मेरे लिए मेरा स्वधर्म है ..... "परमात्मा से परमप्रेम, उनकी उपासना और सदाचरण|"
.
इसके अतिरिक्त अन्य सब लौकिक धर्म है| "स्वधर्म" ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, अन्य कुछ भी नहीं| परमात्मा की परम कृपा से मुझे स्वधर्म का अच्छी तरह बोध और ज्ञान है, किसी भी तरह का कोई संशय नहीं है| इस संसार को मैनें बहुत समीप से देखा है जिस पर से मेरी आस्था हट गयी है| किसी पर भी अब विश्वास नहीं रहा है| श्रद्धा और विश्वास एकमात्र परमात्मा पर ही है| इसी क्षण से आगे जीवन के अंत तक स्वधर्म में ही स्थिर रहने का प्रयास होगा|
.
भगवान भी कहते हैं ...
"श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्| स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः||"३:३५||
.
राग द्वेष से भरा मनुष्य तो परधर्म को भी स्वधर्म मान लेता है| परन्तु यह उसकी भूल है| जब भगवान से ये शब्द लिखने की प्रेरणा मिली है तो इसी क्षण से स्वधर्म में स्थित रहने का पूरा प्रयास होगा|
.
इसके अतिरिक्त अन्य सब लौकिक धर्म है| "स्वधर्म" ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, अन्य कुछ भी नहीं| परमात्मा की परम कृपा से मुझे स्वधर्म का अच्छी तरह बोध और ज्ञान है, किसी भी तरह का कोई संशय नहीं है| इस संसार को मैनें बहुत समीप से देखा है जिस पर से मेरी आस्था हट गयी है| किसी पर भी अब विश्वास नहीं रहा है| श्रद्धा और विश्वास एकमात्र परमात्मा पर ही है| इसी क्षण से आगे जीवन के अंत तक स्वधर्म में ही स्थिर रहने का प्रयास होगा|
.
भगवान भी कहते हैं ...
"श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्| स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः||"३:३५||
.
राग द्वेष से भरा मनुष्य तो परधर्म को भी स्वधर्म मान लेता है| परन्तु यह उसकी भूल है| जब भगवान से ये शब्द लिखने की प्रेरणा मिली है तो इसी क्षण से स्वधर्म में स्थित रहने का पूरा प्रयास होगा|
.
मेरी प्रार्थना है कि सभी अपने स्वधर्म को समझें और उस का आचरण करें|
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३ जुलाई २०१८