जब भूख लगती है तब भोजन स्वयं को करना पड़ता है, किसी दूसरे के भोजन करने से स्वयं का पेट नहीं भरता। वैसे ही ईश्वर-प्राप्ति के लिए साधना स्वयं को करनी पड़ती है, किसी दूसरे की साधना से स्वयं का कल्याण नहीं हो सकता। मनुष्य लघु मार्ग (Short cut) ढूँढता है, लेकिन यहाँ कोई लघु मार्ग नहीं है।
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शास्त्रों में पूरा मार्ग-दर्शन है। यह संसार - साधना यानि क्रिया का स्थल है, चिंता का नहीं। भगवान के नियम शाश्वत और अपरिवर्तनीय हैं। दुराचार क्या है? यह स्वयं का हृदय बता देता है। दुराचार यानि पाप के दो फल होते हैं -- अविवेक और दुःखों की वृद्धि। इसके लिए किसी अन्य को दोष देना व्यर्थ है। एक ही अविनाशी परम तत्त्व का सर्वत्र दर्शन मोक्षदायक ज्ञान है|
ॐ तत्सत् !!
२७ सितंबर २०२१
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