, कोई दूसरा इसे नहीं कर सकता| न तो इसका फल कोई साधू-संत हमें दे सकता है और न अन्य किसी का आशीर्वाद| अपने स्वयं का प्रयास ही हमें मुक्त कर सकता है| अतः दूसरों के पीछे मत भागो| अपने समक्ष एक जलाशय है जिसे हमें पार करना है, तो तैर कर पार तो स्वयं को ही करना होगा, कोई दूसरा यह कार्य नहीं कर सकता| किनारे बैठकर तैरूँगा तैरूँगा बोलने से कोई पार नहीं जा सकता| उसमें कूद कर तैरते हुए पार तो स्वयं को ही जाना है|
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ब्रह्ममुहूर्त में उठते ही कमर सीधी रखते हुए बैठ जाओ, दृष्टी भ्रूमध्य पर स्थिर रहे| आती-जाती हर साँस के प्रति सजग रहो| पूर्ण ह्रदय से भगवान से प्रार्थना करो| आगे का मार्गदर्शन स्वयं परमात्मा करेंगे| सदा इस बात का बोध रहे कि परमात्मा से अतिरिक्त हमें अन्य कुछ भी नहीं चाहिए|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ जनवरी २०१८