Friday, 27 December 2019

हमारे गरीब और लाचार हिंदुओं का धर्म-परिवर्तन मत करो ....

हे ईसाई धर्म प्रचारको, आप लोग अपने मत में आस्था रखो पर हमारे गरीब और लाचार हिंदुओं का धर्म-परिवर्तन मत करो| हमारे सनातन धर्म की निंदा और हम पर झूठे दोषारोपण मत करो|
.
क्राइस्ट एक चेतना है -- श्रीकृष्ण चैतन्य या कूटस्थ चैतन्य| ईश्वर को प्राप्त करना हम सब का जन्मसिद्ध अधिकार है| सभी प्राणी ईश्वर की संतान हैं| जन्म से कोई भी पापी नहीं है| सभी अमृतपुत्र हैं परमात्मा के| मनुष्य को पापी कहना सबसे बड़ा पाप है| अपने पूर्ण ह्रदय से परमात्मा को प्यार करो|
सभी जीसस क्राइस्ट में आस्था वालों को क्रिसमस की शुभ कामनाएँ|
ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२४ दिसंबर २०१९

मैं एक सलिल-बिन्दु हूँ तो आप महासागर हो -----

मैं एक सलिल-बिन्दु हूँ तो आप महासागर हो -----
.
मैं नहीं चाहता कि मैं किसी पर भार बनूँ ..... न तो जीवन में और न ही मृत्यु में| मैं नित्य मुक्त हूँ| मेरे परमप्रिय परमात्मा की इच्छा ही मेरा जीवन है| मेरा आदि, अंत और मध्य ..... सब कुछ परमात्मा स्वयं हैं| यह शरीर-महाराज रूपी पिंड भी परमात्मा को अर्पित है| मेरे सारे बुरे-अच्छे कर्मफल, पाप-पुण्य, और सारे कर्म परमात्मा को अर्पित हैं| मुझे कोई उद्धार नहीं चाहिए| उद्धार तो कभी का हो चुका है| कोई किसी भी तरह की मुक्ति भी नहीं चाहिए, क्योंकि मैं तो बहुत पहिले से ही नित्यमुक्त हूँ|
.
गीता में भगवान कहते हैं .....
"उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्| आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः||६:५||
अर्थात मनुष्य को अपने द्वारा अपना उद्धार करना चाहिये और अपना अध: पतन नहीं करना चाहिये; क्योंकि आत्मा ही आत्मा का मित्र है और आत्मा (मनुष्य स्वयं) ही आत्मा का (अपना) शत्रु है||
.
श्रुति भगवती कहती है ..... "एको हंसो भुवनस्यास्य मध्ये स एवाग्नि: सलिले संनिविष्ट:| तमेव विदित्वाति मृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेSयनाय||"
इस ब्रह्मांड के मध्य में जो एक ..... >>> "हंसः" <<< यानि एक प्रकाशस्वरूप परमात्मा परिपूर्ण है; जल में स्थितअग्नि: है| उसे जानकर ही (मनुष्य) मृत्यु रूप संसार से सर्वथा पार हो जाता है| दिव्य परमधाम की प्राप्ति के लिए अन्य मार्ग नही है||
(यह संभवतः अजपा-जप की साधना है जिसका निर्देश कृष्ण यजुर्वेद के श्वेताश्वतरोपनिषद में दिया हुआ है)
.
गुरुकृपा से इस सत्य को को समझते हुए भी यदि मैं अपने बिलकुल समक्ष परमात्मा को समर्पित न हो सकूँ तो मेरा जैसा अभागा अन्य कोई नहीं हो सकता| हे प्रभु, मैं तो निमित्तमात्र आप का एक उपकरण हूँ| इसमें जो प्राण, ऊर्जा, स्पंदन, आवृति और गति है, वह तो आप स्वयं ही हैं| मैं एक सलिल-बिन्दु हूँ तो आप महासागर हो| मैं जो कुछ भी हूँ वह आप ही हो| ॐ ॐ ॐ ||
ॐ तत्सत् |
कृपा शंकर
२३ दिसंबर २०१९

जीसस क्राइस्ट का जन्मदिन 25 दिसंबर को ही क्यों मनाया जाता है? ....।

जीसस क्राइस्ट का जन्मदिन 25 दिसंबर को ही क्यों मनाया जाता है?
.
जीसस क्राइस्ट के जन्म दिवस का कोई प्रमाण नहीं है, बाइबल की किसी भी पुस्तक में उनके जन्मदिवस का उल्लेख नहीं है| ईसा की तीसरी शताब्दी तक जीसस का जन्मदिवस नहीं मनाया जाता था| जहाँ तक प्रमाण मिलते हैं 336 AD से इसकी मान्यता के पीछे रोमन सम्राट कोन्स्टेंटाइन द ग्रेट की भूमिका है| उनका जन्म 27 फरवरी 272 AD को सर्बिया में हुआ था, और उनकी मृत्यु 22 मई 337 AD को निकोमीडिया में हुई| वे सूर्य के उपासक थे और जिस मत को मानते थे उसे Pagan कहा जाता था जिसका अर्थ है 'मूर्तिपूजक'| उन्होने ईसाई मत का प्रयोग अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए किया, और कोन्स्टेंटिनपोल (कुस्तुनतुनिया) (वर्तमान इस्तांबूल जो तुर्की में है) को 324 AD में बसाया| वे पहले रोमन शासक थे जिन्हें ईसाई बनाया गया था| 'दा विंसी कोड' के अनुसार जब वे मर रहे थे और अपनी मृत्यु शैया पर असहाय थे तब पादरियों ने बलात् उन का बपतिस्मा कर दिया| उन दिनों पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में 24 दिसंबर वर्ष का सबसे छोटा दिन होता था (अब 21दिसंबर), और 25 दिसंबर (अब 22 दिसंबर) से दिन बड़े होने प्रारम्भ हो जाते थे| सूर्योपासक होने के नाते कोन्स्टेंटाइन द ग्रेट ने यह तय किया कि 25 दिसंबर को ही जीसस क्राइस्ट का जन्मदिन मनाया जाये क्योंकि 25 दिसंबर से बड़े दिन होने प्रारम्भ हो जाते हैं| तभी से 25 दिसंबर को क्रिसमिस मनाई जाती है|
.
25 दिसंबर के बारे में दूसरी मान्यता यह है कि उस दिन रोम के मूर्तिपूजक श्रद्धालु लोग 'शनि' (Saturn) नाम के देवता की आराधना करते थे| शनि को कृषि का देवता माना जाता था| उसी दिन फारस के लोग "मित्र" (Mithra) नाम के देवता की आराधना करते थे जिसे प्रकाश का देवता माना जाता था| अतः तत्कालीन पादरियों ने यह तय किया इसी दिन को यदि जीसस का जन्मदिन भी मनाया जाये तो रोमन और फारसी लोग इसे तुरंत स्वीकार कर लेंगे| इस आधार पर ईसाईयत को रोम का आधिकारिक मत और 25 दिसम्बर को आधिकारिक रूप से जीसस क्राइस्ट का जन्म दिन मनाया जाने लगा|
.
संयुक्त राज्य अमेरिका में सन 1870 ई.तक क्रिसमिस को एक ब्रिटिश परंपरा मान कर नहीं मनाया जाता था| सन 1870 ई.से इसे आधिकारिक रूप से मनाया जाने लगा| 24 दिसंबर की पूरी रात श्रद्धालु लोग जागकर क्रिसमस के भजन गाते हैं जिन्हें Christmas carols कहते हैं| स्पेन और पुर्तगाल की परंपरा में इसे नाच गा कर मनाते हैं| भारत में पुर्तगालियों का प्रभाव रोमन कैथॉलिकों पर अधिक है विशेषकर गोआ और मुंबई में| इसलिए इस त्योहार को शराब पी कर और नाच गा कर मनाया जाता है| 25 दिसंबर को क्रिसमस की पार्टी में टर्की नाम के एक पक्षी का मांस और शराब परोसी जाती है| इस दिन एक-दूसरे को खूब उपहार भी दिये जाते हैं| सैंटा क्लोज वाली कहानी तो कपोल कल्पित और बच्चों को बहलाने वाली है| यह स्कैंडेनेवियन देशों जहाँ बर्फ खूब पड़ती है से आरंभ हुई परंपरा है|
.
मेरी मान्यता :--- मेरी मान्यता है कि भगवान के भजन का कोई न कोई तो बहाना चाहिए ही| मैं विशुद्ध शाकाहारी हूँ और कोई नशा नहीं करता इसलिए कोई नशा या मांसाहार का तो प्रश्न ही नहीं है| इस दिन यथासंभव भगवान का खूब ध्यान और भजन करेंगे| मैं मानता हूँ कि जीसस क्राइस्ट ने भारत में रहकर शिक्षा ग्रहण की और सनातन धर्म की शिक्षाओं का ही फिलिस्तीन में प्रचार किया जहाँ आध्यात्मिक रूप से अज्ञान रूपी अंधकार ही अंधकार था| उन की शिक्षायें समय के साथ विकृत हो गईं| क्रिश्चियनिटी वास्तव में कृष्णनीति है| जब उन्हें शूली पर चढ़ाया गया तब वे मरे नहीं थे| उन्हें बचा लिया गया और वे अपने कबीले के साथ भारत आ गये| कश्मीर के पहलगाँव में उन्होने देह-त्याग किया| उनकी माँ मरियम का देहांत पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के मरी नाम के स्थान पर हुआ था जहाँ उन की कब्र भी है और उन के नाम पर ही उस स्थान का नाम 'मरी' है| 'दा विंसी कोड' के अनुसार उन की पत्नी मार्था और पुत्री सारा को यहूदी लोग सुरक्षित रूप से फ्रांस ले गये थे, जहाँ उन की मजार की एक संप्रदाय विशेष ने रक्षा की जिन्हें बाद में एक दूसरे संप्रदाय ने मरवा दिया|
.
सार की बात यह है कि उन्होने भगवान श्रीकृष्ण की ही शिक्षा का ही प्रसार किया| इस दिन मेरे अनेक मित्र 12 घंटे भगवान का ध्यान करेंगे| अतः मैं भी पूरा प्रयास करूंगा उनका साथ देने में| आप सब मुझे अपना आशीर्वाद प्रदान करें|
"वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् | देवकीपरमानन्दं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् ||"
"वंशी विभूषित करा नवनीर दाभात्, पीताम्बरा दरुण बिंब फला धरोष्ठात् |
पूर्णेन्दु सुन्दर मुखादर बिंदु नेत्रात्, कृष्णात परम किमपि तत्व अहं न जानि ||"
"ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणत क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम:||"
"ॐ नमो ब्रह्मण्य देवाय गो ब्राह्मण हिताय च, जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो नमः||"
"मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम् । यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्दमाधवम्||"
"कस्तुरी तिलकम् ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम् ,
नासाग्रे वरमौक्तिकम् करतले, वेणु करे कंकणम् |
सर्वांगे हरिचन्दनम् सुललितम्, कंठे च मुक्तावलि |
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी ||"
"ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||"
.
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ दिसंबर २०१९

देश प्रथम, देश है तो सब कुछ है, देश नहीं तो कुछ भी नहीं ....

देश प्रथम| देश है तो सब कुछ है, देश नहीं तो कुछ भी नहीं| हम अपनी अस्मिता की रक्षा करें| भारत विजयी होगा| धर्म की पुनर्स्थापना होगी| असत्य और अंधकार की शक्तियों का पराभव होगा| हम जहाँ भी हैं, अपना सर्वश्रेष्ठ करें| राष्ट्र के प्रति अपना दायित्व न भूलें| भारत माता की जय|
जब तक इस शरीर को धारण कर रखा है तब तक मैं सर्वप्रथम भारतवर्ष का एक विचारशील नागरिक हूँ| भारतवर्ष में ही नहीं पूरे विश्व में होने वाली हर घटना का मुझ पर ही नहीं सब पर प्रभाव पड़ता है| आध्यात्म के नाम पर भौतिक जगत से मैं तटस्थ नहीं रह सकता| यदि भारत, भारत ही नहीं रहेगा तब धर्म भी नहीं रहेगा, श्रुतियाँ-स्मृतियाँ भी नहीं रहेंगी, यानि वेद आदि ग्रन्थ भी नष्ट हो जायेंगे, साधू-संत भी नहीं रहेंगे, सदाचार भी नहीं रहेगा और देश की अस्मिता ही नष्ट हो जायेगी| इसी तरह यदि धर्म ही नहीं रहा तो भारत भी नहीं रहेगा| दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं| अतः राष्ट्रहित हमारा सर्वोपरि दायित्व है| धर्म के बिना राष्ट्र नहीं है, और राष्ट्र के बिना धर्म नहीं है| भारतवर्ष की अस्मिता सनातन धर्म है, वही इसकी रक्षा कर सकता है| भारतवर्ष की रक्षा न तो मार्क्सवाद कर सकता है, न समाजवाद, न धर्मनिर्पेक्षतावाद न सर्वधर्मसमभाववाद और न अल्पसंख्यकवाद| यदि सनातन धर्म ही नष्ट हो गया तो भारतवर्ष भी नष्ट हो जाएगा| भारत के बिना सनातन धर्म भी नहीं है, और सनातन धर्म के बिना भारत भी नहीं है| विश्व का भविष्य भारतवर्ष से है, और भारत का भविष्य सनातन धर्म से है| यदि सनातन धर्म ही नष्ट हो गया तो यह संसार भी आपस में मार-काट मचा कर नष्ट हो जायेगा|
कृपा शंकर
२१ दिसंबर २०१९

जीसस क्राइस्ट .... एक चेतना है .....

जहाँ आसुरी शक्तियाँ अपना तांडव कर रही है, वहीं समय के साथ बदली हुई परिस्थितियों में अब एक समय ऐसा भी आ गया है कि धीरे धीरे मनुष्य की चेतना ऊर्ध्वमुखी हो रही है| धीरे धीरे पूरे विश्व में जागरूक क्रिश्चियन मतावलंबी यानि जीसस क्राइस्ट के अनुयायी स्वेच्छा से सनातन धर्म का अनुसरण आरंभ कर देंगे| पश्चिमी जगत में करोड़ों लोग नित्य नियमित ध्यान साधना और प्राणायाम करने लगे हैं| लाखों लोग नित्य नियमित रूप से गीता का स्वाध्याय करते हैं| "कूटस्थ चैतन्य" या "श्रीकृष्ण चैतन्य" शब्द को "Christ Consciousness" के रूप में कहना बहुत लोकप्रिय हो रहा है| वास्तव में Christ किसी का नाम नहीं है, Christ का अर्थ है ...."अभिषेक", जिसका अभिषेक हुआ हो (anointed one)|
.
जीसस क्राइस्ट को मैं एक व्यक्ति नहीं, एक चेतना मानता हूँ जो वास्तव में
"श्रीकृष्ण चैतन्य" यानि "कूटस्थ चैतन्य" ही थी| उस चेतना की अनुभूति गहन ध्यान में होती है| वर्तमान ईसाई मत तो एक चर्चवाद है, जिस का क्राइस्ट से कोई लेनदेन नहीं है| अजपा-जप, आज्ञाचक्र और उस से ऊपर अनंत में असीम ज्योतिर्मय ब्रह्म के ध्यान, नादानुसंधान,और जपयोग से जिस चेतना का प्रादुर्भाव होता है वह "कूटस्थ चैतन्य" यानि "Christ Consciousness" है| यह चेतना ही भविष्य में मानवता को जोड़ेगी और विश्व को एक करेगी| संसार का बीज "कूटस्थ" है|
.
ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ दिसंबर २०१९

यह वसुंधरा न तो किसी की हुई है और न किसी की होगी .....

यह वसुंधरा न तो किसी की हुई है और न किसी की होगी .....
.
यह सृष्टि, यह संसार, यह वसुंधरा न तो किसी की हुई है और न कभी किसी की होगी| पता नहीं कितने ही बड़े-बड़े भूमिचोरों, आतताइयों, तस्करों और अन्यायी शासकों ने अपने आतंक, अत्याचार और कुटिलता से; व कितने ही चक्रवर्ती सम्राटों ने अपनी वीरता से इस वसुंधरा पर अपने अधिकार का प्रयास किया है| वसुंधरा तो वहीं है, पर वे अब कहाँ हैं? सब काल के गाल में समा गए| काल यानि मृत्यु पर विजय तो सिर्फ मृत्युंजयी परमशिव ही दिला सकते हैं जिन का कभी जन्म ही नहीं हुआ| ध्यान हम उन्हीं का करें जिन का कभी जन्म ही नहीं हुआ हो|
.
शाश्वत प्रश्न तो यह है कि हम कौन हैं, और कौन हमारा है? इन प्रश्नों पर अपनी पूरी चेतना से मैंने बहुत अधिक विचार किया है| जो दिखाई दे रहा है, वह ही सत्य नहीं है, हमारी दृष्टि-सीमा से परे भी अज्ञात बहुत कुछ है| पता नहीं कितने ही अंधकारमय, कितने ही ज्योतिर्मय और कितने ही हिरण्य लोक हैं| यह वसुंधरा तो इस भौतिक जगत में ही अति अकिंचन महत्वहीन है| इस भौतिक जगत से परे भी बहुत अधिक विशाल एक सूक्ष्म जगत है, उस से भी परे कारण जगत है और उस से भी परे हिरण्यलोक हैं| यह सृष्टि अनंत है| वर्षों पहिले की बात है| एक बार बैठे हुए मैं ध्यान कर रहा था कि अचानक ही चेतना इस शरीर से निकल कर एक अंधकारमय लोक में चली गई जहाँ सिर्फ अंधकार ही अंधकार था, कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था| एक अंधेरी सुरंग की तरह का खड़ा हुआ बहुत विशाल लोक था| ऐसा लग रहा था कि यहाँ और भी बहुत अधिक लोग हैं जो अत्यधिक कष्ट में हैं| कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था| अचानक ही किसी ने बहुत ही कड़क आवाज़ में कहा कि "तुम यहाँ कैसे आ गए? निकलो यहाँ से बाहर", फिर उस ने धक्का मार कर वहाँ से बलात् बाहर फेंक दिया| उसी क्षण बापस इस शरीर में आ गया| भगवान से प्रार्थना की कि ऐसा कोई अनुभव दुबारा न हो| फिर दुबारा कोई वैसा अनुभव नहीं हुआ और कभी होगा भी नहीं| ध्यान में जब चेतना एक अतिन्द्रीय अवस्था में थी तब दो-तीन बार सूक्ष्म जगत के कुछ महात्माओं ने अपना आशीर्वाद अवश्य दिया है| उन्हीं के आशीर्वाद से शक्तिपात की अनुभूति हुई और हृदय में भक्ति जागृत हुई| यह एक गोपनीय विषय है जिस पर एक अज्ञात प्रेरणावश चर्चा कर बैठा| अब और नहीं करूँगा| कोई मुझ से इस विषय पर चर्चा भी न करे| मैं कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करूंगा|
.
इस सृष्टि के पीछे एकमात्र सत्य सृष्टिकर्ता परमात्मा ही हमारे हो सकते हैं, अन्य कोई या कुछ भी नहीं| किसी की अपेक्षाओं की पूर्ति हम नहीं कर सकते, और न कोई हमारी अपेक्षाओं पर ही खरा उतर सकता है| परमात्मा की अनंतता ही हमारा अस्तित्व है और स्वयं परमात्मा ही हमारे हैं| अन्य कोई नहीं| उन परमात्मा को हम परमशिव, ब्रह्म, पारब्रह्म, नारायण, वासुदेव, विष्णु, भगवान, आदि आदि किसी भी नाम से संबोधित करें, कोई फर्क नहीं पड़ता| एकमात्र सत्य वे ही हैं, बाकी सब मिथ्या है|
ॐ तत्सत् | ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ ||
१९ दिसंबर २०१९

परमात्मा की उपस्थिती का आभास ही आनंद है .....

परमात्मा की उपस्थिती का आभास ही आनंद है .....
जिस आनंद को हम अपने से बाहर खोज रहे हैं, वह आनंद तो हम स्वयं हैं| संसार में हम विषयभोगों में, अभिमान में, और इच्छाओं की पूर्ति में,सुख की खोज करते हैं, पर उस से तृप्ति और संतोष नहीं मिलता| संसार में सुख की खोज अनजाने में आनंद की ही खोज है|
भगवान की अनन्य भक्ति और समर्पण से ही हमें आनंद प्राप्त हो सकता है| अन्य कोई स्त्रोत नहीं है| सार की बात है कि आनंद कुछ पाना नहीं, बल्कि स्वयं का होना है| हम आनंद को कहीं से पा नहीं सकते, स्वयं आनंदमय हो सकते हैं| हमारा वास्तविक अस्तित्व ही आनंद है|
ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः| ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !
कृपा शंकर
१७ दिसंबर २०१९

जीवन में संतुष्टि और तृप्ति कैसे मिले? ....

जीवन में संतुष्टि और तृप्ति कैसे मिले? जीवन में प्राप्त करने योग्य क्या है? जीवन में क्या करें और क्या न करें? ......
.
इन जैसे प्रश्नों ने बहुत उलझाये रखा है| इन सब का उत्तर भगवान से यही मिला है कि अपना छोटे से छोटा हर काम खूब मन लगाकर करो, किसी भी काम को आधे-अधूरे मन से मत करो| हर काम अपनी सर्वश्रेष्ठ लगन से और अपनी पूर्णता से करो|
.
इससे जीवन में मुझे वास्तव में बड़ी संतुष्टि और तृप्ति मिली है| जो काम आधे-अधूरे मन से किए, वे सब इस जीवन में असंतोष और कुंठा के कारण बने| गीता के कुछ श्लोकों ने जीवन को नई दिशा दी और उत्साह बनाए रखा| जीवन की हर समस्या का समाधान और हर प्रश्न का उत्तर मुझे गीता में मिला|
.
"मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि| अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि|१८:५८||
"नेहाभिक्रम-नाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते| स्वल्पम् अप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्||२:४०||"
"योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय| सिद्धय्-असिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते||२:४८||"
.
भगवान ने इतनी बड़ी बात कह दी है, अब और कुछ है ही नहीं| भगवान "हैं", यहीं "हैं", सर्वत्र "हैं", इसी समय "हैं", सर्वदा "हैं", और वे ही वे "हैं"| अन्य कोई है ही नहीं| पृथकता का बोध एक भ्रम है|
ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ || ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||
कृपा शंकर
१६ दिसंबर २०१९

१९७१ में हम युद्ध में विजयी रहे पर कूटनीति में हार गए ....

हम युद्ध में विजयी रहे पर कूटनीति में हार गए| हम विजयी हैं और सदा विजयी ही रहेंगे -----
.
आज एक गर्व का दिन है| आज से 48 वर्ष पूर्व 16 दिसम्बर 1971 को भारत ने पाकिस्तान को पूर्ण रूप से हराकर पाकिस्तान के 93,000 सैनिकों को बंदी बना कर बांग्लादेश का निर्माण किया था| इसी दिन की स्मृति में विजय दिवस मनाया जाता है|
हम युद्ध में जीते तो अवश्य पर वार्ता की टेबल पर पाकिस्तान की कूटनीति से हार गए| पाकिस्तान अपने सैनिकों के बदले कुछ भी देने को तैयार था| हम उनके बदले पाक-अधिकृत कश्मीर का सौदा कर सकते थे, लाहोर भी ले सकते थे| पर अपने भोलेपन (या मूर्खता) के कारण अपने लगभग 55 युद्धबंदियों को भी पाकिस्तान से नहीं छुड़ा पाये और पाकिस्तान के 93,000 सैनिकों को सही सलामत बिना एक भी खरौंच भी आए छोड़कर पाकिस्तान पहुंचा दिया| भारतीय युद्धबंदियों को पाकिस्तान ने बहुत ही यातना दे देकर मार दिया| यह हमारी कूटनीतिक पराजय थी|
फिर भी यह हमारी सैनिक विजय थी जिस पर हमें गर्व है| उस युद्ध में मारे गए सभी भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि | जो भी उस समय के पूर्व सैनिक जीवित हैं, उन सब को नमन | भारत माता की जय |
१६ दिसंबर २०१९

हमारे हृदय के एकमात्र राजा भगवान श्रीराम हैं ....

इस राष्ट्र भारतवर्ष में धर्म रूपी बैल पर बैठकर भगवान शिव ही विचरण करेंगे, भगवान श्रीराम के धनुष की ही टंकार सुनेगी और नवचेतना को जागृत करने हेतु भगवान श्रीकृष्ण की ही बांसुरी बजेगी| सनातन धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा होगी व असत्य और अन्धकार की शक्तियों का निश्चित रूप से पराभव होगा|
हमारे हृदय के एकमात्र राजा भगवान श्रीराम हैं| उन्होंने ही सदा हमारी ह्रदय भूमि पर राज्य किया है, और सदा वे ही हमारे राजा रहेंगे| अन्य कोई हमारा राजा नहीं हो सकता| हमारे ह्रदय की एकमात्र महारानी सीता जी हैं| वे हमारे ह्रदय की अहैतुकी परम प्रेमरूपा भक्ति हैं| वे ही हमारी गति हैं| वे ही सब भेदों को नष्ट कर हमें राम से मिला सकती हैं, अन्य किसी में ऐसा सामर्थ्य नहीं है| हमारे शत्रु कहीं बाहर नहीं, हमारे भीतर ही अवचेतन मन में छिपे बैठे विषय-वासना रुपी रावण और प्रमाद व दीर्घसूत्रता रूपी महिषासुर हैं|
राम से एकाकार होने तक इस ह्रदय की प्रचंड अग्नि का दाह नहीं मिटेगा, और राम से पृथक होने की यह घनीभूत पीड़ा हर समय निरंतर दग्ध करती रहेगी| राम ही हमारे अस्तित्व हैं और उनसे एक हुए बिना इस भटकाव का अंत नहीं होगा| उन से जुड़कर ही हमारी वेदना का अंत होगा|
अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए हमें स्वयं को भी और निर्वीर्य हो चुके असंगठित बिखरे हुए बलहीन समाज को भी संगठित व शक्तिशाली बनाना होगा| इसके लिए सूक्ष्म दैवीय शक्तियों की सहायता भी लेनी होगी| सिर्फ जयजयकार करने से काम नहीं चलेगा| निज जीवन में देवत्व को व्यक्त करना होगा| तभी हम स्वयं की, समाज की और धर्म की रक्षा कर सकेंगे|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१५ दिसंबर २०१९

भगवान स्वयं हम सब के समक्ष खड़े हैं, कहीं दूर नहीं हैं .....

भगवान स्वयं हम सब के समक्ष खड़े हैं, कहीं दूर नहीं हैं .....
.
हम जहाँ हैं वहीं वृंदावन है, ठाकुर जी भी दूर नहीं, हमारे समक्ष ही खड़े हैं| इस हृदय की भावभूमि में जब से वे आए हैं, तब से स्वयं ही आड़े होकर फँस गए हैं| अब वे बाहर नहीं निकल सकते| कभी निकलेंगे भी नहीं| यही उनका आनंद है जिसमें हमारी भी प्रसन्नता है|
हमारे समक्ष भगवान स्वयं त्रिभंग मुद्रा में खड़े हैं| उन्होने कहीं भी अन्यत्र जाने के हमारे सारे मार्ग रोक दिये हैं| जंगल में यदि शेर सामने से आ जाये तो हम क्या कर सकते हैं? कुछ भी नहीं! जो करना है वह शेर ही करेगा| ऐसे ही जब भगवान स्वयं रास्ता रोक कर सामने खड़े हैं तो अन्यत्र जाएँ भी कहाँ? सर्वत्र तो वे ही वे हैं| उनकी यह त्रिभंग मुद्रा हमारे अज्ञान की तीन ग्रंथियों (ब्रह्म ग्रंथि, विष्णु ग्रंथि और रुद्र ग्रंथि) के भेदन की प्रतीक है| द्वादशाक्षरी भागवत मंत्र की एक विशिष्ट विधि से षड़चक्रों में जाप से इन ग्रंथियों का भेदन होता है| उनका एक नाम त्रिभंग-मुरारी है| मुर नामक असुर के वे अरि हैं इसलिए वे मुरारी हैं| यह मुर कौन है? हमारा आसुरी भाव और अज्ञान ही मुरासुर है जिसका नाश भगवान स्वयं ही कर सकते हैं| अपना परम प्रेम भगवान को दें और स्वयं को उन्हें समर्पित कर दें| भगवान बहुत भोले हैं| उन्हें ठगने का प्रयास न करें, अन्यथा वे चले जाएँगे| फिर वे ठगगुरु बन कर आएंगे और हमारा सब कुछ ठग लेंगे|
"ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्| मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः||४:११||"
उनका आदेश है .....
"मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु| मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः||९:३४||"
"मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु| मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे||१८:६५||"
.
हे प्रभु, आपकी जय हो .....
"कस्माच्च ते न नमेरन्महात्मन् गरीयसे ब्रह्मणोऽप्यादिकर्त्रे|
अनन्त देवेश जगन्निवास त्वमक्षरं सदसत्तत्परं यत्||११.३७||"
"त्वमादिदेवः पुरुषः पुराण-स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्|
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप||११.३८||"
"वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च|
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्त्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते||११.३९||"
"नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व|
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं-सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः||११.४०||"
.
ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै । तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
.
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ दिसंबर २०१९

हिन्दू कौन है? .....

(प्रश्न). हिन्दू कौन है? .....
(उत्तर). मेरी व्यक्तिगत निजी मान्यता है कि जिस भी व्यक्ति के अन्तःकरण में परमात्मा के प्रति प्रेम और श्रद्धा-विश्वास है, जो आत्मा की शाश्वतता, पुनर्जन्म, कर्मफलों के सिद्धान्त, व ईश्वर के अवतारों में आस्था रखता है, वह हिन्दू है, चाहे वह विश्व के किसी भी भाग में रहता है और उसकी राष्ट्रीयता कुछ भी है|
.
क्या हिन्दू माँ-बाप के घर जन्म लेने से ही हम हिंदु हैं? क्या दीक्षा लेकर ही कोई हिन्दू हो सकता है? या किसी दीक्षा की आवश्यकता ही नहीं है? इन सब प्रश्नों का उत्तर देना मेरे बौद्धिक सामर्थ्य से परे है| हिन्दू एक बहुत ही व्यापक नाम है जो विदेशियों ने दिया है| भारत के प्राचीन शास्त्रों में केवल धर्म और अधर्म का ही नाम है| धर्म को शास्त्रों ने परिभाषित किया है और धर्म के लक्षण बताए गए हैं, पर कहीं भी उसे सीमित नहीं किया गया है| धर्म को सीमाओं में नहीं बांध सकते| इस विषय पर अनेक स्वनामधन्य मनीषियों द्वारा इतना अधिक लिखा गया है कि उसका एक लाखवाँ भाग भी मैं नहीं लिख सकता| अतः यहाँ मैं अपनी निजी मान्यता की ही बात कर रहा हूँ|
.
यह मेरी अपनी निजी दृढ़ मान्यता है इसलिए किसी विवाद का प्रश्न ही नहीं है| मैं अपना मार्गदर्शन गीता से लेता हूँ| वेदों को समझना मेरी बौद्धिक क्षमता से परे है| श्रुति-स्मृतियों व आगम शास्त्रों का मुझे कोई ज्ञान नहीं है| जो भी मेरा हृदय और अंतरात्मा कहती है उसे ही मैं मानता हूँ|
.
आप सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ हैं| आप सब को नमन|
ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ दिसंबर २०१९

जीवन का एक अति गूढ रहस्य ......

जीवन का एक अति गूढ रहस्य ......
.
जब हम साँस लेते हैं तब यह सारी सृष्टि .... ये सारे प्राणी हमारे साथ ही साँस लेते हैं| सत्य तो यह है कि स्वयं सृष्टिकर्ता परमात्मा ही ये सांसें ले रहे हैं| उनसे पृथकता का आभास एक भ्रम है| वास्तव में हम यह मनुष्य देह नहीं, परमात्मा की अनंत सर्वव्यापकता हैं| वे ही सर्वस्व हैं| यह देह तो उनका उपकरण मात्र एक वाहन है जो इस जीवात्मा को अपनी लोकयात्रा के लिए दिया हुआ है| यह सारी सृष्टि, परमात्मा का ही एक संकल्प है| उन्हीं से इस सृष्टि का उद्भव है, वे ही जीवनाधार हैं, और उन्हीं में यह सृष्टि बापस विलीन हो जाएगी|
.
इस सूक्ष्म देह के ब्रह्मरंध्र से परे जो अनंत महाकाश है, जिसमें समस्त सृष्टि समाहित है और जो सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त है, उस परम चैतन्य को मैं परमशिव कहता हूँ| वे ही वासुदेव हैं, वे ही विष्णु हैं, वे ही नारायण, और वे ही पारब्रह्म परमात्मा हैं| उन परमशिव की जिस शक्ति ने, इस ब्रह्मांड, यानि इस सारी सृष्टि को धारण कर रखा है, और जो इस सारी सृष्टि को संचालित कर रही हैं, वे पराशक्ति भगवती जगन्माता हैं| यह सारा अनंताकाश परम ज्योतिर्मय है, उसमें कहीं कोई अंधकार नहीं है| वह अनंत प्रकाश और उसकी शाश्वत अनंतता ही हम हैं, यह नश्वर देह नहीं|
.
प्राण-तत्व यानि प्राण-ऊर्जा के रूप में जगन्माता ब्रह्मरंध्र से सहस्त्रार होते हुए सुषुम्ना पथ से सब चक्रों को जीवंत करते हुए नीचे उतरती है| उनके स्पर्श से सब चक्र मंत्रमय हो जाते हैं, और उन चक्रों में जागृत ऊर्जा ही इस देह को जीवंत रखती है| मूलाधार को स्पर्श करते हुए वे बापस इसी पथ से बापस लौट जाती हैं| मेरी अनुभूति यह है कि मूलाधार के त्रिकोण पर एक शिवलिंग भी है जिसका स्पर्श कर और भी अधिक घनीभूत होकर ऊपर यह प्राणऊर्जा ऊपर उठती है| इसका घनीभूत रूप ही कुंडलिनी महाशक्ति है|
.
इस प्राणऊर्जा के विचरण और स्पंदन की प्रतिक्रिया से ही हमारी साँसे चल रही हैं| यह अपने आप में एक बहुत बड़ा विज्ञान है जो एक न एक दिन भारत की पाठ्य पुस्तकों में भी पढ़ाया जाएगा|
.
जो मुमुक्षु जीवन में परमात्मा को पाना चाहते हैं, उन्हें जब यह बात समझ में आ जाये तभी से अपना अधिक से अधिक समय परमात्मा के ध्यान में ही बिताना चाहिए| संसार में अधिकांश परिवारों में आध्यात्मिक रूप से अच्छा वातावरण नहीं होता| घर-परिवार के सदस्यों के नकारात्मक विचार अपना प्रभाव डाले बिना नहीं रहते| मेरी सलाह तो यह है कि विवाह और घर-गृहस्थी के बंधन में भी तभी पड़ना चाहिए जब होने वाले जीवन साथी के विचारों और सोच में साम्यता हो| विपरीत सेक्स का आकर्षण सबसे अधिक भटकाने वाला होता है| जिसने राग-द्वेष, लोभ व अहंकार को जीत लिया है वह वीतराग व्यक्ति ही विश्व-विजयी है| गीता में तो भगवान श्रीकृष्ण ने वीतरागता से भी आगे की बात कही है| सभी का कल्याण हो|
ॐ तत्सत !
कृपा शंकर
10 दिसंबर 2019