Sunday 21 January 2018

"बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया".....

एक अति लघु कथा ..... "बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया".
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वन्स अपॉन ए टाइम एक सेठ जी की एक बहुत बड़ी दूकान पर २८ नौकर थे| एक दिन उनमें से चार नौकर नाराज होकर दूकान के बाहर आ कर सड़क पर बैठ गए और अपनी नाराजगी का समाचार देने के लिए पत्रकारों को बुला लिया| सारे बाज़ार में तहलका मच गया| सेठ के विरुद्ध बोलने का आज तक किसी में साहस नहीं हुआ था| सारी जनता एक दूसरे को पूछ रही थी कि क्या गज़ब हो गया?
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चारों नाराज़ नौकर पत्रकारों को चहक चहक कर बता रहे थे कि ..... "दूकान का सेठ उनके साथ भेदभाव करता है, गल्ले पर तो खुद बैठा रहता है और उनसे सिर्फ सामान तुलवाता है"| उनकी मांग थी कि "गल्ले का काम वे खुद करें और सेठ सिर्फ सामान तोले"|
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देखते देखते उन नौकरों के बहुत सारे साथी आ कर नारे लगाने लगे ..... "दुनियाँ के नौकरो एक हो", "नौकरतंत्र खतरे में है" आदि आदि| पत्रकारों को तो खुश होने का मसाला मिल गया| बहुत दिनों के बाद एक ऐसा भयंकर समाचार मिला था| पत्रकार अन्दर ही अन्दर खुश होकर सोच रहे थे कि आज सेठ जी को ब्लैकमेल कर के कुछ रुपये ऐन्ठेंगे| उन चारों नौकरों ने अपना ब्रह्मास्त्र यह कर फेंका कि "आज यदि हम नाराज नहीं होंगें तो बीस साल बाद दुनिया कहेगी कि हमने अपना जमीर बेच दिया"| अब तो घर घर में यह चर्चा होने लगी|
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सेठ भी बहुत काइयां आदमी और मंजा हुआ खिलाड़ी था| उसने अपने आदमियों से पता लगा लिया कि सामने वाले दुकानदार ने इन चारों नौकरों को यह नाटक करने के लिए सत्तर रुपये दिए हैं जिसमें से दस तो इन्होनें अखवार वालों को दिए हैं और पंद्रह पंद्रह खुद की पॉकेट में रख लिए हैं|
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सेठ ने गल्ले से सौ रुपये का एक नोट निकाला और उन चारों नौकरों की ओर लहराया| दो नौकर तो "त्राहिमाम त्राहिमाम" करते हुए उसी समय सेठ जी के पैरों में आकर गिर गए| बाकी बचे हुए दो ने कुछ देर बाद कहा ... "अब हमें कोई शिकायत नहीं है, सेठ जी जो भी काम सौंपेंगे वही करेंगे"|
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सारे पत्रकार, बाकी तमाशबीन और बेचारे अन्य सब लोग ठगे से रह गए|
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उसी दिन से यह कहावत पड़ी कि ...... "बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रुपैया"| "चाण्डाल चौकड़ी" शब्द की उत्पत्ति भी उसी दिन हुई होगी|
दी एन्ड.
१६ जनवरी २०१८

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