Saturday 24 February 2018

हम अपने आनंद रूप में स्थित हों .....

हम अपने आनंद रूप में स्थित हों .....
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गीता में भगवान कहते हैं .....
यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः |
यस्मिन्स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते ||१६:२२||
अर्थात जिस लाभकी प्राप्ति होनेपर उससे अधिक कोई दूसरा लाभ उसके मानने में भी नहीं आता, और जिसमें स्थित होनेपर वह बड़े भारी दुःखसे भी विचलित नहीं किया जा सकता|
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वह लाभ क्या है? वह लाभ है हमारा आनंद स्वरुप, जिसमें स्थित होकर हम भयानक से भयानक दुःख में भी अविचलित रह सकते हैं| तब दुःख एक अतीत का विषय बन जाता है|
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अपने उस आनन्दस्वरूप में स्थित होने के लिए हमारी गुरुप्रदत्त साधना नियमित और नित्य हो| साथ साथ हमारा आचरण भी सही हो| सद आचरण को प्रथम धर्म बताया गया है .....
आचारः प्रथमो धर्मः इत्येतद्विदुषां वचः |
तस्मादरक्षेत् सदाचारं प्राणेभ्योSपि विशेषतः ||
सब के प्रति अच्छा आचरण हमारा सर्व प्रथम धर्म है, ऐसा विद्वज्ज्नों का कहना है| इस लिये सदाचार की रक्षा (अनुपालन) हमें अपने प्राणों से भी अधिक करनी चाहिये|
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बिना सद आचरण के हमारी कोई भी साधना सफल नहीं हो सकती और हम कभी भी अपने आनंद स्वरुप में स्थित नहीं हो सकते| हम स्वयं के साथ और दूसरों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं, इसके प्रति सदा सजग रहें, तभी हम अपने आनंद स्वरुप में स्थित हो सकते हैं|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२२ फरवरी २०१८

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