समस्त सृष्टि, समस्त विश्व, राष्ट्र, समाज, व स्वयं की समस्याओं, पीड़ा व कष्टों के निवारण हेतु हम क्या कर सकते हैं ? .......
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एक तो हमारी बुद्धि ही अति अल्प और अति सीमित है, फिर कुछ प्रश्न ऐसे होते हैं जिनका चिंतन करने के लिए सोचने की अतिमानसी क्षमता और विवेक चाहिए| यह सब के वश की बात नहीं है| फिर भी कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनका उत्तर हमारी अति अल्प बुद्धि भी दे देती है| हिमालय जैसी विराट समस्याएँ और प्रश्न दिमाग में उठते हैं जिनका कोई समाधान नहीं दिखाई देता, वहाँ भी भगवान कुछ न कुछ मार्ग दिखा ही देते हैं| मेरी जहाँ तक सोच है हमारे हर प्रश्न का उत्तर और हर समस्या का समाधान आत्म-साक्षात्कार यानि ईश्वर की प्राप्ति है| यह सृष्टि ईश्वर के मन की एक कल्पना है जिसके रहस्यों का ज्ञान ईश्वर की प्राप्ति से ही हो सकता है|
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भगवान तो सच्चिदानंद हैं जैसे महासागर से मिलने के पश्चात झीलों-तालाबों व नदी-नालों से मोह छूट जाता है, वैसे ही सच्चिदानंद की अनुभूति के पश्चात सब मत-मतान्तरों, सिद्धांतों, वाद-विवादों, राग-द्वेष व अहंकार रूपी पृथकता के बोध से चेतना हट कर उन के लिए तड़प उठती है| सारे प्रश्न भी तिरोहित हो जाते हैं| परमात्मा ही हमारे हर प्रश्न का का उत्तर और हर समस्या का समाधान है|
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भगवान जब हृदय में आते हैं तो आकर आड़े हो जाते हैं, फिर वे हृदय से बाहर नहीं जाते| भगवान हमारे हृदय में रहें और हम उनके हृदय में रहें, बस यही उच्चतम स्थिति है, और इसी का होना ही सभी समस्याओं का समाधान है| यह देह तो नष्ट होकर पञ्च महाभूतों में मिल जायेगी पर परमात्मा का साथ शाश्वत है| उनको समर्पित होना ही उच्चतम सार्थकता है|
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"ॐ सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै |
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ||"
"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते |
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ||"
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय| हर हर महादेव|
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एक तो हमारी बुद्धि ही अति अल्प और अति सीमित है, फिर कुछ प्रश्न ऐसे होते हैं जिनका चिंतन करने के लिए सोचने की अतिमानसी क्षमता और विवेक चाहिए| यह सब के वश की बात नहीं है| फिर भी कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनका उत्तर हमारी अति अल्प बुद्धि भी दे देती है| हिमालय जैसी विराट समस्याएँ और प्रश्न दिमाग में उठते हैं जिनका कोई समाधान नहीं दिखाई देता, वहाँ भी भगवान कुछ न कुछ मार्ग दिखा ही देते हैं| मेरी जहाँ तक सोच है हमारे हर प्रश्न का उत्तर और हर समस्या का समाधान आत्म-साक्षात्कार यानि ईश्वर की प्राप्ति है| यह सृष्टि ईश्वर के मन की एक कल्पना है जिसके रहस्यों का ज्ञान ईश्वर की प्राप्ति से ही हो सकता है|
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भगवान तो सच्चिदानंद हैं जैसे महासागर से मिलने के पश्चात झीलों-तालाबों व नदी-नालों से मोह छूट जाता है, वैसे ही सच्चिदानंद की अनुभूति के पश्चात सब मत-मतान्तरों, सिद्धांतों, वाद-विवादों, राग-द्वेष व अहंकार रूपी पृथकता के बोध से चेतना हट कर उन के लिए तड़प उठती है| सारे प्रश्न भी तिरोहित हो जाते हैं| परमात्मा ही हमारे हर प्रश्न का का उत्तर और हर समस्या का समाधान है|
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भगवान जब हृदय में आते हैं तो आकर आड़े हो जाते हैं, फिर वे हृदय से बाहर नहीं जाते| भगवान हमारे हृदय में रहें और हम उनके हृदय में रहें, बस यही उच्चतम स्थिति है, और इसी का होना ही सभी समस्याओं का समाधान है| यह देह तो नष्ट होकर पञ्च महाभूतों में मिल जायेगी पर परमात्मा का साथ शाश्वत है| उनको समर्पित होना ही उच्चतम सार्थकता है|
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"ॐ सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै |
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ||"
"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते |
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ||"
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय| हर हर महादेव|
ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२१ जनवरी २०१८
कृपा शंकर
२१ जनवरी २०१८