कभी भूल कर भी निराश न हों, परिस्थितियाँ सदा एक सी नहीं रहतीं ---
Thursday, 15 July 2021
कभी भूल कर भी निराश न हों, परिस्थितियाँ सदा एक सी नहीं रहतीं ---
भगवान के साथ सत्संग ---
मैं और मेरे परम मित्र जीसस क्राइस्ट ---
योग की परम श्रेष्ठ विधि ---
योग की परम श्रेष्ठ विधि ---
जो और जैसी बात अंतर्प्रज्ञा यानि अंतर्चेतना में सही लगे वही बात बोलनी चाहिए, अन्यथा मौन रहना ही अच्छा है ---
जो और जैसी बात अंतर्प्रज्ञा यानि अंतर्चेतना में सही लगे वही बात बोलनी चाहिए, अन्यथा मौन रहना ही अच्छा है ---
"मनुष्य नाम की एक जाति ने कुछ लाख वर्ष तक इस पृथ्वी ग्रह पर निवास और राज्य किया था, फिर अपने लोभ और अहंकार के कारण वह जाति उसी तरह नष्ट हो गई जैसे कभी डायनासोर हुए थे।" ---
"मनुष्य नाम की एक जाति ने कुछ लाख वर्ष तक इस पृथ्वी ग्रह पर निवास और राज्य किया था, फिर अपने लोभ और अहंकार के कारण वह जाति उसी तरह नष्ट हो गई जैसे कभी डायनासोर हुए थे।" ---
भारत में निश्चित रूप से धर्म की पुनर्स्थापना व वैश्वीकरण होगा, और अधर्म का नाश होगा ---
कोई माने या न माने, लेकिन यह परम सत्य है कि --- भारत में निश्चित रूप से धर्म की पुनर्स्थापना व वैश्वीकरण होगा, और अधर्म का नाश होगा। दुष्ट प्रकृति के लोगों का विनाश और सज्जनों की रक्षा होगी। भारत का सत्य व धर्मनिष्ठ अखंड आध्यात्मिक राष्ट्र बनना भी तय है। सनातन धर्म ही यहाँ की राजनीति होगी। असत्य और अंधकार की शक्तियों का पराभव होगा। हमारे जीवन में चाहे कितने भी अभाव और छिद्र हों, उनकी पूर्ति परमात्मा करेंगे।
हम किसकी उपासना करें ? ---
हम किसकी उपासना करें ? ---
आज्ञाचक्र से ऊपर का भाग -- अवधान का भूखा है ---
(संशोधित व पुनर्प्रस्तुत).
जगन्माता के किस रूप की प्रार्थना करें? ---
जगन्माता के किस रूप की प्रार्थना करें? ---
भगवान के ध्यान में सदा देह-विहीनता और सर्वव्यापकता के भाव में रहें ---
भगवान के ध्यान में सदा देह-विहीनता और सर्वव्यापकता के भाव में रहें ---
स्वनामधन्य भाष्यकार भगवान आचार्य शंकर को नमन ---
स्वनामधन्य भाष्यकार भगवान आचार्य शंकर को नमन
वर्तमान क्षण ---
वर्तमान क्षण ---
हम निरंतर अपने आत्म-स्वरूप में रहें ---
हम निरंतर अपने आत्म-स्वरूप में रहें ---
ध्यान अपनी गुरु-परंपरानुसार निमित्त मात्र होकर करें ---
पूर्ण भक्ति और सत्यनिष्ठा से कूटस्थ में ज्योतिर्मय ब्रह्म की अनंतता/सर्व-व्यापकता का अधिकाधिक ध्यान अपनी गुरु-परंपरानुसार निमित्त मात्र होकर करें। अनंतता ही हमारी देह है, यह भौतिक शरीर नहीं। भौतिक शरीर तो एक वाहन/साधन मात्र है, जिस पर हम यह लोकयात्रा कर रहे हैं। ध्यान के समय कमर सीधी रहे, दृष्टिपथ भ्रूमध्य में रहे, और जीभ ऊपर पीछे की ओर मुड़कर तालु से सटी रहे। ऊनी कंबल पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह कर के बैठें। यदि खेचरी-मुद्रा सिद्ध है, तो खेचरी मुद्रा में ही ध्यान करें।
भगवती छिन्नमस्ता ---
भगवती छिन्नमस्ता ---