Friday 27 December 2019

देश प्रथम, देश है तो सब कुछ है, देश नहीं तो कुछ भी नहीं ....

देश प्रथम| देश है तो सब कुछ है, देश नहीं तो कुछ भी नहीं| हम अपनी अस्मिता की रक्षा करें| भारत विजयी होगा| धर्म की पुनर्स्थापना होगी| असत्य और अंधकार की शक्तियों का पराभव होगा| हम जहाँ भी हैं, अपना सर्वश्रेष्ठ करें| राष्ट्र के प्रति अपना दायित्व न भूलें| भारत माता की जय|
जब तक इस शरीर को धारण कर रखा है तब तक मैं सर्वप्रथम भारतवर्ष का एक विचारशील नागरिक हूँ| भारतवर्ष में ही नहीं पूरे विश्व में होने वाली हर घटना का मुझ पर ही नहीं सब पर प्रभाव पड़ता है| आध्यात्म के नाम पर भौतिक जगत से मैं तटस्थ नहीं रह सकता| यदि भारत, भारत ही नहीं रहेगा तब धर्म भी नहीं रहेगा, श्रुतियाँ-स्मृतियाँ भी नहीं रहेंगी, यानि वेद आदि ग्रन्थ भी नष्ट हो जायेंगे, साधू-संत भी नहीं रहेंगे, सदाचार भी नहीं रहेगा और देश की अस्मिता ही नष्ट हो जायेगी| इसी तरह यदि धर्म ही नहीं रहा तो भारत भी नहीं रहेगा| दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं| अतः राष्ट्रहित हमारा सर्वोपरि दायित्व है| धर्म के बिना राष्ट्र नहीं है, और राष्ट्र के बिना धर्म नहीं है| भारतवर्ष की अस्मिता सनातन धर्म है, वही इसकी रक्षा कर सकता है| भारतवर्ष की रक्षा न तो मार्क्सवाद कर सकता है, न समाजवाद, न धर्मनिर्पेक्षतावाद न सर्वधर्मसमभाववाद और न अल्पसंख्यकवाद| यदि सनातन धर्म ही नष्ट हो गया तो भारतवर्ष भी नष्ट हो जाएगा| भारत के बिना सनातन धर्म भी नहीं है, और सनातन धर्म के बिना भारत भी नहीं है| विश्व का भविष्य भारतवर्ष से है, और भारत का भविष्य सनातन धर्म से है| यदि सनातन धर्म ही नष्ट हो गया तो यह संसार भी आपस में मार-काट मचा कर नष्ट हो जायेगा|
कृपा शंकर
२१ दिसंबर २०१९

1 comment:

  1. वर्तमान परिस्थितियों में जब हमारे अस्तित्व और अस्मिता पर ही मर्मांतक प्रहार हो रहे हैं तब हम सब अपनी सारी आध्यात्मिक साधनायें देश और धर्म की रक्षा के लिए ही करें| देश रहेगा तभी हम रहेंगे| देश ही नहीं रहा तो न तो हमारा धर्म रहेगा, न हमारा समाज, सब कुछ नष्ट हो जाएगा| भारत ही सनातन धर्म है, और सनातन धर्म ही भारत है| जीवन में अपना सर्वश्रेष्ठ करें और परमात्मा की चेतना में रहें| फिर जो भी होगा वह मंगलमय ही होगा| भारत कोई भूमि का टुकड़ा नहीं, साक्षात माता है|
    हम विजयी होंगे, क्योंकि .....
    "यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः| तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम||१८:७८||"

    ReplyDelete