Monday, 12 September 2016

सच्चिदानंद रूप में स्थित हो जाना ही मोक्ष है ......

सच्चिदानंद रूप में स्थित हो जाना ही मोक्ष है ......
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वेदांत के दृष्टिकोण से अपने सच्चिदानंद रूप में स्थित हो जाना ही मोक्ष है| परब्रह्म ही जीव और जगत् के सभी रूपों में व्यक्त है| वही जीवरूप में भोक्ता है और वही जगत रूप में भोग्य है|
साभार: स्वामी मृगेंद्र सरस्वती

मनुष्य की शाश्वत जिज्ञासा .....

मनुष्य की शाश्वत जिज्ञासा .....
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एक बहुत ऊंचे और विराट पर्वत की तलहटी में बसे एक गाँव के लोगों में यह जानने की प्रबल जिज्ञासा थी की पर्वत के उस पार क्या है| बहुत सारे किस्से कहानियाँ प्रचलित थे| कई पुस्तकें लिखी गयी थीं यही बताने को कि पर्वत के उस पार क्या है| बहुत सारे लोग थे जो बताते थे कि पर्वत के उस पार क्या है| पर उनमें से किसी ने भी प्रत्यक्ष देखा नहीं था कि उस पार क्या है| सबकी अपनी मान्यताएं थीं|
कुछ लोगों की मान्यता थी कि वे जो कहते हैं वही सही है, और बाकी सब गलत| कुछ लोगों ने घोषणा कर दी कि जो भी उनकी बात को नहीं मानेगा उसे दंडित किया जाएगा, उसकी ह्त्या भी कर दी जायेगी|
इस सब के बाद भी लोगों की जिज्ञासा शांत नहीं हुई यह जानने को की पर्वत के उस पार क्या है|

एक दिन एक साहसी युवक ने हिम्मत जुटाई और पर्वत पर चढ़ गया| पर्वत पर चढ़ कर और स्वयं देखकर अपने निजी अनुभव से ही उसे पता चला कि पर्वत के उस पार क्या है| उसने पाया कि नीचे की सब प्रचलित बातें अर्थहीन हैं| पर उसने जो अनुभूत किया वह उसका निजी अनुभव था जो उसी के काम का था| अन्य कोई उसकी बात को मान भी नहीं सकता था| उसने नीचे आकर घोषणा कर दी की जिसे यह जानना है कि पर्वत के उस पार क्या है उसे स्वयं को पर्वत पर चढ़कर देखना होगा| किसी ने उसकी बात मानी किसी ने नहीं| कुछ ने उसे द्रोही घोषित कर दिया| पर फिर भी लोगों की जिज्ञासा शांत नहीं हुई|
अपना संसार ही वह गाँव है, और अज्ञान ही वह पर्वत है| उस अज्ञान रुपी पर्वत से ऊपर जाकर ही पता चल सकता है की सत्य क्या है| यह मनुष्य की शाश्वत जिज्ञासा है यह जानने की कि सत्य क्या है| दूसरों के उत्तर इस जिज्ञासा को शांत नहीं कर सकते| एक सुखी व्यक्ति ही यह जान सकता है कि सुख क्या है| एक पीड़ित व्यक्ति यह जानना चाहे कि आनंद क्या है तो उसे स्वयं को आनंदित होना होगा|
आप मुझसे पूछें की चन्द्रमा कहाँ है तो मैं अपनी अंगुली से संकेत कर के बता दूंगा| एक बार चन्द्रमा को देखने के पश्चात मेरी अंगुली का कोई महत्व नहीं रहता|
आप कहीं अनजान जगह जा रहे हैं तो आप अपने साथ एक पथ प्रदर्शक पुस्तिका रखेंगे| पर एक बार गंतव्य स्थान दिखाई पड़ जाने पर उस पुस्तिका का कोई महत्व नहीं रहता और न ही दूसरों के बताये हुए दिशा निर्देशों का|
अपनी जिज्ञासाओं को तृप्त करने के लिए स्वयं को प्रयास और खोज करनी होगी| अन्य कोई आपकी जिज्ञासाओं को शांत नहीं कर सकता|
बस यही मेरे भाव हैं जो मैं व्यक्त करना चाहता था| परम धन्यवाद|
ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
13 सितम्बर 2013

आतंकवाद ......

आतंकवाद .....
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आतंकवाद .... एक असत्य और अन्धकार की शक्ति है जो मनुष्य को अपनी वासनाओं और अहंकार की पूर्ती के लिए दिग्भ्रमित कर असत्य और अंधकार में ही उलझाए रखती है|
मनुष्य स्वयं तो असत्य और अन्धकार के आवरण में रहता ही है, पर अन्यों को भी उसी असत्य को सत्य व अन्धकार को प्रकाश मानने को निर्दयता से बलात् बाध्य करता है; यही आतंकवाद है|
इसके कारण मनुष्य के षड़ विकार --- काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर्य हैं|
यह सृष्टि के आदिकाल से ही रहा है, कभी कम और कभी अधिक| इसका सबसे नकारात्मक पहलू तो यह है कि अपने मत की पुष्टि के लिए बीच में भगवान और धर्म को भी ले आते हैं| भगवान और धर्म का उपयोग मात्र एक अस्त्र के रूप में किया जाता है|
पिछले दो हज़ार वर्षों के इतिहास को देखो तो आतंकवाद के अनेक रूप रहे हैं|
हूण, शक, मंगोलों, क्रूसेडरों, जिहादियों आदि ने लूट खसोट और साम्राज्य विस्तार के लिए आतंक फैलाया| नाजियों, फासिस्टों, जापानियों व कम्युनिस्टों ने साम्राज्य विस्तार के लिए आतंक फैलाया| अब भी कुछ मतानुयायी अपने संख्या विस्तार के लिए आतंक का सहारा ले रहे हैं जो गलत है|
किसी भी प्रकार के आतंक का विरोध करना चाहिए| इसका समर्थन किसी भी परिस्थिति में ना हो|
पूरे विश्व को अपना परिवार मानकर और सभी के कल्याण की कामना ही आतंकवाद का सही उत्तर है| पर कोई किसी पर बलात् अत्याचार करे तो उसका प्रतिकार भी बलपूर्वक और पूर्ण साहस के साथ होना चाहिए| धन्यवाद |
ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
सितम्बर 13, 2014.

धर्म की अवधारणा का क्षरण ही वर्त्तमान दुःखद परिस्थितियों का कारण है .....

धर्म की अवधारणा का क्षरण ही वर्त्तमान दुःखद परिस्थितियों का कारण है .....
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एक यक्ष प्रश्न सभी भारतीयों से है कि जो भारतीय समाज शान्तिप्रिय था उसमें अचानक ही असहिष्णुता, असंतोष, ईर्ष्या, द्वेष, और लूट- पाट बढ़ने लगी है | इसका मूल कारण क्या है?
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जहां तक मेरी सोच है, पहिले लोगों की आवश्यकता कम थी| थोड़े में ही गुज़ारा कर लेते थे| लोग अपरिग्रह को धर्म मानते थे और संतोष को धन; इसलिए सुखी थे|
अब दिखावे की प्रवृति बढ़ गयी है, टेलिविज़न आने के बाद से लोगों में मेलजोल कम हो हो गया है| समाचारपत्रों और टेलिविज़न में विज्ञापनों को देखकर अधिक से अधिक और पाने की चाह बढ़ गयी है| "धर्म" की अवधारणा का बोध भी कम हो गया है| इसलिए लूट-खसोट और चोरी बढ़ गयी है|
धर्म की अवधारणा का क्षरण ही वर्त्तमान दुःखद परिस्थितियों का कारण है|
क्या हम वास्तव में प्रगति कर रहे हैं?
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कृपा शंकर
13 सितम्बर 2014

हमारे विचार, सोच और भावनाएँ ही हमारे "कर्म" हैं, दोष विषय वासनाओं में नहीं, अपितु उनके चिंतन में है ...

हमारे विचार, सोच और भावनाएँ ही हमारे "कर्म" हैं, दोष विषय वासनाओं में नहीं, अपितु उनके चिंतन में है .....
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यह सृष्टि द्वैत से बनी है| सृष्टि के अस्तित्व के लिए विपरीत गुणों का होना अति आवश्यक है| प्रकाश का अस्तित्व अन्धकार से है और अन्धकार का प्रकाश से|
मनुष्य जैसा और जो कुछ भी सोचता है वह ही "कर्म" बनकर उसके खाते में जमा हो जाता है|
यह सृष्टि हमारे विचारों से ही बनी है| हमारे विचार ही घनीभूत होकर हमारे चारों ओर व्यक्त हो रहे हैं|
ये ही हमारे कर्मों के फल हैं|

परमात्मा की सृष्टि में कुछ भी बुरा या अच्छा नहीं है| कामना ही बुरी है|
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं -- "ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते।"
विषय मिलने पर विषय का प्रयोग आसक्ति को पैदा नहीं करेगा। परन्तु जब हम विषय को मन में सोचते हैं तो उसके प्रति कामना जागृत होगी|
यह कामना ही हमारा "बुरा कर्म" है, और निष्काम रहना ही "अच्छा कर्म" है|
हम बुराई बाहर देखते हैं, अपने भीतर नहीं|
हम विषयों को दोष देते है| पर दोष विषयों में नहीं बल्कि उनके चिंतन में है|
कामनाएं कभी पूर्ण नहीं होतीं|
उनसे ऊपर उठने का एक ही उपाय है, और वह है --------- "निरंतर हरि का स्मरण|"
सांसारिक कार्य भी करते रहो पर प्रभु को समर्पित होकर|
"मच्चितः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात् तरिष्यसि|"
अपने आप को ह्रदय और मन से मुझे दे देने से तूँ समस्त कठिनाइयों और संकटों को मेरे प्रसाद से पार कर जाएगा|
इस समर्पण पर पूर्व में प्रस्तुति दी जा चुकी है|
आगे और लिखना मेरी सीमित और अल्प क्षमता से परे है| मेरे में और क्षमता नहीं है|
और अब आप कुछ भी अर्थ लगा लो, यह आप पर निर्भर है|
यह कोई उपदेश नहीं है, स्वयं को व्यक्त करने का मेरा स्वभाव है|
सभी को शुभ कामनाएँ| ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
13 सितम्बर 2014

जिसने काम जीता उसने जगत जीता .....

आध्यात्म पथ के साधकों के लिए ......
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>>>>> "जिसने काम जीता उसने जगत जीता |" <<<<<
वह चक्रवर्ती सम्राट है |
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और मुझे कुछ नहीं कहना है | आप सब समझदार हो | अतः साधू, सावधान !
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!

राजस्थान के लोक देवता रामसा पीर बाबा रामदेव जी .....

राजस्थान के लोक देवता रामसा पीर बाबा रामदेव जी .....
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भाद्रपद शु.प.दूज से आरम्भ हुए बाबा रामदेव जी के मेले का आज समापन है|
बाबा रामदेव जी राजस्थान के एक लोक देवता हैं। 15वी शताब्दी के आरम्भ में भारत में लूट खसोट, छुआछूत, हिंदू-मुस्लिम झगडों आदि के कारण स्थितियाँ बड़ी अराजक बनी हुई थीं। ऐसे विकट समय में पश्चिम राजस्थान के पोकरण नामक प्रसिद्ध नगर के पास रुणिचा नामक स्थान में तोमर वंशीय राजपूत और रुणिचा के शासक अजमाल जी के घर भादो शुक्ल पक्ष दूज के दिन वि•स• 1409 को बाबा रामदेव पीर अवतरित हुए (द्वारकानाथ ने राजा अजमल जी के घर अवतार लिया, जिन्होंने लोक में व्याप्त अत्याचार, वैर-द्वेष, छुआछूत का विरोध कर अछूतोद्धार का सफल आन्दोलन चलाया।
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बाबा रामदेव ने अपने अल्प जीवन के तेंतीस वर्षों में वह कार्य कर दिखाया जो सैकडो वर्षों में भी होना सम्भव नही था। सभी प्रकार के भेद-भाव को मिटाने एवं सभी वर्गों में एकता स्थापित करने की पुनीत प्रेरणा के कारण बाबा रामदेव जहाँ हिन्दुओ के देव है तो मुस्लिम भाईयों के लिए रामसा पीर। मुस्लिम भक्त बाबा को रामसा पीर कह कर पुकारते हैं। वैसे भी राजस्थान के जनमानस में पॉँच वीरों की प्रतिष्ठा है जिनमे बाबा रामसा पीर का विशेष स्थान है।
पाबू हडबू रामदेव माँगळिया मेहा।
पांचू वीर पधारजौ ए गोगाजी जेहा।।
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बाबा रामदेव ने छुआछूत के खिलाफ कार्य कर सिर्फ़ दलितों का पक्ष ही नही लिया वरन उन्होंने दलित समाज की सेवा भी की। डाली बाई नामक एक दलित कन्या का उन्होंने अपने घर बहन-बेटी की तरह रख कर पालन-पोषण भी किया। यही कारण है आज बाबा के भक्तो में एक बहुत बड़ी संख्या दलित भक्तों की है। बाबा रामदेव पोकरण के शासक भी रहे लेकिन उन्होंने राजा बनकर नही अपितु जनसेवक बनकर गरीबों, दलितों, असाध्य रोगग्रस्त रोगियों व जरुरत मंदों की सेवा भी की। यही नही उन्होंने पोकरण की जनता को भैरव राक्षस के आतंक से भी मुक्त कराया। प्रसिद्ध इतिहासकार मुंहता नैनसी ने भी अपने ग्रन्थ "मारवाड़ रा परगना री विगत" में इस घटना का जिक्र करते हुए लिखा है- भैरव राक्षस ने पोकरण नगर आतंक से सूना कर दिया था, लेकिन बाबा रामदेव के अदभूत एवं दिव्य व्यक्तित्व के कारण राक्षस ने उनके आगे आत्म-समर्पण कर दिया था और बाद में उनकी आज्ञा अनुसार वह मारवाड़ छोड़ कर चला गया। बाबा रामदेव ने अपने जीवन काल के दौरान और समाधि लेने के बाद कई चमत्कार दिखाए जिन्हें लोक भाषा में परचा देना कहते है। इतिहास व लोक कथाओं में बाबा द्वारा दिए ढेर सारे परचों का जिक्र है। जनश्रुति के अनुसार मक्का के मौलवियों ने अपने पूज्य पीरों को जब बाबा की ख्याति और उनके अलौकिक चमत्कार के बारे में बताया तो वे पीर बाबा की शक्ति को परखने के लिए मक्का से रुणिचा आए। बाबा के घर जब पांचो पीर खाना खाने बैठे तब उन्होंने बाबा से कहा की वे अपने खाने के बर्तन (सीपियाँ) मक्का ही छोड़ आए है और उनका प्रण है कि वे खाना उन सीपियों में खाते है तब बाबा रामदेव ने उन्हें विनयपूर्वक कहा कि उनका भी प्रण है कि घर आए अतिथि को बिना भोजन कराये नही जाने देते और इसके साथ ही बाबा ने अलौकिक चमत्कार दिखाया जो सीपी जिस पीर कि थी वो उसके सम्मुख रखी मिली।
इस चमत्कार (परचा) से वे पीर इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने बाबा को पीरों का पीर स्वीकार किया। आख़िर जन-जन की सेवा के साथ सभी को एकता का पाठ पढाते बाबा रामदेव ने भाद्रपद शुक्ला एकादशी वि.स . 1442 को जीवित समाधी ले ली। श्री बाबा रामदेव जी की समाधी संवत् 1442 को रामदेव जी ने अपने हाथ से श्रीफल लेकर सब बड़े बुढ़ों को प्रणाम किया तथा सबने पत्र पुष्प् चढ़ाकर रामदेव जी का हार्दिक तन मन व श्रद्धा से अन्तिम पूजन किया। रामदेव जी ने समाधी में खड़े होकर सब के प्रति अपने अन्तिम उपदेश देते हुए कहा 'प्रति माह की शुक्ल पक्ष की दूज को पूजा पाठ, भजन कीर्तन करके पर्वोत्सव मनाना, रात्रि जागरण करना। प्रतिवर्ष मेरे जन्मोत्सव के उपलक्ष में तथा अन्तर्ध्यान समाधि होने की स्मृति में मेरे समाधि स्तर पर मेला लगेगा। मेरे समाधी पूजन में भ्रान्ति व भेद भाव मत रखना। मैं सदैव अपने भक्तों के साथ रहूँगा। इस प्रकार श्री रामदेव जी महाराज ने समाधि ली।' आज भी बाबा रामदेव के भक्त दूर- दूर से रुणिचा उनके दर्शनार्थ और अराधना करने आते है। वे अपने भक्तों के दु:ख दूर करते हैं, मुराद पूरी करते हैं। हर साल लगने मेले में तो लाखों की तादात में जुटी उनके भक्तो की भीड़ से उनकी महत्ता व उनके प्रति जन समुदाय की श्रद्धा का आकलन आसानी से किया जा सकता है।
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(संकलन : विकिपीडिया से)

सर्वश्रेष्ठ हितैषी .....

सर्वश्रेष्ठ हितैषी .....
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महात्मा सुन्दरदास जी कहते हैं .....
"सदगुरु महिमा कहन को, मन बहुत लुभाया |
मुख में जिह्वा एक ही, तातैं पछताया ||"
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किसी भी साधक का सर्वश्रेष्ठ हितैषी उसका सद्गुरु ही होता है| सद्गुरु से बढकर किसी का भी कल्याण चाहने वाला अन्य कोई नहीं होता| सद्गुरु का सम्बन्ध शाश्वत होता है| वे न सिर्फ अपने शिष्य को भगवद् प्राप्ति का उपाय बताते हैं बल्कि उसके साथ साथ साधना भी करते हैं, और उसकी भावी विपदाओं और सांसारिक समस्याओं से रक्षा भी करते हैं| गुरु को समर्पित की हुई साधना में कोई त्रुटी भी रह जाए तो सद्गुरु उसमें शोधन कर देते हैं|
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किसी भी साधक को अपनी साधना का सिर्फ 25 प्रतिशत ही पूर्ण निष्ठा से करना होता है| 25 प्रतिशत सद्गुरु करता है| बाकि 50 प्रतिशत जगन्माता की असीम करुणा से उसे फल मिल जाता है| पर स्वयं के भाग का 25 प्रतिशत तो हर साधक को शत प्रतिशत करना पड़ता है|
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वास्तविक आध्यात्मिक जीवन को पाने के लिए हर क्षण गुरु प्रदत्त साधना के सहारे जीना आवश्यक है| जीवन की विपरीततम परिस्थितियों में जहाँ कहीं कोई आशा की किरण दिखाई न दे, और चारों ओर अंधकार ही अंधकार हो, वहाँ एकमात्र सद्गुरु ही हैं जो साथ नहीं छोड़ते| बाकि सारी दुनिया साथ छोड़ सकती है, पर सद्गुरु महाराज कभी हमारा साथ नहीं छोड़ते| हम ही उन्हें भुला सकते हैं पर वे नहीं| उनसे मित्रता बनाकर रखो उनका साथ शाश्वत है| वे हमारे आगे के भी सभी जन्मों में साथ रहेंगे|
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अपनी सारी पीडाएं, सारे दु:ख, सारे कष्ट उन्हें सौंप दो| उन्हें मत भूलो, वे भी हमें नहीं भूलेंगे| निरंतर उनका स्मरण करो| हमारे सुख-दुःख सभी में वे हमारे साथ रहेंगे| अपने ह्रदय का समस्त प्रेम उन्हें बिना किसी शर्त के दो|
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'गु' शब्द का अर्थ है ..... अन्धकार, और 'रू' का अर्थ है दूर करने वाला|
जो अज्ञान रूपी अन्धकार को दूर करते हैं वे ही गुरु हैं| शिष्य को गुरु का ध्यान अपने सहस्त्रार में निरंतर करना चाहिये| गुरु ही वास्तव में तीर्थ और देवता हैं क्योंकि वे भेदबुद्धि के विनाशक हैं|
"संतन ह़ी में पाईये, राम मिलन को घाट।
सहजै ही खुल जात है, सुंदर ह्रदय कपाट||"
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ॐ गुरवे नमः, ॐ परम गुरवे नमः, ॐ परात्पर गुरवे नम:, ॐ परमेष्टि गुरवे नमः, ॐ जगत गुरवे नमः, ॐ आत्म गुरवे नमः, ॐ विश्व गुरवे नमः ! ॐ गुरु ! जय गुरु ! ॐ नम:शिवाय !! ॐ ॐ ॐ !!

दीर्घसूत्रता मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी है .....

दीर्घसूत्रता मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी है .....
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जो काम करना है उसे अब और इसी समय करो| जो कल करना है उसे आज करो, और जो आज करना है उसे अभी करो| काम को आगे टालने की प्रवृति को दीर्घसूत्रता कहते हैं| यह मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी कमजोरी है| प्रमाद यानि आलस्य ही मृत्यु है|
रावण के मन में तीन शुभ संकल्प थे.....
(१) उसकी पहली इच्छा थी कि वह स्वर्ग का मार्ग एक लम्बी सीढ़ी की तरह इतना आसान बना देगा कि पापी मनुष्य भी वहाँ पहुँच सकें|
(२) उसको औरतों को भोजन बनाते समय अग्नि से उठने वाले धुएँ से होने वाली असुविधा से बड़ी पीड़ा थी| उसकी दूसरी इच्छा थी अग्नि को धुआं रहित करने की|
(३) उसकी तीसरी इच्छा थी सोने में सुगंध भर कर उसे सुगन्धित पदार्थ बनाने की| वह चाहता था की स्त्रियाँ जब स्वर्णाभूषण पहिनें तब उनकी देह महक उठे और उन्हें अन्य किसी शृंगार की आवश्यकता न पड़े|

रावण इन सब कामों को करने में समर्थ था| पर आलस्यवश आज करेंगे, कल करेंगे कहकर इन शुभ कामों को टालता रहां| फलस्वरूप उसे बहुत देरी हो गयी| उसके साथ भगवान राम का युद्ध छिड़ गया और उसकी मृत्यु हो गयी| उसके पश्चात हज़ारो वर्ष व्यतीत हो गए पर उसके छोड़े हुए शुभ संकल्प को आज तक कोई पूरा नहीं कर पाया है| हाँ अशुभ कार्य को करने में आलस्य और दीर्घसूत्रता लाभदायक है| अगर सीताहरण में वह आलस्य और प्रमाद करता तो न तो वह मरता और न ही उसका कुल नष्ट होता|
शुभ कर्म जितनी शीघ्र कर लिए जाएँ उतना ही अच्छा है और अशुभ कार्यों में जितनी देरी की जाए या उन्हें किया ही न जाये तो और भी अच्व्छा है| अतः उठो जागो और अपने लक्ष्य की प्राप्ति में तुरंत जुट जाओ|
हमारा सब से पहिला और पवित्रतम कार्य है परमात्मा को प्राप्त होना| बाकी अन्य हर चीज प्रतीक्षा कर सकती है पर ईश्वर की खोज नहीं| अपना दिवस ईश्वर के ध्यान से आरम्भ करो| पूरे दिन उसकी स्मृति बनाए रखो, और जब भी भूल जाओ तब याद आते ही फिर उसकी स्मृति में रहने का प्रयत्न करते रहो| रात्री को शयन से पूर्व परमात्मा का गहनतम ध्यान कर जगन्माता की गोद में निश्चिन्त होकर सो जाओ|
अपने ह्रदय में एक प्रचंड अग्नि जला दो परमात्मा को प्राप्त करने की| हमारी अभीप्सा इतनी तीब्र हो की उसके समक्ष अन्य कोई कामना टिक ही न सके| उसके प्रेम को इतना गहन बना दो कि अन्य कोई विचार ही न रहे|
माया की शक्तियों से बचना अति कठिन है| भगवान से गहन प्रार्थना और सत्संग साधक की सदा रक्षा करते हैं| भगवान का ध्यान भी सत्संग ही है जिसमें आप भगवान के साथ रहते है| पर ब्रह्मनिष्ठ श्रौत्रिय और परम भक्त महात्माओं का लौकिक सत्संग भी अति आवश्यक है, जो दुर्लभ है|
शुभ कामनाएँ|
ॐ तत्सत् | ॐ शिव ! ॐ ॐ ॐ !!

केवल जीव ही नहीं, सारा संसार ही ब्रह्मरूप है, सारा जगत् ब्रह्म ही है, वस्तुतः मैं वह स्वयं हूँ ..

केवल जीव ही नहीं, सारा संसार ही ब्रह्मरूप है, सारा जगत् ब्रह्म ही है, वस्तुतः मैं वह स्वयं हूँ .....

परमात्मा ही सर्वस्व है| जब हम किसी चीज की कामना करते हैं तब परमात्मा उस कामना के रूप में आ जाते हैं, पर स्वयं का बोध नहीं कराते| हम जब तक कामनाओं पर विजय नहीं पाते तब तक परमात्मा का बोध नहीं कर सकते|

आत्मा को प्रेम का विषय बना कर ही कामनाओं को जीत सकते हैं| काम, क्रोध ही हमारे वास्तविक शत्रु हैं, और राग, द्वेष व मोह ही वास्तविक बाधाएँ| अन्यथा परमात्मा तो नित्य प्राप्त हैं| वे तो हमारा स्वरूप हैं| जीव ही नहीं, समस्त सृष्टि ही परमात्मा है, मैं वह स्वयं हूँ| हर ओर परमात्मा ही परमात्मा है| उस अज्ञात परमात्मा को अपने से एक समझते हुए ही उससे पूर्ण प्रेम करना होगा| अन्य कोई मार्ग नहीं है|
ॐ तत्सत्| ॐ ॐ ॐ ||

अब भारत को जागृत होना ही होगा .....

अब भारत को जागृत होना ही होगा .....
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अब समय आ गया है, भारतवर्ष को अब जागृत होना ही होगा|
बहुत हानि हो चुकी है और हो रही है| भारतवर्ष की अस्मिता पर चारों और से बड़े भयानक और मर्मान्तक प्रहार हो रहे हैं, पर भारत में जागृति आ रही है और लोग समझने लगे हैं|
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भारत पर सबसे बड़ा खतरा धर्मनिरपेक्षतावाद यानि सेकुलरिज्म से है| यह भारत को निरंतर खोखला कर रहा है| सेकुलरिज्म के नाम पर भारत की अस्मिता को मिटाया जा रहा है| इस विषय पर बहुत अधिक लिखा जा चुका है अतः और नहीं लिखूंगा|
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दूसरा खतरा सरकारी जातिवाद से है| भारत में जातिप्रथा अब तक समाप्त हो गयी होती पर सरकारी नीतियों से जातिवाद जीवित है| जातिगत आरक्षण और हर व्यक्ति के सरकारी कागजों पर अपनी जाति लिखने की बाध्यता के कारण जातिप्रथा जीवित है| यदि सरकारी कागजों पर जाति के उल्लेख पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाए और जातिगत आरक्षण समाप्त कर दिया जाए तो जातिप्रथा स्वतः ही समाप्त हो जायेगी|
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भारत की वर्त्तमान धर्मनिरपेक्ष शिक्षा व्यवस्था लोगों को चरित्रवान नहीं बनाती| विद्या के नाम पर अविद्या का प्रसार हो रहा है| जीवन के उच्चतर मूल्य समाप्त हो रहे हैं| जीवन का उद्देश्य मात्र रुपया कमाना और भोग-विलास की सामग्री एकत्र करना ही रह गया है|
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जो तथाकथित अल्पसंख्यक हैं वे तो अपने धर्म और संस्कृति की शिक्षा दे सकते हैं, पर हिन्दुओं को यह अधिकार नहीं है| हिंदुत्व यानी इस राष्ट्र की अस्मिता पर कोई कुछ कहना चाहे तो उसे साम्प्रदायिक कह कर नीचा दिखा दिया जाता है, और अन्य कोई कुछ भी अनाप-शनाप कहे तो उसे विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहा जाता है|
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पश्चिमी देश भी भारत को एक बाज़ार मात्र समझते हैं| अब पहली बार भारत में एक राष्ट्रवादी सरकार आई है और भारत की वर्त्तमान विदेश नीति के अच्छे परिणाम आ रहे हैं| भारतीयों का स्वाभिमान भी बढ़ा है|
पूर्व में भारत पर पाकिस्तान के जितने भी आक्रमण हुए वे सब अमेरिका के संकेत पर ही हुए थे| अमेरिका का सदा प्रयास रहता था कि भारत की सरकारें सदा अमेरिका की पिछलग्गू ही रहें| पर पहली बार बराबरी के आधार पर समझौते हो रहे हैं|
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भारत की अस्मिता हिंदुत्व है जिसे कमजोर करने के लिए भारत की धार्मिक संस्थाओं पर भी विदेशी शक्तियाँ अधिकार कर रही हैं| संस्कृत का प्रयोग तो समाप्तप्राय किया जा चुका है| भारतीय संस्कृति को नष्ट करने का पूरा प्रयास किया जा रहा है| संस्कृति के नाम पर नाच-गाने परोसे जा रहे हैं| क्या हमारी संस्कृति नाचने-गाने वालों की ही है?
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विदेशी चर्च और इटली का माफिया भारत को नष्ट करने के पूरे हथकंडे अपना रहा है| माओवादियों को भी धन और शस्त्र भारत में विदेशी चर्चों से ही प्राप्त होता है| ये माओवादी और मानवाधिकारवादी अमेरिका और पश्चिमी देशों के ही शस्त्र हैं| भारत की शिक्षा और कृषि व्यवस्था में सुधार करने का ये सदा विरोध करते रहेंगे|
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भारत पर अगला सबसे बड़ा खतरा जेहाद की अवधारणा से है| "गजवा-ए-हिन्द" की नीति के अनुसार अल-कायदा के पश्चात इस्लामिक स्टेट (पूर्व नाम ... इस्लामिक स्टेट ऑफ़ इराक एंड सीरिया) की भी योजना भारत पर अधिकार कर शरिया कानून लागु करने और इसको खुरासान नामक देश बनाने की है जहाँ किसी भी हिन्दू के लिए कोई स्थान नहीं होगा| या तो उसको इस्लाम कबूलना होगा या मृत्यु को चुनना होगा| पकिस्तान का तो जन्म ही भारत के प्रति घृणा के आधार पर हुआ है| पकिस्तान का जब तक अस्तित्व है वह कभी भारत का मित्र नहीं हो सकता| जेहादी शक्तियों के पास भारत को नष्ट करने की पूरी क्षमता है, जिनका प्रतिकार भारत को करना ही होगा|
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भारत की सैन्य शक्ति जनसंख्या और क्षेत्रफल के अनुपात में बहुत कम है|
भारत के पास चीन के बराबर सेना तो होनी ही चाहिए| हम शक्तिशाली होंगे तो हमारी ओर आँख उठाकर देखने का किसी में साहस नहीं होगा|
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पर मुझे लगता है कि भारत का अब और पतन नहीं होगा| एक प्रबल आधात्मिक शक्ति का जागरण हो रहा है जो भारत का उत्थान करेगी| सभी असत्य और अन्धकार की आसुरी शक्तियों का नाश होगा और भारत माँ निकट भविष्य में ही अपने द्विगुणित परम वैभव के साथ अखंडता के सिंहासन पर विराजमान होगी|
भारत एक आध्यात्मिक धर्म सापेक्ष राष्ट्र के रूप में उभरेगा|
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ॐ तत्सत् | जय जननी जय माँ | ॐ नमः शिवाय ! ॐ ॐ ॐ !!