Friday 29 December 2017

भस्म, त्रिपुंड एवं रुद्राक्षमाला धारण किये बगैर शिवपूजा उतनी फलदायिनी नहीं होती .....

भस्म, त्रिपुंड एवं रुद्राक्षमाला धारण किये बगैर शिवपूजा उतनी फलदायिनी नहीं होती .....
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इस विषय पर पुराणोक्त एक कथा है कि मतिहीन कामदेव ने ध्यानस्थ शिव जी को कामोद्दीप्त करने के लिए कामवाण चलाया था| जिस से शिव जी की समाधी भंग हुई और उनकी क्रोधाग्नि में कामदेव जल कर भस्म हो गया| कामदेव की पत्नी रति के करुण विलाप से द्रवित होकर आशुतोष भगवान शिव ने कामदेव के शरीर की भस्म को अपने शरीर पर लेप लिया और कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया| मनोभव यानि मन से उत्पन्न होने वाले कंदर्प यानि कामदेव की भस्म को अपनी देह पर रमाकर भगवान शिव ने सस्नेह घोषणा की कि 'आज से भक्त/अभक्त सबके देहावाशेषों की भस्म ही मेरा श्रेष्ठ भूषण होगी|' शैव ग्रंथों में लिखा है कि --- भस्म, त्रिपुंड एवं रुद्राक्षमाला धारण किये बगैर शिवपूजा उतनी फलदायिनी नहीं होती| इसीलिए शिवभक्त भस्म, त्रिपुंड और रुद्राक्ष माला धारण करते हैं| यह कथा ब्रह्मचर्य और वैराग्य की महिमा को भी प्रकाशित करती है|
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भस्मलेप को अग्नि-स्नान माना जाता है| यामल तंत्र के अनुसार सात प्रकार के स्नानों में अग्नि-स्नान सर्वश्रेष्ठ है| भस्म देह की गन्दगी को दूर करता है| भगवान शिव ने अपने लिए आग्नेय स्नान को चुन रखा है| शैवागम के तन्त्र ग्रंथों में इस विषय पर एक बड़ा विलक्षण बर्णन है जो ज्ञान की पराकाष्ठा है| 'भ'कार शब्द की व्याख्या भगवान शिव पार्वती जी को करते हैं .....

"भकारम् श्रुणु चार्वंगी स्वयं परमकुंडली|
महामोक्षप्रदं वर्ण तरुणादित्य संप्रभं ||
त्रिशक्तिसहितं वर्ण विविन्दुं सहितं प्रिये|
आत्मादि तत्त्वसंयुक्तं भकारं प्रणमाम्यह्म्||"
महादेवी को संबोधित करते हुए महादेव कहते हैं कि हे (चारू+अंगी) सुन्दर देह धारिणी, 'भ'कार 'परमकुंडली' है| यह महामोक्षदायी है जो सूर्य की तरह तेजोद्दीप्त है| इसमें तीनों देवों की शक्तियां निहित हैं|
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यहाँ 'परमकुंडली' का अर्थ बताना अति आवश्यक है| मूलाधार से आज्ञाचक्र तक का मार्ग अपरा सुषुम्ना है| जब कुण्डलिनी महाशक्ति गुरुकृपा से आज्ञाचक्र को भेद कर सहस्त्रार में प्रवेश करती है तब वह मार्ग उत्तरा सुषुम्ना है| अपरा सुषुम्ना में कुण्डलिनी जागती है, और उत्तरा सुषुम्ना के मार्ग में यह "परमकुंडली" कहलाती है|
महादेव 'भ'कार द्वारा उस महामोक्षदायी परमकुण्डली की ओर संकेत करते हुए ज्ञानी साधकों की दृष्टि आकर्षित करते हुए उन्हें कुंडली जागृत कर के उत्तरा सुषुम्ना की ओर बढने की प्रेरणा देते हैं कि वे शिवमय हो जाएँ|
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शिवमस्तु ! ॐ स्वस्ति ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३१ मई २०१३

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