Wednesday 30 November 2016

असहमति में उठा हाथ ......

असहमति में उठा हाथ ......
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इस जीवन की एक अति अल्प अवधी के लिए मैं भटक कर घोर नास्तिक और कौमनष्ट (कम्युनिष्ट) हो गया था| इसका कारण था कि किशोरावस्था में ही मैंने समाज में काफी अन्याय, शोषण और नैतिक पतन देखा| किशोर मन में इसका कोई समाधान समझ में नहीं आया| फिर दो वर्ष रूस में मुझे उस समय रहने का अवसर मिला जब साम्यवाद अपने चरम शिखर पर था| अपरिपक्व मन में सामाजिक व्यवस्था के प्रति विद्रोह की भावना जागृत होना स्वभाविक थी, जिसको व्यक्त करने का एकमात्र विकल्प मार्क्सवाद था| अन्य कोई समझ उस समय थी ही नहीं|
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फिर पूर्व जन्मों के कुछ अच्छे संस्कार जागृत हुए व और अधिक गहराई में गया तो साम्यवाद का खोखलापन सामने आया और उसके महानायकों .... मार्क्स, लेनिन, स्टालिन, किम-इल-सुंग, माओ, फिदेल कास्त्रो आदि की वास्तविकता और भारतीय मापदंडों के अनुसार चरित्रहीनता सामने आई जिनमें कुछ भी प्रेरणास्पद और प्रशंसनीय आदर्श नहीं था| मार्क्सवाद एक लुभावना पर खोखला घोर भौतिकवादी सिद्धांत सिद्ध हुआ| जितने भी मार्क्सवादी विचारक जीवन में मिले उन सब का जीवन खोखला और कुंठाग्रस्त था|
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फिर आध्यात्म में रूचि जागृत हुई तो योगदर्शन और अद्वैत वेदान्त से परिचय हुआ जिनसे उत्तम अन्य कोई सिद्धांत और विचार मिला ही नहीं| भक्ति के संस्कार जागृत हुए, राष्ट्रवाद तो कूट कूट कर भरा हुआ था ही| आध्यात्म से जीवन में पूर्ण संतुष्टि और एक ठोस आधार मिला| जीवन में १८० डिग्री का परिवर्तन आया और घोर नास्तिक से मैं घोर आस्तिक और आध्यात्मिक बन गया|
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सारे मार्क्सवादी महानायक निरंकुश, तानाशाह, शराबी, घोर कामुक और भयानक परस्त्रीगामी थे| ये सब दानव थे जिनके जीवन में व्यवस्था के प्रति विद्रोह और संघर्ष की भावना के अतिरिक्त कुछ भी अन्य आदर्श नहीं था|
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अभी कुछ दिनों पूर्व क्यूबा के फिदेल कास्त्रो का निधन हुआ था| किसी समय मैं भी उनका बड़ा प्रशंसक था| उनकी खूबी थी कि विश्व की सबसे बड़ी महाशक्ति अमेरिका के पड़ोस में रहते हुए भी उन्होंने अमेरिका के आगे कभी सिर नहीं झुकाया और पूर्व सोवियत यूनियन को अपने यहाँ आने को अवसर दिया| अमेरिका की CIA ने ३५० से अधिक बार उनकी ह्त्या के कुटिल से कुटिल प्रयास किये पर उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाई| इस अवधी में अमेरिका के नौ राष्ट्रपति बदल गये|
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अब प्रश्न यह है कि फिदेल कास्त्रो ने अपनी प्रजा के लिए क्या किया? उत्तर है .... कुछ भी नहीं| सिर्फ तानाशाह की तरह क्यूबा पर राज्य किया, और अपने अहंकार और वासनाओं की पूर्ति की| इनके समय वहाँ कुछ भी विकास नहीं हुआ और क्यूबा विश्व के सर्वाधिक दरिद्रतम देशों में ही रहा| अपने नागारिकों को आतंकित करके के इन्होने शासन किया| पूरी क्यूबा को एक जेल बना दिया और अनगिनत लड़कियों को वेश्यावृति करने को बाध्य कर दिया|
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मार्क्सवादी साम्यवाद हो या पूँजीवाद, दोनों व्यवस्थाएं घोर भौतिकवादी हैं जिनसे
मानवता का कोई कल्याण नहीं हो सकता|
जीवन का सार आध्यात्म में ही है|
ॐ तत्सत | ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ ||

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