Friday, 8 October 2021

भगवान को मैं कैसे भूल सकता हूँ? ---

 

भगवान को मैं कैसे भूल सकता हूँ? ---
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मैं इतना भाग्यशाली हूँ कि भगवान स्वयं ही मुझे हर समय याद करते हैं। अपनी इस देह से (जिससे दुनियाँ मुझे पहचानती है) भगवान स्वयं सांसें ले रहे हैं। हर सांस के साथ वे मुझे याद करते हैं। हर सांस उनकी परम कृपा है। वराह पुराण में भगवान् श्रीहरिः कहते हैं --
"वातादि दोषेण मद्भक्तों मां न च स्मरेत्।
अहं स्मरामि मद्भक्तं नयामि परमां गतिम्॥"
अर्थात् -- यदि वातादि दोष के कारण मृत्यु के समय मेरा भक्त मेरा स्मरण नहीं कर पाता, तो मैं उसका स्मरण कर उसे परम गति प्रदान करवाता हूँ॥
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अतः भगवान का नाम निरन्तर जपें और सदा प्रसन्न रहें। जपयज्ञ सबसे बड़ा यज्ञ है। गीता में भगवान कहते हैं -- "”यज्ञानां जप यज्ञोस्मि" -- अर्थात् "यज्ञों में मैं जप-यज्ञ हूँ।" अतः निश्चय कर संकल्प सहित अपने आप को परमात्मा के हाथों में सौंप दो। जहाँ हम विफल हो जाएँगे, वहाँ वे हाथ थाम लेंगे।
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मंत्र वही सिद्ध होगा जो शिष्य को सक्षम गुरू से प्राप्त हुआ होगा। अन्यथा बहुत अधिक समय लगेगा। स्थूल से सूक्ष्म की तरफ अग्रसर होना ही मंत्र जप का रहस्य है। अतः मानसिक जप ही सर्वश्रेष्ठ है। पूर्ण भक्तिभाव से सदा मानसिक जप ही करना चाहिए। जप जितना अन्तमुर्खी होगा, आनंद की अनुभूति उतनी ही अधिक होगी।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३ अक्टूबर २०२१

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