Wednesday 4 July 2018

भगवान का अनुस्मरण कैसे हो ?.....

भगवान का अनुस्मरण कैसे हो ?.....
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भगवान का अनुस्मरण कैसे हो ? यह एक अत्यधिक महत्वपूर्ण विषय है जिस की हम उपेक्षा नहीं कर सकते| इसकी उपेक्षा से भविष्य में हमें सुख की नहीं अपितु दुःखों ही दुःखों की प्राप्ति होगी| इस जन्म में तो हम अपना प्रारब्ध भुगत रहे हैं, पर आगे के जन्मों में हमारी क्या गति होगी यह भगवान के लिए हमारे द्वारा किये गए अनुस्मरण पर निर्भर है|
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गीता में भगवान कहते हैं .....
तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च| मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्||८:७||
अर्थात् ..... इसलिये तू सब समयमें मेरा अनुस्मरण कर और युद्ध भी कर| मेरे में मन और बुद्धि अर्पित करनेवाला तू निःसन्देह मेरे को ही प्राप्त होगा|
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अंतकाल की भावना ही अगले जन्म में अन्य शरीर की प्राप्ति का कारण होती है| इस लिए भगवान ने यह बात कही है| पता नहीं कौन सा क्षण या कौन सी साँस अंतिम हो| भगवान हमें आदेश देते हैं कि हर समय हम उनका स्मरण भी करें और स्वधर्म रूपी युद्ध यानी अपने कर्त्तव्य भी शास्त्राज्ञानुसार निभाते रहें| यह भगवान की आज्ञा है जिसका हमें पालन सदा बिना किसी संशय के करना चाहिए|
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स्वनामधन्य भाष्यकार भगवान शंकर ने उपरोक्त श्लोक का स्पष्ट अर्थ किया है .... "तस्मात् सर्वेषु कालेषु माम् अनुस्मर यथाशास्त्रम्| युध्य च युद्धं च स्वधर्मं कुरु| मयि वासुदेवे अर्पिते मनोबुद्धी यस्य तव स त्वं मयि अर्पितमनोबुद्धिः सन् मामेव यथास्मृतम् एष्यसि आगमिष्यसि असंशयः न संशयः अत्र विद्यते||"
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हम अपना मन और बुद्धि भगवान को अर्पित करें .....
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भगवान ने हम को सब कुछ दिया है अतः हमारा भी दायित्व बनता है कि हम भी भगवान को कुछ दें| भगवान हमसे क्या माँगते हैं????? वे हम से हमारा मन और बुद्धि ही तो माँग रहे हैं| क्या हम अपना मन और बुद्धि भी भगवान को अर्पित नहीं कर सकते?????
यदि नहीं कर सकते तो हमारा जीवन व्यर्थ है और हम इस पृथ्वी पर भार ही हैं|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३ जुलाई २०१८

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