कुछ वर्ष पूर्व मैंने लिखा था कि महिषासुर और रावण -- ये दोनों ही अमर और शाश्वत हैं, जिनके बिना सृष्टि नहीं चल सकती। मैं आज भी अपने विचारों पर दृढ़ हूँ। मुझे बहुत अच्छी तरह पता है कि ये दोनों अपने कुटुंब-कबीले के साथ कहाँ रहते हैं। मैं इन्हें बहुत अच्छी तरह जानता हूँ, और इन्हें कई बार देखा भी है। इन्होने मुझे बहुत अधिक और कई बार छला है, इसलिए इनसे बहुत अच्छी जान-पहिचान है। आजकल तो इनकी कृपा है इसलिए मुझसे दूर ही रहते हैं। सृष्टि को चलाने के लिए ये भगवान की विशेष रचना हैं जिन्हें कोई नहीं मार सकता, अन्यथा सृष्टि ही समाप्त हो जाएगी। साधना और भगवत्कृपा से उनका प्रभाव अवश्य कम किया जा सकता है, लेकिन बिलकुल समाप्त नहीं।
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हमारी काम-वासना, क्रोध, लोभ और अहंकार -- ही रावण है, जो हमारे अवचेतन मन में रहता है। प्रमाद और दीर्घसूत्रता (आलस्य और काम को आगे टालने की प्रवृति) महिषासुर हैं, यह भी हमारे अवचेतन मन में ही रहता है। दोनों आपस में एक-दूसरे के परममित्र हैं। इनके और भी बहुत सारे साथी हैं।
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भगवान का निवास हमारे हृदय में है। श्रीराम -- सच्चिदानंद ब्रह्म हैं, जिनमें समस्त योगी और भक्त सदैव रमण करते हैं। सीताजी -- भक्ति हैं, और अयोध्या -- हमारा हृदय है। राम को पाने के लिए हमें जगन्माता सीता जी का आश्रय लेना ही होगा। अहेतुकी परमप्रेम जागृत कर अपने अहंभाव का सम्पूर्ण समर्पण भगवान को करना होगा, तभी ये महिषासुर और रावण हमारे चित्त से हटेंगे। जरा सी भी असावधानी से ये फिर बापस आ जाएँगे।
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हाँ, यदि हम अपने अवचेतन मन में भगवान को प्रतिष्ठित कर लें तो ये दोनों हमारे से बहुत दूर भाग जाएँगे।
ॐ तत्सत् !!
३ अक्टूबर २०२१
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