Friday, 8 October 2021
आज के जमाने में हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष कौन हैं? ---
जो परमात्मा प्रकाश में हैं, वे ही अंधकार में हैं ---
भगवान ही एकमात्र सत्य हैं। जो परमात्मा प्रकाश में हैं, वे ही अंधकार में हैं। सुख-दुःख, पाप-पुण्य, धर्म-अधर्म -- सब उन्हीं के मन की कल्पना है। प्रकाश का अभाव ही अंधकार है, और अंधकार का अभाव ही प्रकाश। इस प्रकाश और अंधकार के खेल से ही यह सृष्टि चल रही है। प्रकाश का महत्व - अंधकार से है। अंधकार में ही तारे चमकते हैं। मनुष्य विवश है, परिस्थितियों का दास है। सब कुछ प्रकृति के वश में है; मनुष्य का लोभ और अहंकार ही बंधन है। लोभ और अहंकार से मुक्त व्यक्ति ही स्वतंत्र, धार्मिक और जीवनमुक्त है।
योगिराज श्री श्री श्याचरण लाहिड़ी महाशय की पुण्यतिथि ---
यहाँ कोई लघु मार्ग नहीं है ---
जब भूख लगती है तब भोजन स्वयं को करना पड़ता है, किसी दूसरे के भोजन करने से स्वयं का पेट नहीं भरता। वैसे ही ईश्वर-प्राप्ति के लिए साधना स्वयं को करनी पड़ती है, किसी दूसरे की साधना से स्वयं का कल्याण नहीं हो सकता। मनुष्य लघु मार्ग (Short cut) ढूँढता है, लेकिन यहाँ कोई लघु मार्ग नहीं है।
मनुष्य जीवन का सार भगवान की भक्ति में है ---
आये थे हरिः भजन को, ओटन लगे कपास ---
जिसकी जैसी श्रद्धा होती है, वह वैसा ही हो जाता है ---
योगीराज श्री श्री श्यामाचरण लाहिड़ी का जन्मदिवस ---
सत्य को जानने/समझने की प्रबल जिज्ञासा और निज जीवन में उसे अवतरित करने का अदम्य साहस, मनुष्य का सबसे बड़ा गुण है --
सत्य को जानने/समझने की प्रबल जिज्ञासा और निज जीवन में उसे अवतरित करने का अदम्य साहस, मनुष्य का सबसे बड़ा गुण है --
दिन का आरंभ, भगवान के ध्यान से करें ---
महासागर में जल की एक बूँद, महासागर से माँग ही क्या सकती है? और महासागर उसे दे ही क्या सकता है? ---
भगवान को मैं कैसे भूल सकता हूँ? ---
हम अपने अवचेतन मन में भगवान को प्रतिष्ठित कर लें ---
वेटिकन की अति गोपनीय, अति समृद्ध और अति कूट छद्म शाखा अंतर्राष्ट्रीय Penetration Wing, भारत की अस्मिता की सबसे बड़ी शत्रु है ---
सिर्फ दैवीय शक्तियों की कृपा से ही हम बचे हुये हैं ---
गांधीजी को 22 वर्षों के पश्चात ही गुस्सा क्यों आया? ---
सूत्रधार को नमन ! ---
सूत्रधार को नमन ! --- (संशोधित व पुनर्प्रेषित)
एक मार्मिक प्रार्थना हिन्दू समाज से ---
एक मार्मिक प्रार्थना हिन्दू समाज से ---
भगवान की उपासना -- हृदय की अभीप्सा है, आकांक्षा नहीं ---
भगवान की उपासना -- हृदय की अभीप्सा है, आकांक्षा नहीं ---
सत्यनिष्ठ होना ही सबसे बड़ी साधना है ---
८ अक्तूबर २०२१