Saturday, 31 March 2018

यज्ञ का अवशिष्ट भोजन क्या है ? उसका आहार कैसे करें ? .....

यज्ञ का अवशिष्ट भोजन क्या है ? उसका आहार कैसे करें ? .....
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यह समझने में थोड़ा जटिल विषय है पर इसे समझना अति आवश्यक है| गीता में भगवान कहते हैं ... "यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः| भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात् || ३:१३||" अर्थात् "यज्ञ के अवशिष्ट अन्न को खाने वाले श्रेष्ठ पुरुष सब पापों से मुक्त हो जाते हैं किन्तु जो लोग केवल स्वयं के लिये ही पकाते हैं वे तो पापों को ही खाते हैं|" अब इस विषय को ठीक से समझा जाए ताकि हम पाप के भागी न बनें|
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विस्तार में न जाकर संक्षेप में कहना चाहूँगा कि हमारे शास्त्रों के अनुसार रसोईघर में भोजन बनाने की प्रक्रिया में प्रमादवश अनायास ही कुछ अशुद्धियाँ और पाँच प्रकार के पाप सब से ही होते हैं| उन के परिमार्जन के लिए पञ्च महायज्ञ करते हैं, जिन से वे दोष दूर हो जाते हैं| ये पञ्च महायज्ञ वेदोक्त है जिनको करने का आदेश यजुर्वेद के शतपथ ब्राह्मण में है, और मनु महाराज ने भी मनुस्मृति में इनको करने का आदेश दिया है|
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भोजन बनाकर देवताओं को भी उनका भाग दें, गाय, कुत्ते व पक्षियों को भी दें, अतिथि को भी भोजन कराएँ, माता-पिता जीवित हैं तो पहले उनको भोजन कराएँ|
फिर गीता के चौथे अध्याय के चौबीसवें मन्त्र ....
"ॐ ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना" द्वारा भगवान को निवेदित करने के पश्चात् गीता के पन्द्रहवें अध्याय के चौदहवें मन्त्र ....
"ॐ अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम्" के अर्थ को मानसिक रूप से समझते हुए ही भोजन करें| भोजन से पूर्व आचमन करें और पहले ग्रास के साथ "ॐ प्राणाय स्वाहा" मन्त्र अवश्य मानसिक रूप से बोलें|
उपरोक्त तो कम से कम अनिवार्य से अनिवार्य आवश्यकता है| विस्तार करने के लिए अन्नपूर्णा के मन्त्र का भी पाठ कर सकते हैं, पञ्च प्राणों का कवल भी प्रथम पांच ग्रासों के साथ कर सकते हैं|
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जहाँ तक मैं समझता हूँ उपरोक्त विधि से भोजन करने से कोई दोष नहीं लगता| उपरोक्त विधि ही वह यज्ञ है जिसको करने का आदेश भगवान दे रहे हैं| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३१ मार्च २०१८

हिन्दू स्वयं को बहुसंख्यक मानने के झूठे भ्रम में न रहें, वास्तव में वे अल्पसंख्यक ही हैं .....

हिन्दू स्वयं को बहुसंख्यक मानने के झूठे भ्रम में न रहें, वास्तव में वे अल्पसंख्यक ही हैं .....
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वर्त्तमान सांविधानिक व्यवस्था में बहुसंख्यक होने से हानि ही हानि है और अल्पसंख्यक होने से लाभ ही लाभ| जो घोषित अल्पसंख्यक हैं वे अपनी शिक्षण संस्थाओं में अपनी धार्मिक शिक्षा दे सकते हैं, और अपने ही वर्ग के शत प्रतिशत विद्यार्थियों को प्रवेश दे सकते हैं, उन्हें मान्यता भी प्राप्त है|

गुरुकुलों की शिक्षा को मान्यता प्राप्त नहीं है जब कि मदरसों की शिक्षा को मान्यता प्राप्त है| ईसाई शिक्षण संस्थानों में सब को ईसाई धर्म की शिक्षा दी जा सकती है पर हिन्दू अपने धर्म की शिक्षा नहीं दे सकते|

वर्षों पूर्व रामकृष्ण मिशन और आर्यसमाज ने स्वयं को इसीलिये अल्पसंख्यक घोषित कर के सरकारी मान्यता की माँग की थी जो उन्हें नहीं दी गयी|

यह अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की अवधारणा किसी शातिर और धूर्त दिमाग की उपज थी जिस का उद्देश्य शनैः शनैः हिन्दू धर्म को नष्ट करना था| हिन्दू मुर्ख बना ही दिए गए| हिन्दू इसी झूठी भ्रान्ति में जीते रहे कि वे बहुसंख्यक हैं| वास्तव में हिन्दू अल्पसंख्यक ही हैं|

अल्पसंख्यक कहलाने से हिन्दुओं को कोई हानि नहीं है| मेरे विचार से हिन्दू धर्म के हर सम्प्रदाय को स्वयं को अल्पसंख्यक घोषित करवाने की माँग करनी चाहिए ताकि कम से कम वे अपनी शिक्षण संस्थाओं में हिन्दू धर्म की शिक्षा तो दे सकें|

वर्षों पूर्व भारत में जब "हम दो हमारे दो" का नारा लगाया गया और सरकारी नौकरों पर दो बच्चे ही पैदा करने की पाबंदी लागू की गयी थी तो यह सिर्फ हिन्दुओं पर ही थी| बाकी सब को चाहे जितने बच्चे पैदा करने की छूट थी|

अतः हिन्दू अल्पसंख्यक ही हैं, यह वास्तविकता उन्हें स्वीकार कर लेनी चाहिए और स्वयं को अल्पसंख्यकों को दी जाने वाली सारी सुविधाओं की माँग करनी चाहिए| धन्यवाद !

३० मार्च २०१८

घृणा व द्वेष क्यों ? घृणा व द्वेष फैलाने वाले सारे मत और विचार ..... असत्य और अन्धकार फैलाते हैं .....

घृणा व द्वेष क्यों ? घृणा व द्वेष फैलाने वाले सारे मत और विचार ..... असत्य और अन्धकार फैलाते हैं .....
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क्या हमें दूसरों से घृणा सिर्फ इसीलिए करनी चाहिए कि दूसरे हमारे विचारों को नहीं मानते, या दूसरे हमारे मत, पंथ या मज़हब के नहीं है? यदि हमारे मन में किसी के भी प्रति ज़रा सी भी घृणा या द्वेष है तो हम स्वयं के लिए अंधकारमय लोकों की यानि घोर नर्क की सृष्टि कर रहे हैं|
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जब भगवान सर्वत्र हैं और सब में हैं, तो किसी से भी घृणा क्यों? क्या हम भगवान से घृणा कर सकते हैं? गीता में भगवान कहते हैं .....
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति| तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति|| ६:३०||"
अर्थात जो सब में मुझ को देखता है और सबको मुझमें देखता है उसके लिये मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिये अदृश्य नहीं होता|
कितना बड़ा आश्वासन दिया है भगवान ने !
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घृणा और द्वेष अत्यंत दुर्बल भाव है जो स्वयं की शांति तो भंग करते ही हैं, चारों ओर एक भयावह विनाश भी लाते हैं| भारत में ऐसा विनाश बहुत अधिक हुआ है| विश्व की अनेक संस्कृतियाँ इस घृणा और द्वेष के कारण नष्ट कर दी गईं, सैंकड़ों करोड़ मनुष्यों की हत्या इसी घृणा व द्वेष के कारण की गयी हैं| कुछ लोग तो दूसरों को पीड़ा पहुँचाने की ही प्रार्थना करते हैं, धिक्कार है ऐसे लोगों पर|
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जिनकी बात उन के अनुयायियों ने ही प्रायः नहीं मानी उन ईसा मसीह ने बाइबिल में कहा है ... “Love your enemies and pray for those who persecute you” (Matthew 5:44). उन्होंने यह भी कहा .... “Do good to those who hate you, bless those who curse you, pray for those who abuse you” (Luke 6:27–28).
महान तमिल संत तिरुवल्लुवर ने अपने साहित्य में घृणा के विरुद्ध बहुत अधिक लिखा है| गीता में भी भगवान कहते हैं ....
"उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत् | आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः ||६:५||"
इसका भावार्थ है कि हम स्वयं ही अपने शत्रु, मित्र और बन्धु हैं, कोई अन्य नहीं|
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घृणा करने वाले द्वेषी और क्रूर लोगों की गति बहुत बुरी होती है| भगवान कहते हैं ....
"तानहं द्विषतः क्रूरान्संसारेषु नराधमान् | क्षिपाम्यजस्रमशुभानासुरीष्वेव योनिषु ||१६:१९||"
अर्थात् ऐसे उन द्वेष करने वाले क्रूरकर्मी और नराधमों को मैं संसार में बारम्बार आसुरी योनियों में ही गिराता हूँ अर्थात् उत्पन्न करता हूँ|
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आसुरी योनी में जन्म लेकर क्या होता है ? भगवान कहते हैं ....
"असुरीं योनिमापन्ना मूढा जन्मनि जन्मनि| मामप्राप्यैव कौन्तेय ततो यान्त्यधमां गतिम्||१६:२०||"
अर्थात अविवेकीजन प्रत्येक जन्म में आसुरी योनि को पाते हुए जिनमें तमोगुणकी बहुलता है ऐसी योनियों में जन्मते हुए नीचे गिरते गिरते मुझ ईश्वरको न पाकर उन पूर्वप्राप्त योनियोंकी अपेक्षा और भी अधिक अधम गति को प्राप्त होते हैं|
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अतः किसी से घृणा व द्वेष न करें और क्रूरता पर विजय पायें| भगवान से खूब प्रेम करें|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३० मार्च २०१८