Friday 29 December 2017

क्रिसमस, बड़ा दिन, ईसा मसीह का जन्मदिन और उत्सव .......

क्रिसमस, बड़ा दिन, ईसा मसीह का जन्मदिन और उत्सव .......
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विश्व में २५ दिसंबर को ईसा मसीह के जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं| पर इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि ईसा मसीह का जन्म २५ दिसंबर को ही हुआ था| रोमन सम्राट कोंस्टेटाइन द ग्रेट के आदेश से ही २५ दिसंबर को ईसा मसीह के जन्मदिवस के रूप में मनाना आरम्भ किया गया था| पर यह सम्राट स्वयं ईसाई नहीं था बल्कि सूर्य का उपासक एक pagan विधर्मी था| इसने ईसाईयत का उपयोग अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए किया| जब यह अपनी मृत्यु शैय्या पर असहाय था तब पादरियों ने बपतीस्मा पढ़कर बलात इसको ईसाई बना दिया| इस विषय के विद्वान् ही जानते होंगे या किसी को पता ही नहीं होगा कि ईसा मसीह का जन्म कब हुआ था| यह मैंने जिज्ञासावश ही लिखा है, किसी से मेरा कोई द्वेष नहीं है| सभी श्रद्धालुओं को मैं क्रिसमस की शुभ कामनाएँ अर्पित करता हूँ|
(पश्चिमी जगत के ही कुछ शोधकर्ता यह दावा भी कर रहे हैं कि जीसस क्राइस्ट नाम का व्यक्ति कभी हुआ ही नहीं| उन के अनुसार सैंट पॉल नाम के पादरी के मन की कल्पना और प्रचार ही जीसस क्राइस्ट की वास्तविकता है|)
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बड़ा दिन एक ज्योतिषीय घटना मात्र है| बचपन से २५ दिसंबर को ही मैं बड़ा दिन सुनता आया था, पर ज्योतिषीय दृष्टी से यह हमारे लिए बड़ा दिन नहीं है| इस दिन किसी जमाने में उत्तरी गोलार्ध में सबसे लम्बी रात, और दक्षिणी गोलार्ध में सबसे लंबा दिन होता था| पर आजकल ऐसा २१ दिसंबर के आगे पीछे होता है| अंग्रेजों के राज्य में क्रिसमस सबसे बड़े त्यौहार के रूप में मनाया जाता था इसलिए इस दिन का नाम "बड़ा दिन" पड़ गया| ज्योतिषीय दृष्टी से तो यह छोटा दिन है क्योंकि इन दिनों उत्तरी गोलार्ध में दिन बहुत छोटे होते हैं और रात बहुत लम्बी होती है| उत्तरी गोलार्ध में सबसे बड़ा दिन तो २१ जून के आगे पीछे होता है| "क्रिसमस" शब्द संभवतः "कृष्ण मास" से बना है| मुझे ज्योतिषीय गणना का ज्ञान नहीं है अतः इस विषय पर और नहीं लिख सकता| यह ज्योतिषियों का विषय है|
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भगवान की भक्ति एकांत में मन लगाकर होती है| सार्वजनिक रूप से करनी है तो भजन-कीर्तन व सामूहिक ध्यान द्वारा होती है| उसमें कोई नशा कर के नाच-गाना नहीं होता| नशे में नाचना-गाना एक मानसिक मनोरंजन मात्र है, कोई भक्ति नहीं| पर अधिकाँश श्रद्धालु क्रिसमस पर शराब पी कर, टर्की (एक प्रकार की बतख) का मांस ब्रेड सॉस के साथ खाकर, और नाच गा कर उत्सव मनाते हैं| यह मूल रूप से स्पेन और पुर्तगाल की परम्परा है जो आजकल भारत में खूब प्रचलित हो गयी है|
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सौभाग्य से मैंने दो-तीन बार ऐसे निष्ठावान श्रद्धालु, जन्म से ही ईसाई विदेशी भक्तों के साथ भी क्रिसमस मनाई है जिन्होनें पूरी रात भगवान का ध्यान किया और भजन गाये| कोई नशा नहीं, कोई मांसाहार नहीं, ऐसे आस्थावान भी होते हैं|
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ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
२५ दिसंबर २०१७

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