भगवान की उपासना -- हृदय की अभीप्सा है, आकांक्षा नहीं ---
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हृदय की बहुत सारी बातें हैं जो मैं लिखना चाहता हूँ, लेकिन इसलिए नहीं लिख रहा हूँ कि उनको लिखने से कुछ भी लाभ नहीं है। मुझे अगर किसी भी तरह की कोई शिकायत या असंतोष है तो वह भगवान से है, किसी अन्य से नहीं। यह सृष्टि भगवान की है, किसी अन्य की नहीं, अतः कुछ कहना होगा तो प्रत्यक्ष उन्हीं से कहेंगे।
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जैसी सृष्टि हम चाहते हैं, और जो जीवन में करना चाहते हें, वह भी उन्हीं से कहेंगे। एकांत में भगवान की उपासना करेंगे और अपने संकल्पों को साकार करेंगे। भगवान की भी यही इच्छा है।
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भगवान की उपासना मेरा स्वधर्म, स्वभाव और परमप्रेम की अभिव्यक्ति है। यह एक अभीप्सा है, आकांक्षा नहीं।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
८ अक्तूबर २०२१
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