Sunday 21 January 2018

प्रमाद ही मृत्यु है .....

ब्रह्मविद्या के आचार्य भगवान सनत्कुमार को प्रणाम निवेदित करते हुए उनका यह कथन बार बार मैं स्वयं को ही याद दिला रहा हूँ ..... "प्रमादो वै मृत्युमहं ब्रवीमि" ...... अर्थात "प्रमाद ही मृत्यु है"| अपने "अच्युत" स्वरूप को भूलकर "च्युत" हो जाना ही प्रमाद है, और इसी का नाम "मृत्यु" है| जहाँ अपने अच्युत भाव से च्युत हुए उसी क्षण हम मर चुके हैं| यह परम सत्य है|
ॐ नमो भगवते सनत्कुमाराय !!
भगवान् सनत्कुमार ब्रह्मविद्या के आचार्य इस लिए माने जाते हैं क्योंकि उन्होंने ब्रह्मज्ञान सर्वप्रथम अपने शिष्य देवर्षि नारद को दिया था| इसे भूमा-विद्या का नाम दिया गया है|
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आध्यात्मिक मार्ग पर प्रमाद ही हमारा सब से बड़ा शत्रु है| उसी के कारण हम काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर्य नामक नर्क के छः द्वारों में से किसी एक में अनायास ही प्रवेश कर जाते हैं| आत्मज्ञान ही ब्रह्मज्ञान है, यही भूमा-विद्या है| जो इस दिशा में जो अविचल निरंतर अग्रसर है, वही महावीर है और सभी वीरों में श्रेष्ठ है|
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यह बात मैं और किसी को नहीं, स्वयं को ही कह रहा हूँ कि जब तक मेरे मन में राग-द्वेष है तब तक जप, तप, ध्यान, पूजा-पाठ आदि का कोई लाभ नहीं है, सब बेकार हैं|
भगवान और गुरु महाराज सदा मेरी रक्षा करें|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१८ जनवरी २०१८

2 comments:

  1. बहुत अच्छा आध्यात्मिक विचारों का मंच ।

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  2. बहुत अच्छा आध्यात्मिक विचारों का मंच ।

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