Sunday 15 April 2018

इस संसार में दम घुटता है, तो क्या करें ?....

इस संसार में दम घुटता है, तो क्या करें ?
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संसार की बुराइयों को तो मिटा नहीं सकते | यह समुद्र के पानी को सुखाने का सा प्रयास है | हमें इन बुराइयों और भलाइयों से ऊपर उठना होगा, पर यह तो वेदान्त का विषय है जो एक सामान्य व्यक्ति को समझ में नहीं आ सकता | हम जैसे सामान्य व्यक्तियों का दृष्टिकोण तो उस साधू जैसा होना चाहिए जिसके बारे में संत कबीरदास जी ने कहा है .....
"साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय| सार-सार को गहि रहै थोथा देई उड़ाय"||
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हम इस संसार में उस चींटी की तरह रहें जो बालू रेत में मिली चीनी को तो खा लेगी पर बालू रेत को छोड़ देगी | अन्य कोई दूसरा रास्ता हमारे लिए नहीं है | हम लोग जब गन्ना चूसते हैं तब रस को तो चूस लेते हैं पर छिलका फेंक देते हैं | यह संसार बुराई और भलाई दोनों का मिश्रण है | संसार में यही दृष्टिकोण अपना होना चाहिए | निज विवेक से हम अच्छाई को तो ग्रहण कर लें और बुराई को छोड़ दें |
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एक समय था जब जीवन में मन अति अशांत और उद्वेलित रहता था| अशांत, निराश और उद्वेलित मन को शांत करने के लिए मैनें अनेक प्रयास किये थे, पर कभी सफल नहीं हुआ| फिर एक नया तरीका अपनाया| यह सोचना ही छोड़ दिया कि कहाँ क्यों व क्या हो रहा है और अन्य लोग क्या कर रहे हैं| सारा ध्यान इसी पर लगाया कि इसी क्षण अपना सर्वश्रेष्ठ मैं कैसे और क्या कर सकता हूँ| फिर पाया कि मन में कोई निराशा, अशांतता और बेचैनी नहीं रही है| वर्त्तमान में जीना और अपना सर्वश्रेष्ठ करने का प्रयास जीवन में संतुष्टि प्रदान करता है| 
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हे गुरु महाराज, आपकी जय हो | आपकी कृपा सदा बनी रहे | जब से यह सिर आपके समक्ष झुका है, तब से एक बार भी नहीं उठा है, लगातार झुका हुआ ही है | मैं आपकी शरणागत हूँ | ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१५ अप्रेल २०१८