Saturday 31 March 2018

घृणा व द्वेष क्यों ? घृणा व द्वेष फैलाने वाले सारे मत और विचार ..... असत्य और अन्धकार फैलाते हैं .....

घृणा व द्वेष क्यों ? घृणा व द्वेष फैलाने वाले सारे मत और विचार ..... असत्य और अन्धकार फैलाते हैं .....
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क्या हमें दूसरों से घृणा सिर्फ इसीलिए करनी चाहिए कि दूसरे हमारे विचारों को नहीं मानते, या दूसरे हमारे मत, पंथ या मज़हब के नहीं है? यदि हमारे मन में किसी के भी प्रति ज़रा सी भी घृणा या द्वेष है तो हम स्वयं के लिए अंधकारमय लोकों की यानि घोर नर्क की सृष्टि कर रहे हैं|
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जब भगवान सर्वत्र हैं और सब में हैं, तो किसी से भी घृणा क्यों? क्या हम भगवान से घृणा कर सकते हैं? गीता में भगवान कहते हैं .....
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति| तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति|| ६:३०||"
अर्थात जो सब में मुझ को देखता है और सबको मुझमें देखता है उसके लिये मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिये अदृश्य नहीं होता|
कितना बड़ा आश्वासन दिया है भगवान ने !
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घृणा और द्वेष अत्यंत दुर्बल भाव है जो स्वयं की शांति तो भंग करते ही हैं, चारों ओर एक भयावह विनाश भी लाते हैं| भारत में ऐसा विनाश बहुत अधिक हुआ है| विश्व की अनेक संस्कृतियाँ इस घृणा और द्वेष के कारण नष्ट कर दी गईं, सैंकड़ों करोड़ मनुष्यों की हत्या इसी घृणा व द्वेष के कारण की गयी हैं| कुछ लोग तो दूसरों को पीड़ा पहुँचाने की ही प्रार्थना करते हैं, धिक्कार है ऐसे लोगों पर|
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जिनकी बात उन के अनुयायियों ने ही प्रायः नहीं मानी उन ईसा मसीह ने बाइबिल में कहा है ... “Love your enemies and pray for those who persecute you” (Matthew 5:44). उन्होंने यह भी कहा .... “Do good to those who hate you, bless those who curse you, pray for those who abuse you” (Luke 6:27–28).
महान तमिल संत तिरुवल्लुवर ने अपने साहित्य में घृणा के विरुद्ध बहुत अधिक लिखा है| गीता में भी भगवान कहते हैं ....
"उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत् | आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः ||६:५||"
इसका भावार्थ है कि हम स्वयं ही अपने शत्रु, मित्र और बन्धु हैं, कोई अन्य नहीं|
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घृणा करने वाले द्वेषी और क्रूर लोगों की गति बहुत बुरी होती है| भगवान कहते हैं ....
"तानहं द्विषतः क्रूरान्संसारेषु नराधमान् | क्षिपाम्यजस्रमशुभानासुरीष्वेव योनिषु ||१६:१९||"
अर्थात् ऐसे उन द्वेष करने वाले क्रूरकर्मी और नराधमों को मैं संसार में बारम्बार आसुरी योनियों में ही गिराता हूँ अर्थात् उत्पन्न करता हूँ|
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आसुरी योनी में जन्म लेकर क्या होता है ? भगवान कहते हैं ....
"असुरीं योनिमापन्ना मूढा जन्मनि जन्मनि| मामप्राप्यैव कौन्तेय ततो यान्त्यधमां गतिम्||१६:२०||"
अर्थात अविवेकीजन प्रत्येक जन्म में आसुरी योनि को पाते हुए जिनमें तमोगुणकी बहुलता है ऐसी योनियों में जन्मते हुए नीचे गिरते गिरते मुझ ईश्वरको न पाकर उन पूर्वप्राप्त योनियोंकी अपेक्षा और भी अधिक अधम गति को प्राप्त होते हैं|
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अतः किसी से घृणा व द्वेष न करें और क्रूरता पर विजय पायें| भगवान से खूब प्रेम करें|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३० मार्च २०१८

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