"संसार में हों कष्ट कम तो नर्क को दिखलाइये।
पर हे दयानिधि, दासता का दृश्य मत दिखलाइये॥"
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विषय-वासनाओं की दासता - दरिद्रता को जन्म देती है। यह दरिद्रता सबसे बड़ा अभिशाप, महादुःखदायी और सब पापों की जननी है। सब तरह की दरिद्रता दुःखदायी है, चाहे वह - भौतिक, मानसिक, बौद्धिक या आध्यात्मिक - किसी भी स्तर की हो।
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स्वर्ग की बातें भी बड़ी फालतू और घटिया हैं। स्वर्ग यानि जन्नत जाने की कामना से अधिक घटिया और फालतू दूसरी कोई बात है ही नहीं। जैसे गुण मनुष्य में होते हैं, वैसी ही कल्पना मनुष्य स्वर्ग-नर्क की कर लेता है। कमी सिर्फ इतनी ही है कि मरने के बाद कोई बापस आकर बताता नहीं है कि उसकी क्या गति हुई है। लेकिन मरने से पूर्व स्वयं का हृदय ही यह सत्य बता देता है कि उसकी क्या गति होने वाली है।
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मनुष्य जीवन का सार भगवान की भक्ति में है। भक्ति साकार हो या निराकार, कोई फर्क नहीं पड़ता, कहीं से आरम्भ तो हो। गहन अभीप्सा और परमप्रेम के साथ भगवान का निरंतर प्रेमपूर्वक स्मरण, और सद-आचरण ही भक्ति है।
ॐ तत्सत् !!
२७ सितंबर २०२१
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