Sunday, 21 January 2018

तैर कर पार तो स्वयं को ही जाना होगा .....

तैर कर पार तो स्वयं को ही जाना होगा .....
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हमारे हृदय की हर धड़कन, हर आती जाती साँस, ..... परमात्मा की कृपा है| हमारा अस्तित्व ही परमात्मा है| हम जीवित हैं सिर्फ परमात्मा के लिए| सचेतन रूप से परमात्मा से अन्य कुछ भी हमें नहीं चाहिए| माया के एक पतले से आवरण ने हमें परमात्मा से दूर कर रखा है| उस आवरण के हटते ही हम परमात्मा के साथ एक हैं| उस आवरण से मुक्त होंने का प्रयास ही साधना है| यह साधना हमें स्वयं को ही करनी पड़ेगी, कोई दूसरा इसे नहीं कर सकता| न तो इसका फल कोई साधू-संत हमें दे सकता है और न अन्य किसी का आशीर्वाद| अपने स्वयं का प्रयास ही हमें मुक्त कर सकता है| अतः दूसरों के पीछे मत भागो| अपने समक्ष एक जलाशय है जिसे हमें पार करना है, तो तैर कर पार तो स्वयं को ही करना होगा, कोई दूसरा यह कार्य नहीं कर सकता| किनारे बैठकर तैरूँगा तैरूँगा बोलने से कोई पार नहीं जा सकता| उसमें कूद कर तैरते हुए पार तो स्वयं को ही जाना है|
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ब्रह्ममुहूर्त में उठते ही कमर सीधी रखते हुए बैठ जाओ, दृष्टी भ्रूमध्य पर स्थिर रहे| आती-जाती हर साँस के प्रति सजग रहो| पूर्ण ह्रदय से भगवान से प्रार्थना करो| आगे का मार्गदर्शन स्वयं परमात्मा करेंगे| सदा इस बात का बोध रहे कि परमात्मा से अतिरिक्त हमें अन्य कुछ भी नहीं चाहिए|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१४ जनवरी २०१८

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