Friday, 21 January 2022

हमारा एकमात्र शत्रु कौन है? उस पर विजय कैसे प्राप्त करें? ---

 हमारा एकमात्र शत्रु कौन है? उस पर विजय कैसे प्राप्त करें? ---

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हमें किसी भी व्यक्ति की बुद्धि में भ्रम उत्पन्न नहीं करना चाहिए| दूसरों के सामने एक आदर्श प्रस्तुत कर, उसी से दूसरों को कुछ कहना चाहिए| दूसरा है ही कौन? हम स्वयं ही अपने समक्ष अपना स्वयं का आदर्श रखें| फालतू और घटिया विचारों से स्वयं को मुक्त करें| स्वयं से पृथक अन्य कोई भी नहीं है|
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हमारा एकमात्र शत्रु -- हमारी स्वयं की अधोगामी निम्न प्रकृति है, अन्य कोई हमारा शत्रु नहीं है| यह अधोगामी प्रकृति ही हमारी सभी बुराइयों की जड़ है| यही हमारे अहंकार को प्रबल कर हमें परमात्मा से दूर करती है| इब्राहिमी मज़हबों ने इसे 'शैतान' का नाम दिया है| यह शैतान कहीं बाहर नहीं हमारी स्वयं की ही निम्न प्रकृति है, जिस पर विजय प्राप्त करने का उपदेश गीता के १४ वें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण हमें देते हैं| इस गुण_त्रय_विभाग योग का स्वाध्याय बार बार तब तक करें, जब तक यह पूरी तरह समझ में नहीं आ जाये| हम ब्रह्म यानि परमात्मा के साथ सदा अभेद का चिंतन करें| इसी से हम अपने परम शत्रु -- हमारी निम्न प्रकृति पर विजय प्राप्त कर पायेंगे|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ब्रह्मणे नमः ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२२ जनवरी २०२१