"आये थे हरिः भजन को, ओटन लगे कपास !!"
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युवावस्था में जब परमात्मा की एक झलक मिली थी, उसी क्षण मुझे विरक्त हो जाना चाहिए था। लेकिन कभी दृढ़ साहस नहीं जुटा पाया। हृदय में प्रज्वलित अभीप्सा की प्रचंड अग्नि अभी तक तृप्त और संतुष्ट नहीं हुई है। बड़ी असह्य पीड़ा हो रही है।
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मुझे किसी भी तरह की मुक्ति और मोक्ष नहीं चाहिए। जीवन-मुक्त अवस्था में बार बार पुनर्जन्म हो, और तब तक हो, जब तक जीवन में परमात्मा की पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं हो जाये। हर बार जन्म से ही पूर्ण वैराग्य, ज्ञान और भक्ति हो। मेरे आदर्श स्वयं भगवान पुरुषोत्तम हैं, वे निश्चित रूप से मुझे अपने साथ एक कर, स्वयम् को मुझ में व्यक्त करेंगे।
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"नायमात्मा बलहीनेन लभ्यो न च प्रमादात् तपसो वाप्यलिङ्गात्।
एतैरुपायैर्यतते यस्तु विद्वांस्तस्यैष आत्मा विशते ब्रह्मधाम ॥"
(मुण्डकोपनिषद् ३-२-४)
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२७ सितंबर २०२१
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