बौद्ध धर्म का तांत्रिक मत 'वज्रयान' .....
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गौतम बुद्ध के प्रामाणिक उपदेश क्या थे इनके बारे में निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता| उनके उपदेश उनके देहावसान के पांच सौ वर्षों बाद तक तो लिखे ही नहीं गए थे| हर सौ वर्ष में उनके अनुयायियों की एक सभा होती थी जिसमें उनके उपदेशों पर विचार विमर्श होता था| पांचवीं और अंतिम सभा श्रीलंका के अनुराधापुर नगर में हुई थी| वहाँ पर जो विचार विमर्श हुआ उसको पहली बार पाली भाषा में लिपिबद्ध किया गया| जिन्होंने उस समय लिपिबद्ध किये गए आलेखों को प्रामाणिक माना वे हीनयान कहलाये, और जिन्होंने नहीं माना वे महायान कहलाये| भारत के उत्तर में स्थित देशों में महायान मत फैला और दक्षिण के देशों में हीनयान| अतः बुद्ध के क्या उपदेश थे वे तो वे स्वयं ही बता सकते हैं| वर्तमान में उपलब्ध उनके उपदेशों की प्रामाणिकता पर कुछ नहीं कहा जा सकता|
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सन 0067 ई.में भारत से कश्यप मातंग और धर्मारण्य नाम के दो ब्राह्मण चीन गए और उन्होंने पूरे चीन में बौद्ध धर्म का प्रचार किया| चीन से ही बौद्ध धर्म कोरिया और मंगोलिया में गया|
ईसा की छठी शताब्दी में भारत से बोधिधर्म नाम का एक ब्राह्मण चीन के हुनान प्रान्त में स्थित शाओलिन मंदिर में गया| वहाँ कुछ समय रहकर वह जापान गया जहाँ उसने 'झेन' (Zen) बौद्ध मत स्थापित किया जो कई शताब्दियों तक वहाँ का राजधर्म रहा|
इस्लाम के जन्म से पूर्व पूरा मध्य एशिया बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया था| तुर्किस्तान तक बौद्ध मत था|
दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत से जो बौद्ध धर्म के प्रचारक गए उन्होंने एक विशाल नदी को देखा जिसका नाम उन्होंने 'माँ गंगा' रखा जो बाद में अपभ्रंस होकर 'मेकोंग' नदी हो गया जो वहां की जीवन रेखा है|
ईसा की पांचवी सदी में वज्रयान और सहजयान नाम के दो और तांत्रिक मत फैले| सहजयान में ६४ योगिनियों और उनके अनुचरों आदि की साधनाएँ थीं|
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तिब्बत में जो बौद्ध मत है वह वज्रयान है| सुषुम्ना में तीन उपनाड़ियाँ होती हैं ..... ब्राह्मी, चित्रा और वज्रा| वज्रा नाड़ी में जो शक्ति प्रवाहित होती है उसकी साधना वज्रयान है| वह शक्ति मणिपुर चक्र में स्थित होती है| तंत्र कि दश महाविद्याओं में वह छिन्नमस्ता देवी है| वज्रयान मत का मन्त्र है .... "ॐ मणिपद्मे हुम्"|
मणिपद्मे का अर्थ है .... जो मणिपुर चक्र में स्थित है| हुम् .... छिन्नमस्ता का बीज है, और उनका निवास मणिपुर चक्र में है| इसका अर्थ है ..... मैं उस महाशक्ति (छिन्नमस्ता) का ध्यान करता हूँ जो मणिपुर चक्रस्थ पद्म में स्थित है| माँ छिन्नमस्ता का मन्त्र है .... ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं अईं वज्र वैरोचनीये हुम् हुम् फट स्वाहा| वज्रयान मतानुयायी अप्रत्यक्ष रूप से उन्हीं (माँ छिन्नमस्ता) की साधना करते हैं| कुण्डलिनी महाशक्ति जागृत होकर यदि वज्रा उपनाड़ी में प्रवेश करती है तो समस्त सिद्धियाँ प्रदान करती हैं| ब्राह्मी व चित्रा उपनाड़ी का फल अलग है|
योग साधना में गुरु कृपा से कुण्डलिनी शक्ति जागृत होकर सुषुम्ना में प्रवेश तो करती है पर आगे सब गुरु कृपा पर ही निर्भर है| साधक को तो सब कुछ गुरु को ही समर्पित करना होता है|
ॐ ॐ ॐ ||
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(Note: यह लेख चार-पांच वर्ष पूर्व लिखा था| इसमें काफी शोध की आवश्यकता है)
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गौतम बुद्ध के प्रामाणिक उपदेश क्या थे इनके बारे में निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता| उनके उपदेश उनके देहावसान के पांच सौ वर्षों बाद तक तो लिखे ही नहीं गए थे| हर सौ वर्ष में उनके अनुयायियों की एक सभा होती थी जिसमें उनके उपदेशों पर विचार विमर्श होता था| पांचवीं और अंतिम सभा श्रीलंका के अनुराधापुर नगर में हुई थी| वहाँ पर जो विचार विमर्श हुआ उसको पहली बार पाली भाषा में लिपिबद्ध किया गया| जिन्होंने उस समय लिपिबद्ध किये गए आलेखों को प्रामाणिक माना वे हीनयान कहलाये, और जिन्होंने नहीं माना वे महायान कहलाये| भारत के उत्तर में स्थित देशों में महायान मत फैला और दक्षिण के देशों में हीनयान| अतः बुद्ध के क्या उपदेश थे वे तो वे स्वयं ही बता सकते हैं| वर्तमान में उपलब्ध उनके उपदेशों की प्रामाणिकता पर कुछ नहीं कहा जा सकता|
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सन 0067 ई.में भारत से कश्यप मातंग और धर्मारण्य नाम के दो ब्राह्मण चीन गए और उन्होंने पूरे चीन में बौद्ध धर्म का प्रचार किया| चीन से ही बौद्ध धर्म कोरिया और मंगोलिया में गया|
ईसा की छठी शताब्दी में भारत से बोधिधर्म नाम का एक ब्राह्मण चीन के हुनान प्रान्त में स्थित शाओलिन मंदिर में गया| वहाँ कुछ समय रहकर वह जापान गया जहाँ उसने 'झेन' (Zen) बौद्ध मत स्थापित किया जो कई शताब्दियों तक वहाँ का राजधर्म रहा|
इस्लाम के जन्म से पूर्व पूरा मध्य एशिया बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया था| तुर्किस्तान तक बौद्ध मत था|
दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत से जो बौद्ध धर्म के प्रचारक गए उन्होंने एक विशाल नदी को देखा जिसका नाम उन्होंने 'माँ गंगा' रखा जो बाद में अपभ्रंस होकर 'मेकोंग' नदी हो गया जो वहां की जीवन रेखा है|
ईसा की पांचवी सदी में वज्रयान और सहजयान नाम के दो और तांत्रिक मत फैले| सहजयान में ६४ योगिनियों और उनके अनुचरों आदि की साधनाएँ थीं|
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तिब्बत में जो बौद्ध मत है वह वज्रयान है| सुषुम्ना में तीन उपनाड़ियाँ होती हैं ..... ब्राह्मी, चित्रा और वज्रा| वज्रा नाड़ी में जो शक्ति प्रवाहित होती है उसकी साधना वज्रयान है| वह शक्ति मणिपुर चक्र में स्थित होती है| तंत्र कि दश महाविद्याओं में वह छिन्नमस्ता देवी है| वज्रयान मत का मन्त्र है .... "ॐ मणिपद्मे हुम्"|
मणिपद्मे का अर्थ है .... जो मणिपुर चक्र में स्थित है| हुम् .... छिन्नमस्ता का बीज है, और उनका निवास मणिपुर चक्र में है| इसका अर्थ है ..... मैं उस महाशक्ति (छिन्नमस्ता) का ध्यान करता हूँ जो मणिपुर चक्रस्थ पद्म में स्थित है| माँ छिन्नमस्ता का मन्त्र है .... ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं अईं वज्र वैरोचनीये हुम् हुम् फट स्वाहा| वज्रयान मतानुयायी अप्रत्यक्ष रूप से उन्हीं (माँ छिन्नमस्ता) की साधना करते हैं| कुण्डलिनी महाशक्ति जागृत होकर यदि वज्रा उपनाड़ी में प्रवेश करती है तो समस्त सिद्धियाँ प्रदान करती हैं| ब्राह्मी व चित्रा उपनाड़ी का फल अलग है|
योग साधना में गुरु कृपा से कुण्डलिनी शक्ति जागृत होकर सुषुम्ना में प्रवेश तो करती है पर आगे सब गुरु कृपा पर ही निर्भर है| साधक को तो सब कुछ गुरु को ही समर्पित करना होता है|
ॐ ॐ ॐ ||
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(Note: यह लेख चार-पांच वर्ष पूर्व लिखा था| इसमें काफी शोध की आवश्यकता है)