Friday 8 October 2021

गांधीजी को 22 वर्षों के पश्चात ही गुस्सा क्यों आया? ---

 

गांधीजी को 22 वर्षों के पश्चात ही गुस्सा क्यों आया? ---
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कहते हैं कि किसी अंग्रेज ने नस्लभेद के कारण गांधीजी को ट्रेन से उतार दिया था। इस घटना के कारण गांधी जी अंग्रेजों के विरुद्ध हो गए, और उन्होंने अंग्रेजो के विरुद्ध भारत में स्वाधीनता आंदोलन आरंभ कर दिया।
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अगर यह घटना सच भी है तो यह सन १८९३ ई. की है जब गांधीजी २४ वर्ष के थे। गांधीजी भारत में बापस सन १९१५ में आए, जब वे ४६ वर्ष के थे। इन २२ वर्षों में गांधीजी को कभी गुस्सा नहीं आया।
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गांधीजी के पिता करमचंद गांधी काफी धनवान थे। अंग्रेजी राज में उन्होने खूब धन कमाया और कभी उनके साथ कोई भेदभाव नहीं हुआ। गांधीजी ने अंग्रेजों के साथ रहकर पढ़ाई की और वकालत की प्रैक्टिस की, लेकिन उनके साथ कोई भेदभाव नहीं हुआ। गांधीजी का बहुत सारा जीवन इंग्लैण्ड और दक्षिण अफ्रीका में गुजर गया मगर उनके साथ कोई भेदभाव नहीं हुआ। वे अंग्रेजों के साथ ही रहते रहे, पढ़ते रहे और काम भी करते रहे। किसी भी अंग्रेज ने उनको कभी परेशान नहीं किया। ब्रिटिश सेना में सार्जेंट मेजर के पद काम करते हुये भी उनको कभी गुस्सा नहीं आया।
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इसी बीच भारत में अंग्रेजो के विरुद्ध स्वाधीनता संघर्ष छिड़ गया। सन १९०७ में वीर सावरकर के ग्रन्थ "१८५७ - प्रथम स्वातंत्र्य समर" ने क्रान्ति की ज्वाला को और ज्यादा भड़का दिया। क्रांतिकारियों ने अंग्रेज अधिकारियों की हत्या करना आरंभ कर दिया। अनेक अंग्रेज़ अधिकारियों की हत्या क्रांतिकारियों द्वारा कर दी गई। इस अपराध में अनेक क्रांतिकारियों को फांसी हुई और अनेकों को रंगून और कालापानी की जेलों में भेज दिया गया।
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इसी बीच अचानक गांधी जी को याद आया कि २१ वर्ष पूर्व किसी अंग्रेज ने उनको ट्रेन से उतारा था, बस गांधी जी अपनी विदेशी संपत्ति को बेचकर सन १९१५ ई. में भारत आ गए। एक महत्वपूर्ण बात है कि गांधीजी को साउथ अफ्रीका की ट्रेन से ७ जून १८९३ को उतारा गया, तब उनको गुस्सा नहीं आया। २२ वर्षों के बाद उनको गुस्सा आया और वे अंग्रेजों से बदला लेने के लिए ९ जनवरी १९१५ को भारत में बापस आए।
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अंग्रेजों ने और उन की प्रेस ने गांधीजी को भारत में स्थापित और प्रसिद्ध किया। अंग्रेजों को एक ऐसा भारतीय नेता चाहिए था जो अंग्रेजों के विरुद्ध हो रही हिंसा को अहिंसक बना सके, और किसी भी संभावित सशस्त्र विद्रोह की हवा निकाल सके। गांधीजी ने सदा अंग्रेजों का हित देखा और वही किया जो अंग्रेजों के हित में था।

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