Sunday 31 December 2017

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ......

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ......
जिन का कभी जन्म ही नहीं हुआ उन भगवान परमशिव का ही ध्यान करना चाहिए| जब भी उनके प्रति हृदय में परम प्रेम उमड़े उसी क्षण से उनका ध्यान करना चाहिए| कोई देश-काल, शौच-अशौच या ग्रह-नक्षत्र का बंधन नहीं है| वे अनंत असीम अगोचर हैं| उनकी अनुभूति प्रत्येक उपासक को निश्चित रूप से होती है| सारे नक्षत्र, ग्रह, उपग्रह उन्हीं की कृपा से अस्तित्व में हैं और उन्हीं के प्रकाश से प्रकाशित हैं| उनका आश्रय मिलने पर क्या तो कोई ग्रह नक्षत्र या क्या कोई यमराज किसी का कुछ बिगाड़ सकता है ?

हर हर महादेव ! ॐ ॐ ॐ !!

३१ दिसंबर २०१७ 

ग्रेगोरियन नववर्ष एक वास्तविकता है जिसे हम झुठला नहीं सकते .....

ग्रेगोरियन नववर्ष एक वास्तविकता है जिसे हम झुठला नहीं सकते| जो कुछ भी हो रहा है जिसे हम बदल नहीं सकते, उसके लिए उपाय यही है कि हम अपना सर्वश्रेष्ठ करें और अन्यों की आलोचना, निंदा व शिकायत न करें| दूसरों के कार्यों के लिए हम उत्तरदायी नहीं हैं, अतः उनका चिंतन न कर परमात्मा का ही चिंतन करें| यह नववर्ष पूर्णरूपेण उन अनंत के स्वामी को समर्पित है जिन्होनें स्वयं को माया के आवरण में छिपा रखा है| हैं तो वे भक्त-वत्सल ही, अतः अपनी संतानों की पुकार सुनकर उन्हें आना ही पड़ेगा| अब वे और छिप नहीं सकते| हमें उनकी परम चेतना में उनके परम साक्षात्कार से कम कुछ भी नहीं चाहिए|
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ग्रेगोरियन नववर्ष का आरम्भ १ जनवरी से है| आज ३१ दिसंबर की रात्री को सभी श्रद्धालु, परमात्मा का यथासंभव अधिकाधिक ध्यान करेंगे| जो भी साधक विश्व में चाहे वे कहीं पर भी हों, जब परमात्मा का ध्यान करते हैं तो परमात्मा में वे सब एक साथ ही होते हैंं, उन की कोई पृथकता नहीं होती| हमारे चारों ओर का वातावरण सतोगुण का होगा और भीतर से हम गुणातीत होंगे|
ॐ श्रीगुरवे नमः ||
ब्रह्मानंदं परम सुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं |
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यम् ||
एकं नित्यं विमलंचलं सर्वधीसाक्षीभूतम् |
भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरुं तं नमामि ||
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम|
तस्मात कारुण्य भावेन रक्षस्व परमेश्वरः||
वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्‍क: प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च ।
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते ॥
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व ।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वंसर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः ॥
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हे अनंत के स्वामी, तुमने हमें जहाँ भी रखा है वहीं तुम्हें आना ही पड़ेगा| अब शीघ्रातिशीघ्र अभी इसी समय चले आओ, तुम्हारे बिना अब जीना संभव नहीं है| किसी भी तरह की दार्शनिक अवधारणाएँ अब और रोक नहीं सकतीं| किसी भी तरह का ज्ञान नहीं, हमें तो प्रत्यक्ष साक्षात्कार चाहिए| तुम्हें पाने के लिए हमारे ह्रदय में जल रही प्रचण्ड अग्नि और अभीप्सा को अपनी उपस्थिति से शांत करो| अब तो तुम्हें आना ही होगा क्योंकि बहुत देर हो हो चुकी है| तुम्हीं साधक हो, तुम्हीं साधना हो और तुम्ही साध्य हो| तुम ही तुम हो, हम नहीं| हे सच्चिदानंद, तुम्हें प्रणाम ! अब देर मत करो| यह नववर्ष तुम्हें ही समर्पित है| ॐ सच्चिदानंदाय नमः ||
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हे गुरु रूप परम ब्रह्म, मुझमें इतनी क्षमता नहीं है कि आपका ध्यान कर सकूँ| जब आप ही इस नौका के कर्णधार हैं, तो अब मेरी कोई कामना या अपेक्षा नहीं रही है| आपका साथ जब मिल ही गया है तो और कुछ भी नहीं चाहिए| आप ही साक्षात् परमब्रह्म हो| ॐ नमः शम्भवाय च, मयोभवाय च, नमः शंकराय च, मयस्कराय च, नमः शिवाय च, शिवतराय च||
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(1) समष्टि का कल्याण हो| (2) सम्पूर्ण भारतवर्ष में असत्य और अन्धकार की शक्तियों का नाश हो| (2) सनातन धर्म की सर्वत्र पुनर्प्रतिष्ठा हो| (3) भारत माँ अपने द्वीगुणित परम वैभव के साथ अखण्डता के सिंहासन पर बिराजमान हों| (4) परमात्मा का साक्षात्कार .....जिस के लिए यह जन्म लिया है, वह कार्य संपन्न हो|
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ॐ स्वस्ति | ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ |
कृपा शंकर
३१ दिसम्बर २०१७
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पुनश्चः : परमात्मा के ध्यान के लिए हर क्षण शुभ मुहूर्त है | कोई देश-काल या शौच-अशौच या गृह-नक्षत्रों का बंधन नहीं है| जब भी भगवान की याद आये तब उनका ध्यान करो |

रूस की बहुत पुरानी स्मृतियाँ ......

रूस की बहुत पुरानी स्मृतियाँ ......

बहुत पुरानी स्मृतियाँ हैं रूस की| पचास वर्ष पूर्व सन १९६७ में मैं रूस में एक विशेष प्रशिक्षण ले रहा था| रूसी भाषा का अच्छा ज्ञान था| उन दिनों बोल्शेविक क्रांति की पचासवीं वर्षगाँठ मनाई जा रही थी| वहाँ की भव्य परेड और कुछ दिनों बाद उन की विराट सैन्य शक्ति का प्रदर्शन भी देखा| सर्दी के मौसम में चारों ओर बर्फ ही बर्फ जमी रहती थी| वहाँ रहकर बर्फ में स्केटिंग करना भी सीख लिया था| लगभग दो वर्षों तक वहाँ रहा| बड़े अच्छे अच्छे मित्र मिले वहाँ जिन की स्मृतियाँ वर्षों तक रही|

रूस के बारे में मेरा यह मत है कि साहित्य और कला का वहाँ खूब विकास हुआ| उन्नीसवी शताब्दी में तो वहाँ विश्व के तत्कालीन सर्वश्रेष्ठ साहित्य, संगीत व नृत्य की रचना हुई थी| साहित्यकारों व कलाकारों को वहाँ खूब सम्मान मिलता था, ऐसा सम्मान मैनें अन्यत्र कहीं भी नहीं देखा| भारतीय फ़िल्में वहाँ बहुत अधिक लोकप्रिय थीं, और राजकपूर लोकप्रिय फ़िल्मी नायक था| भारत के बारे में अधिकाधिक जानने की इच्छा वहाँ के लोगों में रहती थी| बैले नृत्य नाटिकाएँ बहुत लोकप्रिय हुआ करती थीं, जहाँ हर अच्छी प्रस्तुति के बाद मिनटों तक तालियाँ बजती रहती थीं| अंत में कलाकारों को बापस मंच पर आकर दर्शकों का आभार व्यक्त करना पड़ता था| शकुन्तला और रामायण पर आधारित नृत्य नाटिकाएँ भी लोकप्रिय थीं| सैनिक सेवा वहाँ अनिवार्य थी| १८ वर्ष का होते ही हर नवयुवक को दो वर्ष तक सेना में नौकरी करना अनिवार्य था|

भयानक ठण्ड और संघर्षमय अभावपूर्ण जीवन के कारण कुल मिलाकर रूस एक कष्टभूमि ही था| पर वहाँ के लोगों के जीवन में जो जिजीविषा थी वह बड़ी प्रशंसनीय थी| उस समय के कितने ही कष्टों और अभावों के बावजूद भी लोगों का जीवन के प्रति बड़ा उत्साह था| अब तो स्थिति बहुत बदल गयी है| रूसी साम्यवाद उस समय चरम शिखर पर था| उन दिनों वहाँ घरों में स्नानघर नहीं होते थे| सार्वजनिक स्नानघर होते थे पुरुषों व महिलाओं के लिए अलग अलग जो एक हॉल की तरह होते थे, जहाँ लोग सप्ताह में एक दिन नग्न होकर स्नान करते थे| साईबेरिया में तो लोग महीने में एक दिन ही स्नान करते थे| लोगों को सार्वजनिक रूप से राजनीतिक चर्चा करने की अनुमति नहीं थी| लोग राजनीति पर वही बात करते जैसा उन्हें करने का निर्देश मिलता था, बाकी हर विषय पर खूब बातें करते| लोग खूब मिलनसार थे|

इस प्रवास के २०-२१ वर्षों बाद संयोग से युक्रेन के प्रवास में सोवियत संघ के बिखराव का आरम्भ भी देखा| 
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आज से ९५ वर्ष पूर्व आज ही के दिन ३० दिसंबर १९२२ को सोवियत संघ की स्थापना हुई थी जो ७० वर्षों तक विश्व की दूसरी सबसे बड़ी महाशक्ति रही| शायद पहली भी रही हो, कुछ कह नहीं सकते|

समय के साथ सब कुछ बदल जाता है| जीवन परिवर्तनशील है| सब कुछ भगवान की माया है| भगवान भी क्या क्या दृश्य दिखलाते हैं ! हे प्रभु, तुम्हारी इच्छा पूर्ण हो|
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ॐ तत्सत् | ॐ शांति शांति शांति | ॐ ॐ ॐ !!
३० दिसम्बर २०१७

Friday 29 December 2017

या तो अभी या फिर तीन-चार जन्मों के पश्चात .....

या तो अभी या फिर तीन-चार जन्मों के पश्चात .....
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यह मुझे ही नहीं सभी को जीवन में आध्यात्मिक दृष्टी से कई बार मार्ग दर्शन प्राप्त होता है जिसकी हम प्रायः उपेक्षा कर देते हैं| बार बार उपेक्षा कर देने पर अनेक कष्ट पाकर फिर कई जन्मों के पश्चात बापस उस चेतना में आते हैं जहाँ वह मार्गदर्शन मिलता है| पर तब तक कई जन्म व्यर्थ चले जाते हैं|
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हर निष्ठावान व्यक्ति के समक्ष दो मार्गों में से अनिवार्य रूप से एक मार्ग चुनने का विकल्प अवश्य आता है, जहाँ तटस्थ नहीं रह सकते| एक तो ऊर्ध्वगामी मार्ग है जो सीधा परमात्मा की ओर जाता है, दूसरा अधोगामी मार्ग है जो सांसारिक भोग विलास की ओर जाता है| अति तीव्र आकर्षण वाला यह अधोगामी मार्ग विष मिले हुए शहद की तरह है जो स्वाद में तो बहुत मीठा है पर अंततः कष्टमय और दुःखदायी है|
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योगमार्ग के अनुयायी हर उस साधक को जिसको कूटस्थ चैतन्य की अनुभूति होती है, ध्यान में उन सूक्ष्म लोकों का आभास या दर्शन अवश्य होता हैं जो उसके लिए कल्याणकारी हैं| साथ साथ एक अति प्रबल अधोगामी आकर्षण की भी अनुभूति होती है जो सांसारिक ऐश्वर्य का प्रलोभन देकर उस को अपनी ओर आकर्षित करता है| इस अधोगामी आकर्षण को ही अब्राहमिक मतों ने "शैतान" का नाम दिया है| "शैतान" कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि वासनाओं के प्रति वह अधोगामी आकर्षण ही है जिसे हम माया भी कह सकते हैं| इस माया की ओर आकर्षित होने वाले को तीन-चार जन्म व्यतीत हो जाने के पश्चात ही होश आता है और उसे वह विकल्प फिर मिलता है|
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यह संसार एक पाठशाला है जहाँ सब एक पाठ पढ़ने के लिए आते हैं| वह पाठ निरंतर पढ़ाया जा रहा है| जो उसे नहीं सीखते वे दुःख और कष्टों द्वारा उसे सीखने के लिए बाध्य कर दिए जाते हैं| संसार में दुःख और कष्ट आते हैं, उनका एक ही उद्देश्य है .... मनुष्य को सन्मार्ग पर चलने को बाध्य करना|
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वह मार्गदर्शन सभी को मिलता है| कोई यदि यह कहे कि उसे कभी भी कोई मार्गदर्शन नहीं मिला है तो वह असत्य बोल रहा है|
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सभी का कल्याण हो| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

कृपा शंकर
३० दिसंबर २०१७

३१ दिसंबर को निशाचर रात्री है, बच कर रहें .....

३१ दिसंबर को निशाचर रात्री है, बच कर रहें .....
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३१ दिसंबर की रात्री को अनेक लोगों द्वारा अत्यधिक मदिरापान, अभक्ष्य भोजन, फूहड़ नाच गाना, और अमर्यादित आचरण होता है | "निशा" रात को कहते हैं, और "चर" का अर्थ होता है चलना या खाना | जो लोग रात को अभक्ष्य भोजन करते हैं, या रात को अनावश्यक घूम कर आवारागर्दी करते हैं, वे निशाचर हैं | प्राचीन भारत में सिर्फ तामसिक असुर लोग ही रात को खाते थे | अन्य लोग रात को नहीं खाते थे | ३१ दिसंबर की रात को लगभग पूरी दुनिया निशाचर बन जाएगी | अतः बच कर रहें, सत्संग का आयोजन करें या भगवान का ध्यान करें |
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तीन चार साल पहिले हम चार-पाँच मित्रों ने ३१ दिसंबर की रात्री को कड़कड़ाती ठण्ड में श्मशान भूमि की नीरवता में रहकर तप करने वाले बाबा आनंदगिरी के साथ श्मशान भूमि के एक कमरे में सत्संग भजन व ध्यान किया था | वे भी बहुत प्रसन्न हुए | फिर दुबारा अगले वर्ष कोई मित्र तैयार नहीं हुआ |
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जिस रात भगवान का भजन नहीं होता वह राक्षस रात्री है, और जिस रात भगवान का भजन हो जाए वह देव रात्रि है | सबको शुभ कामनाएँ |


ॐ तत्सत् !ॐ ॐ ॐ !!
३० दिसंबर २०१७

हमें भस्म क्यों धारण करनी चाहिए ? .....

ब्रह्माण्ड के स्वामी को भस्म सर्वाधिक प्रिय क्यों ? हमें भस्म क्यों धारण करनी चाहिए ?
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(यह लेख थोड़ा लंबा है जो पूरा पढ़कर ही समझ में आयेगा)
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एक बार जब भगवान शिव समाधिस्थ थे तब मनोभव (मन में उत्पन्न होने वाला) मतिहीन कंदर्प (कामदेव) ने अन्य देवताओं के उकसाने पर सर्वव्यापी भगवान शिव पर कामवाण चलाया | भगवान शिव ने जब उस मनोज (कामदेव) पर दृष्टिपात किया तब कामदेव भगवान शिव की योगाग्नि से भस्म हो गया | कामदेव के बिना तो सृष्टि का विस्तार हो नहीं सकता अतः उसकी पत्नी रति बहुत विलाप करने लगी जिससे द्रवित होकर आशुतोष भगवान शिव ने मनोमय (कामदेव) की भस्म का अपनी देह पर लेप कर लिया, जिस से कामदेव जीवित हो उठा |
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भगवती माँ छिन्नमस्ता, कामदेव और उसकी पत्नी रति को भूमि पर पटक कर उनकी देह पर पर नृत्य करती हैं | फिर वे अपने ही हाथों से अपनी स्वयं की गर्दन काट लेती हैं | उनके धड़ से रक्त की तीन धाराएँ निकलती हैं जिनमें से मध्य की रक्तधारा का पान वे स्वयं करती हैं, और अन्य दो धाराओं का पान उनके दोनों ओर खड़ी वर्णिनी और डाकिनी करती हैं |
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(उपरोक्त दोनों का आध्यात्मिक अर्थ बहुत गहन है जिसे किसी सुपात्र को समझाने के लिए समय व बहुत धैर्य चाहिए | यहाँ फेसबुक पर यह बताना संभव नहीं है|)
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तपस्वी साधू लोग ठंडी और गर्मी से बचाव के लिए भस्म लेपन करते हैं | त्याग तपस्या और वैराग्य का प्रतीक यह भस्म स्नान रुद्रयामल तंत्र के अनुसार अग्नि-स्नान है जो भगवन शिव को सर्वाधिक प्रिय है | शैवागम के वर्णोद्धार तंत्र के अनुसार भस्म का "भ"कार स्वयं परमकुण्डलिनी है जो महामोक्षदायक और सर्व शक्तियों से युक्त है | स्म क्रियास्वरूप भूतकाल है |
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आज्ञाचक्र और सहस्त्रार के मध्य की नाड़ी "उत्तरा सुषुम्ना" है जिस में प्रवेश कर कुंडलिनी, परमकुंडलिनी हो जाती है | योगमार्ग के साधक को अपनी चेतना निरंतर इसी उत्तरा सुषुम्ना में रखनी चाहिए और सहस्त्रार जो गुरुचरणों का प्रतीक है, पर ध्यान करना चाहिए| योगी के लिए आज्ञाचक्र ही उसका ह्रदय है | सहस्त्रार में स्थिति के पश्चात ही अन्य लोक भी दिखाई देने लगते हैं और अनेक सिद्धियाँ भी प्राप्त होने लगती हैं |
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ब्रह्माण्ड के स्वामी को भस्म सर्वाधिक प्रिय क्यों है ? यह योगाग्नि में जलकर भस्म हो कर परम पवित्र होने का सन्देश है | मृत्यु के पश्चात् देह को जलाने से सब कुछ नष्ट नहीं होता, भस्म शेष रह जाती है, जो हमारी नश्वर शाश्वत आत्मा की प्रतीक है | यह भस्म प्रदर्शित करती है कि संसार में सब कुछ नश्वर है, केवल भस्म अर्थात् आत्मा ही अमर, अजर और अविनाशी है | अतएव, भस्म (आत्मा) ही सत्य है और शेष सब मिथ्या | भगवान शिव देह पर भस्म धारण करते हैं क्योंकि उन के लिए एक आत्मा को छोड़कर संसार के अन्य सब पदार्थ निरर्थक हैं | यह भस्म ही हमें यह याद दिलाती है कि हमारा जीवन क्षणिक है | भगवान शिव पर भस्म चढ़ाना एवं भस्म का त्रिपुंड लगाना कोटि महायज्ञ करने के सामान होता है | भगवन शिव अपनी भक्त-वत्सलता प्रकट करते हैं अपने भक्तों के चिताभस्म को अपने श्रीअंग का भूषण बनाकर |
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कुछ शैव सम्प्रदायों के साधुओं के अखाड़ों में विभूति-नारायण की पूजा होती है | विभूति-नारायण ..... अखाड़े के गुरुओं की देह से उतरी हुई भस्म का गोला ही होता है, जिसे वेदी पर रखकर पूजा जाता है| कुछ वैष्णव सम्प्रदायों के वैरागी साधू भी देह पर भस्म ही लगा कर रखते हैं |
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"सोइ जानइ जेहि देहु जनाइ" भगवान जिसको कृपा कर के अपना ज्ञान देते है वो ही उन्हें जान सकता है | बाकी तो .... धर्मस्य तत्वं निहितं गुहायां .... वाली बात है | समस्त सृष्टि भगवान शिव का एक संकल्प मात्र यानि उनके मन का एक विचार ही है | भौतिक पदार्थों के अस्तित्व के पीछे एक ऊर्जा है, उस ऊर्जा के पीछे एक चैतन्य है, और वह परम चैतन्य ही भगवन शिव हैं | उनका न कोई आदि है और ना कोई अंत | सब कुछ उन्हीं में घटित हो रहा है और सब कुछ वे ही हैं | जीव की अंतिम परिणिति शिव है | प्रत्येक जीव का अंततः शिव बनना निश्चित है | उन्हें समझने के लिए जीव को स्वयं शिव होना पड़ता है | वे हम सब को ज्ञान, भक्ति और वैराग्य दें !
शिवमस्तु ! ॐ शिव ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
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कृपा शंकर
३१ मई २०१३

भस्म, त्रिपुंड एवं रुद्राक्षमाला धारण किये बगैर शिवपूजा उतनी फलदायिनी नहीं होती .....

भस्म, त्रिपुंड एवं रुद्राक्षमाला धारण किये बगैर शिवपूजा उतनी फलदायिनी नहीं होती .....
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इस विषय पर पुराणोक्त एक कथा है कि मतिहीन कामदेव ने ध्यानस्थ शिव जी को कामोद्दीप्त करने के लिए कामवाण चलाया था| जिस से शिव जी की समाधी भंग हुई और उनकी क्रोधाग्नि में कामदेव जल कर भस्म हो गया| कामदेव की पत्नी रति के करुण विलाप से द्रवित होकर आशुतोष भगवान शिव ने कामदेव के शरीर की भस्म को अपने शरीर पर लेप लिया और कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया| मनोभव यानि मन से उत्पन्न होने वाले कंदर्प यानि कामदेव की भस्म को अपनी देह पर रमाकर भगवान शिव ने सस्नेह घोषणा की कि 'आज से भक्त/अभक्त सबके देहावाशेषों की भस्म ही मेरा श्रेष्ठ भूषण होगी|' शैव ग्रंथों में लिखा है कि --- भस्म, त्रिपुंड एवं रुद्राक्षमाला धारण किये बगैर शिवपूजा उतनी फलदायिनी नहीं होती| इसीलिए शिवभक्त भस्म, त्रिपुंड और रुद्राक्ष माला धारण करते हैं| यह कथा ब्रह्मचर्य और वैराग्य की महिमा को भी प्रकाशित करती है|
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भस्मलेप को अग्नि-स्नान माना जाता है| यामल तंत्र के अनुसार सात प्रकार के स्नानों में अग्नि-स्नान सर्वश्रेष्ठ है| भस्म देह की गन्दगी को दूर करता है| भगवान शिव ने अपने लिए आग्नेय स्नान को चुन रखा है| शैवागम के तन्त्र ग्रंथों में इस विषय पर एक बड़ा विलक्षण बर्णन है जो ज्ञान की पराकाष्ठा है| 'भ'कार शब्द की व्याख्या भगवान शिव पार्वती जी को करते हैं .....

"भकारम् श्रुणु चार्वंगी स्वयं परमकुंडली|
महामोक्षप्रदं वर्ण तरुणादित्य संप्रभं ||
त्रिशक्तिसहितं वर्ण विविन्दुं सहितं प्रिये|
आत्मादि तत्त्वसंयुक्तं भकारं प्रणमाम्यह्म्||"
महादेवी को संबोधित करते हुए महादेव कहते हैं कि हे (चारू+अंगी) सुन्दर देह धारिणी, 'भ'कार 'परमकुंडली' है| यह महामोक्षदायी है जो सूर्य की तरह तेजोद्दीप्त है| इसमें तीनों देवों की शक्तियां निहित हैं|
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यहाँ 'परमकुंडली' का अर्थ बताना अति आवश्यक है| मूलाधार से आज्ञाचक्र तक का मार्ग अपरा सुषुम्ना है| जब कुण्डलिनी महाशक्ति गुरुकृपा से आज्ञाचक्र को भेद कर सहस्त्रार में प्रवेश करती है तब वह मार्ग उत्तरा सुषुम्ना है| अपरा सुषुम्ना में कुण्डलिनी जागती है, और उत्तरा सुषुम्ना के मार्ग में यह "परमकुंडली" कहलाती है|
महादेव 'भ'कार द्वारा उस महामोक्षदायी परमकुण्डली की ओर संकेत करते हुए ज्ञानी साधकों की दृष्टि आकर्षित करते हुए उन्हें कुंडली जागृत कर के उत्तरा सुषुम्ना की ओर बढने की प्रेरणा देते हैं कि वे शिवमय हो जाएँ|
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शिवमस्तु ! ॐ स्वस्ति ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३१ मई २०१३

अंत मति सो गति ....

अंत मति सो गति .....
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गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि अंतकाल में भ्रूमध्य में ओंकार का स्मरण करो, निज चेतना को कूटस्थ में रखो आदि| अनेक महात्मा कहते हैं मूर्धा में ओंकार का निरंतर जप करो| योगी लोग कहते हैं कि आज्ञाचक्र के प्रति सजग रहो और ब्रह्मरंध्र में ओंकार का ध्यानपूर्वक जप करो आदि| इन सब के पीछे कारण हैं|
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मनुष्य जब स्वभाविक रूप से देहत्याग करता है यानी मरता है, उस से पहिले ही यह तय हो जाता है कि उसे कहाँ किस देह में और कैसे जन्म लेना है| इस देह को छोड़ने से पहिले ही दूसरी देह की भूमिका बन जाती है| अंत समय में जैसी मति होती है वैसी ही गति होती है| इस देह में ग्यारह छिद्र हैं जिनसे जीवात्मा का मृत्यु के समय निकास होता है ..... दो आँख, दो कान, दो नाक, एक पायु, एक उपस्थ, एक नाभि, एक मुख और एक मूर्धा| यह मूर्धा वाला मार्ग अति सूक्ष्म है और पुण्यात्माओं के लिए ही है| नरकगामी जीव पायु यानि गुदामार्ग से बाहर निकलता है| कामुक व्यक्ति मुत्रेंद्रियों से निकलता है और निकृष्ट योनियों में जाता है| नाभि से निकलने वाला प्रेत बनता है| भोजन लोलूप व्यक्ति मुँह से निकलता है, गंध प्रेमी नाक से, संगीत प्रेमी कान से, और तपस्वी व्यक्ति आँख से निकलता है| अंत समय में जहाँ जिसकी चेतना है वह उसी मार्ग से निकलता है और सब की अपनी अपनी गतियाँ हैं|
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जो ब्राह्मण संकल्प कर के और दक्षिणा लेकर भी यज्ञादि अनुष्ठान विधिपूर्वक नहीं करते/कराते वे ब्रह्मराक्षस बनते हैं| मद्य, मांस और परस्त्री का भोग करने वाला ब्राह्मण ब्रह्मपिशाच बनता है| इस तरह की कर्मों के अनुसार अनेक गतियाँ हैं| कर्मों का फल सभी को मिलता है, कोई इससे बच नहीं सकता|
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सबसे बुद्धिमानी का कार्य है परमात्मा से परम प्रेम, निरंतर स्मरण का अभ्यास और ध्यान | सभी को शुभ कामनाएँ | ॐ ॐ ॐ ||
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२७ दिसंबर २०१७

हृदयाकाशरूप ईश्वर से अभेद प्राप्त कर लेना मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी साधना और सबसे बड़ी उपलब्धि है .....

हृदयाकाशरूप ईश्वर से अभेद प्राप्त कर लेना मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी साधना और सबसे बड़ी उपलब्धि है .....
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बृहदारण्यक में राजा जनक को ऋषि याज्ञवल्क्य ने जो उपदेश दिए हैं, वे अति महत्वपूर्ण हैं| पर उनकी समाधि भाषा को कोई श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ आचार्य ही समझा सकता है| हृदयाकाश रूप ईश्वर और उससे अभेद प्राप्त करने का उपदेश भी ऋषि याज्ञवल्क्य के उपदेशों में है| मेरे जैसे अकिंचन व्यक्ति में कुछ कुछ अति अल्प मात्रा में समझते हुए भी उसे व्यक्त करने की थोड़ी सी भी सामर्थ्य इस जन्म में तो नहीं है| उसके लिए और जन्म लेना पड़ेगा|
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मुझे कोई मोक्ष नहीं चाहिए, मैं नित्य मुक्त हूँ| आत्मा पर पूर्व जन्मों के कर्मों के कारण जो अज्ञान रूपी आवरण पड़ा हुआ है, उस अज्ञान रूपी आवरण से मुक्त होने के लिए अभी और जन्म लेने ही पड़ेंगे| इस जन्म में तो यह संभव नहीं है| भगवान सनत्कुमार, ऋषि याज्ञवल्क्य व भगवान श्रीकृष्ण जैसे गुरु, और नारद, जनक व अर्जुन जैसे शिष्य व वेदव्यास जैसी प्रतिभाएँ इस भारतवर्ष की पुण्यभूमि में ही अवतरित हुई हैं| उससे भी पूर्व जब ब्रह्मा जी ने ऋषि अथर्व को, और अथर्व ने अन्य ऋषियों को ब्रह्मज्ञान दिया वह भी क्या युग रहा होगा !
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मूर्धा का द्वार .... सुषुम्ना, ब्रह्मरंध्र और उससे परे का लोक सामने प्रकाशमान होकर प्रशस्त है| लगता है यह इस देह रूपी वाहन को कैसे त्यागा जाए इसकी तैयारी करने का आदेश है| अब बचा खुचा जीवन परमात्मा की चेतना में ही निकले, अन्य कोई कामना नहीं रही है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२७ दिसंबर २०१७

कुछ प्यार भरे सुझाव और अनुरोध .....

कुछ प्यार भरे सुझाव और अनुरोध .....
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(१) रात्री को सोने से पूर्व बिस्तर पर ही सीधे बैठकर कम से कम आधे घंटे तक परमात्मा का ध्यान करें और निश्चिन्त होकर जगन्माता की गोद में ऐसे ही सो जाएँ जैसे एक बालक अपनी माँ की गोद में सोता है| यदि ध्यान नहीं लगता है तो गायत्री मन्त्र का या द्वादशाक्षरी भागवत मन्त्र का या अन्य किसी गुरु-प्रदत्त मन्त्र का जाप करते रहें| अपनी सारी चिंताएँ जगन्माता को या अपने इष्ट देव/देवी को सौंप दें| जब तक नींद नहीं आये तब तक मन्त्र का जाप करते रहें| किसी भी तरह की चिंता को समीप न आने दें|
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(२) प्रातःकाल उठते ही थोड़ा जल पीएँ और लघुशंकादि से निवृत होकर फिर कम से कम आधे घंटे तक जैसा ऊपर बताया है वैसे ही परमात्मा का ध्यान करें|
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(३) पूरे दिन परमात्मा की स्मृति अपने चित्त में बनाए रखें| यदि भूल जाएँ तो याद आते ही फिर उस स्मृति को अपनी चेतना में स्थापित करें| एक बात याद रखें कि आप जो कुछ भी कर रहे हो वह परमात्मा की प्रसन्नता के लिए ही कर रहे हो| ऐसा कोई काम न करें जो भगवान को प्रिय न हो| धीरे धीरे भगवान स्वयं ही आपके माध्यम से कार्य करना आरम्भ कर देंगे|
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(४) जो भी आप भोजन कर रहे हो वह भगवान को निवेदित कर के इस भाव से ग्रहण करें कि साक्षात भगवान ही उसे ग्रहण कर रहे हैं| खाएँ वही जो भगवान को प्रिय है| भोजन से पूर्व गीता में दिया ब्रह्मार्पणम् वाला मन्त्र धीरे से अवश्य बोलें, और प्रथम ग्रास के साथ "ॐ प्राणाय स्वाहा" मन्त्र भी धीरे से अवश्य बोलें|
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उपरोक्त तो न्यूनतम धर्माचरण है जिसका पालन करने से निश्चित रूप से सभी का कल्याण होगा| ये पंक्तियाँ स्वयं जगन्माता की प्रेरणा से ही लिखी जा रही हैं| सभी का कल्याण हो|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२५-१२-२०१७

सांता क्लॉज़ की वास्तविकता .....

सांता क्लॉज़ की वास्तविकता .....
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इस वर्ष पूरे भारत में अनेक हिन्दुओं ने क्रिसमस का पर्व ईसाईयों से भी अधिक उत्साह से मनाया| यह एक घोर आश्चर्य का विषय है कि भारत के प्रायः सभी हिन्दू विद्यालयों में जहाँ हिन्दू विद्यार्थी, हिन्दू अध्यापक, हिन्दू व्यवस्थापक और हिन्दू मालिक हैं, क्रिसमस का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया गया| मुस्लिमों ने अपने बालकों को इस उत्सव से दूर रखा पर हिन्दुओं ने नहीं| बच्चों को सांता क्लॉज़ की ड्रेस पहनाई गयी, टॉफियाँ बाँटी गयी और भाषण दिया गया कि हमें ईसा मसीह के आदर्शों पर चलना चाहिए| कई हिन्दू दुकानदारों ने भी अपनी दुकानों पर सांता क्लॉज़ की बड़ी बड़ी फोटो लगाई या किसी आदमी को सांता क्लॉज़ की ड्रेस पहनाकर बैठाया| कई महिलाओं ने भी अपना शौक पूरा करने के लिए सांता क्लॉज़ की ड्रेस पहनी|
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वास्तविकता यह है कि सांता क्लॉज़ नाम का चरित्र कभी इतिहास में जन्मा ही नहीं| यह ईसा की चौथी शताब्दी में सैंट निकोलस नाम के एक ग्रीक पादरी के दिमाग की कल्पना थी जो एशिया माइनर (वर्तमान तुर्की) के म्यरा नामक स्थान में जन्मा था| इसके माँ-बाप दोनों ही बहुत अमीर थे जो अपनी मृत्यु से पूर्व इसके लिए बहुत सारा धन छोड़ गए थे|
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सन १८२३ ई.में सांता क्लॉज़ नाम की एक कविता अमेरिका और कनाडा में अति लोकप्रिय हुई, और उन्नीसवीं सदी में सांता क्लॉज़ के ऊपर लिखे गए कई गाने वहाँ अत्यधिक लोकप्रिय हुए| ठण्ड से पीड़ित स्केंडेनेवियन देशों .... नोर्वे, स्वीडन और डेनमार्क के, व अन्य ठन्डे ईसाई देशों के पादरियों ने ठण्ड से पीड़ित अपने देशों के बच्चों के मन को बहलाने के लिए सांता क्लॉज़ की कल्पना को खूब लोकप्रिय बनाया| बच्चों के मनोरंजन के लिए जैसे सुपरमैन, बैटमैन, स्पाइडरमैन, ग्रीन लैंटर्न, हल्क, डोनाल्ड डक, मिक्की माउस इत्यादि अनेकों कार्टून चरित्रों की कल्पना की गयी है वैसे ही संता क्लॉज़ भी एक काल्पनिक चरित्र है|
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भारत में इसकी लोकप्रियता का कारण बाजारवाद और अपने लोगों का विज्ञापनों से प्रभावित होना मात्र ही है| हम लोग एक आत्महीनता और हीन भावना से ग्रस्त हैं, अतः बेवश होकर बच्चों की खुशी के लिये प्रसन्न होने का नाटक कर के यह नाटक मनाते हैं| यदि यह एक बच्चों के लिए मनोरंजन का साधन मात्र है वहाँ तक तो ठीक है, पर इसमें किसी पंथ विशेष की महानता का प्रचार नहीं होना चाहिए|
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अनेक लोगों ने बीयर या स्कॉच पी कर, कुछ ने तो सपरिवार डांस भी किया, पार्टी भी की और एक दूसरे को खूब बधाइयां भी दीं|

सभी को धन्यवाद|
२५ दिसंबर २०१७

क्रिसमस, बड़ा दिन, ईसा मसीह का जन्मदिन और उत्सव .......

क्रिसमस, बड़ा दिन, ईसा मसीह का जन्मदिन और उत्सव .......
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विश्व में २५ दिसंबर को ईसा मसीह के जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं| पर इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि ईसा मसीह का जन्म २५ दिसंबर को ही हुआ था| रोमन सम्राट कोंस्टेटाइन द ग्रेट के आदेश से ही २५ दिसंबर को ईसा मसीह के जन्मदिवस के रूप में मनाना आरम्भ किया गया था| पर यह सम्राट स्वयं ईसाई नहीं था बल्कि सूर्य का उपासक एक pagan विधर्मी था| इसने ईसाईयत का उपयोग अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए किया| जब यह अपनी मृत्यु शैय्या पर असहाय था तब पादरियों ने बपतीस्मा पढ़कर बलात इसको ईसाई बना दिया| इस विषय के विद्वान् ही जानते होंगे या किसी को पता ही नहीं होगा कि ईसा मसीह का जन्म कब हुआ था| यह मैंने जिज्ञासावश ही लिखा है, किसी से मेरा कोई द्वेष नहीं है| सभी श्रद्धालुओं को मैं क्रिसमस की शुभ कामनाएँ अर्पित करता हूँ|
(पश्चिमी जगत के ही कुछ शोधकर्ता यह दावा भी कर रहे हैं कि जीसस क्राइस्ट नाम का व्यक्ति कभी हुआ ही नहीं| उन के अनुसार सैंट पॉल नाम के पादरी के मन की कल्पना और प्रचार ही जीसस क्राइस्ट की वास्तविकता है|)
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बड़ा दिन एक ज्योतिषीय घटना मात्र है| बचपन से २५ दिसंबर को ही मैं बड़ा दिन सुनता आया था, पर ज्योतिषीय दृष्टी से यह हमारे लिए बड़ा दिन नहीं है| इस दिन किसी जमाने में उत्तरी गोलार्ध में सबसे लम्बी रात, और दक्षिणी गोलार्ध में सबसे लंबा दिन होता था| पर आजकल ऐसा २१ दिसंबर के आगे पीछे होता है| अंग्रेजों के राज्य में क्रिसमस सबसे बड़े त्यौहार के रूप में मनाया जाता था इसलिए इस दिन का नाम "बड़ा दिन" पड़ गया| ज्योतिषीय दृष्टी से तो यह छोटा दिन है क्योंकि इन दिनों उत्तरी गोलार्ध में दिन बहुत छोटे होते हैं और रात बहुत लम्बी होती है| उत्तरी गोलार्ध में सबसे बड़ा दिन तो २१ जून के आगे पीछे होता है| "क्रिसमस" शब्द संभवतः "कृष्ण मास" से बना है| मुझे ज्योतिषीय गणना का ज्ञान नहीं है अतः इस विषय पर और नहीं लिख सकता| यह ज्योतिषियों का विषय है|
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भगवान की भक्ति एकांत में मन लगाकर होती है| सार्वजनिक रूप से करनी है तो भजन-कीर्तन व सामूहिक ध्यान द्वारा होती है| उसमें कोई नशा कर के नाच-गाना नहीं होता| नशे में नाचना-गाना एक मानसिक मनोरंजन मात्र है, कोई भक्ति नहीं| पर अधिकाँश श्रद्धालु क्रिसमस पर शराब पी कर, टर्की (एक प्रकार की बतख) का मांस ब्रेड सॉस के साथ खाकर, और नाच गा कर उत्सव मनाते हैं| यह मूल रूप से स्पेन और पुर्तगाल की परम्परा है जो आजकल भारत में खूब प्रचलित हो गयी है|
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सौभाग्य से मैंने दो-तीन बार ऐसे निष्ठावान श्रद्धालु, जन्म से ही ईसाई विदेशी भक्तों के साथ भी क्रिसमस मनाई है जिन्होनें पूरी रात भगवान का ध्यान किया और भजन गाये| कोई नशा नहीं, कोई मांसाहार नहीं, ऐसे आस्थावान भी होते हैं|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२५ दिसंबर २०१७

आज रात्री से ही यथासंभव अधिकाधिक समय परमात्मा का ध्यान करें .....

आज रात्री से ही यथासंभव अधिकाधिक समय परमात्मा का ध्यान करें .....
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हम परमात्मा की कृपा से ही जीवित हैं, अन्न-जल-वस्त्र-आवास आदि जैसे किसी बाहरी साधन मात्र से नहीं. यह सृष्टि परमात्मा की है हमारी नहीं, इसको चलाना उसी का कार्य है| हमारा कार्य है जहाँ भी उसने हमें नियुक्त किया है वहाँ उसके द्वारा दिए हुए कार्य को पूरी निष्ठा से उसी की चेतना में स्थित होकर यथासंभव पूर्णता से सम्पन्न करना| किसी भी प्रकार की किसी चिंता की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि भगवान का गीता में शाश्वत वचन है ....
"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते | तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ||"
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हम भाग्यशाली हैं कि उसने हमारे ह्रदय में अपने प्रति परम प्रेम जागृत किया है और स्वयं को जानने की अभीप्सा उत्पन्न की है| जो नारकीय जीवन हम जी रहे हैं उस से तो अच्छा है परमात्मा का निरंतर चिंतन करते हुए इस देह रूपी वाहन का ही त्याग कर दें| इस देह रूपी वाहन का क्या लाभ जिस पर यात्रा करते हुए हम अपने प्रियतम परमात्मा को न पा सकें? रही बात रक्षा की तो भगवान का रामायण में यह शाश्वत वचन भी है ...
"सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते| अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं मम||"
अब भी यदि संदेह है तो उसका कोई उपचार नहीं है|
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परमात्मा को पाना हमारा सर्वोच्च यानी प्रथम अंतिम और एकमात्र कर्त्तव्य है| अन्य सारे कार्य उसी की भूमिका मात्र हैं| इस भौतिक देह में जन्म से पूर्व भी वह ही हमारे साथ था, और इस देह के शान्त होने के पश्चात भी सिर्फ वह शाश्वत मित्र ही हमारे साथ रहेगा| उसका साथ शाश्वत है| जो कुछ भी हमें प्राप्त है वह सब उसी का है| माँ-बाप, भाई-बहिनों, और सम्बन्धियों-मित्रों का प्यार ..... सब उसी का प्यार था जो इन सब के माध्यम से प्राप्त हुआ| वास्तव में वह स्वयं ही इन सब के रूपों में आया| हमारा ऐकमात्र सम्बन्ध भी सिर्फ उसी से है| वह ही हमारे ह्रदय में धड़क रहा है, वह ही हमारे फेफड़ों से सांस ले रहा है, वह ही इन आँखों से देख रहा है, वह ही इन पैरों से चल रहा है| जिस क्षण वह इस ह्रदय में धड़कना बन्द कर देगा उस क्षण से हमारा कुछ भी नहीं रहेगा| अतः जब तक होश है तब तक उस को पा लेना ही हमारा परम कर्त्तव्य है|
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इस दिशा में हम अभी से प्रयास करें| जितना आवश्यक है उतना विश्राम तो हम करें पर रात्री की नीरव शांति का समय अन्य सब अनावश्यक कार्यों को त्याग कर परमात्मा के ध्यान में ही व्यतीत करें| कौन क्या कहता है इस का कोई महत्त्व नहीं है, हम परमात्मा की दृष्टी में क्या हैं, सिर्फ इसी का महत्त्व है|
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अतः आज रात्री से ही यह शुभ कार्य करें| आज रात्री को आठ बजे से कल प्रातः छः बजे तक मौन रखें और यथासंभव अधिकाधिक समय परमात्मा के ध्यान में ही व्यतीत करें| परमात्मा का आशीर्वाद सदा हमारे साथ है| सभी की रक्षा होगी|
ॐ तत्सत् ! ॐ श्रीगुरवे नमः ! ॐ ॐ ॐ !!
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कृपा शंकर
२४ दिसंबर २०१७

उपासना .....

उपासना :
पूर्ण प्रेमपूर्वक आराम से शान्त होकर किसी एकान्त व शान्त स्थान पर सीधे बैठकर भ्रूमध्य में परमात्मा की एक बार तो साकार कल्पना करें, फिर उसे समस्त सृष्टि में फैला दें. सारी सृष्टि उन्हीं में समाहित है और वे सर्वत्र हैं. उनके साथ एक हों, वे हमारे से पृथक नहीं हैं. स्वयं की पृथकता को उनमें समाहित यानि समर्पित कर दें. प्रयासपूर्वक निज चेतना को आज्ञाचक्र से ऊपर ही रखें. आध्यात्मिक दृष्टी से आज्ञाचक्र ही हमारा हृदय है, न कि भौतिक हृदय. आने जाने वाली हर साँस के प्रति सजग रहें. स्वयं परमात्मा ही साक्षात् प्रत्यक्ष रूप से हमारी इस देह से साँस ले रहे हैं. हमारी हर साँस सारे ब्रह्मांड की, सभी प्राणियों की, परमात्मा द्वारा ली जा रही साँस है. हम "यह देह नहीं, परमात्मा की सर्वव्यापकता हैं", यह भाव बनाए रखें. आने जाने वाली हर साँस के साथ यदि "हँ" और "सः" का मानसिक जप करें तो यह "अजपा-जप" है, और पृष्ठभूमि में सुन रही शान्त ध्वनि को सुनते हुए प्रणव का मानसिक जप करते रहें तो यह "ओंकार साधना" है. साधक, साधना और साध्य स्वयं परमात्मा हैं. वैसे ही उपासक, उपासना और उपास्य स्वयं परब्रह्म परमात्मा परमशिव हैं. किसी भी तरह का श्रेय न लें. कर्ता स्वयं भगवान परमशिव हैं. लौकिक और आध्यात्मिक दृष्टी से उपास्य के सारे गुण उपासक में आने स्वाभाविक हैं. परमात्मा ही एकमात्र कर्ता है, एकमात्र अस्तित्व भी उन्हीं का है.
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२३ - १२ - २०१७

क्रिसमस पर धूमधाम ....


क्रिसमस के पर्व पर ईसाई देशों में, और भारत के भी ईसाई बहुल क्षेत्रों में बड़ी बहार रहती है| २४ दिसंबर की रात को श्रद्धालू रात भर खूब क्रिसमस के विशेष भजन (Carols) गाते हैं| इस दिन को अधिकांश लोग तो अपनी मनपसंद की खूब शराब पी कर और नाच गा कर मनाते हैं| यह नाचने और गाने की परम्परा स्पेन और पुर्तगाल से चली थी जो अब सारे ईसाई विश्व में प्रचलित है| इस दिन एक दूसरे को खूब उपहार भी देते हैं| समृद्ध लोग तो इस दिन Turkey नाम के एक पक्षी विशेष का मांस पका कर ब्रेड सॉस के साथ खाते हैं| क्रिसमस के दिन शराब पी कर Turkey नाम के पक्षी का मांस ब्रेड सॉस के साथ खाना एक ईसाई परम्परा है| इस दिन अच्छी से अच्छी शराब पीने और पिलाने को अधिकाँश ईसाई लोग अपनी शान मानते हैं|
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मैं शुद्ध शाकाहारी हूँ और शराब नहीं पीता पर एक समुदाय विशेष के अमेरिकन और इटालियन मित्रों के साथ दो बार क्रिसमस मनाई है जिन्होनें एक दूसरे को खूब उपहार दिए और रात भर अपनी भाषाओं में खूब Carols गाये| इस समुदाय के लोग इस दिन एक तरह का सत्संग भी करते हैं जिसमें कुछ समय ध्यान साधना भी करते हैं|
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यूरोप में बेल्जियम व नीदरलैंड में और कनाडा में भी क्रिसमस मनाने का अवसर मिला है| यह दिन एक आस्था का दिन है जिसे शराब पी कर मौज मस्ती और नाच गा कर मनाते हैं|
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सभी ईसाई मित्रों को इस दिन की शुभ कामनाएँ|


२३ दिसंबर २०१७

भारत सरकार के समक्ष चुनौतियाँ .....

भारत सरकार के समक्ष चुनौतियाँ .....
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गुजरात के चुनाव भाजपा के लिए निद्रा से जगाने वाली एक चेतावनी है| सब कुछ अर्थव्यवस्था, विकास और नरेन्द्र मोदी ही नहीं हैं जो निःसंदेह भारत के अब तक के सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्री हैं| पर यह नहीं भूलना चाहिए कि उन्हें हिन्दुओं ने एक विशेष अपेक्षा के साथ चुना है| कांग्रेस का शासन हिन्दुओं के प्रति घृणा से भरा और पूर्णतः दुर्भावनापूर्ण था| भाजपा को हिन्दुओं की इन अपेक्षाओं को पूर्ण करना ही पड़ेगा .....
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(१) हिन्दू मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्ति, (२) हिन्दुओं को अपने शिक्षण संस्थानों में अपना धर्म पढ़ाने की छूट, (३) राम मंदिर का निर्माण, (४) धारा ३७० को हटाना, (५) सामान नागरिक संहिता, (६) सनातन संस्कृति का सम्मान, आदि आदि|
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सन २०१९ के आम चुनावों से पूर्व भाजपा सरकार को अपने अस्तित्व की रक्षा हेतु हिन्दुओं की इन भावनाओं का सम्मान करते हुए उनकी अपेक्षाओं को पूर्ण करना ही होगा|
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सभी को यह पता है कि भारत की भ्रष्ट नौकरशाही और विदेशों से नियंत्रित प्रेस भारत में किसी भी प्रकार के विकास के विरुद्ध है| भारत में भारी भ्रष्टाचार अभी भी है, और हर कदम पर घूस देनी पड़ती है|
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साफ़ सुथरी सडकें और बड़ी बड़ी इमारतें ही विकास नहीं हैं| वास्तविक विकास है ..... भारत के नागरिकों का उन्नत चरित्रवान, राष्ट्रभक्त, और कर्तव्यनिष्ठ होना| विकास व्यक्ति के भीतर है, बाहर नहीं| निज आत्मा का विकास ही वास्तविक विकास है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२१ दिसंबर २०१७

मेरी आस्था अब बाहरी जगत से लगभग समाप्त हो चुकी है .....

मेरी आस्था अब बाहरी जगत से लगभग समाप्त हो चुकी है. किसी से भी अब कोई अपेक्षा, आशा और कामना नहीं रही है. एकमात्र आस्था परमात्मा में ही बची है. वह आस्था ही मेरा जीवन है. दिन प्रतिदिन अधिकाधिक अंतर्मुखी हो रहा हूँ. यह बाहर का जगत बड़ा ही निराशाजनक और दुःखदायी है. इसमें अब कोई रूचि नहीं है. एकमात्र सत्य परमात्मा ही है.
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मैं सिर्फ उन्हीं लोगों के संपर्क में रहना चाहता हूँ जिन्हें परमात्मा से प्रेम है, जो दिनरात निरंतर परमात्मा का चिंतन करते हैं और परमात्मा को पाना चाहते हैं. अन्यों से अब कोई लेना-देना नहीं है.
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एक आलोकमय सृष्टि मेरे समक्ष है जहाँ कोई अन्धकार नहीं है, प्रकाश ही प्रकाश है, वही मेरा गंतव्य है. भगवान श्रीकृष्ण के शब्दों में ....
"न तद भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः |
यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ||"
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

२१ दिसंबर २०१७

गण, गणपति, पंचप्राण, दश महाविद्याएँ और कुण्डलिनी महाशक्ति .......

गण, गणपति, पंचप्राण, दश महाविद्याएँ और कुण्डलिनी महाशक्ति .......
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"ॐ नमो गणेभ्यो गणपतिभ्यश्च वो नमो नमः" | वे कौन से गण हैं जिनके गणपति श्री गणेश जी हैं ? मेरी दृष्टि में इस का उत्तर है ..... पंच प्राण ही वे गण हैं जिनके अधिपति ॐकार रूप में श्री गणेश जी हैं | वे ही प्रथम पूज्य हैं |
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मेरी अनुभूति से ॐकार ही सर्वव्यापी प्राण तत्व है, यह ॐकार ही प्राण तत्व के रूप में परमात्मा की सर्वप्रथम अभिव्यक्ति है, और साकार रूप में संसारी लोगों के लिए ये ही श्रीगणेश जी हैं |
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जहाँ तक मैं समझता हूँ, ॐकार पर ध्यान ही प्राण तत्व की साधना है क्योंकि ॐकार ही समस्त सृष्टि का प्राण है | यह प्राण तत्व ही कुण्डलिनी महाशक्ति के रूप में मूलाधार चक्र में व्यक्त होता है और यह कुण्डलिनी ही सुषुम्ना मार्ग से सभी चक्रों को भेदती हुई सहस्त्रार में प्रवेश कर अज्ञान का नाश करती है | प्राण का घनीभूत रूप ही कुण्डलिनी महाशक्ति है |
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सहस्त्रार ही श्रीगुरुचरण हैं, सहस्त्रार पर ध्यान ही श्रीगुरुचरणों का ध्यान है और सहस्त्रार में स्थिति ही श्रीगुरुचरणों में आश्रय है | सहस्त्रार से परे जो परब्रह्म यानि परमशिव हैं वे अनुभूतिगम्य और अनिर्वचनीय हैं |
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इन पंच प्राणों के पाँच सौम्य और पाँच उग्र रूप ही दश महाविद्याएँ हैं |
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सार की बात यह है कि ॐकार से बड़ा कोई मन्त्र नहीं है, और आत्मानुसंधान से बड़ा कोई तंत्र नहीं है | ॐकार पर ध्यान ही सर्वश्रेष्ठ साकार उपासना है |
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२१ दिसंबर २०१७

अपनी चेतना का सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में विस्तार करें .....

धारणा व ध्यान :---
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अपनी चेतना का सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में विस्तार करें .....

यह सम्पूर्ण अनन्त ब्रह्माण्ड मेरा घर है, सभी प्राणी मेरे साथ एक हैं, उनका कल्याण ही मेरा कल्याण है| पूरी समष्टि के साथ मैं एक हूँ, मैं किसी से पृथक नहीं हूँ, सभी मेरे ही भाग हैं, मैं यह देह नहीं, परमात्मा की अनंतता हूँ|
सम्पूर्ण समष्टि मैं स्वयं हूँ| यह सम्पूर्ण सृष्टि, सारा जड़ और चेतन मैं ही हूँ| यह पूरा अंतरिक्ष, पूरा आकाश मैं ही हूँ| सब जातियाँ, सारे वर्ण, सारे मत-मतान्तर, सारे सम्प्रदाय और सारे विचार व सिद्धांत मेरे ही हैं|

मैं अपना प्रेम सबके ह्रदय में जागृत कर रहा हूँ| मेरा अनंत प्रेम सबके ह्रदय में जागृत हो रहा है| मैं अनंत प्रेम हूँ| मैं इस सृष्टि की की आत्मा हूँ जो प्रत्येक अणु के ह्रदय में है|

मैं स्वयं ही परम प्रेम हूँ, मैं ही परमात्मा की सर्वव्यापकता हूँ, मैं ही सभी के हृदयों में धडकता हूँ| मैं परमात्मा के साथ एक हूँ, उनमें और मुझ में कोई भेद नहीं है|

सोsहं ! शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि ! ॐ ॐ ॐ !!
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कृपया याद रखें ........ जन्म से कोई पापी नहीं है| आप पापी नहीं हैं| आप परमात्मा के दिव्य अमृत पुत्र हैं| जो परमात्मा का है वह आपका है, उस पर आपका जन्मसिद्ध अधिकार है| किसी पिता का पुत्र भटक जाए तो पिता क्या प्रसन्न रह सकता है| भगवान भी आप के दूर जाने से व्यथित हैं| भगवान के पास सब कुछ है पर आपका प्रेम नहीं है जिसके लिए वे भी तरसते हैं| क्या आप अपना अहैतुकी प्रेम उन्हें बापस नहीं दे सकते? उन्होंने भी तो आप को हर चीज बिना किसी शर्त के दी है| आप अपना सम्पूर्ण प्रेम उन्हें बिना किसी शर्त के दें|
आप भिखारी नहीं हैं| आपके पास कोई भिखारी आये तो आप उसे भिखारी का ही भाग देंगे| पर अपने पुत्र को आप सब कुछ दे देंगे| वैसे ही परमात्मा के पास आप भिखारी के रूप में गए तो आपको भिखारी का ही भाग मिलेगा पर उसके दिव्य पुत्र के रूप में जाएंगे तो भगवान अपने आप को आप को दे देंगे|
मनुष्य जीवन का लक्ष्य ही परमात्मा की प्राप्ति है| आप स्वयं को उन्हें सौंप दें, आप उनके हो जाएँ पूर्ण रूप से तो भगवन भी आपके हो जायेंगे पूर्ण रूप से| अपने ह्रदय का सम्पूर्ण प्रेम बिना किसी शर्त के उन्हें दो| ईश्वर को पाना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है|

ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
२० दिसंबर २०१७

आजकल सड़कों पर चलते हुए डर लगता है....

आजकल सड़कों पर चलते हुए डर लगता है....
(१) आवारा सांडों से ,
(२) तीब्र गति से चलते हुए दुपहिया वाहनों से.
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(१) गोसंवर्धन कानून सिर्फ देशी नस्ल की गायों के लिए ही होना चाहिए, विलायती नस्ल की गायों व सांडों के लिए नहीं| विलायती यानि विदेशी नस्ल (जो सूअर के जीन के साथ मिलाकर विकसित की गयी हैं) की गायों के बछड़े किसी काम के नहीं होते| गाँवों में वे खेती को हानि पहुँचाते हैं अतः किसान लोग पिकअप में भरकर या हाँक कर उन्हें नगरीय क्षेत्रों में छोड़ देते हैं| राजस्थान के हर नगर की सड़कें आवारा विलायती नस्ल के सांडों से भरी हुई है जिनसे दुर्घटनाएँ भी होती रहती हैं| पता ही नहीं चलता कि कब आकर वे टक्कर मार दें या वाहनों को तोड़ दें| अतः सडकों पर बहुत संभल कर चलना पड़ता है| वाहन भी बहुत संभल कर चलाना पड़ता है| सब्जी बेचने वाले बहुत अधिक त्रस्त रहते हैं| वे उन्हें लाठियों से मार मार कर भगाते रहते हैं| ये आवारा सांड गन्दगी में मुंह मारते घूमते रहते हैं और लोगों से मार खाते रहते हैं| ये किसी काम के नहीं होते अतः कोई गोशाला भी इन्हें नहीं रखती| इनके लिए विशेष बाड़े बनाने चाहियें या इनके लिए अभयारण्य हों जैसे बाघों के लिए हैं|
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(२) आजकल सडकें दुपहिया वाहनों से भरी हुई हैं| युवा लड़के और लड़कियाँ बहुत तीब्र गति से वाहन चलाते हैं| इनको अपने प्राणों की भी परवाह नहीं होती| लडकियाँ तो लड़कों से भी अधिक तीब्र गति से स्कूटी चलाती हैं| सड़कों पर इन्हें देखकर ही डर लगता है| बहुत अधिक संभल कर सड़क पार करनी पड़ती है| कुछ न कुछ सुव्यवस्था इनके लिए होनी ही चाहिए|


११ दिसंबर २०१७

अमेरिकी संस्कृति पूरे विश्व में क्यों छाई हुई है ? .....

अमेरिकी संस्कृति पूरे विश्व में क्यों छाई हुई है ? .....

अमेरिका एक व्यवसायिक देश है जो अपने आर्थिक और राजनीतिक हित के लिए किसी भी सीमा तक जा सकता है .... कहीं भी युद्ध करा सकता है, किसी की भी ह्त्या करा सकता है, और कहीं भी सत्ता परिवर्तन करा सकता है | वह न किसी का मित्र है और न किसी का शत्रु | जिस से उसका हित टकराता है उसका वह शत्रु है व जिस से उसको लाभ होता है वह उसका मित्र है|

मेरे दिमाग में चालीस वर्ष पूर्व एक प्रश्न था कि अमेरिकी संस्कृति पूरे विश्व पर हावी क्यों है ? इसका उत्तर भी मुझे अमेरिका जाकर ही मिला| सन १९७६ से सन १९८६ तक कई बार अमेरिका जाने का अवसर मिला|
अमेरिकी संस्कृति का एक सकारात्मक पक्ष भी है| वहाँ की सबसे बड़ी विशेषता है कि वहाँ मनुष्य की कार्यकुशलता पर ही पूरा जोर है और कार्यकुशलता का ही सम्मान है | जिस व्यक्ति में कार्यकुशलता नहीं होती उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है | जो व्यक्ति अपने कार्य में कुशल होता है उसको पूरा सम्मान मिलता है | अतः वे लोग अपने कार्य को पूरी कुशलता से करते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि अन्यथा बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा और उनकी कहीं भी कोई पूछ नहीं होगी | किसी तरह का कोई आरक्षण नहीं है |
यही वहाँ की संस्कृति का एक सकारात्मक पक्ष है जिसके कारण अमेरिका पूरे विश्व पर हावी है|
पता नहीं वह दिन भारत में कब आयेगा जब यहाँ व्यक्ति की कार्यकुशलता का सम्मान होगा|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
१० दिसंबर २०१७

Sunday 10 December 2017

भगवान की पकड़ ......

भगवान की पकड़ ......
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कई बार प्रेमवश स्वयं भगवान ही हमें पकड़ लेते हैं, और सही मार्ग पर ले आते हैं ..... इसे कहते हैं ... भगवान की परम कृपा ..... | कोई भी माँ-बाप नहीं चाहते कि उनकी संतान बिगड़े| जब संतान गलत मार्ग पर चल पड़ती है तब माँ-बाप अपने बालक/बालिका को पकड़ कर सही मार्ग पर ले आते हैं| भगवान भी हमारे माता-पिता हैं| वे कभी भी नहीं चाहेंगे कि हम गलत रास्ते पर चलें| वे भी हमें पकड़ कर सही मार्ग पर ले आते हैं| उनकी पकड़ का हमें आनंद लेना चाहिए|
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मैनें जीवन में अनेक बार हिमालय जैसी बड़ी बड़ी भयंकर भूलें की हैं, जिनकी कोई क्षमा नहीं हो सकती| नित्य कोई न कोई भूल होती ही रहती है| पर भगवान इतने दयालू हैं कि अपनी परम करुणा से कैसे भी मुझे सही मार्ग पर ले आते हैं और पीछे की सभी भूलों को क्षमा कर देते हैं| उनकी करुणा और प्रेम का सागर इतना विराट है कि मेरी हिमालय जैसी सी भूलें भी उन के प्रेमसिन्धु में छोटे मोटे कंकर पत्थर से अधिक नहीं है|
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कभी कभी जब मैं स्वयं साधना नहीं कर पाता तो स्वयं वे ही मेरे स्थान पर मेरे ही माध्यम से साधना करने लगते हैं| उनकी पकड़ में बड़ा आनन्द है| कितना प्रेम है उनके हृदय में मेरे लिए! मुझे भी उन से प्रेम हो गया है| अब जीवन में और कुछ भी नहीं चाहिए| जीवन से पूर्ण संतुष्टि है, कोई शिकायत नहीं है, और आनंद ही आनन्द है| शेष जीवन का उपयोग उनकी ध्यान साधना में ही हो|

ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ
कृपा शंकर
१० दिसम्बर २०१७

प्राण जाएँ पर मोबाइल न जाए .....

प्राण जाएँ पर मोबाइल न जाए .....
वर्तमान युवा व किशोर पीढ़ी को सर्वाधिक प्रिय यदि कोई चीज है तो वह है मोबाइल फोन| यह उन्हें अपने प्राणों से भी प्रिय है| दुपहिया और चारपहिया वाहनों को चलाते समय भी मोबाइल कानों से सटा ही रहता है| उनको न तो अपने स्वयं के प्राण की चिंता है और न दूसरों के प्राणों की| कोई कुछ कहता है तो स्पष्ट कहते हैं कि मोबाइल हमारे जीवन का अभिन्न भाग है, उसके बिना हम जी नहीं सकते|
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विद्यालयों के बालक/बालिकाएँ भी आजकल अपने माँ-बाप को अपनी सुरक्षा की दुहाई देकर मोबाइल खरीदवा ही लेते हैं| वे क्या सुनते हैं और क्या बात करते हैं यह तो सिर्फ वे और परमात्मा ही जानता है|
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किसी भी महाविद्यालय के बाहर का दृश्य देख लीजिये जो आजकल बहुत सामान्य है| कई लड़के सजधज कर मोटरसाइकिलों पर चक्कर लगाते ही रहते हैं, कानों में उनके मोबाइल सटा रहता है| लड़कियाँ भी सजधज कर अपने मुँह को कपड़े से ढककर और कानों में मोबाइल सटाकर आती हैं जिससे कोई उन्हें पहिचान नहीं सकता| अपने मोबाइल पर पता नहीं किस भाषा में क्या संकेत करती हैं, उनका मित्र लड़का अपनी मोटर साइकिल पर तुरंत उपस्थित हो जाता है| माँ-बाप सोचते हैं कि हमारे बच्चे पढ़ रहे हैं, पर बच्चे क्या गुल खिला रहे हैं यह माँ-बाप की कल्पना के बाहर की बात है| तो यह सारी महिमा मोबाइल की है| आजकल व्हाट्सएप्प और अन्य कई एप्प इतने लोकप्रिय हैं युवा पीढी में कि उसकी कल्पना भी हम नहीं कर सकते|
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हमारे समय में खाली समय में सिर्फ दो तीन बाते ही दिमाग में रहती थीं .... या तो किसी पुस्तकालय में जाकर पत्रिकाएँ और पुस्तकें पढ़ना, या किसी खेल के मैदान में जाकर फ़ुटबाल या वॉलीबॉल खेलना| इससे भी परे की कोई बात यदि दिमाग में रहती थी तो वह थी संघ की सायं शाखा में जाना| इससे आगे की कोई बात दिमाग में कभी आई ही नहीं| उस जमाने में न तो मोबाइल फोन थे, न टेलीविजन और न मोटर साइकिलें| किसी के पास बाइसिकल होती तो सब उसको भाग्यशाली मानते थे| बड़ी से बड़ी विलासिता की कोई चीज थी तो वह थी एक ट्रांजिस्टर रेडियो का होना|
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मैं कोई शिकायत नहीं कर रहा, जो कह रहा हूँ वह एक वास्तविकता है| समय बहुत शीघ्रता से बदलता है| टेक्नोलॉजी भी इतनी शीघ्रता से बदल रही है कि उसके साथ कदम से कदम मिला के चलना असम्भव सा हो रहा है| यह सृष्टि परमात्मा की है, हम तो उसके सेवक मात्र हैं| जो कुछ भी हो रहा है उसे बिना कोई प्रतिक्रया व्यक्त करते हुए देखते रहो| इसके अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प भी नहीं है|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!
०९ दिसंबर २०१७

आत्मतत्व में स्थित होना ही स्वस्थ (स्व+स्थ) होना है .....

आत्मतत्व में स्थित होना ही स्वस्थ (स्व+स्थ) होना है, स्व में स्थिति ही स्वास्थ्य है, यही आध्यात्म है, यही गुरुतत्व है, और यही परमात्मा की प्राप्ति है ....
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यह एक अनुभूति का विषय है जो परमात्मा की कृपा से ही समझ में आता है, बुद्धि से नहीं, अतः इस पर किसी भी तरह का विवाद निरर्थक है| आत्मतत्व में स्थिति ही गुरुतत्व में स्थिति है, और यही परमात्मा की प्राप्ति है| लोग कुतर्क करते हैं कि परमात्मा तो सदा प्राप्त है, परमात्मा कब अप्राप्त था? यह एक भ्रामक कुतर्क मात्र है| वास्तव में परमात्मा उसी को प्राप्त है जो आत्मतत्व में स्थित है| यही आध्यात्म है| बिना किसी शर्त के परमात्मा से परम प्रेम यानि Unconditional love to the Divine ही द्वार है| जितना अधिक हमें परमात्मा से प्रेम होता है उसी अनुपात में हमारा मार्ग प्रशस्त होता जाता है|
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गीता में भगवान श्रीकृष्ण का कथन है .....
"निर्मानमोहा जितसंगदोषा अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः |
द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञैर्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत् ||"
अर्थात जो मोह से रहित हैं, जिन्होनें संगदोषों अर्थात आसक्ति से होने वाले दोषों को जीत लिया है, जो नित्य आध्यात्म (निरंतर आत्मा में ही) में स्थित हैं, जो कामनाओं से रहित हैं, जो सुख-दुःख रूपी द्वंद्वो से मुक्त है, ऐसे साधक भक्त उस अविनाशी परमपद (परमात्मा) को प्राप्त होते हैं|

यहाँ भगवान ने "अध्यात्मनित्याः" शब्द का प्रयोग भी किया है जो विचारणीय है| अनेक मनीषी व्याख्याकारों ने इसकी बड़ी सुन्दर और विस्तृत व्याख्या की है| यह भगवान का आदेश है कि हम निरंतर आत्म तत्व यानि परमात्मा का चिंतन करें| यही आध्यात्म है और यही परमात्मा की प्राप्ति है|
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इन पंक्तियों के लिखते समय हमारे मोहल्ले की अनेक माताएँ संकीर्तन करते हुए अपनी दैनिक प्रभातफेरी निकाल रही हैं, उनके शब्द आत्मा को जागृत कर रहे हैं| उन सब को मैं प्रणाम करता हूँ| इसे मैं परमात्मा का आशीर्वाद मान कर स्वीकार कर रहा हूँ| उनकी कृपा सदा बनी रहे|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
८ दिसंबर २०१७

Wednesday 6 December 2017

भ्रामरी गुफा का द्वार .....

भ्रामरी गुफा का द्वार .....

भ्रामरी गुफा के द्वार पर 'प्रमाद' नाम का एक भयानक राक्षस और 'आवरण' व 'विक्षेप' नाम की दो विकराल राक्षसियाँ बैठी हैं जो किसी को भी भीतर नहीं जाने देते| हमें कैसे भी इन तीनों असुरों को चकमा देकर भीतर प्रवेश करना है, क्योंकि भगवान को पाने का मार्ग इस गुफा के भीतर से ही है| हमें सिर्फ और सिर्फ भगवान ही चाहिए, उससे कम कुछ भी अन्य नहीं| अतः इस गुफा में प्रवेश करना ही होगा|

हमें न तो भगवान की विभूतियों से कोई मतलब है, न उनके ऐश्वर्य से, और न उनकी किसी महिमा से| न तो हमें कोई गुरु चाहिए और न कोई शिष्य| किसी भी तरह का कोई सिद्धांत और मत भी नहीं चाहिए| भगवान से अन्य किसी भी कामना का होना सबसे बड़ा छलावा व भ्रमजाल है, अतः हमें सिर्फ भगवान ही चाहिए, अन्य कुछ भी नहीं| किसी भी तरह की निरर्थक टीका-टिप्पणी वालों से कोई प्रयोजन हमें नहीं है, और न ही आत्म-घोषित ज्ञानियों से|

यह संसार है, जिसमें तरह तरह के लोग मिलते हैं, जो एक नदी-नाव का संयोग मात्र है, उससे अधिक कुछ भी नहीं| भूख-प्यास, सुख-दुःख, शीत-उष्ण, हानि-लाभ, मान-अपमान और जीवन-मरण ..... ये सब इस सृष्टि के भाग हैं जिनसे कोई नहीं बच सकता| इनसे हमें प्रभावित भी नहीं होना चाहिए| ये सब सिर्फ शरीर और मन को ही प्रभावित करते हैं| देह और मन की चेतना से ऊपर उठने के सिवा कोई अन्य विकल्प हमारे पास नहीं है|

चारों ओर छाए अविद्या के साम्राज्य से हमें बचना है और सिर्फ परमात्मा के सिवाय अन्य किसी भी ओर नहीं देखना है| नित्य आध्यात्म में ही स्थित रहें, यही हमारा परम कर्तव्य है| स्वयं साक्षात् भगवान के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं, कुछ भी हमें नहीं चाहिए| यह शरीर रहे या न रहे इसका भी कोई महत्व नहीं है| बिना परमात्मा के यह शरीर भी इस पृथ्वी पर एक भार ही है| अहंकारी लोगों की बहलाने फुसलाने वाली मीठी मीठी बातें विष मिले हुए शहद की तरह हैं| ऐसे लोगों की ओर देखें ही मत| दृष्टी सिर्फ भगवान की ओर ही रहे|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ ||

कृपा शंकर

Tuesday 5 December 2017

श्रीमाता श्रीमहाराज्ञी श्रीमत्सिंहासनेश्वरी, चिद्ग्निकुण्डसम्भूता देवकार्यसमुद्यता .....

श्रीमाता श्रीमहाराज्ञी श्रीमत्सिंहासनेश्वरी, चिद्ग्निकुण्डसम्भूता देवकार्यसमुद्यता .....
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आध्यात्मिक और काव्यात्मक दृष्टी से जगन्माता का सर्वाधिक प्रभावशाली और सर्वश्रेष्ठ स्तोत्र है "श्रीललिता सहस्रनाम" जो ब्रह्माण्ड पुराण का अंश है| ब्रह्माण्ड पुराण के उत्तर खण्ड में "ललितोपाख्यान" के रूप में भगवान हयग्रीव और महामुनि अगस्त्य के संवाद के रूप में इसका विवेचन मिलता है| कुछ भक्त इसकी रचना का श्रेय लोपामुद्रा को देते हैं जो अगस्त्य ऋषि की पत्नी थीं| जो भी हो यह स्तोत्र उतना ही शक्तिशाली है जितना "विष्णु सहस्त्रनाम" या "शिव सहस्त्रनाम" है| इसको समझकर सुनते ही कोई भी निष्ठावान साधक स्वतः ही ध्यानस्थ हो जाएगा| ध्यान से पूर्व इस स्तोत्र को सुनने या पढ़ने से बड़ी शक्ति मिलती है| साधनाकाल के आरम्भ में यह स्तोत्र मैं नित्य सुना करता था जिससे मुझे बड़ी शक्ति मिलती थी| मैनें अपनी दोनों पुत्रियों के नाम भी इसी स्तोत्र का पाठ सुनते हुए ही रखे थे|
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इसके अनेक ऑडियो और विडिओ विभिन्न भक्त गायकों द्वारा गाये हुए बाज़ार में उपलब्ध हैं| यू ट्यूब पर भी इसके अनेक संस्करण उपलब्ध हैं| आपको जिस भी गायक/गायिका की आवाज़ अच्छी लगे उस का ऑडियो खरीद लें या यू ट्यूब से डाउन लोड कर लें, फिर नित्य उसे भक्ति भाव से सुनें| किसी भी भक्त की अंतर्चेतना पर इसके अत्यधिक प्रभावशाली मन्त्रों का सकारात्मक प्रभाव निश्चित रूप से पड़ेगा|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

मेरी सबसे बड़ी विफलताएँ ये रही है .....

मेरी सबसे बड़ी विफलताएँ ये रही है .....

(१) मैं स्वयं के प्रति ईमानदार नहीं रहा हूँ | स्वयं के साथ बहुत अन्याय किया है | पिछले कई दशकों से मैंने डायरी लिखना बंद कर दिया जो मुझे नित्य लिखनी चाहिए थी | नित्य लिखना था कि उस दिन के जीवन में कितनी उन्नति और कितनी अवनति हुई | अपनी असफलता के भय और प्रमाद से ही ऐसे हुआ | यह प्रमाद ही साक्षात मृत्यु थी |

(२) फालतू विचारों का त्याग नहीं कर पाया यह एक प्रमाद यानि साक्षात् मृत्यु थी| पता नहीं है कि जीवित हूँ या मृत हूँ |

अब तो सुधरने का एक अंतिम अवसर है| अब नहीं तो कभी नहीं| फिर पता नहीं कितने जन्मों तक होश नहीं आयेगा| हे जगन्माता, सहायता करो |

ॐ ॐ ॐ !!

भगवान के विराट रूप का हम ध्यान करें .....

जहाँ कोई अन्धकार नहीं है, जो अन्धकार और प्रकाश से परे है, भगवान के उसी विराट रूप का हम ध्यान करें .....
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गीता के ग्यारहवें अध्याय विश्वरूपदर्शनयोग को समझने के पश्चात परमात्मा के किस रूप का ध्यान करें, इस में कोई संदेह ही नहीं होना चाहिए| फिर भी एक बार किन्हीं ब्रह्मनिष्ठ श्रोत्रिय आचार्य से मार्गदर्शन ले लेना चाहिए| ध्यान साधकों को समय समय पर गीता के इस अध्याय का स्वाध्याय करना चाहिए| वैसे भी गीता के आरम्भ से अंत तक पांच श्लोक तो नित्य अर्थ सहित पढने चाहिएँ| सारे संदेहों का निवारण गीता ही कर सकती है|
दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता ।
यदि भाः सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मनः ॥ (११/१२)
यदि आकाश में एक हजार सूर्य एक साथ उदय हो तो उनसे उत्पन्न होने वाला वह प्रकाश भी उस सर्वव्यापी परमेश्वर के प्रकाश की शायद ही समानता कर सके। (११/१२)
परमात्मा का वह प्रकाशरूप ही ज्योतिर्मय ब्रह्म है, वही परमशिव है, वही परमेश्वर है| उसी का हम ध्यान करें | ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
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पुनश्चः -----
अनन्य भक्ति क्या है? गीता के इसी अध्याय के ५४ वें श्लोक में भगवान अन्य भक्ति की बात कह रहे हैं|
भक्त्या त्वनन्यया शक्य अहमेवंविधोऽर्जुन । ज्ञातुं द्रष्टुं च तत्वेन प्रवेष्टुं च परन्तप ॥ (११/५४)
अनन्य भक्ति क्या है इस पर कई लोग विवाद करते हैं| इस का जो अद्वैतवादी अर्थ मैं समझ पाया हूँ वह यही है ..... "जहाँ अन्य कोई नहीं है" | भगवान के गहन ध्यान से यह स्पष्ट हो जाता है|
सार यह है की हम शरणागत हों, भक्ति में स्थित हों, कामनाओं और राग-द्वेष से मुक्त हों, और समस्त प्राणियों से मैत्री भाव रखें| यह परमात्मा के ध्यान द्वारा ही संभव है|
ॐ ॐ ॐ !!

दिशाहीन व्यवस्थाएँ ही हमारी दुर्गति का कारण हैं

दिशाहीन व्यवस्थाएँ (राजतंत्र, न्यायतंत्र, समाचार माध्यम, आस्थाएँ, आदि) ही हमारी दुर्गति का कारण हैं |
महासागर में जलयान, आकाश में वायुयान और अरण्य में कोई पथिक अपनी दिशा से भटक जाए तो उसका विनाश निश्चित है | वैसे ही दिशाहीन समाज, राष्ट्र और व्यक्ति का विनाश निश्चित है |

हमारी दिशा सिर्फ आध्यात्म ही हो सकती है, ऐसी मेरी सोच है |

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !

यह सृष्टि प्रकाश और अन्धकार का ही एक खेल है .....

यह सृष्टि प्रकाश और अन्धकार का ही एक खेल है .....
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एक महिला साधिका को एक महान संत ने साक्षात उसके समक्ष प्रकट होकर दर्शन दिए | साधिका ने उन संत से पूछा : "भगवन, आप विश्व में चारों ओर छाये हुए इस अज्ञानान्धकार को दूर क्यों नहीं कर सकते ?

“अन्धकार," उन संत ने उत्तर दिया, "सृष्टि के आरम्भ से ही अन्धकार का महत्व है, इस सृष्टि का अस्तित्व अन्धकार और प्रकाश के द्वैत का ही एक खेल है | मेरा कार्य सिर्फ प्रकाश का विस्तार करना है"|

अन्धकार और प्रकाश सदा रहेंगे | हमारा कार्य अन्धकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना है | अन्धकार कभी समाप्त नहीं हो सकता | अन्धकार के बिना यह सृष्टि नहीं चल सकती |

हमारी चेतना में हम परमात्मा के प्रकाश (ब्रह्मज्योति) का ही ध्यान करें | किसी तरह की हीन भावना न लायें | स्वयं को पापी समझना सबसे बड़ा पाप है | जीवन में प्रकाश का विस्तार करेंगे तो अन्धकार स्वतः ही दूर होगा | जीवन के अन्धकार की स्मृतियों को विस्मृत कर दें | परमात्मा की निरंतर उपस्थिति का सतत अभ्यास करें |

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

कृपा शंकर
०१ दिसंबर २०१७

मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्‍ठामि नारद ....

नाहं वसामि वैकुण्‍ठे योगिनां हृदये न च, मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्‍ठामि नारद .......
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आज गीता जयंती के शुभ अवसर पर अप्रत्याशित रूप से भगवान की कृपा से बहुत अच्छा सत्संग हुआ| कुछ मित्रों नें भजन कीर्तन और प्रवचन का कार्यक्रम रखा था जिसमें जाने का सौभाग्य मिला| फिर एक बहुत ही अच्छे संत महात्मा जी के दर्शन का सुअवसर मिला|
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आज के पावन अवसर पर मैं तीन संत महात्माओं को श्रद्धांजलि देना चाहता हूँ|
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इनमें से दो संत महात्मा तो गृहस्थ थे और राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र के चूरू जिले से थे| आज उन्हीं के पुण्य प्रताप से गीता के ज्ञान का इतना अधिक प्रचार-प्रसार हुआ है, और गीता की प्रति इतने सस्ते मूल्य पर भारत के हर घर में उपलब्ध है| ये दोनों ही संत मारवाड़ी अग्रवाल परिवार में जन्में थे| एक तो थे प्रातः स्मरणीय स्वर्गीय सेठ जयदयाल गोयनका जिन्होंने आरम्भ आरम्भ में तो गीता का सिर्फ एक ही श्लोक पढ़कर भगवान श्रीकृष्ण की पराभक्ति व परम कृपा को प्राप्त किया| इन्होनें गीता प्रेस गोरखपुर, गीताभवन स्‍वर्गाश्रम ऋषिकेश, गोविन्द भवन कोलकाता, श्री ऋषिकुल ब्रह्मचर्याश्रम चूरू, गीताभवन आयुर्वेद संस्‍थान, आदि संस्थाओं की स्थापना की| यह एक अतिमानवीय कार्य था| किसी भी प्रकार की औपचारिक शिक्षा नहीं प्राप्त होने के पश्चात भी वे विद्वता के परम शिखर पर पहुंचे|
दूसरे संत उन्हीं के मौसेरे भाई स्वर्गीय सेठ हनुमान प्रसाद पोद्दार थे जो उनके सम्पर्क में आए तथा गीता प्रेस के लिए समर्पित हो गए| उन्होंने गीता प्रेस से "कल्याण" पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया|
उपरोक्त दोनों ही सेठों को नमन जिन के कारण आज गीता, रामचरितमानस व अन्य धार्मिक साहित्य घर घर में उपलब्ध है|
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तीसरे संत थे स्वर्गीय श्री राजीव दीक्षित (३० नवम्बर १९६७ ---- ३० नवम्बर २०१०) जिनका आज जन्मदिवस भी है और पुण्य स्मृति दिवस भी| ये एक वैज्ञानिक, प्रखर वक्ता और आजादी बचाओ आन्दोलन के संस्थापक थे| बाबा रामदेव ने उन्हें भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के राष्ट्रीय महासचिव का दायित्व सौंपा था, जिस पद पर वे अपनी मृत्यु तक रहे| वे राजीव भाई के नाम से अधिक प्रसिद्ध थे| ये भी एक परम संत थे जिन्होंने अपने संतत्व को सदा छिपाए रखा|
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उपरोक्त तीनों संतों को पुनश्चः श्रद्धांजली देते हुए इस लेख का समापन करता हूँ|
भगवान श्रीकृष्ण की परम कृपा हम सब पर बनी रहे|
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"वसुदेवसुतं देवं कंस चाणूर मर्दनं |देवकी-परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ||

"वंशी विभूषित करान नव नीरदाभात पीताम्बरा अरुण बिम्ब फलाधरोष्टात |
पूर्णेंदु सुंदर मुखार अरविन्द नेत्रात कृष्णात परम किमअपि तत्वमहम न जाने ||"
"कस्तुरी तिलकं ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभं,
नासाग्रे वरमौक्तिकं करतले, वेणु करे कंकणम् |
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि,
गोपस्त्री परिवेश्टितो विजयते, गोपाल चूडामणी ||"
"कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने | प्रणत क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः ||"
भगवान श्रीकृष्ण की जय ||

आजकल एक हिन्दुद्रोही राजनेता स्वयं को ब्राह्मण बता रहे हैं .....

आजकल एक हिन्दुद्रोही राजनेता स्वयं को ब्राह्मण बता रहे हैं | उनसे अनुरोध है कि वे अपना ऋषिगौत्र, प्रवर, वेद, शाखा और सूत्र भी बताने का कष्ट करें | इनका ज्ञान हर ब्राह्मण को होता है | यह भी बताएँ कि उनका यज्ञोपवीत संस्कार कब, कहाँ और किस आचार्य के द्वारा हुआ था ? यह भी बताएँ कि क्या उन्होंने अपने जीवन में कभी गायत्री मन्त्र का जाप किया है, जिसके बिना ब्राह्मण अपने धर्म से च्युत हो जाता है | क्या उन्होंने कभी संध्याकर्म किया है ?

ब्राह्मण के लिए नित्य कम से कम एक माला गायत्री जप अनिवार्य है, जिसके बिना वह ब्राह्मण नहीं रहता | आचार्यों ने ब्राह्मण के लिए नित्य कम से कम दस माला गायत्री जप करने का विधान बताया है, पर एक माला तो किसी भी परिस्थिति में अनिवार्य है | ॐ ॐ ॐ !!

वह हम स्वयं ही हैं .....

वह हम स्वयं ही हैं .....
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इस संसार में जो कुछ भी हम ढूँढ रहे हैं ..... "सुख", "शांति", "सुरक्षा", "आनंद", "समृद्धि", "वैभव", "यश", और "कीर्ति" ...... वह सब तो हम स्वयं ही हैं | बाहर के विश्व में इन सब की खोज एक मृगतृष्णा मात्र है |
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पूर्णता का ध्यान करते हुए पूर्णता को समर्पित होकर ही हम पूर्ण हो सकते हैं | जिस परमब्रह्म परमशिव का कभी जन्म ही नहीं हुआ उस को समर्पित होकर ही हम अमर हो सकते हैं |
जिसे हम परमब्रह्म, सदाशिव या परमशिव कहते हैं, वह ही पूर्णता है जिसको उपलब्ध होने के लिए ही हमने जन्म लिया है | जब तक हम उसमें समर्पित नहीं हो जायेंगे तब तक यह अपूर्णता रहेगी | पूर्णता का एकमात्र मार्ग है ..... परम प्रेम, पवित्रता और उसे पाने की गहन अभीप्सा | अन्य कोई मार्ग नहीं है | जब इस मार्ग पर चलते हैं तो परमप्रेमवश प्रभु स्वयं ही निरंतर हमारा मार्गदर्शन करते हैं | कुछ बनना और कुछ होना ..... ये दोनों अलग अलग अवस्थाएँ हैं, जो कभी एक नहीं हो सकतीं |
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ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पुर्णमुदच्यते |पूर्णश्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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कृपा शंकर
३० नवम्बर २०१७

हे गुरु रूप परमशिव परब्रह्म, मैं और आप एक हैं ....

हे गुरु रूप परमशिव परब्रह्म, मैं और आप एक हैं| हम ही नौका हैं, हम ही कर्णधार हैं, हम ही भवसागर हैं, और हम ही उस से पार सर्वस्व हैं| जो आप हैं वो ही मैं हूँ, और जो मैं हूँ वो ही आप हैं| हमारे सिवाय अन्य किसी का कोई अस्तित्व नहीं है| हम दोनों एक हैं| कहीं कोई अन्धकार नहीं है, चारों और प्रकाश ही प्रकाश है, आनंद ही आनंद है| वह प्रकाश, और वह आनंद हम स्वयं हैं| हम ही ॐ और उस से भी परे हैं|

आप को भी नमन और मुझ को भी नमन ! आप परमात्मा हैं तो मैं आपकी सर्वव्यापकता हूँ| आप परम प्रेम हैं तो मैं उस से प्राप्त आनंद हूँ| हम एक हैं, और सदा एक ही रहेंगे|
ॐ ॐ ॐ

सफलता और विफलता का मापदंड .....

सफलता और विफलता का मापदंड .....
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हमारी सफलता का एक ही मापदंड है कि हम परमात्मा के कितने समीप हैं| पूरी सत्यनिष्ठा से जितने हम परमात्मा के समीप हैं, उतने ही सफल हैं| जितने हम परमात्मा से दूर है उतने ही विफल हैं|
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भौतिक धन-संपत्ति की प्रचूरता, समाज में अच्छा मान-सम्मान और सब कुछ पाकर भी हम यही सोचते सोचते इस ससार से विदा हो जाते हैं कि हम तो कुछ भी नहीं कर पाए| हमारा जन्म अपने स्वयं के प्रारब्ध कर्मों के फल भोगने के लिए ही होता है, हर व्यक्ति अपने पूर्व जन्मों के कर्मानुसार अपना अपना भाग्य लेकर आता है| प्रारब्ध का फल तो भोगना ही पड़ता है| संचित कर्मों से हम मुक्त हो सकते हैं पर प्रारब्ध से नहीं| प्रकृति अपने नियमों के अनुसार कार्य कर रही है और करती रहेगी| अपनी विफलताओं का दोष हम दूसरों पर या विपरीत परिस्थितियों पर न डालें|
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हमें कभी भी आत्म-ग्लानि, व क्षोभ नहीं करना चाहिए क्योंकि जो कुछ भी हो रहा है वह परमात्मा के बनाए नियमों के अनुसार प्रकृति द्वारा हो रहा हैं| अतः सदा संतुष्ट और प्रसन्न रहना चाहिए|
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यदि मनुष्य जन्म लेकर भी हम इस जन्म में परमात्मा को उपलब्ध नहीं हो पाये तो निश्चित रूप से हमारा जन्म लेना ही विफल था, हम इस पृथ्वी पर भार ही थे| जीवन की सार्थकता उसी दिन होगी जिस दिन परमात्मा से हमारा कोई भेद नहीं रहेगा|
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आप सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ हैं| आप सब को प्रणाम !
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
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कृपा शंकर
३० नवम्बर २०१७

सृष्टि का हर आकर्षण हमें परमात्मा से दूर करता है .....

सृष्टि का हर आकर्षण हमें परमात्मा से दूर करता है| पर परमात्मा का आकर्षण सर्वाधिक मोहक है| ध्यान के भावातिरेक में उनकी एक झलक मिल जाए, वह किसी भी अन्य आकर्षण से अधिक आनंददायक है| अन्य सब कामनाओं को त्याग कर हम उन्हीं के पीछे पूर्ण प्रेम से लगे रहें तो उनका स्पष्ट आभास और आगमन निश्चित रूप से होता है| यह भगवान का ही वचन है जो कभी झूठा नहीं हो सकता|

सर्वप्रथम हम परमात्मा को निज जीवन में व्यक्त करें, फिर हर उपलब्धि स्वतः ही हम से जुड़ जाती है| हर चीज प्रतीक्षा कर सकती है, पर प्रियतम की खोज नहीं| सर्वप्रथम परमात्मा, तत्पश्चात बाकी अन्य कुछ और|

ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

कृपा शंकर
२६ नवम्बर २०१७

कोई भी प्रतिक्रिया देने से पहले पूरी पोस्ट पढ़ें .....

कोई भी प्रतिक्रिया देने से पहले पूरी पोस्ट पढ़ें .....
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फेसबुक पर कुछ अत्यधिक उत्साही और अति सक्रिय लोग सिर्फ शीर्षक देखकर ही अनुमान लगा लेते हैं कि क्या लिखा है| पूरी पोस्ट तो पढ़ते ही नहीं हैं, पर अपनी भयंकर से भयंकर प्रतिक्रिया अभद्र शब्दों में देना शुरू कर देते हैं| उन्हें कम से कम यह तो देखना चाहिए कि क्या लिखा है| एक बार मैनें एक पोस्ट डाली थी जिस में मैनें मेरा यह विचार लिखा था कि प्रत्येक हिन्दू को कम से कम एक बार तो कुरान हदीस और बाइबिल अवश्य पढ लेनी चाहिए| लेख में मैनें इसके कारण भी विस्तार से लिखे थे| पर बिना मेरा लेख पढ़े और समझे, कुछ अति सक्रिय लोगों ने मेरे ऊपर गालियों की बौछार कर दी| फिर मैंने वह पोस्ट ही डिलीट कर दी|
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आपका बड़े से बड़ा विरोधी या प्रतिद्वंद्वी हो जब तक हम उसके विचार और सिद्धांत नहीं जानेंगे तब तक उस से अपना बचाव नहीं कर पायेंगे| सनातन धर्म के विरोधी जो मत हैं जब तक हमें उनके सिद्धांतों का ज्ञान नहीं होगा तब तक हम उनका सामना नहीं कर पाएँगे| एक बार जाकिर नाईक और श्री श्री रविशंकर एक मंच पर थे| श्री श्री रविशंकर वहाँ अपनी ओर से चलाकर धार्मिक सदभाव के लिए गए थे| जाकिर नाईक ने हिन्दू ग्रंथों से अनेक श्लोक उदधृत किये और घोषणा कर दी कि हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार मोहम्मद साहिब ही कल्कि अवतार हैं, और कहा कि हिन्दू ग्रंथों में मोहम्मद साहिब के अवतार होने के बारे में साफ़ साफ़ लिखा है पर हिन्दुओं के पंडित उसे बताते नहीं हैं| जब रविशंकर जी के बोलने की बारी आई तब वे जाकिर नाईक के किसी भी तर्क का खंडन नहीं कर पाए क्योंकि उन्होंने इसकी तैयारी ही नहीं की थी| उन्होंने कुरान हदीस कभी पढी ही नहीं थी| वे हँस कर इतना ही कह पाए की मुझे पता नहीं था कि आपकी याददाश्त इतनी तेज है| दूसरे ही दिन जाकिर नाईक की संस्था ने लाखों कैसेट बनवा कर लाखों लोगों तक पहुँचा दिए जिनमें कहा गया था कि हिन्दू धर्म के सबसे बड़े विद्वान् श्री श्री रवि शंकर को जाकिर नाईक ने शास्त्रार्थ में हरा दिया है और यह मनवा दिया है कि मोहम्मद साहिब के अवतार होने के बारे में हिंदुओं की किताबों में भी लिखा है, अतः सब हिन्दुओं को इस्लाम कबूल कर लेना चाहिए|
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आजकल ईसाई पादरी भी भोलेभाले हिन्दुओं के समक्ष मोक्ष की बातें करते हैं और कहते हैं कि जीसस क्राइस्ट में सिर्फ विश्वास करने से ही मोक्ष मिल जाता है अतः और चक्करों में क्यों पड़ते हो, बपतीज्मा करवा लो और जीसस को अपना मसीहा स्वीकार कर लो, मोक्ष मिल जाएगा| उनका खंडन करने के लिए बाइबिल का ज्ञान भी होना चाहिए|
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एक हिन्दू आश्रम में हिन्दू विद्यार्थियों को तुलनात्मक रूप से कुरान हदीस और बाइबिल भी पढाई जाती है जिससे विद्यार्थियों को पता चल जाए कि उनमें क्या लिखा है ताकि "सर्वधर्म समभाव" का बहुत बड़ा झूठ उन पर प्रभाव नहीं डाले| मैंने भी बाइबिल के ओल्ड और न्यू टेस्टामेंट का अध्ययन किया था और विदेशों में कई पादरियों से इन पर बहस कर के उन को निरुत्तर भी किया है| मेरा यह स्पष्ट मानना है कि हिन्दू विद्यार्थियों को एक बार तुलनात्मक रूप से बाइबिल और कुरान को अवश्य पढ़ लेना चाहिए ताकि वे अज्ञान में न रहें| इन्हें पढ़कर ही तो इनकी निःसारता का पता चलेगा|
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हम तुलनात्मक रूप से अध्ययन नहीं करते अतः "सर्वधर्म समभाव" वाली झूठी और भ्रामक विचारधारा के शिकार बन जाते हैं|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

धर्म का आचरण कैसे हो ? .....

धर्म का आचरण कैसे हो ? .....
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हमारे सब दुःखों व कष्टों का कारण हमारे द्वारा धर्म का आचरण नहीं करना ही है| भगवान के प्रति परम प्रेम और सतत समर्पण की भावना द्वारा ही हम धर्म का मर्म समझ सकते हैं| धर्म एक अनुभव और प्रेरणा है जो हमें भगवान से प्राप्त होती है| हमारा आचरण धार्मिक तभी हो सकता है जब हमारे जीवन के केंद्रबिंदु और कर्ता सिर्फ भगवान हों और अपनी सारी इच्छाएँ हम उन में समर्पित कर दें|
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अधिकाँश लोग सोचते हैं कि भगवान हमारी प्रार्थनाओं व स्तुतियों से प्रसन्न होकर हमें सुख शांति और भोग्य पदार्थ देते हैं| उनके लिए भगवान एक माध्यम यानि साधन है और संसार की वासनाएँ साध्य है| ऐसी सोच और समझ हमें बार बार दुःख के महासागर में डालती है|
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हमारे सब दुःखों का कारण हमारी कामनाएँ हैं| भगवान की ओर समस्त कामनाओं को मोड़ देंगे तो वे हमारी कामनाओं को निश्चित ही समाप्त कर देंगे| पूरा ह्रदय उनको दे देने से ही धर्म का आचरण हो सकता है|
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हे प्रियतम परमात्मा, हमें आपसे प्यार हो गया है, आप सदा हमें प्यारे लगें, आप सदा हमें प्यारे लगें, और आप सदा हमें प्यारे लगें| इसके अतिरिक्त हमारी कोई कामना नहीं है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२६ नवम्बर २०१७

क्या पाकिस्तान की बर्बादी के लिए श्री नरेन्द्र मोदी जिम्मेदार हैं ? .....

क्या पाकिस्तान की बर्बादी के लिए श्री नरेन्द्र मोदी जिम्मेदार हैं ? .....
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पिछले दिनों यू ट्यूब पर संयोग से कुछ पाकिस्तानी समाचार चैनलें देखी थीं, सब की सब सिर्फ नरेन्द्र मोदी जी को गालियाँ देकर अपनी स्थिति पर रो रही थीं| वास्तव में वहाँ की स्थिति बड़ी विकट है| वे लोग अपनी बर्बादी के लिए श्री नरेन्द्र मोदी को ही ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं|
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उस देश पर इतना कर्जा है जो वह कभी भी नहीं उतार सकता| न तो कोई वहाँ निवेश को तैयार है और न ही वर्ल्ड बैंक कोई नया कर्जा दे रहा है| वहाँ विकास के नाम पर कुछ भी नहीं हो रहा है| सारे राजनेता और वरिष्ठ सैनिक अधिकारी अरबपति हो चुके हैं, उनके रुपये विदेशी बेंकों में हैं| आम आदमी अपनी रोजी रोटी के लिए पिस रहा है|
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क़ुरबानी के नाम पर सारी गायों को वे मारकर खा चुके हैं अतः ताजे दूध की उपलब्धि नहीं है| ऑस्ट्रेलिया से सूखा दूध पाउडर मंगाकर उसको घोलकर दूध बनाते हैं और बेचते हैं| अमेरिका ने बीच में रुपये देने बंद कर दिए तो पाकिस्तान के पास दूध पाउडर खरीदने के लिए रूपये ही नहीं रहे अतः वहाँ हाहाकार मच गया| बच्चों के लिए भी दूध नहीं रहा| अमेरिका के आगे हाथ-पैर जोड़े तब अमेरिका से मिले पैसों से उन्होंने दूध पाउडर खरीदा और बच्चों को दूध मिलना शुरू हुआ|
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वहाँ जिहादी आतंकवाद के अलावा और कोई उद्योग धंधे नहीं रहे हैं| चीन ने बहुत अधिक ब्याज दर पर पकिस्तान को कर्ज दिया है जिस से सड़कें बनी हैं| पर उन सडकों पर चीन का ही अधिकार है| चीन वहाँ खूब निवेश कर रहा है पर साथ साथ जमीनों पर भी अधिकार कर रहा है|
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वर्ल्ड बैंक उधार दिए पैसे बापस माँग रहा है पर चुकाने के लिए पकिस्तान के पास रुपये हैं नहीं, सिर्फ परमाणु बम हैं| परमाणु बम किस काम आयेंगे? कौन उन से डरता है? हो सकता है उधार चुकाने के लिए पकिस्तान को कराची बंदरगाह नीलाम करना पड़े|
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भारत ने ईरान में चाबहार बंदरगाह क्या खोल दिया, अफगानिस्तान से होने वाला पाकिस्तान का व्यापार एक चौथाई रहा गया| पाकिस्तान की युवा पीढी हिसाब माँग रही है तो उनको कहा जा रहा है कि कश्मीर के लिए कुर्बानी करो|
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पाकिस्तानी वित्तमंत्री का खाता सीज कर दिया गया है और वे लन्दन के एक अस्पताल में भर्ती हैं| पाकिस्तान में सब्जियाँ बहुत मंहगी हैं, टमाटर साढ़े चार सौ से पाँच सौ रूपये किलो बिक रहा है| पाकिस्तान की हालत ऐसी है कि वह सिर्फ अमेरिकी मदद पर टिका हुआ है|
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पाकिस्तान एक विफल देश है जो अपने आप ही टूट कर बिखर जाएगा| पाकिस्तान का अन्त निकट है| अगले दो-तीन वर्षों में पकिस्तान की स्थिति सोमालिया जैसे भूखे नंगे देश की सी हो जायेगी| उनके पास सिर्फ एटम बम रहेंगे जिनसे वे अपनी प्रजा का तो पेट भर नहीं सकेंगे पर भारत पर आक्रमण कर सकते हैं| अपनी जनता का ध्यान बँटाने के लिए वे दिन रात मोदी को और भारत को गालियाँ देते रहते हैं|

क्या भारत और श्री नरेन्द्र मोदी उनकी विफलता के लिए जिम्मेदार हैं? क्या यह उनके कर्मों का फल नहीं है?
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हे प्रभु, ऐसे पैशाचिक विचारों वाले पड़ोसी देश से भारत की रक्षा करो| भारत की जनता भी पकिस्तान के नापाक इरादों से सचेत रहे |
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!
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पुनश्चः : मैंने जो कुछ भी लिखा है वह पाकिस्तानी समाचार माध्यमों से प्राप्त समाचारों का ही सार है| अपनी और से कुछ भी नहीं लिखा है |

दलाई लामा को अब भारत से बाहर का रास्ता दिखा देना चाहिए .....

दलाई लामा को अब भारत से बाहर का रास्ता दिखा देना चाहिए| अब भारत में उनको रखने का उद्देश्य पूरा हो चुका है| भारत को उनकी आवश्यकता नहीं है और उनको भी भारत की आवश्यकता नहीं है| एक षडयंत्र के अंतर्गत अमेरिका की सीआईए ने ३१ मार्च १९५९ को (उस समय मात्र १५ वर्ष के) दलाई लामा को भारत में घुसा दिया था ताकि भारत और चीन के मध्य सदा तनाव बना रहे| उनके साथ उस समय ८० हज़ार तिब्बती शरणार्थी भी आये थे| भारत चाहता तो उस समय तिब्बत को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देकर एक स्वतंत्र देश बना सकता था| भारत के पास उस समय इतनी क्षमता थी| तिब्बत ..... भारत और चीन के मध्य एक buffer state की तरह रहता तो चीन की सीमा भारत से कहीं पर भी नहीं लगती, और चीन से कोई सीमा विवाद भी नहीं रहता| पर भारत का राजनीतिक नेतृत्व उस समय अदूरदर्शी, किंकर्तव्यविमूढ़ और अकुशल था|
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दलाई लामा कोई आध्यात्मिक संत नहीं हैं| अमेरिका और पश्चिमी शक्तियों ने उन्हें आध्यात्मिक संत के रूप में project कर रखा है| सनातन हिन्दू धर्म से उनका कुछ भी लेनादेना नहीं है| आदतन वे नित्य बछड़े का मांस खाते हैं| सारे तिब्बती सूअर का और गाय का मांस खाते हैं| उनकी आस्था बौद्ध मत की वज्रयान शाखा से है|
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अब तो दलाई लामा स्वयं ही तिब्बत पर चीन के अधिकार को मान्यता दे रहे हैं, अतः भारत से उनको चले जाना चाहिए| दलाई लामा को भारत से बाहर करना भारत के राष्ट्रीय हित में रहेगा|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!

कृपा शंकर
२५ नवम्बर २०१७

स्वयं को पापी कहना सबसे बड़ा पाप है ....

>>>>> स्वयं को पापी कहना सबसे बड़ा पाप है ....
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शृण्वन्तु विश्वे अमृतस्य पुत्राः ..... कृष्ण यजुर्वेद शाखा के श्वेताश्वतरोपनिषद में सनातन हिन्दू धर्म का सारा साधना पक्ष और ज्ञानयोग दिया हुआ है| इस उपनिषद् के छओं अध्यायों में जगत के मूल कारण, ॐकार-साधना, परमात्मतत्त्व से साक्षात्कार, ध्यानयोग, प्राणायाम, जगत की उत्पत्ति, जगत के संचालन और विलय का कारण, विद्या-अविद्या, जीव की नाना योनियों से मुक्ति के उपाय, और परमात्मा की सर्वव्यापकता का वर्णन किया गया है| सारी आध्यात्मिक साधनाएँ यहाँ से आरम्भ होती हैं| यह उपनिषद् अपने दूसरे अध्याय में हम सब को अमृत पुत्र कहता है| हम सब परमात्मा के अमृतपुत्र हैं|
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जो भी शिक्षा हमें जन्म से पापी होना सिखाती है वह वेदविरुद्ध होने के कारण विष के समान त्याज्य है| सिर्फ वेद ही प्रमाण हैं| कोई भी पौराणिक या आगम शास्त्रों की शिक्षा भी यदि वेदविरुद्ध है तो वह त्याज्य है| कुछ मंदिरों में आरती के बाद " पापोऽहं पापकर्माऽहं पापात्मा पापसंभवः" जैसा अभद्र मंत्रपाठ करते हैं, मैं उस पर ध्यान नहीं देता क्योंकि मेरी दृष्टी में यह मन्त्र वेदविरुद्ध है|

ईसाईयत यानि ईसाई पंथ का मुख्य आधार मूल पाप यानि Original Sin का सिद्धांत है अतः वह वेदविरुद्ध, अमान्य और त्याज्य है| सारी ईसाईयत Original Sin के सिद्धांत पर खड़ी है जो खोखला और झूठा सिद्धांत है| ईसाई पंथ दो सिद्धांतों पर एक खडा है .... पहला तो Original Sin, और दूसरा Resurrection.| इनके बिना यह पंथ आधारहीन है| दोनों ही झूठे हैं|
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श्रुति भगवती तो ऋग्वेद में कहती है ..... "अहं इन्द्रो न पराजिग्ये" अर्थात मैं इंद्र हूँ, मेरा पराभव नहीं हो सकता| वेदों के चार महावाक्य हैं ....
(१) प्रज्ञानं ब्रह्म --- (ऐतरेय उपनिषद) --- ऋग्वेद,
(२) अहम् ब्रह्मास्मि --- (बृहदारण्यक उपनिषद) --- यजुर्वेद,
(३) तत्वमसि --- (छान्दोग्य उपनिषद्) --- सामवेद,
(४) अयमात्माब्रह्म --- (मांडूक्य उपनिषद) ---अथर्व-वेद |
हम महान ऋषियों की संतानें हैं, अतः जिन महावाक्यों को आधार बना कर हमारे हमारे महान ऋषियों ने तपस्या की और महान बने वे महावाक्य हमारे भी जीवन का आधार बनें| इन्हें परमात्मा की कृपा द्वारा ही समझा जा सकता है क्योंकि इनके दर्शन ऋषियों को गहन समाधि में हुए| इनकी समाधि भाषा है| इन्हें कोई श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ आचार्य ही समझा सकता है|
सारे उपनिषद् हमें प्रणव यानि ओंकार पर ध्यान करने का आदेश देते हैं| गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण का यही आदेश और उपदेश है| हमारे शास्त्रों में कहीं भी मनुष्य को जन्म से पापी नहीं कहा गया है| अतः हम स्वधर्म पर अडिग रहें और स्वधर्म का पालन करें|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२३ नवम्बर २०१७

समृद्धि और विकास क्या हैं ? हम समृद्ध और विकसित कैसे बनें ?

समृद्धि और विकास क्या हैं ? हम समृद्ध और विकसित कैसे बनें ?
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भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक आवश्यकताओं की निरंतर आपूर्ति ही समृद्धि है| निजात्मा का विकास ही वास्तविक विकास है | समृद्धि आती है अपनी मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक क्षमताओं को विकसित करने से, अतः इन क्षमताओं को विकसित कर के ही हम समृद्ध बन सकते हैं | निजात्मा का विकास ही वास्तविक विकास है जो परमात्मा के प्रति परम प्रेम, समर्पण, और परमात्मा की कृपा से ही हो सकता है |
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हमें क्या चाहिए और हम क्या चाहते हैं, इसमें बहुत अधिक अंतर है | हमें जिस भी वस्तु की या परिस्थिति की आवश्यकता हो वह हमें तुरंत प्राप्त हो जाए यही समृद्धि है | अपने अहंकार की तृप्ति के लिए वस्तुओं को और धन को एकत्र करना कोई समृद्धि नहीं है | ईमानदारी से रुपये कमाना अपराध नहीं है, अपराध तो बेईमानी से अर्जित करना है | रूपयों का सदुपयोग होना चाहिए | दुरुपयोग से हमें भविष्य में दरिद्रता का दुःख भोगना पड़ता है | रुपयों की आवश्यकता तो सब को पडती है चाहे वह साधू, संत, वैरागी हो या गृहस्थ | भूख सब को लगती है, ठण्ड और गर्मी भी सब को लगती है, और बीमार भी सभी पड़ते हैं | भोजन, वस्त्र, निवास और रुग्ण होने पर उपचार के लिए धन आवश्यक है | जितना आवश्यक है उतना धन तो सबको कमाना ही चाहिए पर उसके पश्चात अधिक से अधिक समय परमात्मा के ध्यान में लगाना चाहिए | आज के युग में समाज अभावग्रस्त है | अतः किसी को समाज पर भार नहीं बनना चाहिए | जिन्होनें सब कुछ परमात्मा पर छोड़ दिया है उनकी बात दूसरी है |
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एक आध्यात्मिक पूँजी भी है| उस आध्यात्मिक पूँजी से सम्पन्न होने पर परिस्थितियाँ ऐसी बनती हैं कि भौतिक पूँजी की भी कमी नहीं रहती |
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प्रकृति उपलब्ध जीवों की आवश्यकतानुसार ही उत्पन्न करती है | हमें जितने की आवश्यकता है , उससे अधिक पर यदि हम अपना अधिकार समझते हैं तो यह एक हिंसा ही है | आवश्यकता से अधिक का संग्रह "परिग्रह" कहलाता है | पाँच यमों (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह) में अपरिग्रह भी है, जिनके बिना हम कोई आध्यात्मिक प्रगति नहीं कर सकते| सच्चे साधू संत सबसे बड़े अपरिग्रही होते हैं |
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सभी को शुभ कामनाएँ | ॐ तत्सत् | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
November 22, 2017

एक साथ इतने गुण कहाँ से लायें ? .....

एक साथ हम "निस्त्रैगुण्य", "निर्द्वन्द्व", "नित्यसत्त्वस्थ", "निर्योगक्षेम", व "आत्मवान्" कैसे बनें कभी इस पर भी विचार करें | बनना तो पडेगा ही क्योंकि यह भगवान का आदेश है ......

"त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन |
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्" ||२.४५||

भगवान ने पाँच आदेश एक साथ दे दिए हैं | पर सभी एक दूसरे के पूरक हैं | जब तक हम इस स्थिति में नहीं पहुंचेंगे तब तक पाशों में बंधे ही रहेंगे, और पुनर्जन्म होता ही रहेगा | इसके लिए हमें किन्हीं तत्वज्ञ श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ आचार्य से मार्गदर्शन लेना ही पड़ेगा |
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इसको समझना और व्यवहार रूप में उपलब्ध करना असम्भव तो नहीं पर कठिन अवश्य है | इसको समझने के लिए अर्जुन जैसा शिष्य और भगवान श्रीकृष्ण जैसे गुरु हों, या देवर्षि नारद जैसे शिष्य और भगवान सनत्कुमार जैसे गुरु हों, तभी कल्याण हो सकता है |
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हमारे में पात्रता हो, बस यही आवश्यक है, फिर सब काम हो जाएगा |
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हे प्रभु कल्याण करो | ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

विश्व सुन्दरी प्रतियोगिता का सच ......

विश्व सुन्दरी प्रतियोगिता का सच ......
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मेरा किसी से कोई द्वेष या दुर्भावना नहीं है, जो भी लिख रहा हूँ वह निष्पक्ष है| अतः बिना पूरा लेख पढ़े, कोई अति उत्साही भड़के नहीं और मुझे गालियाँ देना आरम्भ न करे|
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विश्व सुन्दरी प्रतियोगिता आयोजित करवाने वाले संगठन उन व्यापारियों के समूह हैं जो सौंदर्य उत्पादन बेचते हैं| जो संगठन इसकी तैयारी करवाते हैं वे भी सौंदर्य उत्पादनों के व्यापारी है|
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ऐसी प्रतियोगिताओं का एकमात्र उद्देश्य अपने सौंदर्य उत्पादनों का विक्रय बढ़ाना है| यह एक मार्केटिंग टेक्निक मात्र है| पहले तो ये सुन्दर महिलाओं की देह दिखा कर विज्ञापनों से पैसा कमाते हैं| फिर जो सुन्दरी चुनी जाती है उसे एक वर्ष तक उनकी हर शर्त मानने को बाध्य होना पड़ता है और बिना कोई अतिरिक्त पैसे लिए विज्ञापनों का मॉडल बनना पड़ता है| एक वर्ष बाद उसे कोई नहीं पूछता| हाँ, फिल्मों में अभिनय आदि करने या मॉडलिंग के अवसर अवश्य मिल जाते हैं| यह कोई नारी सशक्तिकरण का कार्यक्रम नहीं है|
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जब विदेशी सौंदर्य उत्पादनों की माँग भारत में घट जाती है तब भारत की किसी सुन्दरी को विश्व सुन्दरी चुन लिया जाता है| यह सिर्फ एक मार्केटिंग है|
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विश्व सुन्दरी प्रतियोगिता सुन्दर महिलाओं की नग्न प्राय देह का व्यवसायिक लाभ के लिए किया जाने वाला प्रदर्शन मात्र है| इंच और सेन्टीमीटर में जांघें और नितंब नापे जाते हैं, स्तन सुडौल हैं कि नहीं, होठ मानकों पर खरे उतरते हैं कि नहीं, यह देखा जाता है| फिर आखिर में सुंदरी से रटी रटाई मानवता की बातें पूछी जाती हैं, और विजेता घोषित होने पर उसे रोने का अभिनय करना पड़ता है|
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सौंदर्य उत्पादनों के बाजार की शक्तियाँ अपनी आवश्यकतानुसार इस तरह की प्रतियोगिताएँ करवाती हैं| इसमें कोई उत्साहित होने की आवश्यकता नहीं है| धन्यवाद|

प्रमाद ही मृत्यु है .....

प्रमाद ही मृत्यु है .....
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भक्तिसूत्रों के आचार्य देवर्षि नारद के गुरु भगवान सनत्कुमार ब्रह्मविद्या के प्रथम आचार्य हैं | उन्होंने अपने प्रिय शिष्य देवर्षि नारद को सर्वप्रथम ब्रह्मविद्या का उपदेश दिया था | ब्रह्मा जी के ध्यान के परिणामस्वरूप साक्षात् श्री हरि ने ही इन चारों सनक, सनंदन, सनातन, और सनत्कुमार के रूप में अवतार लिया था | शरीर से ये पाँच वर्ष की आयु वाले लगते थे तथा सर्वदा पाँच वर्ष की आयु के देह में ही रहे, अभी भी ये पाँच वर्ष की आयु के ही लगते हैं | समय समय पर हर युग में ये प्रकट हुए हैं |
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भगवान सनत्कुमार ने अपने उपदेशों में मृत्यु के अस्तित्व को नकार दिया है | महाभारत काल में महात्मा विदुर की प्रार्थना मान कर ये प्रकट हुए और धृतराष्ट्र को भी उपदेश दिए जो सनत्सुजातीय ग्रन्थ में उपलब्ध हैं | उन का कथन था .. "प्रमादो वै मृत्युमहं ब्रवीमि", अर्थात् प्रमाद ही मृत्यु है | अपने "अच्युत स्वरूप" को भूलकर "च्युत" हो जाना ही प्रमाद है और इसी का नाम "मृत्यु" है | जहाँ अपने अच्युत भाव से च्युत हुए, बस वहीँ मृत्यु है |

भगवान सनत्कुमार की जय हो | ॐ नमो भगवते सनत्कुमाराय |
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दुर्गा सप्तशती में 'महिषासुर' --- प्रमाद --- यानि आलस्य रूपी तमोगुण का ही प्रतीक है | आलस्य यानि प्रमाद को समर्पित होने का अर्थ है -- 'महिषासुर' को अपनी सत्ता सौंपना |
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तैत्तिरीयोपनिषद् भी प्रमाद से बचने का उपदेश देता है ......
धर्मं चर स्वाध्यायात् मा प्रमदः आचार्याय प्रियं धनम् आहृत्य प्रजा - तन्तुं मा व्यवच्छेत्सीः सत्यात् न प्रमदितव्यम् धर्मात् न प्रमदितव्यम्। कुशलात् न प्रमदितव्यम् भूत्यै न प्रमदितव्यम् स्वाधायप्रवचनाभ्यां न प्रमदितव्यम् |
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हे भगवन आपकी जय हो | सभी का कल्याण करो | हमें धर्म, स्वाध्याय, और सत्य के पालन में कभी प्रमाद न हो | हम अपने अच्युत स्वरुप में रहें, कभी च्युत न हों |
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ओम् सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै |
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ||"
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभि र्व्यशेम देवहितं यदायुः ||
स्वस्ति न इन्द्रो वॄद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः |
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ||
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते |
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ||
ॐ शान्ति शान्ति शान्ति |

कृपा शंकर
१९ नवम्बर २०१७

मैं सिर्फ भारतीय मूल की देसी गायों को ही गौमाता मानता हूँ ....

गौ वंश की रक्षा ......

मैं सिर्फ भारतीय मूल की देसी गायों को ही गौमाता मानता हूँ |

विदेशी नस्ल की विलायती गायें जिन्हें सूअर के जीन के साथ मिलाकर विकसित किया गया है, गौमाता नहीं हो सकतीं | इन विलायती गायों के बछड़े किसी काम के नहीं होते | इन्होने किसानों को दुखी कर रखा है |
मेरा सुझाव है कि विलायती गायों को गौ रक्षण क़ानून से बाहर रखा जाए | गौ रक्षण सिर्फ देसी गायों का ही हो |

ॐ ॐ ॐ !!

मुझे मोक्ष या मुक्ति नहीं चाहिए ....

मुझे ऐसा कोई मोक्ष या ऐसी कोई मुक्ति नहीं चाहिए जैसी सांसारिक लोगों की अवधारणा है| मुझे परमात्मा का कार्य करने के लिए बार बार पुनर्जन्म और लाख गुणा अधिक उत्साह और अखंड ऊर्जा चाहिए|

भगवान परमशिव से प्रार्थना है कि मेरा अगला जन्म ऐसे माँ-बाप के यहाँ हो जो वेदों के पूर्ण मर्मज्ञ हों, जिनसे मैं वेदों का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर सकूँ| जन्म भी ऐसी प्रज्ञा और बौद्धिक प्रतिभा के साथ हो जो वेदों की समाधि भाषा को समझने में समर्थ हो|

प्रारब्धवश इस जन्म में तो बुद्धि में इतना कूड़ा-कचरा बैठा है कि मैं उपनिषदों की भाषा भी समझ नहीं पा रहा हूँ, यह मेरा दुर्भाग्य है|

पर इस जन्म में भी मरते दम तक ध्यान साधना व स्वाध्याय तो चलता ही रहेगा| आत्मा नित्य मुक्त है| मैं भी नित्य मुक्त था, नित्य मुक्त हूँ, और नित्य मुक्त रहूँगा| बुद्धि पर एक कोहरा सा छाया हुआ है जो निश्चित रूप से शीघ्र ही दूर होगा|

मैं निश्चित रूप से परमात्मा के साथ एक हूँ और सदा एक रहूँगा| उनका प्रेम मेरा प्रेम है, और उनकी पूर्णता ही मेरी पूर्णता है|

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ !!