Saturday 24 February 2018

साधना काल में प्रगति के लिए के दस नियम .....

जो अपनी आध्यात्मिक साधना में प्रगति चाहते हैं उन्हें साधना काल में निम्न दस नियमों का पालन करना ही पड़ेगा .....
(१) माता पिता परमात्मा के अवतार हैं, उनका पूर्ण सम्मान|
(२) प्रातः और सायं विधिवत साधना, और निरंतर प्रभु का स्मरण|
(३) गीता के कम से कम पाँच श्लोकों का नित्य अर्थ सहित पाठ|
(४) कुसंग का सर्वदा त्याग|
(५) कर्ताभाव से मुक्त रहना| (कर्ता सिर्फ परमात्मा ही हैं)
(६) किसी भी प्रकार के नशे का त्याग|
(७) सदा सात्विक भोजन ही करना|
(७) एकाग्रता से अनन्य भक्ति का अभ्यास|
(८) वैराग्य और एकांत का अभ्यास|
(९) किसी भी प्रकार की तामसिक साधनाओं से बचना|
(१०) साधना का अहंकार न हो अतः उनके फल का भगवान को अर्पण|
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भगवान का हर अनन्य भक्त ब्राह्मण है| हर श्रद्धालु क्षत्रिय है| सिर्फ नाम या वस्त्र बदलने से कोई विरक्त साधू नहीं होता| वैराग्य प्रभु कि कृपा से ही प्राप्त होता है| गुरुलाभ भी भगवान की कृपा से ही प्राप्त होता है| संन्यास मन की अवस्था है|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

भगवान को भूलना ब्रह्महत्या का पाप और आत्मतत्व को भूलना आत्महत्या है...

भगवान को भूलना ब्रह्महत्या का पाप और आत्मतत्व को भूलना आत्महत्या है...
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ब्रह्महत्या को सबसे बड़ा पाप माना गया है| मेरी अल्प और सीमित बुद्धि से ब्रह्महत्या के दो अर्थ हैं ..... एक तो अपने स्वयं में अन्तस्थ परमात्मा को विस्मृत कर देना, और दूसरा है किसी ब्रह्मनिष्ठ महात्मा की ह्त्या कर देना| श्रुति भगवती कहती है कि अपने आत्मस्वरूप को विस्मृत कर देना उसका हनन यानि ह्त्या है| सांसारिक उपलब्धियों को हम अपनी महत्वाकांक्षा, लक्ष्य और दायित्व बना लेते हैं| पारिवारिक, सामाजिक व सामुदायिक सेवा कार्य भी हमें करने चाहियें क्योंकि इनसे पुण्य मिलता है, पर इनसे आत्म-साक्षात्कार नहीं होता|
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हमारे कूटस्थ ह्रदय में सच्चिदानन्द ब्रह्म यानि स्वयं परमात्मा बैठे हुए हैं| हम संसार की हर वस्तु की ओर ध्यान देते हैं पर परमात्मा की ओर नहीं| हम कहते हैं कि हमारा यह कर्तव्य बाकी है और वह कर्तव्य बाकी है पर सबसे बड़े कर्तव्य को भूल जाते हैं कि हमें ब्रह्मज्ञान प्राप्त करना है| बच्चों की शिक्षा, बच्चों को काम पर लगाना, व्यापार की सँभाल करना आदि आदि में ही जीवन व्यतीत हो जाता है| जो लोग कहते हैं कि हमारा समय अभी तक नहीं आया है, उनका समय कभी आयेगा भी नहीं|
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भगवान को भूलना ब्रह्म-ह्त्या का पाप है| आजकल गुरु बनने और गुरु बनाने का भी खूब प्रचलन हो रहा है| गुरु पद पर हर कोई आसीन नहीं हो सकता| एक ब्रह्मनिष्ठ, श्रौत्रीय और परमात्मा को उपलब्ध हुआ महात्मा ही गुरु हो सकता है जिसे अपने गुरु द्वारा अधिकार मिला हुआ हो| सार कि बात यह कि भगवान को भूलना ब्रह्महत्या है, और भगवान को भूलने वाले ब्रह्महत्या के दोषी हैं जो सबसे बड़ा पाप है|
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मनुष्य योनी में जीव का जन्म होता ही है पूर्ण समर्पण का पाठ सीखने के लिए| अन्य सब बातें इसी का विस्तार हैं| यह एक ही पाठ प्रकृति द्वारा निरंतर सिखाया जा रहा है| कोई इसे देरी से सीखता है, कोई शीघ्र| जो नहीं सीखता है वह इसे सीखने को बाध्य कर दिया जाता है| लोकयात्रा के लिए हमें जो देह रूपी वाहन दिया गया है वह नश्वर और अति अल्प क्षमता से संपन्न है| बुद्धि भी अति अल्प और सिमित है, जो कुबुद्धि ही है| चित्त नित-नूतन वासनाओं से भरा है| अहंकार महाभ्रमजाल में उलझाए हुए है| मन अति चंचल और लालची है| ये सब मिलकर इस मायाजाल में फँसाए हुए है जिसे तोड़ने का पूर्ण समर्पण के अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग ही नहीं है| हमें आता जाता कुछ नहीं है पर सब कुछ जानने का झूठा भ्रम पाल रखा है|
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आप सब को नमन ! ॐ नमः शिवाय| ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२५ फरवरी २०१७

भारत सिर्फ भगवान की कृपा से ही जीवित है, अपने बलबूते से नहीं .....

भारत सिर्फ भगवान की कृपा से ही जीवित है, अपने बलबूते से नहीं .....
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पृथ्वी पर इस समय तीन स्थानों से पूरा दिमाग लगाकर सारी कूटनीतिक चालें चली जा रही हैं| वे तीन स्थान हैं ... (१) वाशिंगटन डी.सी., (२) वेटिकन सिटी, और (३) सिटी ऑफ़ लन्दन| इनका लक्ष्य पूरी दुनिया पर अपना अधिकार करना है| ये तीनों आपस में मिले हुए हैं, और इनका लक्ष्य एक ही है| ऊपर से तो ये मित्रता का दिखावा करते हैं, पर भीतर से ये भारतीयता के परम शत्रु हैं|
एक दूसरी शक्ति है ... इस्लामिक जिहाद जो सिर्फ भौतिक बल और आतंक के जोर पर पूरी दुनिया पर शासन करना चाहती है| पर पहले वाली शक्ति के समक्ष यह टिक नहीं पायेगी|
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भगवान की कृपा ही भारत की शक्ति है | भगवान ने भारत को जीवित रखा है सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए | भारत की अस्मिता पर जितने प्रहार हुए हैं उनका दस लाखवाँ हिस्सा भी अन्य किसी संस्कृति पर होता तो वह नष्ट हो जाती| सनातन धर्म ही भारतवर्ष का प्राण है| भारत तो सिर्फ भगवान की कृपा से ही जीवित है| उसमें इतना बल नहीं है कि इनमें से किसी का भी सामना कर सके| जब तक परमात्मा की कृपा है तभी तक भारत भारत रहेगा| उपरोक्त शक्तियों का वश चले तो वे भारत को अभी नष्ट कर दें| पर भारत भगवान की कृपा से ही जीवित है और सदा रहेगा|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

किसी काल विशेष में इस पृथ्वी के कुछ देशों में जन्म लेना ही क्या नर्क की यंत्रणा नहीं है ?

किसी काल विशेष में इस पृथ्वी के कुछ देशों में जन्म लेना ही क्या नर्क की यंत्रणा नहीं है ?
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वर्तमान काल में ही यदि देखें तो इस पृथ्वी के कुछ देशों में नर्क की सी स्थिति है| यह भी अपने स्थान बदलती रहती है| आज की तारीख में पूरा सीरिया देश एक कब्रिस्तान से कम नहीं है| कब किस की मृत्यु कहाँ आ जाए कोई नहीं कह सकता| सारे नगर खंडहर हो चके है, चारों ओर लाखों लाशें बिछी हुई हैं| भुखमरी और आतंक वहां के हर निवासी के चेहरे पर है| विश्व की महाशक्तियाँ वहाँ अपने निजी हित के लिए शह-मात का खेल खेल रही हैं| उन्हें वहाँ के लोगों से कोई मतलब नहीं है|

फिर सूडान है जो आज की तारीख में एक दूसरा नर्क है| और भी कई देश नर्क के समान हैं| नर्क की परिस्थितियाँ पृथ्वी पर अपने स्थान बदलती रहती हैं| इस विषय पर अधिक नहीं लिखना चाहता अन्यथा लेख बहुत लंबा हो जाएगा| पूरा भूगोल मेरे दिमाग में है, पृथ्वी के हर भाग की थोड़ी-बहुत जानकारी है| यह पृथ्वी भोगभूमि भी है और कर्मभूमि भी|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

बाबा रामदेव की शिक्षाएँ और पातंजलि का "योग-दर्शन" ....

बाबा रामदेव की शिक्षाएँ और पातंजलि का "योग-दर्शन" ....
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यह लेख किसी भी तरह की निंदा या आलोचना के लिए नहीं है| सिर्फ एक स्वतंत्र परिचर्चा है| बाबा रामदेव तीन-चार वर्ष पूर्व हमारे गृह-नगर पधारे थे तब हमने उनका खूब सम्मान किया था| उन्होंने भी मेरे गले में एक रुद्राक्ष की माला पहिना कर सम्मान किया था| यहाँ मैं उनकी आलोचना नहीं, सिर्फ एक स्वतंत्र विचार रख रहा हूँ|
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बाबा रामदेव की शिक्षाएँ "हठयोग-प्रदीपिका" और "घेरंड-संहिता" पर आधारित हैं| उन्होंने कुछ भी "पातंजल योगदर्शन" से नहीं लिया है| शेषावतार भगवान पातंजलि की शिक्षाओं का आरम्भ पाँच यमों से हैं जो ..... "अहिंसा", "सत्य", "अस्तेय", "ब्रह्मचर्य", और "अपरिग्रह" हैं| बाबा रामदेव इन पाँच पर तो कभी नहीं बोलते| फिर पाँच नियम हैं ... "शौच", "संतोष", "तप", "स्वाध्याय" और "ईश्वर-प्रणिधान"| इन पर भी बाबा रामदेव कभी कुछ नहीं बोलते| आसनों के बारे में भी पातंजलि ने स्थिर होकर सुख से बैठने को ही आसन कहा है| हठयोग के योगासन पातंजलि के योगदर्शन में कहीं भी नहीं हैं| प्राणायाम गोपनीय हैं क्योंकि वे दुधारी तलवार हैं| बिना शुद्ध आचार-विचार के उनका अभ्यास वर्जित हैं| हठयोग के प्राणायाम पतंजलि ने कहीं पर भी नहीं बताये हैं| फिर आगे प्रत्याहार, धारणा और ध्यान की बातें यहाँ करना अनावश्यक है|
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बाबा रामदेव की शिक्षाएँ पूर्णतः हठयोग की शिक्षाएँ हैं, वे हठयोगियों के लिए आवश्यक हैं| उनका लाभ भी लोगों को बहुत अधिक हो रहा है पर पातंजलि का नाम रखना सही नहीं है क्योंकि पातंजलि की शिक्षाओं का समावेश यहाँ कहीं भी नहीं है| पातंजलि का नाम रखना एक व्यभिचार की श्रेणी में आता है|
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यह लेख कोई निंदा या बुराई नहीं है, मेरे बहुत सारे मित्र बाबा रामदेव की संस्था से जुड़े हुए हैं, वे बुरा नहीं मानें| धन्यवाद!

एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय .....

"एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय | रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय ||"
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पेड़ की जड़ को सींचने से ही जैसे पेड़ के सारे फूल और फल प्राप्त किये जा सकते हैं, वैसे ही ....... ज्ञान के एकमात्र स्त्रोत परमात्मा को पाने से ही समस्त ज्ञान-विज्ञान को प्राप्त किया जा सकता है| ज्ञान का स्त्रोत तो परमात्मा है, पुस्तकें नहीं| पुस्तकें तो मात्र सूचना ही दे सकती हैं| मनुष्य जीवन अति अति अल्प और सीमित है जिसमें ज्ञान के एक अंश को ही जाना जा सकता है| अतः इधर उधर भटक कर समय नष्ट करने की बजाय यथासंभव अधिकाँश समय परमात्मा को ही दिया जाए| इसी में जीवन की सार्थकता है| ॐ ॐ ॐ !!
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पुनश्चः :---
"जाल परे जल जाती बहि, तज मीनन को मोह| रहिमन मछली नीर को, तऊ ना छाड़त छोह|"
जल व मछली से भरे तालाब में मछुआरा जब जाल फेंकता है तब जल तो मछली को छोड़कर जाल से बाहर निकला जाता है, पर मछली जल के मोह से अपना प्राण त्याग देती है| यही मनुष्य की इस संसार में गति है| काल रूपी जाल से संसार तो निकल जाता है पर मनुष्य नहीं|

हमें चीन की तर्ज पर जनसंख्या नियंत्रण क़ानून बहुत अधिक सख्ती से लागू करना ही होगा....

हमें चीन की तर्ज पर जनसंख्या नियंत्रण क़ानून बहुत अधिक सख्ती से लागू करना ही होगा....
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मैं सन १९८५ में दो महीने के लिए चीन गया था उस समय वहाँ "एक दंपत्ति के एक ही संतान" वाला नियम बहुत अधिक कठोरता से लागू था जिसके अच्छे-बुरे परिणाम भी दिखाई दे रहे थे| इस से कुछ सामाजिक समस्याएँ तो उत्पन्न हुईं पर कुल मिलाकर चीन देश का इस से बहुत अधिक कल्याण हुआ| चीन ने अपनी बढ़ती हुई जनसंख्या को नियंत्रित किया जिससे बेरोजगारी समाप्त हुई, और संसाधनों की कमी दूर हुई| फिर मुझे दुबारा सन १९९५ के आसपास चीन जाने का अवसर मिला तब सीमित संख्या में कुछ लोगों को दो संतान उत्पन्न करने की छूट मिल गयी थी| तीसरी और अंतिम बार चीन सन २००० में गया तब सभी को दो संतान उत्पन्न करने की छूट मिल गयी थी जो अभी तक है| अब चीन की जनसंख्या पूरी तरह नियंत्रित है| जनसंख्या के नियंत्रण से चीन अपने देश की घोर गरीबी और अव्यवस्था दूर करने में समर्थ हुआ है|
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सन १९८० के दशक तक चीन की स्थिति भारत से तो बहुत ही अधिक खराब थी| वहां घोर गरीबी थी और जीवन बड़ा अभावग्रस्त था| वर्त्तमान में वहाँ साम्यवाद तो समाप्त हो चुका है पर साम्यवादी दल का तानाशाही शासन है| जनसंख्या नियंत्रित करने के बहुत अच्छे परिणाम हुए है| चीन में जनसंख्या नियंत्रण बन्दूक की नोक पर या कह सकते हैं कि डंडे के जोर पर हुआ है| भारत में पता नहीं ऐसा हो पायेगा या नहीं| जनसंख्या नियंत्रित करने की बात करते ही यहाँ अल्पसंख्यक-बहुसन्ख्यक, अगड़ा-पिछड़ा, मानवाधिकार आदि की राजनीति प्रारम्भ हो जायेगी|
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कुछ भी हो जाए पर भारत को अपनी अराजकता, भूखमरी और दरिद्रता से मुक्ति पाने के लिए कठोरता से जनसंख्या नियंत्रित करनी ही पड़ेगी|

हम अपने आनंद रूप में स्थित हों .....

हम अपने आनंद रूप में स्थित हों .....
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गीता में भगवान कहते हैं .....
यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः |
यस्मिन्स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते ||१६:२२||
अर्थात जिस लाभकी प्राप्ति होनेपर उससे अधिक कोई दूसरा लाभ उसके मानने में भी नहीं आता, और जिसमें स्थित होनेपर वह बड़े भारी दुःखसे भी विचलित नहीं किया जा सकता|
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वह लाभ क्या है? वह लाभ है हमारा आनंद स्वरुप, जिसमें स्थित होकर हम भयानक से भयानक दुःख में भी अविचलित रह सकते हैं| तब दुःख एक अतीत का विषय बन जाता है|
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अपने उस आनन्दस्वरूप में स्थित होने के लिए हमारी गुरुप्रदत्त साधना नियमित और नित्य हो| साथ साथ हमारा आचरण भी सही हो| सद आचरण को प्रथम धर्म बताया गया है .....
आचारः प्रथमो धर्मः इत्येतद्विदुषां वचः |
तस्मादरक्षेत् सदाचारं प्राणेभ्योSपि विशेषतः ||
सब के प्रति अच्छा आचरण हमारा सर्व प्रथम धर्म है, ऐसा विद्वज्ज्नों का कहना है| इस लिये सदाचार की रक्षा (अनुपालन) हमें अपने प्राणों से भी अधिक करनी चाहिये|
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बिना सद आचरण के हमारी कोई भी साधना सफल नहीं हो सकती और हम कभी भी अपने आनंद स्वरुप में स्थित नहीं हो सकते| हम स्वयं के साथ और दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं, इसके प्रति सदा सजग रहें, तभी हम अपने आनंद स्वरुप में स्थित हो सकते हैं|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२२ फरवरी २०१८