विफलता और सफलता ....
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मेरे अनेक आत्मीय सम्बन्धियों/मित्रों की एक व्यथा से मैं कभी कभी पीड़ित हो जाता हूँ| मेरा तो यह विश्वास और आस्था है कि मनुष्य का जन्म अपने स्वयं के प्रारब्ध कर्मों के फल भोगने के लिए ही होता है, और हर व्यक्ति अपने पूर्व जन्मों के कर्मों के अनुसार अपना अपना भाग्य लेकर आता है|
प्रारब्ध का फल तो भोगना ही पड़ता है| संचित कर्मों से हम मुक्त हो सकते हैं पर प्रारब्ध से नहीं| प्रकृति अपने नियमों के अनुसार कार्य कर रही है और करती रहेगी|
अतः हमें कभी भी आत्म-ग्लानि, क्षोभ व अफ़सोस नहीं करने चाहियें| जो कुछ भी हो रहा है वह परमात्मा के बनाए नियमों के अनुसार प्रकृति द्वारा हो रहा हैं| अतः सदा संतुष्ट और प्रसन्न रहना चाहिए|
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पर मेरे अनेक आत्मीय ऐसा नहीं सोचते| संसार की दृष्टि में वे चाहें अति सफल हों पर उनके मन में सदा आत्म-ग्लानि बनी रहती है कि हम जीवन में यह नहीं कर पाए, वह नहीं कर पाए आदि आदि| इस आत्मा ग्लानि से वे सदा दुखी रहते हैं और दूसरों को भी दुखी करते रहते हैं| अपनी विफलताओं का दोष वे दूसरों पर या विपरीत परिस्थितियों पर डालते रहते हैं|
उनकी महत्वाकांक्षाएँ इतनी अधिक होती हैं जो यथार्थ में संभव हो ही नहीं सकतीं| ऐसे व्यक्ति वास्तव में बड़े दुखी रहते हैं जब कि दुःख का कोई कारण ही नहीं होता| जब कोई स्वयं से ही दुखी होता है तब उसके लिए कोई क्या कर सकता है?
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हमारी सफलता का एक ही मापदंड होना चाहिए वह यह कि हम परमात्मा के कितना समीप हैं| जितने हम ईमानदारी से स्वयं की दृष्टी में परमात्मा के समीप हैं उतने ही सफल हैं| जितने हम परमात्मा से दूर है उतने ही विफल हैं| भौतिक धन-संपत्ति की प्रचूरता, समाज में अच्छा मान-सम्मान और सब कुछ पाकर भी हम यही सोचते सोचते इस ससार से विदा हो जाते हैं कि हम तो कुछ भी नहीं कर पाए|
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आशा है मैं अपनी बात आपको समझा सका हूँ| हो सकता है कि किसी पूर्व जन्म में एक राजा भी था और किसी अन्य जन्म में भिखारी भी| इससे क्या फर्क पड़ता है कि मैं क्या था और क्या नहीं? और क्या बनूँगा इस का भी महत्व नहीं है|
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यदि मनुष्य जन्म लेकर भी मैं इस जन्म में परमात्मा को उपलब्ध नहीं हो पाया तो निश्चित रूप से मेरा जन्म लेना ही विफल था, मैं इस पृथ्वी पर भार ही था| जीवन की सार्थकता उसी दिन होगी जिस दिन परमात्मा से कोई भेद नहीं रहेगा|
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आप सब में हृदयस्थ परमात्मा को प्रणाम |
ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
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मेरे अनेक आत्मीय सम्बन्धियों/मित्रों की एक व्यथा से मैं कभी कभी पीड़ित हो जाता हूँ| मेरा तो यह विश्वास और आस्था है कि मनुष्य का जन्म अपने स्वयं के प्रारब्ध कर्मों के फल भोगने के लिए ही होता है, और हर व्यक्ति अपने पूर्व जन्मों के कर्मों के अनुसार अपना अपना भाग्य लेकर आता है|
प्रारब्ध का फल तो भोगना ही पड़ता है| संचित कर्मों से हम मुक्त हो सकते हैं पर प्रारब्ध से नहीं| प्रकृति अपने नियमों के अनुसार कार्य कर रही है और करती रहेगी|
अतः हमें कभी भी आत्म-ग्लानि, क्षोभ व अफ़सोस नहीं करने चाहियें| जो कुछ भी हो रहा है वह परमात्मा के बनाए नियमों के अनुसार प्रकृति द्वारा हो रहा हैं| अतः सदा संतुष्ट और प्रसन्न रहना चाहिए|
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पर मेरे अनेक आत्मीय ऐसा नहीं सोचते| संसार की दृष्टि में वे चाहें अति सफल हों पर उनके मन में सदा आत्म-ग्लानि बनी रहती है कि हम जीवन में यह नहीं कर पाए, वह नहीं कर पाए आदि आदि| इस आत्मा ग्लानि से वे सदा दुखी रहते हैं और दूसरों को भी दुखी करते रहते हैं| अपनी विफलताओं का दोष वे दूसरों पर या विपरीत परिस्थितियों पर डालते रहते हैं|
उनकी महत्वाकांक्षाएँ इतनी अधिक होती हैं जो यथार्थ में संभव हो ही नहीं सकतीं| ऐसे व्यक्ति वास्तव में बड़े दुखी रहते हैं जब कि दुःख का कोई कारण ही नहीं होता| जब कोई स्वयं से ही दुखी होता है तब उसके लिए कोई क्या कर सकता है?
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हमारी सफलता का एक ही मापदंड होना चाहिए वह यह कि हम परमात्मा के कितना समीप हैं| जितने हम ईमानदारी से स्वयं की दृष्टी में परमात्मा के समीप हैं उतने ही सफल हैं| जितने हम परमात्मा से दूर है उतने ही विफल हैं| भौतिक धन-संपत्ति की प्रचूरता, समाज में अच्छा मान-सम्मान और सब कुछ पाकर भी हम यही सोचते सोचते इस ससार से विदा हो जाते हैं कि हम तो कुछ भी नहीं कर पाए|
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आशा है मैं अपनी बात आपको समझा सका हूँ| हो सकता है कि किसी पूर्व जन्म में एक राजा भी था और किसी अन्य जन्म में भिखारी भी| इससे क्या फर्क पड़ता है कि मैं क्या था और क्या नहीं? और क्या बनूँगा इस का भी महत्व नहीं है|
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यदि मनुष्य जन्म लेकर भी मैं इस जन्म में परमात्मा को उपलब्ध नहीं हो पाया तो निश्चित रूप से मेरा जन्म लेना ही विफल था, मैं इस पृथ्वी पर भार ही था| जीवन की सार्थकता उसी दिन होगी जिस दिन परमात्मा से कोई भेद नहीं रहेगा|
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आप सब में हृदयस्थ परमात्मा को प्रणाम |
ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||